अमेरिकी अरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस ने भारत को लेकर विवादित बयान दिया है। जार्ज सोरोस ने कहा कि अडानी मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय संसद में जवाब देना होगा। उसने कहा कि अडानी के कारोबारी साम्राज्य में मची उथल-पुथल से शेयर बाजार में बिकवाली आई है और इससे निवेश के अवसर के रूप में भारत में विश्वास हिला है। उसने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे कमजोर होंगे और इससे देश में लोकतांत्रिक पुनरुद्धार (Democratic Revival) के द्वार खुलेंगे। किसी विदेशी ताकत द्वारा भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर इस तरह खुलकर वार शायद पहली बार किया गया है। इसे कोई भी देशवासी बर्दाश्त नहीं कर सकता। भारत और पीएम मोदी को कमजोर करने की इस साजिश का देश के 140 करोड़ देशवासी मुंहतोड़ जवाब देंगे।
Is Soros behind Adani issue to target Modi?
George Soros says- "Modi will have to answer on Adani in Parliament. This will significantly weaken Modi's stranglehold on India's federal govt."
"I expect a democratic revival in India" pic.twitter.com/P7wwh7U7qz
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) February 17, 2023
सोरोस ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अडानी मुद्दा क्यों उठाया?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सोरोस ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में अडानी मुद्दा क्यों उठाया? सोरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर क्रोनी कैपटलिज्म को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी और अडानी करीबी सहयोगी हैं। उनका भाग्य आपस में जुड़ा हुआ है। सोरोस ने यह टिप्पणी 16 फरवरी 2023 को जर्मनी में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन से पहले टेक्निकल यूनिवर्सिटी आफ म्यूनिख में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए की। सोरोस ने कहा कि अडानी एंटरप्राइजेज ने शेयर बाजार में धन जुटाने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। अडानी पर स्टॉक हेरफेर का आरोप है। उनका स्टॉक रेत की महल की तरह ढह गया है। सोरोस का यह बयान हिंडनबर्ग रिपोर्ट के करीब तीन हफ्ते बाद आया है। इससे आप समझ सकते हैं कि बीबीसी डॉक्यूमेंट्री और हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पीछे कौन लोग हैं। ये वही लोग हैं जो भारत को कमजोर करना चाहते हैं।
Just a month prior to Oxford event , he tried to incite caste war in India https://t.co/wyXbvWNZBl
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) February 17, 2023
सोरोस की तरह भारत को कमजोर करने वाली भाषा क्यों बोलते हैं राहुल गांधी
जार्ज सोरोस के बयान पर गौर करें तो आपको पता चलेगा कि इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल तो राहुल गांधी भी करते रहे हैं। राहुल गांधी ही नहीं, लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम से जुड़े विपक्षी दलों के कई और नेता भी इसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। कई बार वे इस तरह की भाषा बोलते हैं कि जिससे आंदोलन भड़के। इससे यह भी साबित हो गया कि कांग्रेसियों, वामपंथियों, उदारवादी धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों, शहरी नक्सलियों के पीछे कौन व्यक्ति खड़ा है। उसके चेहरे से नकाब उतर चुका है। अब भारत के 140 करोड़ देशवासियों के कंधे पर जिम्मेदारी आ गई है कि वे भारत को कमजोर करने वाली इन विदेशी ताकतों को उखाड़ फेंके। और उन विदेशी ताकतों के साथ खड़े देश के जयचंदों को बेनकाब करे।
Finally the Snake🐍 coming out in open 🤗 pic.twitter.com/dbZQvRNxVY
— THE CLEAR VOICE (@ShailenVoiced) February 17, 2023
भारत में विदेशी ताकतों के हितों का संरक्षण चाहता है जार्ज सोरोस
जिस भाषा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी पीएम मोदी पर हमला करते हैं उसी तरह की भाषा का इस्तेमाल जॉर्ज सोरोस क्यों करते हैं। इस पर हर देशवासी को सोचने और समझने की जरूरत है। जार्ज सोरोस हिंदुस्तान में विदेशी ताकत के तहत एक ऐसी व्यवस्था बनाना चाहता है जो हिंदुस्तान नहीं, बल्कि उन विदेशी ताकतों के हितों का संरक्षण करेगी। जॉर्ज सोरोस का यह ऐलान कि वो हिंदुस्तान में मोदी को झुका देंगे, हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार को ध्वस्त करेंगे। इससे उसकी नापाक मंसूबे ही जाहिर होते हैं और इसका मुंहतोड़ जवाब हर देशवासी देगा।
My first tweet after Hindenburg happed was and Soros video proves it right!pic.twitter.com/lCXAAyXnSF https://t.co/nyPBWUlXqf
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) February 17, 2023
सोरोस को भारत से इतना लगाव क्यों? दावोस में उठाया था कश्मीर मुद्दा
सोरोस को आखिर भारत से इतना लगाव क्यों है, यह एक सहज सवाल में मन में आता है। जनवरी 2020 में जॉर्ज सोरोस ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच (WEF) के कार्यक्रम में कश्मीर और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी पर बड़ा हमला बोला था। उसने कहा कि देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आए पीएम मोदी कश्मीर में प्रतिबंध लगाकर वहां लोगों को दंडित कर रहे हैं और लाखों मुसलमानों से नागरिकता छीनने की धमकी दे रहे हैं। उसने यह भी कहा कि पीएम मोदी भारत को एक हिंदू राष्ट्र बना रहे हैं।
सोरोस कश्मीर मुद्दा उठाकर देश को करना चाहते हैं अस्थिर
देश को हिंदू-मुसलमान में बांटकर सोरोस देश को कमजोर कर अपने मंसूबे में कामयाब होना चाहते हैं। इसीलिए वे कश्मीर मुद्दा बार-बार उठाकर देश में भावनाएं भड़काकर देश को अस्थिर करने में लगे हुए हैं। सोरोस कहते हैं कि नरेंद्र मोदी हिंदू राष्ट्रवादियों का देश बना रहे हैं, अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र कश्मीर पर दंडात्मक कार्रवाई कर रहे हैं और लाखों मुसलमानों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की धमकी दे रहे हैं। कितना झूठ फैलाया जा रहा है यह देख लीजिए। कश्मीर में किस मुसलमान की नागरिकता गई है बल्कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कश्मीर खुशहाली की ओर बढ़ रहा है। लेकिन दुख की बात यह है कि देश के कुछ नेता और राजनीतिक दल सोरोस की बातों में सुर में सुर मिलाते दिख जाते हैं और जनता को यह सब दिख रहा है।
सोरोस ने राष्ट्रवाद से लड़ने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने का किया ऐलान
सोरोस ने साल 2020 में वैश्विक विश्वविद्यालय की शुरूआत करने के लिए 100 करोड़ डॉलर देने की बात कही थी। उसने कहा था कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ‘राष्ट्रवादियों से लड़ने’ के लिए की जाएगी। सोरोस ने ‘अधिनायकवादी सरकारों’ और जलवायु परिवर्तन को अस्तित्व के लिए खतरा बताया था। सोरोस ने कहा था कि राष्ट्रवाद अब बहुत आगे निकल गया है। सबसे बड़ा और सबसे भयावह झटका भारत को लगा है, क्योंकि वहां लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नरेंद्र मोदी भारत को एक हिन्दू राष्ट्रवादी देश बना रहे हैं।
पीएम मोदी को क्यों हटाना चाहता है अमेरिका का अरबपति सोरोस?
सोरोस ने भारत को उन देशों में बताया जहां राष्ट्रवाद अपने लिए रास्ता बना रहा है। लेकिन यह समझ से परे है कि इससे सोरोस को क्यों तकलीफ हो रही है। पीएम मोदी अगर कहते हैं कि राष्ट्र प्रथम तो इससे उन्हें क्यों परेशानी हो रही है। अगर इसकी तह में जाएं तो हम पाते हैं कि पीएम मोदी के नेतृत्व में उन विदेशी ताकतों की दाल नहीं गल रही है, उनका कारोबार, उनका कमीशन नहीं बन रहा है जिससे वे तिलमिलाए हुए हैं। और उनके इस खेल भारतीय भी शामिल हैं जिन्हें 50 सालों से कमीशन खाने की आदत हो चुकी है।
भारत रूस से तेल खरीद कर मुनाफा कमा रहा, सोरोस को इससे भी दिक्कत
सोरोस ने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत का मामला दिलचस्प है। भारत लोकतांत्रिक देश है लेकिन नरेंद्र मोदी नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। मोदी के तेजी से बड़ा नेता बनने के पीछे अहम वजह मुस्लिमों के साथ की गई हिंसा है। सोरोस ने कहा कि भारत क्वाड का मेंबर है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान भी उसके साथ है। लेकिन भारत इसके बावजूद रूस से बड़े डिस्काउंट पर तेल खरीद रहा है और मुनाफा कमा रहा।
विदेशी धरती से भारतीय लोकतांत्रिक ढांचे को हिलाने का प्रयास
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई टिप्पणी को लेकर पलटवार किया है। स्मृति ईरानी ने कहा कि विदेशी धरती से भारतीय लोकतांत्रिक ढांचे को हिलाने का प्रयास किया जा रहा है। जॉर्ज सोरोस ने भारत के लोकतंत्र में दखल देने की कोशिश की है और पीएम मोदी उनके निशाने पर हैं। उन्होंने जॉर्ज सोरोस पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस व्यक्ति ने इंग्लैंड के बैंक को तोड़ दिया, एक व्यक्ति जिसे आर्थिक युद्ध अपराधी के रूप में नामित किया गया है, उसने अब भारतीय लोकतंत्र को तोड़ने का ऐलान किया है।
“India is a union of states where several states got together and created a NEGOTIATED PEACE”- so India is nothing but a bottom up NEGOTIATED PEACE ARRANGEMENT per @RahulGandhi pic.twitter.com/b4v1vIv7CC
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) May 21, 2022
राहुल गांधी और सोरोस की जुगलबंदी क्या कहती है?
सलिल शेट्टी जार्ज सोरोस के एनजीओ ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन में 2018 से वैश्विक उपाध्यक्ष हैं। शेट्टी राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा ले चुके हैं। इससे कांग्रेस और सोरोस के बीच नजदीकी और संबंध को समझ सकते हैं। शेट्टी 2010 से 2018 तक एमनेस्टी इंटरनेशनल के महासचिव थे, वह 2003 से 2010 तक संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी अभियान के निदेशक के पद पर थे। वह एक्शनएड केन्या और एक्शनएड इंडिया का नेतृत्व करने के बाद एक्शनएड इंटरनेशनल के मुख्य कार्यकारी थे।
राजीव गांधी फाउंडेशन को सोरोस की संस्था करती थी फंडिंग
राजीव गांधी फाउंडेशन ने जर्मन एनजीओ फ्रेडरिक नौमन फाउंडेशन (Friedrich Nauman Foundation) से धन प्राप्त किया था जो कि सोरोस द्वारा वित्त पोषित किया गया। क्लिंटन फाउंडेशन ने भी राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को समर्थन दिया था और क्लिंटन फाउंडेशन को सोरोस फंड करता है। राजीव गांधी फाउंडेशन 2007-08 में ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़ा था। सोरोस पर आरोप है कि वह कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन, शहरी नक्सलियों को समर्थन, रोहिंग्याओं को समर्थन, देशद्रोह विरोधी कानून का समर्थन करने के लिए फंडिंग करता है। सोरोस अमेरिकी खुफिया एजेंसी CiA के साथ मिलकर दुनियाभर में सरकारें बदलने के लिए काम करता है। यह सर्वज्ञात है कि CiA ने अमेरिकी आदेशों का पालन नहीं करने वाली सरकारों को हटाने के लिए कई देशों में विपक्षी दलों को फंड दिया।
वेबसाइट ALTNEWS को भी अप्रत्यक्ष रूप से सोरोस से फंड मिला
क्या आप जानते हैं कि फैक्ट-चेक के नाम पर प्रोपेगेंडा करने वाली वेबसाइट ALTNEWS के संस्थापक को भी अप्रत्यक्ष रूप से सोरोस से धन प्राप्त हुआ है? एक एनजीओ एचआरएनएल (HRNL) है जिसके फाउंडर कॉलिन गोंजाल्विस हैं। एचआरएनएल की पुरानी वेबसाइट के विवरण के अनुसार, जनहित एनजीओ (Janhit NGO) गुजरात में उनके सहयोगी के रूप में काम कर रहा था। यह जनहित HRNL और जन संघर्ष मंच का संयुक्त उपक्रम था जिसके मालिक प्रतीक सिन्हा के माता पिता थे!
HRNL के डोनर में सोरोस, फोर्ड फाउंडेशन, टाटा ट्रस्ट और कई अन्य ईसाई संगठनों और पश्चिमी दूतावासों के सोसाइटी फाउंडेशन शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनकी एक शाखा श्रीनगर में थी जो हुर्रियत कार्यालय के बहुत करीब थी। और यह संयोग नहीं है कि वह एचआरएलएन के संस्थापक कॉलिन गोंजाल्विस ही थे जिन्होंने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में ALTNEWS के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर का केस लड़ा।
Two NGOs who are behind the #Pegasus story are funded by George Soros.
And George Soros have connections with Gandhi Family too.
Watch the full video of the international nexus behind the propagandahttps://t.co/Muwei8aCD3 pic.twitter.com/PvajFJHB9W
— Vijay Patel🇮🇳 (@vijaygajera) July 23, 2021
पेगासस मामला उछालने के पीछे जोर्ज सोरोस का हाथ
मोदी सरकार की छवि खराब करने के लिए जुलाई 2021 में पेगासस जासूसी मामला उछाला गया था। इसे लेकर राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय वामपंथी मीडिया हाउस भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर कई पत्रकारों की जासूसी के आरोप लगा चुकी हैं। इस पेगासस रिपोर्ट की तह में जायें तो ये कुछ और नहीं, बल्कि जॉर्ज सोरोस का प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ प्रोपेगेंडा दिखाई देगा। पेगासस रिपोर्ट के पीछे दो गैर सरकारी संगठन यानी Amnesty और forbidden stories हैं। अगर इन दोनों ही संगठन की जांच पड़ताल की जाये तो ये बात सामने आती है कि दोनों की ही फंडिंग में जॉर्ज सोरोस का हाथ है जो पीएम मोदी को सत्ता से हटाने की कोशिशों में शामिल रहे हैं।
जॉर्ज सोरोस की संस्थाओं पर कई देश लगा चुके पाबंदी
जॉर्ज सोरोस पर यह आरोप हमेशा से लगते रहे हैं कि वे कई देशों में सरकारें बदलने के लिए काम करते हैं। दुनिया के विभिन्न देशों में कारोबार और समाजसेवा के नाम पर सोरोस की वहां की राजनीति को प्रभावित करते हैं और इसके लिए जॉर्ज सोरोस अपनी दौलत का इस्तेमाल भी करता है। यही कारण है कि कुछ देशों ने उनकी संस्थाओं पर पाबंदी भी लगाई है और कुछ देश उनकी संस्थाओं पर जुर्माना भी लगा चुके हैं।
Orange revolution – Ukraine
Tulip revolution – Kyrgyzstan
Rose revolution – Georgia
Yellow revolution – Philipines
Velvet revolution – Czechoslovakia
Arab spring – Tunisia, Egypt, Lennon, SyriaThese revolutions r carried out by NGO's that r funded by Soros pic.twitter.com/ElMKj8zvls
— ST⭐R Boy (Agenda Buster) (@Starboy2079) February 17, 2023
जार्ज सोरोस दर्जनों देशों में कर चुके सत्ता परिवर्तन का खेल
देशों में आंदोलन खड़ा करके सत्ता परिवर्तन कराने के खेल में माहिर हो चुके जार्ज सोरोस ने हाल के वर्षों में यूक्रेन, किर्गिस्तान, जॉर्जिया, जॉर्जिया, फिलीपींस, चेकोस्लोवाकिया, ट्यूनीशिया, मिस्र, लेनन, सीरिया में सत्ता परिवर्तन करा चुके हैं। किस देश में किस क्रांति से सत्ता परिवर्तन हुआ है, नीचे देखिए-
नारंगी क्रांति – यूक्रेन
ट्यूलिप क्रांति – किर्गिस्तान
गुलाब क्रांति – जॉर्जिया
पीली क्रांति – फिलीपींस
मखमली क्रांति – चेकोस्लोवाकिया
अरब वसंत – ट्यूनीशिया, मिस्र, लेनन, सीरिया
इन क्रांतियों को गैर-सरकारी संगठनों द्वारा अंजाम दिया गया जिन्हें सोरोस द्वारा वित्त पोषित किया गया। इन देशों में सोरोस विरोधी सरकार को हटाकर सोरोस समर्थक सरकार स्थापित किया गया। सोरोस समर्थक सरकार एक कठपुतली सरकार के रूप में काम करती है। ये कठपुतली नेता विदेशी ताकतों के हित के लिए अपने देश को नष्ट कर देते हैं।
शासन परिवर्तन 10 चरणों में कैसे किया जाता है, इसे इस वीडियो में देखें
10 steps on how a regime change happens. Watch the video in the thread to understand. pic.twitter.com/XlF5vcYuGR
— Wasooli bhai (@oychunalagadiya) February 17, 2023
कांग्रेस रोज कर रही अडानी पर ट्वीट, लोग ऊब चुके
अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि सोरोस को साथ देने के लिए कांग्रेस रोज अडानी पर ट्वीट कर रही है.. लेकिन आप देखेंगे कि प्रतिक्रियाएं दिन-ब-दिन कम होती जा रही हैं। लोग उनके मोदी-अडानी से ऊब गए हैं। भारत के लोग महसूस कर रहे हैं कि मोदी उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, विकास महत्वपूर्ण है मजबूत भारत महत्वपूर्ण है।
देशवासी जागें और सोरोस को सबक सिखाएं
सोरोस सत्ता परिवर्तन का खेल अब भारत में करना चाहता है। भारतीय लोगों के लिए समय आ गया है कि वे इन पश्चिमी वैश्विकतावादी अभिजात वर्ग को सबक सिखाएं जो भारतीय लोकतंत्र को नियंत्रित करना चाहते हैं। जो भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करना चाहते हैं। जो भारत के विकास के पथ को रोकना चाहते हैं। जो आत्मनिर्भर होते भारत को फिर से दूसरों पर आश्रित देखना चाहते हैं। जो एक मजबूत भारत नहीं देखना चाहते। जो पीएम मोदी को कमजोर करना चाहते हैं। इन सभी शक्तियों को आज मुंहतोड़ जवाब देने की घड़ी आ गई है।
देश ने मोदी को दिल में बसाया, 2024 सोरोस के सपनों का अंत होगा
सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं भारतीय मतदाताओं को प्रभावित करने वाला यह सोरोस कौन होता है। भारतीय मतदाता निश्चित रूप से 2024 में मोदी जी को फिर से वापस लाएगा! अडानी भारत नहीं है। भारत में अडानी जैसे अनगिनत उद्योगपति हैं। 2024 सोरोस के सपनों का अंत होगा। जिन देशों में उन्होंने शासन परिवर्तन की कोशिश की, वे तुलनात्मक रूप से छोटे थे। भारत में ऐसा कुछ करने की कोशिश करना मुश्किल है। अब देश ने मोदी को दिल में बसा लिया है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और डीप स्टेट पीएम मोदी को सत्ता से बाहर क्यों करना चाहती है, इसे कुछ बिंदुओं में समझें-
मोदी सरकार को सत्ता से हटाने में CIA पूरी ताकत से जुटा
पीएम मोदी के नेतृत्व में नया भारत जिस तरह से मजबूत हो रहा है वह अमेरिका को नहीं सुहा रहा है और अब वह मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए साजिशें रच रहा है। इसके लिए वह देश के विपक्षी दलों, देशविरोधी गतिविधियों में शामिल तत्वों, लेफ्ट-लिबरल गैंग, खान मार्केट गैंग और अर्बन नक्सलियों को हर तरह से मदद पहुंचा रहा है। इस संबंध में दडायरेक्टरीचडॉटकॉम ने एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें मोदी शासन के खिलाफ अमेरिका साजिश का पर्दाफाश किया गया था। लेख में कहा गया है कि मोदी शासन को सत्ता से हटाने के लिए अमेरिका पूरी ताकत से मेहनत कर रहा है। इसके लिए हिलेरी-ओबामा भी इस साजिश का हिस्सा हैं जो कि बाइडन के पीछे की वास्तविक शक्ति हैं। पीएम मोदी के साथ समस्या यह नहीं है कि वह एक हिंदू राष्ट्रवादी हैं, बल्कि यह है कि उन्हें खरीदा नहीं जा सकता। यानी विदेशी ताकतों का हित नहीं सध रहा है।
Victoria is known as the regime change agent of the US Deep State. She is the architect of the EUROMAIDAN Protests in Ukraine in 2013.
Her dangerous capability is evident in this. 2/n pic.twitter.com/hRK4mTk5ie— Anti Propaganda Front (@APF_Ind) October 11, 2022
विक्टोरिया नुलैंडः यूएस डीप स्टेट की शासन परिवर्तन एजेंट, मार्च 2022 में भारत आई थी
ओबामा हिलेरी कैबल (The Obama Hillary Cabal) आर्म्स, फार्मा और ऑयल लॉबी को नियंत्रित करती है और इसमें 3 महिलाएं हैं: सुसान राइस, सामंथा पावर और विक्टोरिया नुलैंड। विक्टोरिया को यूएस डीप स्टेट के शासन परिवर्तन एजेंट के रूप में जाना जाता है। 2013 में यूक्रेन में EUROMAIDAN विरोध प्रदर्शन के पीछे विक्टोरिया का ही हाथ था। मार्च 2022 में दिल्ली की अपनी यात्रा पर, वह खुले तौर पर लेफ्ट-लिबरल गिरोह, पत्रिकारों, जनहित याचिका कार्यकर्ताओं से मिलीं और तमिलनाडु राज्य के नेताओं के साथ गुप्त बैठकें कीं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि राहुल गांदी और डीएमके इसके बाद यूनियन ऑफ स्टेट्स मॉडल की बात कर रहे हैं। ये उसी बैठक का नतीजा है। इसी बैठक के बाद भारत जोड़ो यात्रा हुई, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री और हिंडनबर्ग रिपोर्ट आई। आने वाले दिनों में कुछ नए नैरेटिव सामने आएंगे।
यूक्रेन में EUROMAIDAN विरोध प्रदर्शन और तख्तापलट में नूलैंड की भूमिका
यह विरोध यूक्रेन सरकार के अचानक निर्णय बदले जाने के बाद हुआ। इसके तहत यूक्रेन ने यूरोपीय संघ-यूक्रेन एसोसिएशन समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया और रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने को चुना। CIA को यह मंजूर नहीं था। फरवरी 2014 में यूक्रेनी राजधानी में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच घातक संघर्ष, निर्वाचित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को हटाने और यूक्रेनी सरकार को उखाड़ फेंकने में परिणत हुआ। तत्काल यूक्रेन में अमेरिकी समर्थक राष्ट्रपति बनाए गए और हंटर बाइडेन (वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के बेटे) यूक्रेन में जा पहुंचे और व्यवसायों में भागीदार बन गए। ये नूलैंड और अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े कारोबारी थे।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, NYT लगातार चला रहा मोदी विरोध का प्रोपेगेंडा
पीएम मोदी को सत्ता हटाने की साजिश रच रहा पश्चिमी मीडिया भारत की छवि खराब करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता है, फिर चाहे वह कोविड काल हो, किसान आंदोलन हो, चीन के साथ सीमा विवाद हो या फिर भारत में होने वाले कोई दंगे हों। अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स (NYT) भारत की छवि करने वाले मीडिया संगठनों में सबसे आगे है। इसका सबसे बड़ा सबूत 1 जुलाई 2021 को तब देखने को मिला जब NYT ने जॉब रिक्रूटमेंट पोस्ट निकाली। दिल्ली में साउथ एशिया बिजनेस संवाददाता के लिए नौकरी निकाली गई थी। इसमें नौकरी के लिए शर्तें बेहद आपत्तिजनक थी। पत्रकारों के लिए आवेदन में ‘एंटी इंडिया’ सोच होना, ‘हिंदू विरोधी’ सोच होना और ‘एंटी मोदी’ होना भी जरूरी था। अब इससे साफ हो जाता है कि NYT का भारत के प्रति नजरिया क्या है और किस एजेंडे को वह आगे बढ़ा रहा है।
भारत में 2024 का आम चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे मोदी सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिशें भी तेज होती जा रही हैं। इस साजिश में विपक्षी दलों के सदस्यों और वकीलों के अलावा कुछ अप्रवासी भारतीय और विदेशी दूतावास शामिल हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी और भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कद से परेशान हैं।
पीएम मोदी के खिलाफ दिल्ली और लंदन में कई दौर की बैठकें
न्यूज वेबसाइट sundayguardianlive.com ने “Some PIOs and European officials plan government change in 2024” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें चौकाने वाला खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए 2021 से साजिशें की जा रही हैं। इसके लिए दिल्ली और लंदन में कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों में भारतीय मूल के व्यक्ति (पीआईओ) और कुछ विदेशी दूतावासों के सदस्य शामिल रहे हैं। The Sunday Guardian ने इन बैठकों में मौजूद रहे लोगों के हवाले से बताया है कि बैठकों में मोदी सरकार को हटाने के लिए व्यापक विचार-विमर्श किया गया और 2024 के आम चुनाव से पहले सरकार के खिलाफ व्यापक अभियान चलाने की रणनीति बनाई गई।
पिछले तीन महीने में दिल्ली में तीन बैठकों का आयोजन
इस रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह मोदी सरकार को हटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिशें की जा रही है, वो भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप के समान है। पिछले तीन महीनों में दिल्ली में भी ऐसी कम से कम तीन बैठकें हो चुकी हैं। इनमें से एक बैठक दक्षिणी दिल्ली के मोती बाग में एक निजी आवास पर आयोजित की गई थी। दूसरी बैठक एक गैर-यूरोपीय यूनियन, गैर-नाटो यूरोपीय देश के दूतावास में आयोजित की गई। दूतावास दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में स्थित है। तीसरी बैठक एक वकील के कार्यालय में हुई, जो बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित है।
बैठकों में राजनयिक, वकील, डॉक्टर और आईटी पेशेवर रहे शामिल
इन बैठकों में शामिल लोगों की संख्या के बारे में खुलासा किया गया है। मोती बाग और दूतावास की बैठकों में कम से कम 20 लोग शामिल थे, जबकि बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित कार्यालय में हुई बैठक में 12 लोगों ने हिस्सा लिया था। जहां तक मोती बाग की बैठक का सवाल है तो इसमें टेक्सास और संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्य हिस्सों में रहने वाले कुछ भारतीय मूल के लोग भी शामिल थे, जो खालिस्तानी संगठनों से जुड़े बताये जा रहे हैं। इन बैठकों में शामिल लोगों के मुताबिक दिल्ली और लंदन में हुई बैठकों में यूरोपीय देशों के कुछ राजनयिक, वकील, डॉक्टर और आईटी पेशेवर भी शामिल हुए थे।
2024 के चुनाव को प्रभावित करने के लिए प्रोपेगेंडा की साजिश
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यानि सितंबर 2023 से मोदी सरकार और उसके “दोस्तों” के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान शुरू करने और इसके लिए मार्केटिंग प्रोफेशनल्स, पीआर एजेंसियों और सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स की भर्ती करने का फैसला किया गया। इसमें मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव तैयार करने वाले लोगों की मदद लेने पर जोर दिया गया। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप सहित ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से जनता तक पहुंचने और मोदी सरकार की कमजोरियों को उजागर करने की रणनीति बनाई गई। मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने के लिए भारतीय मूल के लोगों और अन्य विदेशी संगठनों की तरफ से फंड उपलब्ध कराया जा रहा है।
मोदी से क्यों नफरत करते हैं अमेरिका सहित कुछ देश!
एनसीबी ने अब तक लगभग 8 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली 80000 किलोग्राम नशीली दवाओं को नष्ट कर दिया है। जिन लोगों ने 8 लाख करोड़ रुपये की ड्रग्स खो दी, क्या वे मोदी से नफरत नहीं करेंगे?
ईडी अब तक भ्रष्टों के पास से 1,20,000 करोड़ रुपये का काला धन जब्त कर चुका है। क्या काला धन गंवाने वाले मोदी से नफरत नहीं करेंगे?
मोदी ने फाइजर और मॉडर्न से कोरोना वैक्सीन आयात नहीं किया। उन्होंने स्वदेशी टीके विकसित करने में मदद की और भारत से जो फायदा फाइजर कंपनी होने वाला था वह नहीं हो पाया। मोदी योग, आयुर्वेद, स्वच्छता और निवारक इलाज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। क्या यह अंतरराष्ट्रीय फार्मा लॉबी मोदी से नफरत नहीं करेगी?
मोदी ने हथियारों के सौदागरों से ख़रीदना बंद कर दिया और सीधे फ़्रांस से राफेल ख़रीद लिया। मोदी ने भारत में रक्षा उपकरण बनाना शुरू किया और रक्षा खरीद कम की। क्या बेहद ताकतवर अंतरराष्ट्रीय रक्षा लॉबी मोदी से नफरत नहीं करेगी?
मोदी ने मध्य पूर्व से महंगा तेल खरीदना बंद कर दिया और रूस से भारी मात्रा में रियायती दर पर खरीदना शुरू कर दिया। क्या यह मध्य पूर्व का तेल माफिया मोदी से नफरत नहीं करेगा?
मोदी भारत की सड़ी-गली व्यवस्था को साफ कर रहे हैं। 75 साल से हमारा खून चूस रहे भ्रष्टाचारी अब मोदी के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। वे मोदी को रोकने के लिए कुछ भी करेंगे। दुनिया 3 शक्तिशाली लॉबी द्वारा शासित है – डिफेंस लॉबी, ऑयल लॉबी और फार्मा लॉबी। मोदी इन तीनों लॉबी के खिलाफ एक साथ जंग छेड़ रहे हैं। अब आप समझ सकते हैं कि ये लोग मोदी से इतनी नफरत क्यों करते हैं।
मोदी सरकार 2024 में भी चुनाव जीतेगी और ये भ्रष्ट लोग समाप्त हो जाएंगे। मोदी के पास एक ही ताकत है और वो है भारत की जनता। बस जरूरत है तो जयचंदों से सावधान रहने की।
भारतीय समाज में आज भी जयचंद जैसे गद्दार मौजूद हैं!
वर्ष 1191 में तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने अन्य भारतीय हिन्दू राजाओं (जिनमें जयचंद भी शामिल था) के साथ मिलकर मुहम्मद गौरी को पराजित किया। इस युद्ध के एक साल बाद गौरी ने पुनः अपनी सेना इकट्ठी की और दिल्ली पर आक्रमण किया, लेकिन इस बार उसने सिर्फ सैन्य बल का उपयोग नहीं किया बल्कि उसने कूटनीति के दम पर जयचंद समेत कुछ हिन्दू राजाओं को अपनी ओर कर लिया। युद्ध में मदद के एवज में गौरी ने जयचंद को राजगद्दी का प्रलोभन दिया और जयचंद ने गद्दी के लालच में चौहान के साथ गद्दारी कर दी। अगर तराईन के द्वितीय युद्ध में भी अन्य भारतीय राजाओं ने उसका साथ दिया होता तो वह पुनः गौरी को हरा देता और भारतवर्ष की भूमि पर कभी गौरी, बलबन, बाबर और गजनवी जैसे आक्रांता कदम भी नहीं रख पाते। इस एक युद्ध की हार ने भारत में अरब और मध्य एशिया के तमाम लुटेरों को भारत में घुसने का मौका दे दिया और बाकी सब इतिहास में वर्णित है। हर देशवासी को आज के जयचंदों से सावधान रहने की जरूरत है।