विदेशी संसदों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ऐतिहासिक संबोधन केवल कूटनीतिक औपचारिकताएं नहीं, बल्कि वे भारत के बदलते आत्मविश्वास, बढ़ती प्रतिष्ठा, असीम लोकप्रियता और वैश्विक स्वीकार्यता के जयघोष भी हैं। किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इतनी बार विदेशी संसदों को संबोधित करना अपने आप में एक रिकॉर्ड है, लेकिन उससे भी बड़ा तथ्य यह है कि पीएम मोदी ने हर मंच पर अपने भारतवर्ष को केवल एक राष्ट्र नहीं, बल्कि एक विचार, एक जिम्मेदार शक्ति, लोकतंत्र की जननी और एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में प्रस्तुत किया है। इथीयोपिया और भूटान-नेपाल की संसदों से लेकर अमेरिकी कांग्रेस, ब्रिटिश संसद और अफ्रीकी देशों की विधायिकाओं तक पीएम मोदी की स्पीच में भारत की ऐतिहासिक विरासत के साथ ही वर्तमान और भविष्य का विकसित भारत भी समाहित है। उन्होंने विकास, लोकतंत्र, समावेश, योग, शांति, वन अर्थ और वैश्विक सहयोग जैसे अनेक शब्द दिए हैं, जो तालियों में ही नहीं गूंजे, बल्कि उन्होंने वैश्विक नीति-निर्धारकों के दिलों में जगह बनाई है।

पीएम मोदी के भाषण भारत की नई वैश्विक पहचान के बड़े अध्याय बने
पीएम मोदी के इन विदेशी संसत में संबोधनों की लोकप्रियता का कारण केवल उनकी वक्तृत्व कला नहीं, बल्कि उनका विजनरी दृष्टिकोण है। इसी में भारत आत्मकेंद्रित नहीं, बल्कि विश्वकल्याण की सोच के साथ खड़ा दिखाई देता है। “वसुधैव कुटुंबकम्” को उन्होंने दर्शन से निकालकर वैश्विक नीति की भाषा बना दिया। विदेशी सांसदों द्वारा बार-बार खड़े होकर बजाई गईं तालियां उस सम्मान की प्रतीक थीं, जो भारत को एक स्थिर, निर्णायक और भरोसेमंद नेतृत्व के कारण मिला। पीएम मोदी के भाषणों में आक्रामकता नहीं, बल्कि एक सधे हुए आत्मविश्वास की स्पष्ट रेखा रही। यह बताती है कि भारत अब वैश्विक मंच पर सुनने वाला नहीं, सुने जाने वाला राष्ट्र बन चुका है। यही कारण है कि उनके ये उद्बोधन केवल भाषण नहीं, बल्कि भारत की नई वैश्विक पहचान के अध्याय बन गए हैं।

आइए, पीएम मोदी के विदेशी संसद में दी गई स्पीच के बारे में जानते हैं। उन्होंने 2014 से लेकर अब तक किन-किन देशों की संसद को संबोधित किया…
18वां संबोधन
17 दिसंबर 2025, इथियोपिया संसद
अफ्रीका का संबंध केवल कूटनीतिक नही, साझा आकांक्षाओं से जुड़े
इथियोपिया की संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका को 21वीं सदी की वैश्विक विकास यात्रा का केंद्र बताया। उन्होंने कहा कि भारत और अफ्रीका का संबंध केवल कूटनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि साझा इतिहास, संघर्ष और भविष्य की आकांक्षाओं से जुड़ा है। पीएम मोदी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षमता निर्माण में भारत की साझेदारी को रेखांकित किया और स्पष्ट किया कि भारत अफ्रीका के साथ शोषण नहीं, सहयोग के मॉडल पर आगे बढ़ता है।
17वां संबोधन
9 जुलाई 2025, नामीबिया संसद
भारत-नामीबिया कौशल विकास और परस्पर सहयोग के साझेदार
नामीबिया की संसद में अपने ऐतिहासिक संबोधन में प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र, प्राकृतिक संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग और सतत विकास पर भारत का दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा कि भारत और नामीबिया दोनों ने उपनिवेशवाद के दंश को झेला है और यही अनुभव दोनों देशों को नैतिक वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाता है। पीएम मोदी ने खनिज, ऊर्जा और कौशल विकास में सहयोग को भविष्य की साझेदारी का आधार बताया।
16वां संबोधन
4 जुलाई 2025, त्रिनिदाद और टोबैगो संसद
प्रवासी समुदाय भारत और कैरेबियन देशों के बीच जीवंत सेतु
प्रधानमंत्री मोदी ने इस संबोधन में प्रवासी भारतीय समुदाय को भारत और कैरेबियन देशों के बीच जीवंत सेतु बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय मूल के लोगों ने अपनी सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित रखते हुए इन देशों के विकास में अहम भूमिका निभाई है। पीएम मोदी ने लोकतंत्र, सांस्कृतिक विविधता और विकास साझेदारी को भारत-त्रिनिदाद संबंधों की रीढ़ बताया।
15वां संबोधन
3 जुलाई 2025, घाना संसद
भारत के रिश्ते “सम्मान, समानता और विश्वास” पर आधारित
घाना की संसद में प्रधानमंत्री ने अफ्रीका के साथ भारत के रिश्तों को “सम्मान, समानता और विश्वास” पर आधारित बताया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत की अफ्रीका नीति संसाधन दोहन की नहीं, बल्कि मानव विकास की है। डिजिटल इंडिया, यूपीआई, स्वास्थ्य और वैक्सीन सहयोग का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज बताया।
14वां संबोधन
21 नवंबर 2024, गयाना संसद
गयाना में भारतीय मूल के लोग भारत की सांस्कृतिक शक्ति
गयाना की संसद में संबोधन के दौरान पीएम मोदी ने प्रवासी भारतीयों के संघर्ष, योगदान और उपलब्धियों को सम्मानपूर्वक स्मरण किया। उन्होंने कहा कि गयाना जैसे देशों में बसे भारतीय मूल के लोग भारत की सांस्कृतिक शक्ति हैं। ऊर्जा, कृषि और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की तकनीकी साझेदारी को उन्होंने विशेष रूप से रेखांकित किया।
13वां संबोधन
23 जून 2023, अमेरिकी कांग्रेस (दूसरा संबोधन)
भारत को “मदर ऑफ डेमोक्रेसी” और “फ्यूचर रेडी नेशन”
प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए भारत को “मदर ऑफ डेमोक्रेसी” और “फ्यूचर रेडी नेशन” बताया। उन्होंने भारत के डिजिटल परिवर्तन, स्टार्टअप इकोसिस्टम और युवा शक्ति का उल्लेख किया। पीएम मोदी ने कहा कि भारत-अमेरिका साझेदारी वैश्विक स्थिरता और समृद्धि के लिए निर्णायक है।
12वां संबोधन
8 जून 2019, मालदीव संसद
पीएम मोदी ने भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को दोहराया
मालदीव की संसद में पीएम मोदी ने लोकतंत्र की बहाली का स्वागत करते हुए भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को दोहराया। उन्होंने कहा कि भारत मालदीव की संप्रभुता और स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। समुद्री सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर और लोगों के बीच संपर्क इस संबोधन के प्रमुख विषय रहे।
11वां संबोधन
जुलाई 2018, युगांडा संसद
भारत का रणनीतिक और भावनात्मक साझेदार है अफ्रीका
युगांडा की संसद में संबोधन करते हुए प्रधानमंत्री ने अफ्रीका को भारत का रणनीतिक और भावनात्मक साझेदार बताया। उन्होंने कहा कि भारत अफ्रीका के विकास में बिना शर्त सहयोग करता है। आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक असमानता जैसे मुद्दों पर साझा संघर्ष का आह्वान किया।
10वां संबोधन
8 जून 2016, अमेरिकी कांग्रेस (पहला संबोधन)
लोकतंत्र, विविधता और स्वतंत्रता भारत-अमेरिका संबंधों की आत्मा
अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में अपने पहले संबोधन में पीएम मोदी ने लोकतंत्र, विविधता और स्वतंत्रता को भारत-अमेरिका संबंधों की आत्मा बताया। उन्होंने भारत को अवसरों और नवाचार की भूमि के रूप में प्रस्तुत किया और दोनों देशों को 21वीं सदी की निर्णायक साझेदारी बताया।
9वां संबोधन
25 दिसंबर 2015, अफगानिस्तान संसद
पीएम मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट और सशक्त संदेश दिया
अफगानिस्तान की संसद में संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट और सशक्त संदेश दिया। उन्होंने कहा कि भारत और अफगानिस्तान की शांति, स्थिरता और पुनर्निर्माण में मजबूती से खड़ा है। यह भाषण भारत की साहसी और सिद्धांत-आधारित विदेश नीति का प्रतीक बना।
8वां संबोधन
12 नवंबर 2015, ब्रिटिश संसद
भारत–ब्रिटेन के संबंधों में संस्थागत विरासत और सांस्कृतिक घनिष्ठता
वेस्टमिंस्टर हॉल में दिए गए संबोधन में पीएम मोदी ने भारत-ब्रिटेन संबंधों के औपनिवेशिक अतीत को स्वीकार करते हुए भविष्य की समान भागीदारी की बात कही। उन्होंने लोकतंत्र, कानून के शासन और साझा मूल्यों को संबंधों की नई नींव बताया। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में भारत–ब्रिटेन के संबंधों को साझा इतिहास, संस्थागत विरासत और सांस्कृतिक घनिष्ठता के संदर्भ में रेखांकित किया गया है। दोनों देशों की संस्कृतियां इतनी घुल-मिल गई हैं कि कई चीजें अब किसी एक की नहीं रहीं। महात्मा गांधी की ब्रिटिश संसद के बाहर प्रतिमा को साझा मूल्यों और नैतिक विरासत का प्रतीक बताते हुए पीएम मोदी ने कहा कि इससे संदेश दिया गया है कि भारत और ब्रिटेन अपने इतिहास की ताकत से सीख लेकर, आपसी समझ और सम्मान के साथ भविष्य के रिश्तों को और मजबूत बना सकते हैं।
7वां संबोधन
17 मई 2015, मंगोलिया संसद
पीएम मोदी ने मंगोलिया को बताया भारत का आध्यात्मिक पड़ोसी
मंगोलिया की संसद में प्रधानमंत्री ने इस देश को भारत का “आध्यात्मिक पड़ोसी”बताया। उन्होंने लोकतंत्र और स्वतंत्रता के साझा मूल्यों का उल्लेख करते हुए रणनीतिक साझेदारी को नई दिशा दी। पीएम मोदी ने संबोधन में भारत–मंगोलिया के 60 वर्षों के राजनयिक संबंधों को ऐतिहासिक और भावनात्मक रूप से कालातीत बताते हुए उनकी साझा बौद्ध विरासत, सांस्कृतिक संपर्कों और सदियों पुराने मानवीय रिश्तों को रेखांकित किया। बौद्ध भिक्षुओं के आदान–प्रदान, योग की लोकप्रियता और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर परस्पर समर्थन को दोनों देशों की गहरी मित्रता का आधार बताया गया। उन्होंने कहा कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और वैश्विक विकास इंजन के रूप में उभरती भूमिका के साथ भविष्य में द्विपक्षीय सहयोग के व्यापक अवसर मौजूद हैं।
6वां संबोधन
12 मार्च, 2015, मॉरीशस संसद
मॉरीशस हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और समृद्धि का साझेदार
मॉरीशस की राष्ट्रीय असेंबली में पीएम मोदी ने भारत–मॉरीशस के गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंधों को रेखांकित किया। महात्मा गांधी के दांडी मार्च और मॉरीशस के स्वतंत्रता संग्राम का उल्लेख करते हुए उन्होंने दोनों देशों की साझा लोकतांत्रिक विरासत, आपसी विश्वास और मित्रता को विशेष बताया। मॉरीशस को लोकतंत्र, विविधता और विकास का उज्ज्वल उदाहरण बताते हुए भारतवंशियों के योगदान की सराहना की। उन्होंने आर्थिक सहयोग, समुद्री सुरक्षा, आईटी, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, ब्लू इकॉनमी और विकास परियोजनाओं में भारत की साझेदारी के बारे में बताया। प्रधानमंत्री ने मॉरीशस को हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि का महत्वपूर्ण साझेदार बताया तथा हर परिस्थिति में साथ खड़े रहने का भरोसा दिलाया।
5वां संबोधन
13 मार्च 2015, श्रीलंका संसद
लोकतांत्रिक मूल्यों और समावेशी विकास पर फोकस
श्रीलंका की संसद में पीएम मोदी ने लोकतांत्रिक मूल्यों, राष्ट्रीय मेल-मिलाप और समावेशी विकास पर बल दिया। उन्होंने तमिल समुदाय सहित सभी वर्गों के सशक्तिकरण की आवश्यकता पर जोर दिया और क्षेत्रीय शांति को प्राथमिकता बताया। प्रधानमंत्री ने बोधगया से अनुराधापुरा तक की साझा बौद्ध विरासत, रामायण परंपरा, सूफी-ईसाई तीर्थों, महाकाव्यों और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के माध्यम से उन्होंने दोनों देशों की आत्मीयता को उजागर किया। पड़ोस को साझा भविष्य की कुंजी बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत जिस विकास और समृद्धि का सपना अपने लिए देखता है, वही वह अपने पड़ोसियों के लिए भी चाहता है।
चौथा संबोधन
19 नवंबर 2014, फिजी संसद
भारतीयों के संघर्ष और योगदान को भावनात्मक स्मरण
फिजी संसद में संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों के संघर्ष और योगदान को भावनात्मक शब्दों में स्मरण किया। जलवायु परिवर्तन, डिजिटल सहयोग और विकास साझेदारी इस भाषण के प्रमुख बिंदु रहे।
तीसरा संबोधन
18 नवंबर 2014, ऑस्ट्रेलिया संसद
आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नीति बनाने पर बल दिया
ऑस्ट्रेलियाई संसद में पीएम मोदी ने साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और रणनीतिक विश्वास पर बल दिया। उन्होंने भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को विस्तार देते हुए ऑस्ट्रेलिया को प्रमुख साझेदार बताया। पीएम मोदी ने आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को अलग-थलग करने के लिए एक वैश्विक रणनीति बनाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत पिछले तीन दशकों से आतंकवाद का मुकाबला कर रहा है। आतंकवाद हम सभी के लिए खतरा है। आतंकवाद का मुकाबला उसके बदलते स्वरूप और विस्तार को ध्यान में रखते हुए करना होगा। वैश्विक आतंकवाद से निपटने में ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी पर सहमति हुई। दोनों देशों के बीच सामाजिक सुरक्षा, सजायाफ्ता कैदियों के हस्तांतरण समेत पांच समझौते हुए हैं।
दूसरा संबोधन
3 अगस्त 2014, नेपाल संविधान सभा
मजबूत नेपाल पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए आवश्यक
नेपाल की संविधान सभा में प्रधानमंत्री ने लोकतांत्रिक समावेशन, संघीय ढांचे और स्थिरता पर भारत का अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि एक मजबूत नेपाल पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए आवश्यक है। इस संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत–नेपाल के रिश्तों को संप्रभु सम्मान, ऐतिहासिक साझेदारी और सांस्कृतिक आत्मीयता के आधार पर परिभाषित करते हुए कहा कि भारत हमेशा नेपाल के अपने भविष्य को स्वयं चुनने के अधिकार का समर्थन करेगा और एक लोकतांत्रिक, समृद्ध नेपाल की कामना करता है। संविधान सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने नेपाल के संविधान को वेद–उपनिषदों जैसी दूरदृष्टि वाला दस्तावेज बताते हुए “ऋषि-मन” से निर्मित होने का आह्वान किया, जो आने वाली सदियों को दिशा दे सके। अंततः उन्होंने “युद्ध से बुद्ध” के मार्ग को रेखांकित करते हुए कहा कि नेपाल का संविधान न केवल देश, बल्कि विश्व के लिए भी शांति और आशा का प्रेरक प्रकाश बनेगा।
पहला संबोधन
16 जून 2014, भूटान संसद
पर्यावरण और युवा सहयोग भारत-भूटान संबंधों की आधारशिला
प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले विदेश दौरे में भूटान संसद को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने पड़ोसी-प्रथम नीति का स्पष्ट संदेश दिया। उन्होंने ऊर्जा, पर्यावरण और युवा सहयोग को भारत-भूटान संबंधों की आधारशिला बताया। उन्होंने कहा कि हमारी साझा विरासत दोनों देशों को जोड़ती है और इसके संरक्षण की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने “भारत फॉर भूटान, भूटान फॉर भारत” के सिद्धांत के साथ पड़ोसी धर्म निभाने, भूटान के लोकतांत्रिक सफर की सराहना और अंतिम व्यक्ति की खुशहाली को सच्चा विकास बताया। आतंकवाद के बजाय पर्यटन को विश्व को जोड़ने वाली शक्ति बताते हुए उन्होंने हिमालयी क्षेत्र में सहयोग, खेल प्रतियोगिताओं, अध्ययन हेतु विश्वविद्यालय, जलविद्युत परियोजनाओं और भारत की मजबूती से पूरे क्षेत्र के लाभ पर जोर दिया।









