सितंबर, 2017 को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ”भ्रष्टाचार के मामले में जो भी पकड़ा जाएगा वह बचेगा नहीं, मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है।” बीते 46 महीनों के कार्यकाल में यह बात हर बार साबित हुई है केंद्र की मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर लगातार प्रहार कर रही है और बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी कानून की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। बीते 7 अप्रैल को एक ऐसा ही मामला सामने आया है जब प्रधानमंत्री कार्यालय ने क्विक एक्शन लिया और एक बड़े भ्रष्टाचारी को भी पकड़ लिया गया।
पीएमओ के क्विक एक्शन से पकड़ा गया घोटालेबाज
07 अप्रैल को जब एक और बड़े घोटालेबाज को सीबीआई ने धर दबोचा तो यह मामला भी 2008 से 2013 के बीच का निकला। प्रधानमंत्री कार्यालय की अगुआई में पूरी कार्रवाई को अंजाम दिया गया और इसमें विभिन्न विभागों और जांच एजेंसियों ने जिस प्रकार के आपसी तालमेल का प्रदर्शन किया, वह न केवल काबिले तारीफ है, बल्कि अनुकरणीय भी है। दरअसल डायमंड पावर इंफ्रास्ट्रक्चर का प्रबंध निदेशक अमित भटनागर अलग-अलग बैंकों और गैर सरकारी बैंकों को 2655 करोड़ का चूना लगा चुका है। वह विदेश भागने की तैयारी कर रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय की सक्रियता ने उसके सारे प्लान पर पानी फेर दिया।
गौरतलब है कि अमित भटनागर की फर्म ने 2008 में ट्रांजैक्शंस की शुरुआत की थी। उसने 2013 तक धोखाधड़ी से 100.80 करोड़ रुपये का सेंट्रल वैल्यू एडेड टैक्स क्रेडिट हासिल कर लिया। इसके साथ ही वर्ष 2008 से 2018 के बीच फर्जी दस्तावेज, बैंक खातों और कंपनी की बैलेंस सीट के जरिये 2655 करोड़ रुपये का कर्ज लेकर फर्जीवाड़ा किया।
नीरव मोदी-मेहुल चोकसी पर गैर जमानती वारंट जारी
08 अप्रैल को बैंकिंग घोटाले के आरोपी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के खिलाफ सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने गैरजमानती वॉरंट जारी किया। पंजाब नैशनल बैंक में 13 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी के इन आरोपियों पर पिछले महीने स्पेशल प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (PMLA) कोर्ट ने भी गैरजमानती वॉरंट जारी किया था। आपको बता दें कि गैरजमानती वॉरंट जारी होने के साथ ही दोनों के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की मांग करने का रास्ता खुल जाएगा।
इससे पहले मोदी सरकार ने सख्त एक्शन लेते हुए नीरव मोदी की 21 अचल संपत्तियां अटैच कर ली थीं जिसकी कीमत 523.72 करोड़ रुपए है। इसके साथ ही मेहुल चोकसी और उससे जुड़ी कंपनियों की 1217.20 करोड़ रुपए की 41 संपत्तियां जब्त की जा चुकी हैं।
विजय माल्या पर कसा गया शिकंजा
कांग्रेस ने मिलीभगत कर विजय माल्या को 8,040 करोड़ का लोन सितंबर 2004 में दिया। इसके बाद फरवरी 2008 में इस लोन की समीक्षा की गई और 2009 में कांग्रेस सरकार ने एनपीए घोषित कर दिया। जाहिर है यह एक बड़ा घोटाला था। हालांकि कांग्रेस इसके बाद भी माल्या से उपकृत होती रही और उन्हें उपकृत करती भी रही। कांग्रेस ने 2009 और 2016 में कांग्रेस माल्या को राज्यसभा भेजकर सम्मानित किया। हालांकि मोदी सरकार ने जब शिकंजा कसना शुरू किया तो माल्या देश छोड़कर भाग गया।दरअसल बकाया वसूली के लिए मोदी सरकार ने कई उपाय किए हैं। सरकार ने लोन वसूली के लिए मोदी सरकार ने एक कंसोर्टियम बनाया और 17 बैंकों का कंसोर्टियम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में कार्रवाई कर रही है। अब तक विजय माल्या की 6000 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त कर ली गई है और उसे भगोड़ा घोषित कर उसका पासपोर्ट भी रद्द कर दिया है।
ललित मोदी को भी नहीं बख्शेगी मोदी सरकार
ललित मोदी पर आईपीएल में वित्तीय घोटाले के आरोप लगे और तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2010 में फेमा के तहत मुकदमा दर्ज किया। जाहिर है के तहत मामला उन्हें बचाने के लिए किया गया। 2014 के मई तक कांग्रेस की सरकार ही केंद्र में रही, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। अगर कांग्रेस की नीयत ठीक रहती तो ललित मोदी पर मनी लॉंड्रिंग के तहत कार्रवाई की जाती जिससे रुपये रिकवर होने के मौके अधिक होते और उन्हें सजा भी मिलती, लेकिन कांग्रेस सरकार ने ढिलाई बरती। इसके अलावा उनके विरुद्ध लाइट कॉर्नर नोटिस जारी किया गया जो कि घरेलू उड़ानों हवाई अड्डों को दिया जाता है। अगर कांग्रेस चाहती तो उनके विरुद्ध रेड कॉर्नर या ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी कर सकती थी। हालांकि सरकार बदलने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने उनपर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए, लेकिन वह कानून की खामियों का फायदा उठाकर फरार हो गया। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने सख्ती की और उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया गया है। इसके साथ ही ब्रिटेन की सरकार से लगातार उसे वापस देश के कानून की गिरफ्त में लाने के लिए बातचीत कर रही है।
9 लाख करोड़ NPA में से 4 लाख करोड़ वसूले गए
मोदी सरकार की सख्ती से बैंकों के फंसे हुए नौ लाख करोड़ रुपये के एनपीए में से 4 लाख करोड़ रुपये वापस आ चुके हैं। कंपनी मामलों के मंत्रालय में सचिव इंजेती श्रीनिवास ने बताया कि ऋणशोधन व दिवाला संहिता (IBC)-2016 बनाए जाने से बैंकों के फंसे हुए नौ लाख करोड़ रुपये के कर्ज के आधे से कम की रकम प्रणाली में वापस आ चुकी है। उन्होंने कहा कि इन मामलों में अच्छे परिणाम आए हैं, जिससे व्यवस्था में विश्वास बढ़ाने में मदद मिलेगी। सरकार ने डूबे हुए कर्ज को लेकर द्विआयामी रणनीति अपनाई है। एक तरफ, सरकार ने आईबीसी को अमल में लाया है, जिसके तहत छह माह की अवधि के लिए ऋणशोधन समाधान की प्रक्रिया शुरू की गई है, तो दूसरी तरफ सरकार ने सरकारी बैंकों के पुनर्पूजीकरण के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दी है।
एक नजर डालते हैं प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने देश में कालाधन, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं।
बेनामी संपत्ति पर सख्त मोदी सरकार, 3900 करोड़ की संपत्ति जब्त
बेनामी संपत्ति और कालाधन रखने वालों पर भी मोदी सरकार का चाबुक जोरों से चल रहा है। आयकर विभाग ने फरवरी 2018 तक 1600 से अधिक लेनदेन का पता लगाने के साथ 3,900 करोड़ की बेनामी संपत्तियां जब्त की है। बेनामी संपत्तियों की कुर्की के लिए 1500 से अधिक मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और 1200 से अधिक मामलों में कुर्की भी की जा चुकी है। कुर्की की जाने वाली संपत्तियों का मूल्य 3900 करोड़ रुपये से अधिक है। आयकर विभाग ने ऑपरेशन क्लीन मनी के तीन चरणों में 22.69 लाख ऐसे व्यक्तियों की पहचान की है जिनका कर प्रोफाइल उनके द्वारा नोटबंदी के दौरान जमा की गई धन राशि से मेल नहीं खाता है। नोटबंदी की अवधि के दौरान इन 22.69 लाख करदाताओं के मामले में बैंक खातों में कुल 5.27 करोड़ की धनराशि जमा पाई गई है। आयकर विभाग के मुताबिक बेनामी संपात्ति लेन-देन रोकथाम कानून के तहत कार्रवाई तेज कर दी गई है। मोदी सरकार ने 1 नवंबर, 2016 को इस कानून को लागू किया था। इस कानून के तहत, चल-अचल किसी किस्म की बेनामी संपत्तियों को फौरी तौर पर कुर्क करने और फिर उनको पक्के तौर पर जब्त करने की कार्रवाई का प्रावधान शामिल है।
भगोड़ा आर्थिक अपराध विधेयक मंजूर
आर्थिक फ्रॉड करने वाले बड़े अपराधियों पर नकेल कसने के लिए भगोड़ा आर्थिक अपराध बिल को मंज़ूरी दी गई है। इस बिल में भारत में इकोनॉमिक फ्रॉड कर विदेश भागने वाले अपराधियों की संपत्ति को जब्त करने समेत कई सख्त प्रावधान शामिल किए गए हैं। इस विधेयक में भारतीय न्यायालयों के कार्यक्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानूनी प्रक्रिया से बचने वाले आर्थिक अपराधियों की प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े उपाय करने में मदद मिलेगी।
विधेयक के मुख्य प्रावधान
- यह प्रावधान 100 करोड़ रुपये से अधिक की बकाया राशि अथवा बैंक कर्ज की वापसी नहीं करने वालों, जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले कर्जदारों और जिनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है उन पर लागू होगा।
- विधेयक में यह भी प्रावधान है कि ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधी की संपत्ति को उसके दोषी ठहराये जाने से पहले ही जब्त किया जा सकेगा और उसे बेचकर कर्ज देने वाले बैंक का कर्ज चुकाया जाएगा।
- इस विधेयक के माध्यम से विदेशों में मौजूद संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है हालांकि इसके लिए संबंधित देश के सहयोग की भी जरूरत होगी।
राष्ट्रीय वित्तीय सूचना प्राधिकरण को मंजूरी
इसके साथ ही नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी यानि NFRA के गठन को भी मंजूरी दे दी गई। NFRA इंडिपेंडेंट रेग्युलेटर के रूप में काम करेगा। चार्टर्ड अकाउंटेंट अधिनियम के सेक्शन 132 के तहत चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और उनके फर्म की जांच को लेकर NFRA का कार्यक्षेत्र सूचीबद्ध और बड़ी गैर-सूचीबद्ध कंपनियों पर लागू होगा। यानि एनएफआरए के तहत चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और उनकी फर्मों की सेक्शन 132 के तहत जांच होगी। एनएफआरए स्वायत्त नियामक सस्था के तौर पर काम करेगा।
संपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा (Asset Quality Review)
मोदी सरकार ने कर्ज नहीं चुकाने वाले बड़े बकायेदारों की जिम्मेदारी तय की है और विभिन्न उपायों के जरिए बैंकों को मजबूत किया जा रहा है। नियमित रूप से कर्ज की वापसी नहीं करने के बावजूद 2008- 2014 के बीच बड़े कर्जदारों को बैंकों से कर्ज देने के लिये दबाव डाला जाता रहा। वास्तव में जो कर्ज NPA श्रेणी में जा चुके थे उन्हें नियमित कर्ज बनाये रखने के लिए कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन के तहत उनका पुनर्गठन किया गया। 2015 की शुरुआत में, वर्तमान सरकार ने एसेट क्वालिटी रिव्यू (एक्यूआर) के बाद एनपीए की समस्या को मानते हुए वर्गीकृत किया।
इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड
इंसोल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 (आईबीसी) के कानून बन जाने से दिवालिया कंपनियों के प्रोमोटर्स की मुश्किलें बढ़ गई हैं और वे दोबारा कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं खरीद पा रहे हैं। बैंकरप्सी कानून में होने वाले बदलाव से सरकारी बैंकों को बड़ा फायदा हो रहा है। मोदी सरकार ने 2016 में बैंकरप्सी को बैंकरप्सी कोड के तहत लाया है। सरकार ने कोड 1 अक्टूबर, 2017 को नियामक के रूप में भारतीय दिवालियापन और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) की स्थापना की थी।
जीएसटी से भ्रष्टाचार पर वार
देशभर में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) एक जुलाई से लागू हो चुका है। कर प्रणाली में बदलाव होने से एक तरफ मल्टीपल टैक्स के जंजाल से देशवासी मुक्त हुए। कर की गणना आसान हुआ। कर प्रणाली को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जा रहा है। जीएसटी के लागू होने से कच्चे बिल से खरीदारी करने में काफी कमी आई है। आने वाले दिनों में यह इतिहास हो जाएगा क्योंकि जीएसटी के लागू होने से उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक सामान पहुंचने में जितने मिडलमैन हैं। सबको जीएसटीएन में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य हो गया है। ऐसे में हर स्तर से पक्का बिल बनता है। पक्के बिल से खरीद-बिक्री होने से असली एकाउंट्स में ट्रांजेक्शन दिखता है। व्यापारी के एक्चुअल आमदनी और ग्राहकों द्वारा भुगतान किया हुआ टैक्स सब सरकार की जानकारी में रहता है। लेन-देन में हेरा-फेरी संभावना खत्म हुई।
दो लाख से अधिक फर्जी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द
नोटबंदी के बाद सरकार ने काला धन जमा करने के लिए बनाई गई तीन लाख से भी अधिक फर्जी कंपनियों का पता लगाया। इनमें से ज्यादातर कंपनियां, नेताओं और व्यापारियों के कालेधन को सफेद करने का काम करने में लगी थीं। सरकार की कार्रवाई में ऐसी दो लाख से ज्यादा कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा चुका है। नोटबंदी के दौरान इन फर्जी कंपनियों में जमा 65 अरब रुपये की पड़ताल की जा रही है। कार्रवाई के दौरान ऐसी कंपनियों का भी पता लगा, जहां एक एड्रेस पर ही 400 फर्जी कंपनियां चलाई जा रहीं थी।
डिजिटलीकरण और पारदर्शिता को बढ़ावा
सरकार ने देश में डिजिटलीकरण और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया है। सरकार ने डिजिटल क्रांति और डिजिटल भुगतान के लिए स्वाइप मशीन, पीओसी मशीन, पेटीएम और भीम ऐप जैसे सरल उपायों को अपनाया है। जनता भी सहजता के साथ इसे अपना रही है। इससे देश में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन बढ़ा है। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि के फलस्वरूप इससे शासन-प्रशासन, नौकरशाही में पारदर्शिता आई है और नागरिकों में भी जागरुकता बढ़ी है।
पीएमजीकेवाई के अंतर्गत कालेधन की घोषणा
नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन रखने वालों को एक आखिरी मौका देते हुए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) दिसंबर 2016 में लॉन्च की गई थी। इसमें कालाधन रखने वालों को टैक्स और 50 प्रतिशत जुर्माना देकर पाक-साफ होने का मौका दिया गया। साथ ही कुल अघोषित आय का 25 प्रतिशत ऐसे खाते में चार साल तक रखना होता है, जिसमें कोई ब्याज नहीं मिलता। नोटबंदी के बाद अघोषित आय के खुलासे में तेजी आई है। अभी तक 21,000 लोगों ने 4,900 करोड़ रुपये के कालेधन की घोषणा की है।
नोटबंदी से पहले आईडीएस स्कीम
कालेधन पर नियंत्रण करने के लिए मोदी सरकार ने नोटबंदी से पहले ही सभी कारोबारियों और उद्योगपतियों को अपना काला धन घोषित करने का ऑफर आईडीएस स्कीम के तहत दिया था। इस योजना के तहत लोग अपना सारा काला धन सार्वजनिक करके 25 प्रतिशत टैक्स और जुर्माने का भुगतान करके कार्रवाई से बच सकते थे। इसके तहत 65,000 करोड़ रुपये का कालाधन उजागर हुआ था।