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चुनाव नतीजे आने से पहले AAP ने फिर छेड़ा EVM राग, क्या सताने लगा है हार का डर ?

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बीजेपी विरोधी पार्टियां जब चुनाव हार जाती हैं, या उन्हें हार की आशंका होती है, तो अपनी सारी नाकामियों का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने लगते हैं। उन्हें ईवीएम में हर तरह का दोष दिखाई देने लगता है और ईवीएम का चीरहरण शुरू हो जाता है। लेकिन जब चुनाव में सफलता मिलती है, तो वहीं ईवीएम निष्पक्ष दिखाई देने लगती है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ईवीएम को लेकर फिर बयानबाजी शुरू हो गई है। मतदान के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं के निशाने पर ईवीएम है। वहीं बीजेपी की ओर से इसे दिल्ली की जनता का अपमान बताया गया है।

ईवीएम और केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के हरियाणा में प्रवक्ता और आईटी एवं सोशल मीडिया प्रमुख सुधीर यादव ने अजीबोगरीब बयान दिया है। उन्होंने कहा, ‘अभी ईवीएम प्रेग्नेंट है। अगर नॉरमल डिलिवरी हुई तो आम आदमी पार्टी पैदा होगी और अगर ऑपरेशन हुआ तो बीजेपी ।’ 

चुनाव आयोग की कड़ी सुरक्षा के बावजूद पार्टियां ईवीएम को लेकर चिंता व्यक्त कर रही हैं। वोटिंग के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास पर हुई पार्टी नेताओं की बैठक में तय हुआ है कि AAP के कार्यकर्ता मतगणना तक हर बूथ के ईवीएम पर नजरें बनाए रखेंगे। इस बैठक में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय और प्रशांत किशोर समेत कई बड़े नेता उपस्थित थे।

इस बैठक के बाद संजय सिंह ने आरोप लगाया कि बाबरपुर में वोटिंग संपन्न होने के काफी समय बाद तक ईवीएम को जमा नहीं कराया गया, वह अधिकारियों के पास ही थे। इसी तरह की घटना विश्वास नगर में भी देखने को मिली।

AAP नेता गोपाल राय ने भी आरोप लगाया है कि बाबरपुर के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में एक कर्मचारी ईवीएम के साथ पकड़ा गया है। उन्होंने वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा, “हमारी विधानसभा बाबरपुर में वोटिंग खत्म होने पर सभी ईवीएम मशीन स्ट्रांग रूम भेज दी गई उसके बाद सरस्वती विद्या निकेतन पोलिंग स्टेशन पर एक अधिकारी ईवीएम के साथ पकड़ा गया है। मैं इलेक्शन कमिशन से अपील करता हूँ कि इस पर तुरंत करवाई किया जाए।” संजय सिंह और गोपाल राय ने बताया कि AAP के कार्यकर्ता अब 11 फरवरी तक स्ट्रांग रूम के बाहर बैठ कर निगरानी भी करेंगे।

ईवीएम को लेकर सत्येंद्र जैन ने कहा कि बीजेपी पर हमेशा शक रहा, 24 घंटे ईवीएम की सुरक्षा हम खुद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी के कार्यकर्ता कैमरा लेकर खड़े हैं।

सत्येंद्र जैन

वहीं स्वराज इंडिया पार्टी के नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण ने भी ईवीएम को लेकर सवाल खड़े किए। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा कि उनका सल्तनत समाप्त होने वाला है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वो 11 तारीख यानी मतगणना के दिन का इंतजार करें। उसके बाद उनके टुकड़े पर पलने वाले मीडिया को बड़ा झटका लगेगा।

AAP के साथ ही कॉन्ग्रेस ने भी ईवीएम का राग अलापना शुरू कर दिया है। कांग्रेस नेता उदित राज ने वोटिंग प्रक्रिया चालू रहने के दौरान ही ट्वीट करते हुए कहा था, “भाजपा को बस ईवीएम ही बचा सकती है।”

आम आदमी पार्टी की ओर से ईवीएम पर सवाल खड़े किए जाने पर बीजेपी ने जवाब दिया। बीजेपी की ओर से उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने कहा कि AAP इस तरह सवाल खड़े कर दिल्ली की जनता का अपमान कर रही है।

कपिल मिश्रा और मनोज तिवारी

ऐसा पहली बार नहीं है, हार तय देख विपक्षी पार्टियां ईवीएम और चुनाव आयोग पर निशाना साधकर अपना दोहरा चरित्र दिखाती रही है।

2014 के चुनावों में ईवीएम की हैंकिंग का दावा

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले ही कांग्रेस को हार का डर सताने लगा था। इसलिए हार की वजह बताने के लिए उसने ईवीएम हैकिंग के अपने प्लॉट पर काम करना शुरू कर दिया। उसके इसी प्लॉट का हिस्सा बनते हुए विदेश में बैठे एक तथाकथित साइबर एक्सपर्ट ने बिना किसी आधार के ये दावा कर दिया कि 2014 के चुनावों में ईवीएम की हैंकिंग हुई थी। 

EVM AND KAPIL SIBBL

प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपिल सिब्बल
लंदन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 2014 के चुनावों में ईवीएम की हैंकिंग का दावा किया गया था। उसमें कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल मौजूद थे। सवाल है कि वे आखिर किस हैसियत से वहां थे? दरअसल कपिल सिब्बल संयोगवश नहीं पहुंचे थे। उन्हें राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने सुनियोजित तरीके से वहां भेजा था। 

बिना सबूत सनसनीखेज दावा
ईवीएम हैकिंग के दावे करने वाला कथित अमेरिकी एक्सपर्ट सैयद शुजा भारतीय मूल का है। उसने यहां तक दावा कर दिया कि बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की मौत हादसा नहीं,बल्कि हत्या थी, क्योंकि वे ईवीएम हैकिंग के बारे में जानते थे। गौर करने वाली बात है कि एम्स के डॉक्टर ने मुंडे का पोस्टमॉर्टम किया था और बताया था कि उनकी मौत गर्दन में चोट लगने से हुई थी।

EVM AND OPPOSITION

जहां जीते वहां चुप्पी, हारने पर ईवीएम का विरोध
यह भी बड़ी बिडंबना है कि राजनीतिक जब चुनाव जीतते हैं तो ईवीएम के खिलाफ कुछ नहीं बोलते हैं और हारते ही ईवीएम का विरोध करने लगते हैं। 2014 के आम चुनाव के बाद देश में कई राज्यों में चुनाव हो चुके हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, बिहार, दिल्ली में जब विपक्षी दलों को जीत मिली तो ईवीएम सही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर, त्रिपुरा जैसे राज्यों में विपक्ष हार गया तो ईवीएम पर सवाल उठा दिए। राजस्थान, उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा के उपचुनाव में भी कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को जीत मिली है, तब ईवीएम पर कोई सवाल नहीं उठाया गया।

चुनाव आयोग ने दी थी ईवीएम हैक करने की चुनौती

जून 2017 में चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित कर उन्हें ईवीएम हैक करने की चुनौती दी थी। चुनाव आयोग ने 7 राष्ट्रीय दलों और 48 राज्य स्तरीय दलों को बुलाया था। 3 जून से 26 जून, 2017 तक ईवीएम हैक करने के लिए सभी पार्टियों को चार-चार घंटे का समय भी दिया गया। देश में लोकतंत्र को स्थापित करने वाली ईवीएम को परीक्षा से गुजरना पड़ा। लेकिन कोई भी चुनाव आयोग के तय समय में ईवीएम को हैक नहीं कर पाया। ऐसे में सारे आरोप धरे के धरे रह गए। इसके बाद दिसंबर 2017 में कांग्रेस पार्टी ने ईवीएम को इंटरनेट जरिए हैक करने का शिगूफा छोड़ा था।

ईवीएम से चुनाव में पारदर्शिता

ईवीएम से पहले देश में बैलट पेपर से ही चुनाव होते थे, लेकिन तब बूथ लूटने की घटनाएं और चुनाव में धांधली आम बात थी। जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है, चुनाव में धांधली पूरी तरह खत्म हो चुकी है। ईवीएम से चुनाव कराने में जहां पारदर्शिता रहती है, वहीं वक्त भी कम लगता है, चुनाव परिणाम भी जल्दी आते हैं।

वीवीपैट की मिलान और बैलेट पेपर से चुनाव की मांग, देश को पीछे धकेलने की कोशिश
कांग्रेस पार्टी लगता है टेक्नोलॉजी की दुश्मन है। ईवीएम में नई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है और पारदर्शी चुनाव व्यवस्था स्थापित हुई है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी वीवीपैट पर्चियों के मिलान के साथ बार-बार बैलेट पेपर से चुनाव की मांग कर देश को पीछे धकेलना चाहती है। ऐसा कोई पहला मौका नहीं है, पहले भी डीबीटी, आधार को तमाम योजनाओं से जोड़ने जैसे कदमों का विरोध कांग्रेस कर चुकी है।

जनता के फैसले का अनादर
लोकतंत्र में जनता का मत सर्वोपरि होता है। जिसकी अभिव्यक्ति ईवीएम के माध्यम से होती है। अब जब एग्जिट पोल में एनडीए को बहुमत मिलने के संकेत मिल रहे हैं, तो विपक्ष को नागवार गुजर रहा है। वो जनता के मत और उसके फैसले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में विपक्ष ईवीएम पर सवाल उठाकर जनता के फैसले का अनादर कर रहा है।

कांग्रेस समेत सभी दलों की सहमति से ही लागू हुई थी ईवीएम
चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की कवायद करीब 40 वर्ष पहले शुरू हुई थी। 1998 में कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों की सहमति के बाद ही इसे लागू किया गया था। जब से ईवीएम से चुनाव कराने का विचार शुरू हुआ है, हर चर्चा में कांग्रेस पार्टी अहम हिस्सा रही है। आज यही कांग्रेस पार्टी ईवीएम का विरोध कर रही है। 1998 में ईवीएम आने के बाद 1999 से 2004 के बीच कई विधानसभा चुनावों में इसका प्रयोग किया गया और 2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव भी ईवीएम से कराए गए।

विश्व की सबसे विश्वसनीय चुनाव प्रणाली है भारत की
ईवीएम सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के तमाम देशों में इस्तेमाल की जाती है। ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, यूएई, ब्रिटेन समेत कई देशों में ईवीएम से ही चुनाव कराए जाते हैं। अमेरिका में भी बड़े स्तर पर ईवीएम का इस्तेमाल होता है। पूरी दुनिया में भारत का लोकतंत्र सबसे बड़ा है और यहां निष्पक्ष चुनाव कराना बड़ी चुनौती है, लेकिन जिस तरह चुनाव आयोग निष्पक्षता और शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न कराता है, उसकी तारीफ पूरी दुनिया करती है। कई देशों की सरकारें अपने अधिकारियों को भारतीय चुनाव व्यवस्था को समझने के लिए भारत भेजती रहती हैं।

संवैधानिक संस्था का अपमान
बीजेपी की प्रत्येक जीत के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने चुनाव आयोग को निशाने पर लिया। ईवीएम पर सवाल उठाकर उसकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता को भी कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की। यहां तक कि चुनाव आयुक्तों पर सरकार से मिलीभगत का आरोप लगाकर संवैधानिक संस्था का अपमान किया। इसको देखते हुए आयोग ने चुनाव में सभी मतदान केंद्रों पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया। 

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