दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। दिल्ली में हार के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं। उधर पार्टी के मध्यप्रदेश ऑफिस पर ताला लटक गया है। प्रचंड हार से पार्टी की जो विस्तारवादी नीति थी उसको बड़ा झटका लगा है। खास तौर से गोवा, गुजरात, एमपी, हरियाणा, यूपी में पार्टी विस्तार करने में जुटी थी, लेकिन हार के बाद सारी योजना टांय-टायं फिस्स हो गई है और कई नई चुनौतियां सामने आ गई हैं। AAP सरकार के काम पर कैग की 14 रिपोर्ट ऐसी हैं, जिनमें शराब घोटाले जैसे स्कैम सामने आएंगे। शराब घोटाले में केजरीवाल और सिसोदिया पहले ही फंसे हुए हैं। अब दिल्ली के एजुकेशन डिपार्टमेंट में घोटाला सामने आया है। इसमें आतिशी और पूर्व मंत्री गोपाल राय का नंबर आ सकता है। भाजपा सरकार अरविंद केजरीवाल के वक्त से पेंडिंग कैग रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर रही है। कुल 14 रिपोर्ट हैं, जिनमें से लिकर पॉलिसी और हेल्थ डिपार्टमेंट की दो रिपोर्ट पेश की जा चुकी हैं।
भाजपा सरकार ने 2 कैग रिपोर्ट जारी कीं, 12 अभी बाकी
कैग की रिपोर्ट के बाद अब यह शीशे तरह साफ हो गया है कि लिकर पॉलिसी में 2002 करोड़ रुपए का नुकसान केजरीवाल सरकार ने जानबूझकर किया है। इसमें करोड़ों की ऱिश्वत खाने का मामला अलग है। वहीं, दूसरी रिपोर्ट पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड सर्विस की है। इसमें कोरोना काल में फंड और उसके मैनेजमेंट को लेकर सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने 300 करोड़ रुपए जरूरत होने पर भी खर्च नहीं किए। बाकी बची 12 रिपोर्ट्स में भी आप सरकार के कार्यकाल की कई करतूतें छिपी हैं। इनके उजागर होने के बाद आम आदमी पार्टी के कई नेता और मंत्री फंस सकते हैं। क्योंकि इन घोटालों में उनकी संलिप्तता की ओर कैग रिपोर्ट में इशारा है।
अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्री जांच के दायरे में आएंगे
भाजपा नेता रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने के बाद आप सरकार के कार्यकाल में हुई शराब घोटाले के बारे में कैग रिपोर्ट सदन में रखी गई। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि भाजपा की सरकार आने के बाद इस घोटाले से जुड़ी कैग की रिपोर्ट सबसे पहले सदन में रखी जाएगी। दिल्ली चुनाव में भाजपा की प्रचंड बहुमत से सरकार बनी। भाजपा ने पहले विधानसभा सत्र में सिर्फ एक रिपोर्ट जारी करने का मन बनाया था। बाद में हेल्थ डिपार्टमेंट से जुड़ी कैग की रिपोर्ट भी जारी कर दी। इसमें भी आप सरकार की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगे थे। 12 रिपोर्ट अब भी लाइन में हैं। कुछ-कुछ समय पर ये जारी होती रहेंगी। इसका ये मतलब है कि अरविंद केजरीवाल अब चैन की सांस नहीं ले सकते हैं। क्योंकि कई पूर्व मंत्री पहले से जांच के दायरे में हैं। वे नए मामलों में भी फंस सकते हैं। पार्टी के कुछ और पूर्व मंत्रियों पर गंभीर आरोप लग सकते हैं।
एजुकेशन डिपार्टमेंट के ‘ऑडिट में घोटाला से AAP को झटका
शराब घोटाले के बाद अगर AAP सरकार का दूसरा बड़ा घोटाला सामने आएगा, तो वो एजुकेशन डिपार्टमेंट का होगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नई सरकार ने जिन 14 रिपोर्ट्स का जिक्र किया था, उसमें शिक्षा विभाग की ऑडिट रिपोर्ट, स्कूलों के बुनियादी ढांचे, टीचर्स की भर्ती और एजुकेशन पॉलिसीज में बजट के इस्तेमाल की समीक्षा रिपोर्ट शामिल हैं। भाजपा रणनीति के तहत अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को सारे झटके एक साथ नहीं देना चाहती। अभी तो भाजपा सरकार शुरू ही हुई है और पांच साल बाकी हैं। सही समय देखकर जनता के सामने शिक्षा विभाग की रिपोर्ट रखी जाएगी। ताकि जनता के सामने आप सरकार के शिक्षा मंत्री के घपले-घोटाले सामने आ सकें।
जांच के दायरे में आएंगे पूर्व शिक्षा मंत्री सिसोदिया और आतिशी
जेल जाने से पहले दिल्ली के पूर्व डिप्टी CM मनीष सिसोदिया ही एजुकेशन मिनिस्टर थे। 14 फरवरी 2015 से 28 फरवरी 2023 तक दो कार्यकाल में सिसोदिया ने ये विभाग संभाला। अब शराब घोटाले में फंसे सिसोदिया पर दूसरी मुसीबत शिक्षा घोटाले से आ सकती है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं आतिशी ने भी एजुकेशन डिपार्टमेंट मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद संभाला था। उन्हें काम करने के लिए करीब 2 साल वक्त मिला। उस दौर में भी नए घोटाले भी हुए और उन्होंने पुराने घोटालों की ओर के आंखें मूंदे रखीं। इसलिए उन पर भी आरोप तो लगेंगे ही, लेकिन मुख्य आरोपी सिसोदिया ही रहेंगे। खास बात यह है कि जिस एजुकेशन मॉडल पर केजरीवाल ने इंटरनेशनल अवॉर्ड बटोरे, AAP सरकार ने पूरे देश में जिस मॉडल का प्रचार किया और वाहवाही लूटी, ये रिपोर्ट उसे बिल्कुल खत्म कर देगी। एजुकेशन डिपार्टमेंट की कैग रिपोर्ट AAP के लिए बड़ा झटका लेकर आएगी।
SC-ST कम्युनिटी के फंड के साथ हेराफेरी भी सवालों के घेरे में
सोशल सेक्टर की योजनाएं के तहत मुफ्त बिजली-पानी और ऐसी ही बाकी योजनाओं के कामकाज और फाइनेंशियल मैनेजमेंट की रिपोर्ट इसमें आती है। सदन में पेश की जाने वाली ये तीसरे नंबर की रिपोर्ट हो सकती है। इसमें SC-ST कम्युनिटी के लिए चलाई जा रही योजनाओं में खर्च होने वाला फंड सवालों के घेरे में है। दरअसल, हर साल आम आदमी पार्टी की सरकार में इस कम्युनिटी के लिए करीब 3 हजार करोड़ रुपए का फंड दिया जाता था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एससी-एसटी कम्युनिटी पर इस रकम का बहुत मामूली हिस्सा खर्च होता था। बाकी बचा फंड दूसरे विभाग में ट्रांसफर होता था। कैग की रिपोर्ट में फंड की हेराफेरी का मामला सामने आएगा।
केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ेंगी
पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम जांच के दायरे में आ सकते हैं। दरअसल, राजेंद्र पाल गौतम 14 फरवरी 2015 से 19 अक्टूबर 2022 तक समाज कल्याण, अनुसूचित जाति-जनजाति विभाग के मंत्री रहे। 3 नवंबर 2022 से 11 अप्रैल 2024 तक राजकुमार आनंद ने ये मंत्रालय संभाला। फंड की हेराफेरी के मामले 2023 से पहले के हैं। ऐसे में राजेंद्र पाल गौतम फंस सकते हैं। इसके अलावा पूर्व पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन और गोपाल राय की मुश्किलें भी बढ़ेंगी। इमरान हुसैन 14 फरवरी 2015 से 14 फरवरी 2020 तक पर्यावरण मंत्री रहे। फिर 16 फरवरी 2020 से 17 सितंबर 2024 तक ये विभाग गोपाल राय के पास रहा। गड़बड़ी सामने आने पर ये दोनों मंत्री जांच के दायरे में आ सकते हैं। पॉल्यूशन पर किए खर्च का ऑडिट हुआ है। पॉल्यूशन के अलावा बाकी कामों जैसे कचरा प्रबंधन में सरकार के काम को लेकर एक रिपोर्ट सामने आएगी। पॉल्यूशन कम करने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए, इस रिपोर्ट में इसकी भी जांच की गई है। पूर्व श्रम मंत्री गोपाल राय 14 फरवरी 2015 से 14 फरवरी 2020 तक दिल्ली सरकार में श्रम मंत्री रहे। उसके बाद 16 फरवरी 2020 से 28 फरवरी 2023 तक सत्येंद्र जैन ने ये विभाग संभाला। इस विभाग में फंड की हेराफेरी या घोटाले से ज्यादा फंड खर्च न करने का मामला सामने आ सकता है। आरोप है कि इस विभाग के लिए फंड दिया जाता था, लेकिन फंड खर्च करने की जगह उसे फिक्स डिपॉजिट करा दिया जाता था। फिर उससे आने वाले ब्याज का इस्तेमाल पार्टी अपने खर्चों के लिए करती थी। ये रकम 3 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। इस पर अगर 2.5% ब्याज भी जोड़ा जाए, तो ये 75 करोड़ रुपए होता है। इसे लगातार पार्टी के खर्च में इस्तेमाल किया गया।
आप सरकार की लिकर पॉलिसी से 2002 करोड़ रुपए के लॉस का दावा
अब तक कैग की दो रिपोर्ट्स सामने आई हैं। लिकर पॉलिसी और सप्लाई पर ऑडिट दिल्ली की नई शराब नीति अब रद्द हो चुकी है। हालांकि, कैग की रिपोर्ट में इससे 2,002 करोड़ रुपए के रेवेन्यू लॉस का दावा किया गया है। रिपोर्ट में लाइसेंस देने में गड़बड़ी और कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने का आरोप है। रिपोर्ट में मुख्य रूप से तीन गड़बड़ियां सामने आईं:
• गलत फैसलों की वजह से सरकार को ज्यादा राजस्व का नुकसान हुआ। नॉन कंफर्मिंग इलाकों में शराब की दुकानें नहीं खोलने की वजह से 941.53 करोड़ रुपए का घाटा हुआ।
• छोड़े गए लाइसेंस को री-टेंडर नहीं करने की वजह से 890 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। कोरोना के नाम पर लाइसेंस फीस माफ करने के फैसले से 144 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
• सिक्योरिटी डिपॉजिट सही से कलेक्ट ना करने से 27 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
कैग की रिपोर्ट ने मोहल्ला क्लिनिक के मैनेजमेंट की खोली पोल
पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर और सर्विसेज हेल्थ डिपार्टमेंट से जुड़ी CAG की 7 पन्नों की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है। नर्स और डॉक्टर्स की संख्या पर्याप्त नहीं है। महिलाओं के हेल्थ प्रोग्राम में फंडिंग की कमी है। एम्बुलेंस में जरूरी उपकरण नहीं हैं। ICUs की कमी है। मोहल्ला क्लिनिक और हेल्थ पॉलिसीज के लिए आए फंड के इस्तेमाल और खर्च की ऑडिट रिपोर्ट सामने आ चुकी है। रिपोर्ट में स्वास्थ्य विभाग के फंड और मैनेजमेंट पर सवाल उठाए गए हैं। सबसे ज्यादा सवाल मोहल्ला क्लिनिक के मैनेजमेंट पर उठे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के कम से कम 21 मोहल्ला क्लिनिक में टॉयलेट नहीं हैं। अस्पतालों में स्टाफ की कमी है। बड़े ऑपरेशन के लिए मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा कोविड-19 के दौरान केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को जो रकम दी थी, उसका इस्तेमाल ही नहीं किया गया।
• रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड से निपटने के लिए दिल्ली सरकार को केंद्र से 787.91 करोड़ रुपए मिले थे। इनमें से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपए ही खर्च हुए।
• कैग रिपोर्ट के मुताबिक, हेल्थ वर्कर्स की भर्ती और सैलरी के लिए 52 करोड़ रुपए मिले थे। इसमें से 30.52 करोड़ खर्च ही नहीं किए गए। यानी महामारी के दौरान लोग मेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहे थे। उस वक्त में भी दिल्ली सरकार ने स्टाफ की भर्ती नहीं की।
• इसी तरह दवाओं, PPE किट और अन्य मेडिकल सप्लाई के लिए मिले 119.85 करोड़ में से 83.14 करोड़ रुपए खर्च नहीं हुए।