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वरिष्ठ पत्रकार अर्नब पर जानलेवा हमला करना बड़ा अपराध या सोनिया गांधी से सवाल करना?

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आज यह सवाल इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि मुंबई पुलिस कानून के नजरिए से वहां उलटी गंगा बहाने में जुटी हुई है। मामला अर्नब गोस्वामी और उनकी पत्नी पर रात के सवा बारह बजे जानलेवा हमला का और महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की पुलिस के सामने भीड़ द्वारा पीट पीटकर हत्या कर देने जैसे जघन्य अपराध को लेकर सवाल पूछने का है। महाराष्ट्र में पांच दिनों के अंदर ये दोनों मामले सामने आए। इन दोनों मामले में मुंबई पुलिस कितनी सक्रिय है वह सब के सामने है। वहीं पालघर में दो साधुओं की हुई हत्या को लेकर वरिष्ठ राष्ट्रवादी पत्रकार अर्नब गोस्वामी द्वारा महाराष्ट्र में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से सवाल पूछ लिया गया तो मुंबई पुलिस इतनी सक्रिय हो गई जैसे देश पर ही कोई बड़ी आफत आ गई हो। जबकि सवाल पूछना अभिव्यक्ति के तहत आता है न कि अपराध के तहत। लेकिन अभिव्यक्ति का गला घोटना कांग्रेस का इतिहास रह है। तभी तो कांग्रेस शासित महाराष्ट्र की मुंबई पुलिस ने सोनिया गांधी से सवाल पूछने पर वरिष्ठ पत्रकार  अर्नब गोस्वामी से 12 घंटे तक पूछताछ की है। जबकि अर्नब गोस्वामी और उनकी पत्नी पर हुए जानलेवा हमले के मामले में निष्क्रिय बन बैठी है। तभी तो सवाल उठता है कि कानून की नजर में एक पत्रकार द्वारा किसी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष से सवाल करना बड़ा अपराध है या फिर सवाल पूछने वाले पत्रकार और उसकी पत्नी पर हुआ जानलेवा बड़ा अपराध है?

सोनिया गांधी से सवाल पर मुंबई पुलिस की अति सक्रियता

जिस सक्रियता के साथ मुंबई पुलिस ने देश के प्रसिद्ध एक वरिष्ठ और राष्ट्रवादी पत्रकार अर्नब गोस्वामी के साथ करीब साढ़े 12 घंटे तक पूछताछ की है उससे यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या संविधान सिर्फ फैशनेबल लिबरल्स को ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है? क्या कांग्रेस विशेषकर गांधी परिवार की चाटुकारिता करने वालों को कुछ भी बोलकर निकलने की स्वतंत्रता है? अर्नब गोस्वामी के साथ सत्ता की ज्यादती पर चुप्पी साध बैठे तथाकथित लिबरल पत्रकारों को अपनी अंतरात्मा से पूछना चाहिए कि अतीत में उन्होंने पत्रकारिता की कितनी नैतिकता निभाई है? इसी देश में प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर आसीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से क्या-क्या और कितने-कितने सवाल नहीं खड़े किए गए। संवैधानिक संस्थाओं से लेकर पुलिस और कोर्ट तक की गरिमा गिराई गई। पुलिस, कोर्ट और जजों तक पर सवाल खड़े किए गए। लेकिन किसी पत्रकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन आज जब सोनिया गांधी से सवाल पूछने पर एक पत्रकार को मुंबई पुलिस प्रताड़ित कर रही है तो मुंबई पुलिस की अति सक्रियता पर सवाल क्यों नहीं? क्यों नहीं सवाल किया जा रहा है कि आखिर मुंबई पुलिस किसके दबाव पर यह सक्रियता दिखा रही है? किसके इशारे पर पुलिस अर्नब गोस्वामी के खिलाफ षड्यंत्र रचने में जुटी है? आखिर किसके कहने पर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ दायर एफआईआर में सांप्रदायिक दंगा भड़काने की धारा में मामला दर्ज किया गया है? जिस प्रकार इस मामले में मुंबई पुलिस ने अपनी सक्रियता दिखाई है उससे पूरा पुलिस विभाग सवाल के घेरे में आ गया है। लोग पूछने लगे हैं कि आखिर अर्नब गोस्वामी ने कौन सा बड़ा अपराध कर दिया कि उनसे दिल्ली पुलिस 12 घंटे तक पूछताछ की है? क्या सोनिया गांधी से एक सवाल पूछने पर पूरा कांग्रेस इस प्रकार उत्पीड़न करने पर उतर आएगी?

अर्नब दंपत्ति पर जानलेवा हमले पर चुप क्यों मुंबई पुलिस?

मुंबई पुलिस की अति सक्रियता पर ही नहीं बल्कि उसकी निष्क्रियता पर भी सवाल उठने लगे हैं। एक तरफ तो पुलिस सोनिया गांधी से सवाल पूछने के मामले में इतनी सक्रियता दिखाई है कि अर्नब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर से लेकर 12 घंटे तक की पूछताछ को भी अंजाम दे दिया, जबकि अर्नब गोस्वामी और उनकी पत्नी पर हुए जानलेवा हमले के मामले में पुलिस ने एफआईआर पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। इतने दिन बीत जाने के बाद भी उस मामले में पुलिस की जांच अभी ढाई कदम से आगे नहीं बढ़ पाई है। इस मामले में पुलिस इतनी सुस्त दिखती है जैसे कुछ हुआ ही न हो। यह अकेला मामला नहीं बल्कि पालघर में दो साधुओं की हत्या के मामले में भी पुलिस अति निष्क्रिय दिख रही है। निष्क्रिय क्या दिख रही है, उस मामले को दबाने में जुटी हुई है, ताकि असली गुनहगार को बचाया जा सके। जबकि मीडिया में इस हत्या की सारी परतें खुल गई है। इसी मामले को लोकर अर्नब गोस्वामी ने सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाया था। सवाल उठाने की वजह से ही उसी दिन रात के करीब सवा 12 बजे से दफ्तर से घर लौटने के दौरान अर्नब गोस्वामी और उनकी पत्नी पर जानलेवा हमला किया गया था। उस हमले के दौरान दोनो पति-पत्नी अपनी कार में थे, इसलिए बच गए। हमलावरों ने उनकी कार की कांच तोड़ने का प्रयास किया गया। इस हमले के बाद उन्होंने पुलिस थाने जाकर एफआईआर लिखवाई, लेकिन उनके बयान को ठीक से न तो दर्ज किया गया ना ही उसे एफआईआर में शामिल किया गया। इस से साफ है कि मुंबई पुलिस महाराष्ट्र की सत्ता में बैठे लोगों के इशारे पर कांग्रेस  और उनकी अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को बचाना चाहती है और अर्नब गोस्वामी को फंसाने का खेल खेल रही है।

पत्रकार से पूछताछ और हमलावर को जमानत क्यों?

लोग सवाल उठाने लगे हैं कि हम ऐसे समय में रह रहे हैं जहां हिंसा करने वाले बेल पाकर घर पहुंच जाते हैं, जबकि अर्नब गोस्वामी से लगभग 12 घंटे तक पूछताछ की जाती है। सवाल उठता है कि इतनी लंबी पूछताछ करने के पीछे मुंबई पुलिस का मंतव्य क्या है? एक तरफ पालघर में साधुओं की हत्या के आरोपी पति-पत्नी पीटर डिमेलो और सिराज बलसारा को वकील, पैसे और कानूनी मदद पहुंचाई जा रही है। वहीं दूसरी तरफ उस पर सवाल उठाने वाले पत्रकार को बेवजह पुलिस थाने में बिठाकर 12 घंटे तक पूछताछ की जा रही है। मालूम हो कि पीटर डिमेलो ने ही अपना नाम बदलकर प्रदीप प्रभु रखा हुआ है। यह वही शख्स है जो यूपीए सरकार के दौरान सोनिया गांधी द्वारा बनायी गई संविधानेत्तर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सब कमेटी का खास सदस्य रहा है। कांग्रेस की हरकत की वजह से ही उसका पुराना इतिहास लोगों को याद आने लगा है। तभी तो कहा जाने लगा है कि कांग्रेस पार्टी ने इस प्रकरण में एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि इमरजेसी वाला खून अभी भी उनके रगों में दौड़ रहा है। तभी तो अपने मातहत पुलिस के माध्यम से एक बार फिर मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात किया है। जितनी पूछताछ अर्नब गोस्वामी के साथ की गई है इतनी तो कांग्रेस राज के दौरान स्कैम के सरदारों के साथ भी नहीं की गई है।

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