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कांग्रेस की लटकी, अटकी परियोजनाओं को पीएम मोदी ने करवाया पूरा, सरकार के कामकाज की शैली बदली

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पिछले नौ साल के कार्यकाल में ऐसी कई परियोजनाओं को पूरा करवाया जिसे कांग्रेस सरकार ने या तो शिलान्यास का पत्थर लगाकर छोड़ दिया था फिर काम शुरू करने का खानापूरी कर उसे अधूरा छोड़ दिया था। इससे एक तो इन परियोजनाओं का देश को लाभ नहीं मिल रहा था वहीं इनकी लागत भी बढ़ती जा रही थी। पीएम मोदी ने जब 2014 में देश की बागडोर संभाली तो उन्होंने अधूरी परियोजनाओं की समीक्षा करवाई। चौंकाने वाली यह सामने आई कि करीब 400 से अधिक परियोजनाएं ऐसी थीं जिसे कांग्रेस सरकार ने शिलान्यास करके छोड़ दिया था। इस पर कभी काम शुरू ही नहीं किया गया। कांग्रेस 60 सालों तक देश को लूटती रही, हर परियोजना, हर डील में दलाली और कमीशन का खेल चलता रहा और गांधी परिवार अपनी तिजोरी भरता रहा और विकास के नाम पर शिलान्यास का पत्थर लगाकर लोगों की आंखों में धूल झोंकने का काम किया।

पीएम मोदी ने चार दशक पुरानी परियोजनाओं को पूरा करवाया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार दशक से भी ज्यादा समय से लटकी परियोजनाओं को पूरा करा रहे हैं वहीं 100 साल पुरानी मांग भी पूरी कर रहे हैं। इसकी फेहरिस्त लंबी है। यहां उदाहरण स्वरूप इन परियोजनाओं को देख सकते हैं जिन्हें पीएम मोदी ने पूरा करवाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने सरदार सरोवर बांध की बाधाओं को दूर कर 38 सालों से लटकी परियोजना पूरी करवाई, 18 साल बाद अटल टनल का उद्घाटन किया, कांग्रेस के 10 साल से लटकाए प्रोजेक्ट वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे को 2 साल में पूरा करवाया, 16 साल से अटके देश के सबसे लंबे बोगीबील रेल-रोड ब्रिज का उद्घाटन किया, 39 साल से लटकी बाणसागर परियोजना को पीएम मोदी ने देश को सौंपा, चार दशक से अटकी सरयू नहर परियोजना का प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन किया, ठाणे-दीवा रेल लाइन का शिलान्यास 2005 में हुआ था लेकिन इसे पीएम मोदी ने पूरा करवाया। इसी तरह 31 साल बाद फिर गोरखपुर खाद कारखाना शुरू हुआ जिसमें 20 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। 15 साल से बंद सिंदरी खाद कारखाने से उत्पादन शुरू हुआ, 23 साल बाद रामागुंडम (तेलंगाना) खाद कारखाना शुरू हुआ। बरौनी खाद कारखाने में 22 साल बाद उत्पादन शुरू हुआ। 32 साल बाद पीएम मोदी ने असम गैस क्रैकर प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। करीब 100 साल पुरानी मांग पीएम मोदी ने पूरी की और तरंगा हिल नई रेल लाइन को मंजूरी दी।

कांग्रेस शासन में कई प्रोजेक्ट दशकों तक लटके रहे

कांग्रेस शासन में कई प्रोजेक्ट तो चार दशकों तक लटके पड़े रहे और लागत में सैकड़ों गुना तक की वृद्धि हो गई। पीएम मोदी अक्सर कहते भी हैं कि अटकाना, लटकाना और भटकाना कांग्रेस की कार्यशैली रही है। लेकिन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उन परियोजनाएं पर तेजी काम शुरू करवाया जो आत्मनिर्भर भारत के जरूरी था और जिसका देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होने वाला था। प्रधानमंत्री मोदी ने बीते नौ साल में सरकार के कामकाज करने के तरीके को भी बदला है। यही वजह है कि मोदी सरकार में कांग्रेस शासन के अटके प्रोजेक्ट को पूरा करने की फेहरिस्त अब काफी लंबी होती जा रही है। इन परियोजनाओं के अलावा भी आधार को सब्सिडी से जोड़ना, डीबीटी, स्वच्छता मिशन, घर-घर शौचालय, गंगा सफाई, गरीबों को गैस कनेक्शन, मिड डे मील, जीएसटी, बेनामी संपत्ति पर शिकंजा जैसे तमाम काम हैं, जिन्हें यूपीए सरकार के कार्यकाल में आधे-आधूरे तरीके से शुरू कर छोड़ दिया गया था। प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता की वजह से इन योजनाओं को नया मकाम हासिल हुआ और सही मायने में देश के लोगों को फायदा हुआ। मोदी सरकार ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के विजन से लटकाने, अटकाने और भटकाने की कार्य संस्कृति को पूरी तरह बदल कर रख दिया है।

आइए एक नजर डालते हैं ऐसी परियोजनाओं पर, जो कांग्रेस राज में वर्षों से अटकी पड़ी थीं, और मोदी राज में उन पर तेजी से काम हो रहा है और राष्ट्र को समर्पित किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने 18 साल बाद किया अटल टनल का उद्घाटन

शिलान्यासः 26 मई 2002
उद्घाटनः 3 अक्टूबर 2020

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 अक्टूबर 2020 को हिमांचल प्रदेश के रोहतांग में बनाई गई अटल सुरंग का उद्घाटन किया। यह दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग है। इस टनल को बनाने का ऐतिहासिक फैसला तीन जून 2000 को लिया गया था, जब अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। 26 मई 2002 को इसकी आधारशिला रखी गई थी। उसके बाद 10 साल तक कांग्रेस की सरकार ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस परियोजना को लटकाए रखा। 2014 पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद इस पर तेजी से कार्य किया गया और इसे पूरा किया गया। अटल टनल मनाली और लेह के बीच की दूरी को 46 किलोमीटर तक कम करती है और यात्रा के समय को भी 4 से 5 घंटे कम कर देती है। यह 9.02 किलोमीटर लंबी सुरंग है, जो कि मनाली को पूरे साल लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इससे पहले घाटी हर साल लगभग 6 महीने तक भारी बर्फबारी के कारण अन्य हिस्सों से कट जाती थी। सुरंग को समुद्र तल से 3,000 मीटर (10,000 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी में आधुनिक तकनीक के साथ बनाया गया है। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा था कि 2014 तक इस टनल का सिर्फ 1.5 किलोमीटर तक ही हो पाया था। इस प्रोजेक्ट की 2014 के पहले जो स्पीड थी उसके मुताबिक ये टनल 2040 में पूरी होती। उन्होंने कहा कि देश के विकास के लिए प्रोजेक्ट की रफ्तार बढ़ाई गई। 6 साल में हमने 26 साल का काम पूरा किया। इस तरह के प्रोजेक्ट में देरी से देश का नुकसान होता है। कनेक्टिविटी से देश के विकास का सीधा संबंध होता है। खास तौर पर बॉर्डर एरिया में कनेक्टिविटी सीमा सुरक्षा से जुड़ी होती है। पीएम ने कहा कि 2014 के बाद सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रोजेक्टों में काफी तेजी आई है।

सरदार सरोवर बांध की बाधाओं को दूर कर 38 सालों से लटकी परियोजना पूरी करवाई

शिलान्यासः 5 अप्रैल 1961
उद्घाटनः 17 सितंबर 2017

प्रधानमंत्री मोदी ने 17 सितंबर, 2017 को अपने 67वें जन्मदिन के अवसर पर सरदार सरोवर बांध देश को समर्पित किया। इस बांध को गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को लिए लाइफ लाइन माना जा रहा है। यह प्रोजेक्ट इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि देश के इस सबसे ऊंचे बांध को बनने में 56 साल लगे, लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री ने इसे पूरा करने की समय सीमा तय की और और देश को सौंप भी दिया। इस बांध की आधारशिला देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 को रखी थी। लालफीताशाही और कांग्रेस की घोटाले की कार्य संस्कृति ने इस प्रोजेक्ट को वर्षों तक लटकाए रखा। 1986-87 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, उस समय इसकी लागत 6400 करोड़ रुपये आंकी गई थी। लेकिन इसकी लागत बढ़ती गई और यह पूरा होते-होते 65 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया। जाहिर है इसकी लागत 100 गुना से भी अधिक बढ़ गई। अगर समय पर काम शुरू होकर पूरा हुआ होता तो यह काफी कम खर्च में पूरा हो जाता।

वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे: कांग्रेस के 10 साल से लटकाए प्रोजेक्ट को 2 साल में किया पूरा

प्रस्तावः 2003
काम शुरूः 2009
उद्घाटनः 19 नवंबर, 2018

कांग्रेसी सरकार के लेट-लतीफी का एक अहम सबूत वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने 19 नवंबर, 2018 को देश को समर्पित किया। करीब 83 किलोमीटर लंबे स्ट्रेच वाला कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस वे बेहद हाईटेक और रोल मॉडल है। इसके जरिये चार प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग, एनएच-1, एनएच-2 , एनएच-8 और एनएच-10 आपस में जुड़ गए हैं। ये एक्सप्रेस वे बनने से उत्तर भारत के राज्यों का सेंट्रल, पश्चिमी और दक्षिण भारत के राज्यों से सीधा संपर्क हो गया है। दरअसल सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने एक तरफ तो बुनियादी ढांचा मजबूत करने के अपने विजन को शीघ्रता से लागू करने पर जोर दिया, साथ ही कांग्रेस सरकारों की अकर्मण्यता से अटके पड़े प्रोजेक्ट्स की बाधाएं भी दूर की। ये प्रोजेक्ट 2005-06 में अस्तित्व में आया था लेकिन शुरुआत से ही ये यूपीए सरकार की सुस्ती का शिकार हो गया। इस प्रोजेक्ट पर पूरे दस साल तक सोनिया-मनमोहन की यूपीए सरकार और फिर साल 2014 से दो साल तक हरियाणा की भूपिंदर हुड्डा सरकार कुंडली मारकर बैठी रही। लेकिन हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनते ही मोदी सरकार ने इस पर तेजी से काम शुरु दिया दिया। इसे और बेहतर बनाने के लिए इसमें नई और आधुनिक सुविधाएं भी जोड़ी। पहले ये एक्सप्रेस वे 4 लेन का ही था लेकिन मोदी सरकार ने इसे 6 लेन का बनाया। इसमें देश में पहली बार स्पीड और वजन वाले सेंसर लगाए गए हैं, जिस पर 120 किलोमीटर की रफ्तार से वाहन दौड़ सकते हैं। मोदी सरकार ने इस एक्सप्रेस वे में हरियाणा की संस्कृति को भी दर्शाने पर ध्यान दिया है। इसके दोनों तरफ हरियाणा की कला एवं संस्कृति, योग एवं गीता से जुड़ी 21 प्रतिमाएं लगाई गई हैं। यहां सौर ऊर्जा से बिजली बन रही है और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम भी लगाया है। इसी मॉडल पर महाराष्ट्र और गुजरात में भी एक्सप्रेस वे बनाए जा रहे हैं। 2009 में एक्सप्रेस-वे की कंस्ट्रक्शन कंपनी ने अपना काम रोक दिया था लेकिन केंद्र सरकार के बीच बचाव के बाद 2016 में काम फिर शुरू हुआ। इस परियोजना का प्रस्ताव 2003 में किया गया था लेकिन इस पर 2009 में काम शुरू हुआ और इसे 2012 तक बन जाना था।

पीएम मोदी ने धीमी गति से बन रही भूपेन हजारिका पुल को समय से करवाया पूरा

मंजूरीः 2009
काम शुरूः 2011
उद्घाटनः 26 मई 2017

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अगस्त, 2003 में ‘ढोला-सदिया पुल’ जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने भूपेन हजारिका पुल का नाम दिया है, के निर्माण के लिए फिजिबलिटी स्टडी करने का आदेश दिया था। उनकी सरकार 2004 में चली गई तो यह योजना भी लटक गई। छह साल बाद इसे मनमोहन सिंह कैबिनेट ने जनवरी, 2009 में सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। ये पुल अरुणाचल प्रदेश सड़क-परिहवन पैकेज के तहत घोषित 4 बड़ी परियोजनाओं में एक था, लेकिन इसमें देरी होती चली गई। दो साल बाद 2011 में पुल बनाने का काम शुरू हुआ और इसे दिसंबर, 2015 में पूरा हो जाना था, लेकिन कांग्रेस की कार्यशैली के कारण ये पूरा नहीं हो सका। मंजूरी के वक्त 9.15 किलोमीटर लंबे इस पुल पर आने वाले कुल खर्च का अनुमान 876 करोड़ था जबकि पूरा होते-होते इस पर कुल 2056 करोड़ रुपए खर्च हो गए। पीएम मोदी ने 26 मई 2017 को इस पुल को राष्ट्र को समर्पित किया।

देश के सबसे लंबे बोगीबील रेल-रोड ब्रिज का उद्घाटन, 16 साल से अटका देश का सबसे लंबा रेल-रोड पुल

शिलान्यासः 22 जनवरी 1997
उद्घाटनः 25 दिसंबर 2018

करीब पांच किलोमीटर लंबा रेल और रोड ब्रिज दो ऐसे राज्यों को जोड़ेगा, जहां आने जाने के लिए अब तक सिर्फ नाव का सहारा था। 25 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डिब्रूगढ़ के समीप बोगीबील में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने डबल डेकर रेल और रोड ब्रिज का उद्घाटन किया। ये पुल असम के डिब्रूगढ को अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट से जोड़ने वाला बना देश का सबसे लंबा सड़क और रेल पुल है। इस ब्रि‍ज के बनने से नॉर्थ ईस्‍ट के हिस्‍से में आवाजाही और आसान हुई। साथ ही भारतीय सेना को चीन की सीमा तक पहुंचने में काफी आसानी होगी। पूर्वोत्तर भारत के हिस्‍सों में भूकंप का भी खतरा रहता है। लेकिन ये ब्रि‍ज इससे बेअसर रहेगा। रिएक्‍टर स्‍केल पर अगर 7.0 की तीव्रता वाला भूकंप भी आता है तो इस ब्रिज को कोई नुकसान नहीं होगा। ये पुल भारत का पहला पूर्णत: वेल्‍डेट ब्र‍िज है। इस ब्रिज को तैयार करने में करीब 5900 करोड़ की लागत आई है। ये ब्रिज पिछले 16 साल से बन रहा था। असम के बोगीबील पुल को केंद्र सरकार ने 1997 में मंजूरी दी थी। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 22 जनवरी 1997 को इस पुल की आधारशिला रखी। उसके बाद साल 2002 में एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसका काम शुरू कराया। उसके बाद 10 साल कांग्रेस सरकार रही, लेकिन यह परियोजना पूरी नहीं हो सकी।

39 साल से लटकी बाणसागर परियोजना को पीएम मोदी ने देश को सौंपा

शिलान्यासः 14 मई 1978
उद्घाटनः 15 जुलाई, 2018

प्रधानमंत्री मोदी ने 15 जुलाई, 2018 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में 3148.91 करोड़ की लागत से तैयार बाणसागर परियोजना का लोकार्पण किया। इससे बिहार के रोहतास, बक्सर भोजपुर, भभुआ, गया और पटना समेत दर्जन भर जिलों में किसानों को सिंचाई की सुविधा मिलेगी। आपको बता दें कि इस परियोजना का शिलान्यास 14 मई 1978 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने किया था, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इसे लटकाए रखा। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसे दोबारा शुरू किया, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इसे लटकाए रखा। अगर कांग्रेसी सरकारों ने इसे पूरा करने में रुचि ली होती तो 20 साल पहले ही इलाके के किसानों को इसका लाभ मिल जाता। इतना ही नहीं 303 करोड़ की मूल लागत वाली 71 किलोमीटर की लंबाई वाली इस नहर परियोजना पर 3420.24 करोड़ रुपये की कुल लागत न आई होती।

चार दशक से अटकी सरयू नहर परियोजना का प्रधानमंत्री मोदी ने किया उद्घाटन

प्रोजेक्ट शुरूः 1978
उद्घाटनः 11 दिसंबर 2021

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 दिसंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना का उद्घाटन किया। साल 1978 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया था, लेकिन Budgetary Support की निरंतरता, इंटर-डिपार्टमेंटल कॉर्डिनेशन और मॉनीटर्गिंग के अभाव की वजह से इसे टाला गया था। करीब चार दशक बीत जाने के बाद भी इसे पूरा नहीं किया जा सका था। सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना से 14 लाख हेक्टेयर से अधिक खेतों की सिंचाई के लिये पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होगी तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के 6200 से अधिक गांवों के लगभग 29 लाख किसानों को इसका फायदा मिलेगा। साल 2016 में इस परियोजना को प्रधानमंत्री कृषि संचयी योजना में शामिल किया गया और इस काम को दोबारा शुरू किया गया। ऐसे में नई नहरों के निर्माण के लिए नए सिरे से भूमि अधिग्रहण करने और परियोजना में गेप को भरने के लिए नए समाधान किए गए। साथ ही, पहले जो भूमि अधिग्रहण किया गया था, उससे सम्बंधित लंबित मुकदमों को निपटाया गया. नये सिरे से ध्यान देने के कारण परियोजना लगभग चार सालों में ही पूरी कर ली गई। सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना के निर्माण की कुल कॉस्ट 9800 करोड़ रुपये से ज्यादा है। इसमें से 4600 करोड़ रुपये से ज्यादा का प्रावधान पिछले 4 सालों में किया गया है। परियोजना में पांच नदियों– घाघरा सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी को आपस में जोड़ने का भी प्रावधान किया गया है, ताकि क्षेत्र के लिए जल संसाधन का समुचित उपयोग सुनिश्चित हो सके।

ठाणे-दीवा रेल लाइन का पीएम मोदी ने किया उद्घाटन, 2005 में हुआ था शिलान्यास

शिलान्यासः 2005
उद्घाटनः 18 फरवरी 2022

पीएम नरेंद्र मोदी ने 18 फरवरी 2022 को ठाणे और दिवा को जोड़ने वाली 2 अतिरिक्त रेलवे लाइनों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से राष्ट्र को समर्पित किया। प्रधानमंत्री ने मुंबई उपनगरीय रेलवे की दो उपनगरीय रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। ठाणे और दिवा को जोड़ने वाली दो अतिरिक्त रेल लाइनें लगभग 620 करोड़ रुपए की लागत से बनाई गई हैं और इसमें 1.4 किमी लंबा रेल फ्लाईओवर, 3 प्रमुख पुल, 21 छोटे पुल शामिल हैं। ये लाइनें मुंबई में उपनगरीय रेल गाड़ियों के यातायात के साथ लंबी दूरी की रेलगाड़ियों के यातायात में रुकावट को काफी हद तक दूर कर देंगी। इन लाइनों से शहर में 36 नई उपनगरीय रेलगाड़ियां भी चलाई जा सकेंगी। कल्याण सेंट्रल रेलवे का मुख्य जंक्शन है। देश के उत्तरी और दक्षिणी भाग से आने वाला ट्रैफिक कल्याण में जुड़ता है और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSTM) की ओर चला जाता है। कल्याण और सीएसटीएम के बीच चार रेल मार्गों में से दो ट्रैक स्लो लोकल ट्रेनों के लिए और दो ट्रैक फास्ट लोकल, मेल एक्सप्रेस और मालगाड़ियों के लिए इस्तेमाल होते थे। जिसके बाद उपनगरीय और लंबी दूरी की ट्रेनों को अलग करने के लिए दो अतिरिक्त लाइन की योजना बनाई गई थी। पीएम मोदी ने कहा कि 2005 में कांग्रेस सरकार के काल में इस प्रोजेक्ट का शिलान्यास हुआ था। 2015 में इसे पूरा होना था, लेकिन 2014 तक यह अलग-अलग कारणों से लटका रहा। इसके बाद हमने इस पर तेजी से काम किया और जो समस्याएं थी उसे सुलझाया। अनेक चुनौतियों के बावजूद हमारे श्रमिकों और हमारे इंजीनियरों ने इस प्रोजेक्ट को पूरा किया। दर्जनों पुल बनाए फ्लाईओवर बनाए और सुरंग तैयार की। राष्ट्र निर्माण के लिए मैं ऐसे कमिटमेंट को हृदय से नमन करता हूं।

25 साल से अटका हुआ था ओडिशा का रेलवे प्रॉजेक्ट, पीएम मोदी की दखल के बाद मिली रफ्तार

प्रोजेक्ट शुरूः 1995

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 में सरकार के विभिन्न प्रॉजेक्ट्स की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई थी। इस समीक्षा बैठक का नाम ‘प्रगति’ था। इस दौरान पीएम मोदी ओडिशा के चर्चित खुर्दा-बलांगीर रेलवे प्रॉजेक्ट की स्टेटस रिपोर्ट से काफी प्रभावित हुए। 25 साल पुराना खुर्दा-बलांगीर रेलवे लाइन 1995 से लटका हुआ था। स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया कि रेलवे ट्रैक का काम सही रफ्तार से चल रहा है और तय वक्त में यह जरूर खत्म हो जाएगा। साल 2015 में पीएम मोदी की नजर इस रेलवे प्रॉजेक्ट पर पड़ी। पीएम इसकी स्टेटस रिपोर्ट से उस वक्त वह बेहद नाराज हुए थे। उन्होंने नाराजगी जाहिर करते हुए पीएमओ के अधिकारियों से कहा था कि यह इलाका सबसे जरूरतमंद लोगों का घर है, जो बाकी इलाकों से पिछड़ा है और सरकारी मदद की उन्हें बेहद जरूरत है। पीएम ने कहा था कि इस प्रॉजेक्ट को प्राथमिकता देने की जरूरत है। यदि साल 2000 तक काम खत्म हो गया होता प्रॉजेक्ट की कीमत भी कम होती और पूर्वोत्तर भारत के लोगों को इसका फायदा भी मिलता। अब प्रधानमंत्री मोदी की दखल से 25 साल पुराने ओडिशा के रेलवे प्रॉजेक्ट को नई रफ्तार मिली है। ओडिशा में 1995 से लंबित 289 किलोमीटर की खुर्दा-बलांगीर रेलवे लाइन पर तेजी से काम हो रहा है।

31 साल बाद फिर शुरू हुआ गोरखपुर खाद कारखाना, 20 हजार लोगों को मिलेगा रोजगार

बंदः 1990
चालूः 7 दिसंबर 2021

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जुलाई, 2016 को गोरखपुर में 26 वर्षों से बंद पड़े फर्टिलाइजर प्लांट को दोबारा शुरू करने का एलान किया और सात दिसंबर 2021 को पीएम मोदी ने गोरखपुर खाद कारखाने का शुभारंभ किया। इसके साथ ही उन्होंने बिहार के बरौनी और सिंदरी के फर्टिलाइजर प्लांट भी शुरू करने की घोषणा की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि “26 वर्षों से यह फर्टिलाइजर कारखाना हमारी वजह से बंद नहीं पड़ा था। पहले की सरकारों ने जनहित से जुडे ऐसा काम नहीं किए, अब दिल्‍ली में आप लोगों के ‍लिए काम करने वाली सरकार बनी है, इसलिए ये काम हो रहा है। अगर आप अपने हितों को ध्‍यान में रख करके सरकार चुनते है तो सरकार भी आपके लिए काम करने के लिए दौड़ती है।“ जाहिर है कि कांग्रेस के राज में किसानों, गरीबों, अदिवासियों, महिलाओं के विकास से जुड़ी योजनाओं पर ध्यान नहीं जाता था। गोरखपुर समेत पूरे पूर्वांचल में विकास की नई इबारत लिख रहा गोरखपुर खाद कारखाना अब पूरी क्षमता से ‘दौड़ने’ को तैयार हो गया है। 8,603 करोड़ रुपये की लागत से करीब 600 एकड़ क्षेत्रफल में गोरखपुर खाद कारखाने का निर्माण हुआ है। पूरी तरह से प्राकृतिक गैस पर आधारित इस खाद कारखाने की अधिकतम उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 3,850 मीट्रिक टन और प्रतिवर्ष 12.7 लाख मीट्रिक टन यूरिया उत्पादन की है। गोरखपुर के खाद कारखाने में उच्च गुणवत्ता की नीम कोटेड यूरिया बन रही है। कारण है, इस कारखाने की प्रीलिंग टावर की रिकार्ड ऊंचाई। यहां बने प्रिलिंग टॉवर की ऊंचाई 149.2 मीटर है जो दुनिया में बने सभी खाद कारखानों के प्रीलिंग टॉवर में सबसे ऊंचा है। इसकी ऊंचाई, कुतुब मीनार से भी दोगुनी है। कुतुब मीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर है। प्रीलिंग टावर की ऊंचाई जितनी अधिक होती है, यूरिया के दाने उतने छोटे व गुणवत्ता युक्त बनते हैं। यही वजह है कि यहां की यूरिया की अलग पहचान बन रही है। दाने छोटे होने की वजह से यह खेतों की मिट्टी में तेजी से घुल जाएगी और जल्द असर करेगी। गोरखपुर का यह खाद कारखाना 20 अप्रैल 1968 को शुरू किया गया था। इसकी स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। यह 1990 तक चला। 10 जून 1990 को कारखाने में अचानक अमोनिया गैस का रिसाव हुआ। इस घटना में एक इंजिनियर की मौत हो गई थी। इसके बाद इसे बंद कर दिया गया।

15 साल से बंद सिंदरी खाद कारखाने से उत्पादन शुरू

बंदः 31 दिसंबर 2002
चालूः 5 अक्टूबर 2022

25 मई, 2018 को पीएम नरेंद्र मोदी ने बलियापुर हवाई पट्टी से ऑनलाइन 7500 करोड़ रुपए की सिंदरी खाद कारखाना परियोजना की आधारशिला रखी थी। दो साल में प्लांट तैयार कर 25 नवंबर, 2020 से उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन, कोरोना महामारी और अन्य वजहों से कारखाना समय पर तैयार नहीं हो सका। सिंदरी कारखाने में करीब 350 स्थायी तकनीकी और अन्य कर्मियों को तैनात किया जाएगा। साथ ही, अनुबंध पर भी 1800 से अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी। परोक्ष रूप से भी 30-40 हजार लोगों को रोजगार के मौके मिलेंगे। सिंदरी खाद कारखाने से रोजाना 3850 टन यूरिया और 2200 टन अमोनिया के उत्पादन का लक्ष्य है। हर्ल प्रबंधन जल्द ही धनबाद के साथ-साथ रांची, हजारीबाग, देवघर, गिरिडीह व अन्य जिलों में बिक्री केंद्र खोलेगा। पड़ोसी राज्यों ओडिशा, पश्चिम बंगाल के किसानों को भी सिंदरी में तैयार खाद मिल सकेगी। सिंदरी का खाद कारखाना 31 दिसंबर 2002 में बंद हो गया। तब प्लांट में काम कर रहे कर्मचारियों को वीएसएस के तहत सेवानिवृत्त कर दिया गया था, जिनकी संख्या 2000 से भी भी ज्यादा थी। इसका कारण ये दिया गया कि प्लांट से खास लाभ नहीं हो पा रहा है।

23 साल बाद रामागुंडम (तेलंगाना) खाद कारखाना शुरू, नीम-कोटेड यूरिया का 12.7 एलएमटी उत्पादन होगा

बंदः 1999
चालूः 12 नवंबर 2022

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 नवंबर 2022 में रामागुंडम खाद कारखाना राष्ट्र को समर्पित किया। इस परियोजना की आधारशिला 7 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रखी गई थी। इस कारखाना को 1999 में बंद कर दिया गया था। इस उर्वरक संयंत्र के पुनरुद्धार के पीछे की प्रेरक शक्ति दरअसल प्रधानमंत्री का विजन है कि यूरिया के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करनी है। रामागुंडम संयंत्र स्वदेशी नीम-कोटेड यूरिया का 12.7 एलएमटी उत्पादन प्रति वर्ष उपलब्ध कराएगा। ये परियोजना रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) के तत्वावधान में स्थापित की गई है, जो कि नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (एनएफएल), इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (ईआईएल) और फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआईएल) की एक संयुक्त उद्यम कंपनी है। आरएफसीएल को 6300 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से नया अमोनिया-यूरिया संयंत्र स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आरएफसीएल संयंत्र को गैस की आपूर्ति जगदीशपुर-फूलपुर-हल्दिया पाइपलाइन के माध्यम से की जाएगी। ये संयंत्र तेलंगाना राज्य के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में किसानों को यूरिया उर्वरक की पर्याप्त और समयबद्ध आपूर्ति सुनिश्चित करेगा। ये संयंत्र न सिर्फ उर्वरक की उपलब्धता में सुधार करेगा बल्कि इससे इस क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा जिसमें सड़क, रेलवे, सहायक उद्योगों जैसे बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है। आरएफसीएल का ‘भारत यूरिया’ न केवल आयात को कम करेगा बल्कि उर्वरकों और विस्तार सेवाओं की समय पर आपूर्ति के जरिए स्थानीय किसानों को प्रोत्साहन देकर अर्थव्यवस्था को जबरदस्त बढ़ावा देगा।

बरौनी खाद कारखाने में 22 साल बाद शुरू हुआ उत्पादन, 2017 में पीएम मोदी ने किया था शिलान्यास

बंदः 1999
चालूः अक्टूबर 2022

बिहार का गौरव रहा बरौनी खाद कारखाना आखिरकार 22 साल बाद फिर शुरू हो गया। अक्टूबर 2022 में यहां उत्पादित 56 टन नीम कोटेड यूरिया पहली बार बिक्री के लिए बाजार में भेजा गया। जनवरी 1999 में बरौनी खाद कारखाना बंद हो गया था। इसके चालू होने से आस-पास के 5 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिल सकेगा। बरौनी फर्टिलाइजर कारखाने के शुरू होने के बाद से लोगों में खुशी की लहर दिखाई दे रही है। इससे पहले यह कारखाना नेफ्ता के उत्पाद के कारण घाटे में चल रहा था। इसके बाद इसे बंद करवा दिया गया था। हालांकि साल 2017 में फिर से इस कारखाने को शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदेश दिया था। उसी दौरान इसका शिलान्यास किया गया था। इस कारखाने के निर्माण के बाद से नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन शुरू हो गया है। बरौनी खाद कारखाना से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बंगाल के किसानों को नीम कोटेड यूरिया आसानी से और प्रचुर मात्रा में मिल सकेगा। बरौनी फर्टिलाइजर कारखाने का निर्माण 8387 करोड़ की लागत से किया गया है। जिसमें 3850 टन प्रतिदिन नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन किया जाएगा। कारखाने में 400 स्थाई कर्मचारियों के अलावा 2 से 5 हजार तक लोग काम करेंगे। पूरे देश में वन नेशन वन फर्टिलाइजर स्कीम के तहत फिलहाल अपना यूरिया के नाम से यहां उत्पादन हो रहा है।

कांग्रेस सरकार में चीन सीमा पर 82 फीसदी सड़क परियोजनाएं अधूरी

मंजूरीः 2007
निर्माण डेडलाइनः 2012

केंद्र सरकार ने 2006-07 में भारत-चीन सीमा पर 73 रणनीतिक सड़कों के निर्माण को मंजूरी दी थी। इनका निर्माण 2012 तक पूरा कर लिया जाना था। इसमें से 82 फीसदी परियोजनाएं पूरी नहीं हो पाई। सीमा पर चीनी सैनिकों का भारतीय सीमा में घुस आना एक बड़ा मुद्दा है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, 2010 से 2014 तक ऐसे 1,612 मामले सामने आए हैं। रक्षा मामलों की एक संसदीय समिति के मुताबिक चीन की ओर से जहां दो-तीन घंटे में सीमा पर पहुंचा जा सकता है, वहीं भारत की ओर से सीमा पर पहुंचने में एक दिन से अधिक समय लगता है। सीमा पर नई सड़कें बनाई जा रही थी, लेकिन उनकी रफ्तार धीमी है। लेकिन पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद इन पर तेजी से काम किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 73 में से 19 सड़कों का निर्माण हो गया है। 40 सड़कों पर काम तेजी से चल रहा है। केंद्र सरकार अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में चार रेल मार्गो का निर्माण करना चाहती है। इनका निर्माण रक्षा और रेल मंत्रालय संयुक्त रूप से करेंगे। भारत-चीन सीमा की संवेदनशीलता का पता इस बात से चलता है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर दावा करता है। दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के अक्साई चिन क्षेत्र पर उसने 1962 के युद्ध के बाद अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। चीन इस सीमा पर हवाई क्षमता का भी विस्तार करता जा रहा है। इसके जवाब में भारत ने जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के दौलत बेग ओल्डी, फुक चे और न्योमा में हाल में तीन अत्याधुनिक लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) खोले हैं। ये सभी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के समीप हैं। दौलत बेग ओल्डी दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र हैं। इसकी ऊंचाई 16,614 फुट है। यह सीमा से 10 किलोमीटर दूर है। वहीं अरुणाचल प्रदेश में तवांग, मेचुका, विजयनगर, तुतिंग, पस्सिघाट, वालोंग, जिरो और अलोंग में 720 करोड़ रुपये की लागत से एएलजी बनाए जा रहे हैं।

32 साल बाद पीएम मोदी ने असम गैस क्रैकर प्रोजेक्ट का किया उद्घाटन

परिकल्पनाः 1984
शिलान्यासः 1995 और 2007
उद्घाटनः 5 फरवरी 2016

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्तर राज्य के डिब्रूगढ़ जिले में 5 फरवरी 2016 को असम गैस क्रैकर परियोजना का उद्घाटन किया जिसकी परिकल्पना 32 साल पहले की गई थी। इस परियोजना की परिकल्पना इंदिरा गांधी के शासन काल में 1984 में की गई। पीवी नरसिम्हा राव ने नवंबर 1995 में टेंगाखाट में इस परियोजना के लिए आधारशिला रखी थी। लेकिन काम आगे बढ़ नहीं पाया। इसके बाद मनमोहन सिंह ने 9 अप्रैल, 2007 को गुवाहाटी से 530 किमी पूर्व में लेपेटकाटा में इसकी आधारशिला रखी थी। ब्रह्मपुत्र क्रैकर्स एंड पॉलीमर्स लिमिटेड (बीसीपीएल) द्वारा निष्पादित पेट्रोकेमिकल परियोजना, असम के तेल क्षेत्रों से नेफ्था और प्राकृतिक गैस का उपयोग एथिलीन का उत्पादन करने के लिए करेगी, जो पॉलिमर के निर्माण के लिए फीडस्टॉक है जो प्लास्टिक के निर्माण में काम आती है। गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) की बीसीपीएल में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है जबकि ऑयल इंडिया लिमिटेड, नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड और असम सरकार की 10-10 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

करीब 100 साल पुरानी मांग की पूरी, केंद्र सरकार ने तरंगा हिल नई रेल लाइन को दी मंजूरी

मांगः 100 साल पुरानी
भूमि पूजनः 1 अक्टूबर 2022
निर्माण डेडलाइनः 2026-27

पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा भारतीय संस्कृति के प्राचीन तीर्थ स्थलों का पुनरुत्थान करने और श्रद्धालुओं को सुविधाएं देने का सिलसिला लगातार जारी है। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने गुजरात के दो प्रसिद्ध तीर्थस्थल मां अम्बाजी मंदिर और श्री अजितनाथ जैन मंदिर को रेल से जोड़ने का फैसला किया। आने वाले समय में इन दो बड़े तीर्थ स्थलों के दर्शन को आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह नई रेल लाइन बेहद खास रहने वाली हैं। 116.65 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन से यहां आने वाले श्रद्धालुओं के साथ स्थानीय लोगों को भी सुविधा होगी व क्षेत्र के विकास को और गति मिलेगी। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा कुल 2798.16 करोड़ रुपए की लागत से तरंगा हिल-अंबाजी-आबू रोड नई रेल परियोजना को स्वीकृति दी गई है। तारंगाहिल-अंबाजी-आबू रोड नई रेल लाइन (116.65 किलोमीटर) की अनुमानित लागत 2798.16 करोड़ रुपये है। इस रेल लाइन पर कुल 15 स्टेशन प्रस्तावित हैं, जिनमें 8 क्रॉसिंग और 7 हाल्ट स्टेशन होंगे तथा 11 टनल, 54 बड़े पुल, 151 छोटे पुल, 8 रोड ओवर ब्रिज, 54 रोड अण्डर ब्रिज/सीमित ऊंचाई के पुल बनेंगे। अंबाजी देश का प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है तथा यह भारत में 51 शक्तिपीठों में से एक में सम्मलित है। अंबाजी धार्मिक स्थल में हर साल गुजरात के और देश के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ विदेशों से लाखों भक्त दर्शन के लिये आते हैं। तारंगाहिल-अंबाजी-आबू रोड नई लाइन के निर्माण से यहां आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को यात्रा में आसानी होगी। इसके अलावा, तारंगाहिल में स्थित अजीतनाथ जैन मंदिर (24 पवित्र जैन तीर्थंकरों में से एक) के दर्शन के लिये आने वाले श्रद्धालुओं के लिये यह रेल लाइन देश के अन्य ब्रॉडगेज नेटवर्क से सम्पर्क स्थापित करेगी। केंद्र सरकार के इस कदम से कनेक्टिविटी और गतिशीलता में सुधार होगा। तरंगा हिल-अंबाजी-अबू रोड नई रेल लाइन परियोजना का काम 2026-27 तक पूरा हो जाएगा। इन धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल को रेल से जोड़ने की मांग लम्बे समय से की जा रही थी।

बाड़मेर रिफाइनरी में कांग्रेस ने किया देश का नुकसान, पीएम मोदी ने 2613 करोड़ रुपये देश का बचाया

वर्ष 2013 में चुनाव आचारसंहिता लागू होने वाली थी, तभी कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रिफाइनरी का शिलान्यास कर दिया। दरअसल बाड़मेर की धरती में करीब 4 अरब बैरल तेल का खजाना है। यहां के पचपदरा रिफाइनरी से रोज 200 कुओं से करीब 1.75 लाख बैरल तेल उत्पादन किया जाएगा। हालांकि कांग्रेस ने इसमें भी घोटाला कर दिया था जिसे मोदी सरकार ने सुधारा। दरअसल मोदी सरकार ने इस पुराने डील को खत्म कर जनवरी, 2018 में परियोजना का शुभारंभ किया और इसमें 2613 करोड़ रुपये की बचत की। गौरतलब है कि एचपीसीएल के साथ पंद्रह साल तक 1123 करोड़ रुपये सालाना बिना ब्याज के देने का करार किया है जो कांग्रेस राज में 3736 करोड़ रुपये सालाना पंद्रह सालों तक दिया जाना था। जाहिर है एक झटके में ही 2613 करोड़ रुपये का घोटाला करने की योजना कांग्रेस ने तैयार कर रखी थी, जिसे मोदी सरकार ने पकड़ लिया। एक बार परियोजना पूरी हो जाने के बाद, इससे राज्य सरकार को प्रति वर्ष 34 हजार करोड़ रुपये का लाभ होगा। रिफाइनरी में वार्षिक तौर पर 90 लाख क्रूड ऑयल को परिशोधित किया जा सकेगा। यह हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और राजस्थान सरकार की संयुक्त पहल है।

पूर्वोत्तरः 61 सड़कों का काम 2012 तक पूरा होना था, पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद 102 रणनीतिक सड़कों के निर्माण को मिली रफ्तार

पूर्वोत्तर में 102 सड़क परियोजनाओं में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 73 सड़कें बननी थीं, लेकिन कांग्रेस की लेटलतीफ कार्यशैली की भेंट चढ़ गईं। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 4644 करोड़ की लागत से निर्मित होने वाली 61 सड़कों के 2012 तक पूरा करना था, लेकिन मार्च 2016 तक केवल 22 सड़कों का निर्माण पूरा हो सका था। गौरतलब है कि इन 22 सड़कों के निर्माण पर ही 4544 करोड़ रुपये खर्च हो गए। हालांकि मोदी सरकार ने इसमें बढ़ोतरी की और तेजी से काम पूरा करने के लिए अभियान चला दिया। चीन-भारत सीमा पर महत्वपूर्ण 3,488 किलोमीटर लंबी ये सड़कें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक फैली हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी संवेदशीलता को देखते हुए 73 सड़कों के निर्माण का लक्ष्य भी निर्धारित कर दिया है। इनमें से 46 सड़कों का निर्माण रक्षा मंत्रालय कर रहा है और शेष 27 सड़कों के निर्माण की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय के हाथों में सौंपी गई है। इनमें से 24 सड़कें बनकर तैयार हो चुकी हैं और बाकी सड़कों का काम वर्ष 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा।

कांग्रेस ने 2013 में किया था शिलान्यास, पीएम मोदी ने झुग्गी में रहने वालों को सौंपे फ्लैट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 नवंबर 2022 को कहा कि दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीबों को पक्का मकान देने के संकल्प में हमने एक अहम पड़ाव तय किया है। पीएम मोदी ने राजधानी में विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले परिवारों को नये फ्लैट वितरित किए गए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार दिल्ली को देश की राजधानी के अनुरूप एक शानदार, सुविधा सम्पन्न शहर बनाना चाहती है। सरकार के अनुसार दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीबों को फ्लैट देने के लिए चल रही परियोजना का पहला चरण पूरा हो चुका है। इस योजना में 3024 फ्लैट पूरी तरह तैयार हैं। इनका निर्माण लगभग 345 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है और इनमें सभी नागरिक सुविधाएं प्रदान की गयी हैं। इन फ्लैट में टाइलें, रसोई में ग्रीन मार्बल काउंटर लगे हैं। परिसर में सामुदायिक पाकर्, इलेक्ट्रिक सब-स्टेशन, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, पाइपलाइन जैसी सार्वजनिक सुविधाएं, स्वच्छ जल आपूर्ति , लिफ्ट, भूमिगत वाटर टैंक जैसी सुविधाएं उपलब्ध की गयी हैं। दिल्ली के कालकाजी इलाके में मुख्यमंत्री रहते हुए शीला दीक्षित ने 2013 में इस आवासीय योजना का शिलान्यास किया था।

 

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