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राफेल, पेगासस से लेकर नोटबंदी व संसद भवन के उद्घाटन तक, विपक्ष का निगेटिव एजेंडा नाकाम, SC में खानी पड़ी मात

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जहां भारत का नाम दुनिया में रोशन हो रहा है वहीं विपक्ष और लेफ्ट लिबरल गैंग ने पिछले नौ सालों में मोदी सरकार को बदनाम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। पीएम मोदी को सत्ता से हटाने के लिए विदेशी ताकतों के इशारे पर नाचने वालों ने पिछले नौ साल में दर्जनों मुद्दों पर हायतौबा मचाया और हर बार उन्हें मोदी सरकार के समक्ष शिकस्त झेलनी पड़ी। यहां तक कि वे इन मामलों को अदालत तक में ले गए और वहां भी मात खानी पड़ी। इन मुद्दों में संसद भवन का उद्घाटन, नोटबंदी, 2000 रुपये का नोट वापस लेना, राफेल, पेगासस जासूसी मामला, गुजरात दंगे में पीएम मोदी को एसआईटी से मिली क्लीनचिट, आर्थिक आधार पर आरक्षण, ईडी को कुर्की का अधिकार, सीबीआई मामला, तीन तलाक मामला, ईवीएम मामला, जीएसटी, सीएए, राम मंदिर मामला, पीएम केयर्स फंड, आर्टिकल 370, अडानी मामला आदि प्रमुख रहे। इन मुद्दों की फेहरिस्त लंबी है जिस पर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया, संसद की कार्यवाही को बाधित किया, अदालत का समय जाया किया।

मोदी विरोध का आलम यह है कि केंद्र सरकार कितनी भी अच्छी नीतियां देशहित में क्यों न बना लें, विपक्ष उसके विरोध में हो-हल्ला करता ही है। इसलिए वो पिछले नौ साल से प्रधानमंत्री मोदी के सामने लगातार बाधाएं खड़ी करते रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी विपक्ष के तमाम रूकावटों और विरोधों से विचलित हुए बिना जनहित और देशहित के लिए दृढ़ निश्चय के साथ लगातार आगे बढ़ते रहे।

संसद भवन उद्घाटनः सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

कांग्रेस के नेतृत्व में 21 विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ढाल बनाकर संसद भवन उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का ऐलान किया था। इससे पहले विपक्ष ने संसद भवन के निर्माण में कई तरह की बाधाएं खड़ी कीं। कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी फिजूलखर्जी के नाम पर निर्माण का विरोध किया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के खिलाफ अपील की गई।

नए संसद भवन का उद्घाटन भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से करवाने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज दी। कोर्ट ने इसके साथ ही याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि अगर ऐसी याचिका दोबारा लगाई गई तो कोर्ट जुर्माना भी लगा देगा। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि हमें पता है कि ये याचिका किस कारण डाली गई है। कोर्ट ने इसी के साथ याचिकाकर्ता से पूछा कि आखिर इससे किसका हित होने वाला है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी याचिकाओं की सुनवाई करना हमारा काम नहीं है।

2000 के नोटः दो हजार के नोट पर जबरदस्त सियासत, पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान

भारतीय रिजर्ब बैंक (आरबीआई) की तरफ से 2000 रुपए के नए नोट को चलन से बाहर करने का फैसला किया गया है। इसे लोग नोटबंदी 2.0 का नाम दे रहे हैं। लेकिन असल में यह नोटबंदी नहीं नोटबदली है। क्योंकि इनका लीगल टेंडर खत्म नहीं किया गया है। आरबीआई के अनुसार 2000 रुपये का नोट लीगल टेंडर तो रहेगा, लेकिन इसे सर्कुलेशन से बाहर कर दिया जाएगा। आरबीआई की तरफ से 2,000 के नोटों को बदलने के लिए 30 सितंबर 2023 तक का समय दिया गया है। ऐसे में लोगों को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। इस फैसले से जहां भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और भ्रष्टाचारियों की कमर टूटेगी वहीं ब्लैक मनी का गोरखधंधा भी नहीं चल सकेगा। लेकिन यह फैसला भी विपक्ष को रास नहीं आ रहा है। कांग्रेस बोल रही है कि जब नोट बंद ही करना था तो लाए ही क्यों थे। कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि ऐसे फैसलों से अर्थव्यवस्था मजबूत होने की बजाए कमज़ोर होती है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो सारी सीमाएं लांघ दी। उन्होंने 2000 नोट को बदलने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ ‘पगला मोदी’ जैसे आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।

आधार कार्डः संवैधानिक वैधता का फैसला बरकरार, पुनर्विचार याचिकाएं खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने आधार की सांविधानिक वैधता को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। पुनर्विचार याचिकाओं पर चैम्बर में विचार करने के बाद जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत से यह निर्णय लिया है। जस्टिस खानविलकर, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस बीआर गवई ने माना कि सितंबर, 2018 में आधार को सांविधानिक रूप से जायज ठहराए जाने के पांच सदस्यीय पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है।

तीन तलाकः सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, तीन तलाक अवैध घोषित

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के निर्णय में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन बार तलाक देने की प्रथा को निरस्त करते हुए अपनी व्यवस्था में इसे असंवैधानिक, गैरकानूनी और शून्य करार दिया। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की यह प्रथा कुरान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने 365 पेज के फैसले में कहा, ‘3:2 के बहुमत से दर्ज की गई अलग-अलग राय के मद्देनजर‘तलाक-ए-बिद्दत’’ तीन तलाक को निरस्त किया जाता है। प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने तीन तलाक की इस प्रथा पर छह महीने की रोक लगाने की हिमायत करते हुए सरकार से कहा कि वह इस संबंध में कानून बनाए जबकि न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने इस प्रथा को संविधान का उल्लंघन करने वाला करार दिया। बहुमत के फैसले में कहा गया कि तीन तलाक सहित कोई भी प्रथा जो कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है, अस्वीकार्य है।

राफेल मामलाः राफेल सौदा मामले में भी विपक्ष को झटका

फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान सौदा मामले में सीधे पीएम मोदी पर विपक्ष ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। हालांकि जब यह मामला शीर्ष अदालत पहुंचा तो आरोप लगाने वालों को फटकार झेलनी पड़ी। साल 2019 के अंत में आए फैसले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि सौदे की खरीद प्रक्रिया में कोई खामी नहीं है। वायुसेना को ऐसे विमानों की जरूरत है। मोटे तौर पर सौदे में पूरी प्रक्रिया अपनाई गई है।

नोटबंदीः सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी वाले केंद्र के फैसले को सही ठहराया

नोटबंदी समूचे विपक्ष ने खूब हो-हल्ला मचाया था। अदालत का दरवाजा भी खटखटाया। नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4:1 बहुमत से केंद्र सरकार के 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट में 58 याचिकाओं के जरिए नोटबंदी के फैसले में कमियां गिनाई गई थीं। जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि 8 नवंबर, 2016 के नोटिफिकेशन में कोई त्रुटि नहीं मिली है और सभी सीरीज के नोट वापस लिए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी का फैसला लेते समय अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस अधिसूचना को रद्द करने की कोई जरूरत नहीं है।

ईवीएमः चुनाव में EVM पर रोक की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

देश के लोकतंत्र को बचाने का हवाला देते हुए आगामी चुनावों में EVM पर रोक और मतपत्र का इस्तेमाल शुरू करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (EVM) के इस्तेमाल पर रोक वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में EVM मशीनों पर रोक लगा मतपत्र के इस्तेमाल की मांग की गई थी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सीआर जया सुकिन द्वारा दायर इस याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया था कि लोकतंत्र को बचाने के लिए हमें देश की चुनाव प्रक्रिया में मतपत्रों को लाना जरूरी है। EVMs ने भारत में मतपत्रों की जगह ली जबकि इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने EVMs के इस्तेमाल पर रोक लगा दी।

पेगासस मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को दी क्लीनचिट

मोदी सरकार पर इस्राइली स्पाइवेयर के जरिए जासूसी का आरोप लगाया गया। विपक्ष ने खूब हायतौबा मचाया और अदालत तक पहुंचे। हालांकि अदालत में उनकी दलील ठहर नहीं सकी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण की अगुवाई वाली पीठ ने मोदी सरकार को क्लीनचिट दे दी। पीठ ने कहा कि जिन 29 मोबाइल की जांच की गई, उनमें से 5 में मैलवेयर पाया गया। इससे यह साबित नहीं होता कि ये पेगासस स्पाइवेयर है।

पीएम केयर्स फंडः सुप्रीम कोर्ट का पीएम केयर्स फंड मामले पर सुनवाई से इनकार

पीएम केयर्स फंड पर भी विपक्ष ने निगेटिव एजेंडा चलाने की भरपूर कोशिश की लेकिन उनकी दाल नहीं गली। सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फंड (PM Cares Fund Case) के खर्चे को उजागर करने और उसके ऑडिट कराए जाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट को अप्रोच करें और वहां रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकते हैं।

गुजरात दंगाः गुजरात दंगों में पीएम मोदी को क्लीनचिट

गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगा मामले में विपक्ष बीते दो दशक से पीएम मोदी की भूमिका पर सवाल खड़ा करता रहा। इस मामले में गठित एसआईटी ने जब पीएम को क्लीनचिट दी तो यह मामला शीर्ष अदालत पहुंचा। शीर्ष अदालत ने न सिर्फ क्लीनचिट को सही ठहराया, बल्कि याचिका दायर करने वाली कुछ हस्तियों के खिलाफ जांच के भी निर्देश दिए। बाद में इस मामले में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई।

जस्टिस लोया मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोया की मौत को सामान्य माना

महाराष्ट्र में निचली अदालत के जज रहे जस्टिस बीएच लोया की मौत मामले में भी मोदी सरकार और खासकर गृह मंत्री अमित शाह विपक्ष के निशाने पर रहे। हालांकि 2018 में शीर्ष अदालत की पीठ ने जस्टिस लोया की मौत को सामान्य मौत माना और स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की याचिकाएं खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि इस मामले में चार जजों के बयानों पर संदेह का कोई कारण नहीं है।

आर्थिक आधार पर आरक्षणः विपक्ष ने मुद्दा बनाया, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया

लोकसभा चुनाव 2019 से पूर्व सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण को भी विपक्ष ने मुद्दा बनाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भी मोदी सरकार के फैसले को उचित ठहराया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय बेंच की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था पर फैसला सुनाया। पांच जजों में से तीन जजों ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन किया। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आर्थिक आरक्षण संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ नहीं है। 103वां संशोधन वैध है।

ईडी को कुर्की का अधिकारः कोर्ट ने मोदी सरकार के फैसले को उचित ठहराया

प्रवर्तन निदेशालय को धनशोधन मामले में कुर्की व गिरफ्तार करने के अधिकार को भी शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई। विपक्ष ने आरोप लगाया कि ईडी के सियासी इस्तेमाल करने के लिए उसे ऐसे अधिकार दिए गए हैं। हालांकि शीर्ष अदालत ने इस मामले में भी मोदी सरकार के फैसले को उचित ठहराया।

CBI-ED के मनमाने का आरोपः सुप्रीम कोर्ट में 14 विपक्षी दलों की याचिका खारिज की

CBI और ED जैसी केंद्रीय एजेंसियों के मनमाने इस्तेमाल को लेकर 14 विपक्षी दलों की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि राजनेताओं के लिए अलग से गाइडलाइन नहीं बनाई जा सकती। विपक्षी दलों ने कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद अपनी याचिका वापस ले ली। CJI ने यह भी कहा कि जब आप ये कहते हैं विपक्ष का महत्व कम हो रहा है तो इसका इलाज राजनीति में ही है, कोर्ट में नहीं। CJI ने यह भी कहा कि कोर्ट के लिए तथ्यों के अभाव में सामान्य गाइडलाइन जारी करना खतरनाक होगा। कांग्रेस के नेतृत्व में 14 विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर CBI और ED के मनमाने इस्तेमाल का आरोप लगाया था। याचिका में इन दलों ने गिरफ्तारी, रिमांड और जमानत को लेकर नई गाइडलाइन जारी करने की मांग की थी।

अनुच्छेद-370: विपक्ष ने अनुच्छेद-370 और 35 ए को हटाने का किया विरोध

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को 2019 के आम चुनाव में दूसरी बार प्रचंड बहुमत मिला। 30 मई, 2019 को मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली। आम चुनाव में पहले से ज्यादा सीटें और जनता का विश्वास मिलने से प्रधानमंत्री मोदी को काफी आत्मबल मिला। जनता से मिली शक्ति ने प्रधानमंत्री मोदी को दूसरे कार्यकाल में अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए प्रेरित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने बिना देरी किए दस हफ्ते के भीतर-भीतर ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 और 35 ए को हटाने का सबसे ऐतिहासिक फैसला लिया। इससे एक राष्ट्र, एक विधान और एक निशान की वर्षों पुरानी मांग पूरी हुई। राज्यसभा में बहुमत न होने के बावजूद मोदी सरकार ने जिस तरह से सदन के भीतर दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन जुटाकर अनुच्छेद-370 व 35ए को निष्प्रभावी कराया, वह तारीफ के काबिल है। अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर बांटने के कदम का कांग्रेस ने विरोध किया। कश्मीर में पाबंदी को लेकर राहुल गांधी ने सरकार पर निशाना साधा। राहुल गांधी के बयान को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा करने के लिए इस्तेमाल किया। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर अनुच्छेद 370 को फिर से लागू किया जाएगा।

राम मंदिरः कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर के भूमि पूजन के मुहूर्त पर उठाया सवाल

अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर दुनिया भर में हिंदुओं के बीच उत्साह का माहौल था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया। भूमि पूजन से पहले अयोध्या में जश्न का माहौल था, लेकिन इस सबके बीच कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने एक बार फिर साफ कर दिया कि हिंदू धर्म, हिंदू देवी-देवताओं में उनकी कोई आस्था नहीं है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल, मीडिया गिरोह, तथाकथित सेक्लुयर लोगों और कट्टरपंथियों में मातम पसरा हुआ था। ये लोग राममंदिर शिलान्यास कार्यक्रम की निंदा और अफवाह फैलाने से बाज नहीं आए। इन लोगों ने करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया और उन्हें आहत करने की कोशिश की। कांग्रेस सांसद कुमार केतकर ने 2 अगस्त को जी न्यूज पर एक चर्चा के दौरान भगवान श्रीराम को काल्पनिक बताया। केतकर ने कहा कि रामायण की वजह से राम का अस्तित्व है। राहुल गांधी के करीबी कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने भूमि पूजन के मुहूर्त पर सवाल उठाया। दिग्विजिय ने ट्वीट किया कि अयोध्या में भगवान राम मंदिर निर्माण के शिलान्यास के अशुभ मुहूर्त में कराये जाने पर हमारे हिंदू (सनातन) धर्म के द्वारका व जोशीमठ के सबसे वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज का संदेश व शास्त्रों के आधार पर प्रमाणित तथ्यों पर वक्तव्य अवश्य देखें।

अग्निवीर योजनाः सेना को मजबूत करने के लिए लागू की गई अग्निवीर योजना का विरोध

प्रधानमंत्री नेरन्द्र मोदी की प्राथमिकता देश की सेना को आधुनिक और ताकतवर बनाना है, जो दुश्मन से मिली किसी भी चुनौती का तीव्रता और प्रचंड प्रहार के साथ जवाब दे सके। मोदी सरकार ने युवा जोश से भरपूर सेना बनाने और युवाओं को पहले से ज्यादा मौका देने के लिए एक महात्वाकांक्षी ‘अग्निपथ’ योजना लॉन्च की। इस योजना के तहत देश के युवाओं को थल सेना, वायु और नौसेना में चार साल तक सेवा देने का सुनहरा अवसर प्राप्त हो रहा है। इस योजना के तहत चार साल की सेवा के बाद 25 प्रतिशत जवानों को सेना में स्थायी नौकरी दी जाएगी जबकि 75 प्रतिशत जवानों को सरकार के विभिन्न विभागों एवं उपक्रमों की भर्ती में वरीयता दी जाएगी। पढ़ने और कारोबार करने के इच्छुक ‘अग्निवीरों’ को सरकार सर्टिफिकेट एवं वित्तीय मदद उपलब्ध कराएगी। जहां केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अर्ध सैनिक बलों में अग्निवीरों को प्राथमिकता देने की बात कही है, वहीं कई राज्यों ने कहा कि पुलिस भर्ती में ‘अग्निवीरों’ को वरीयता देंगे। इसके बावजूद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस योजना का विरोध किया। विपक्षी दलों ने युवाओं को गुमराह कर उन्हें भड़काया। योजना को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई गईं। इसकी वजह से बिहार सहित कई राज्यों में छात्र सड़क पर उतरे हैं और हिंसक प्रदर्शन किया।

बेनामी संपत्ति एक्टः विपक्ष ने इसका भी विरोध किया

एक नवंबर को ही मोदी सरकार ने बेनामी संपत्ति संशोधन कानून, 2016 को लागू कर दिया था। लेकिन 22 मार्च को वित्त मंत्री अरूण जेटली ने जो वित्त विधेयक पेश किया उसमें इस कानून को और तल्ख कर दिया। इनकम टैक्स विभाग को छापा मारने और बेनामी संपत्ति जब्त करने की ताकत मिल गई। विपक्ष ने इसकी आलोचना की पर नीतीश चुप रहे। उनकी मौन सहमति यहां भी मोदी के साथ थी। आज लालू यादव यादव का परिवार हो या फिर देश के कई ऐसे रसूखदार लोग जिन्होंने बेनामी संपत्ति जमा की है वो जांच एजेंसियों की राडार पर हैं।

सर्जिकल स्ट्राइकः विपक्ष ने किया विरोध, मांगे सबूत

राजनीतिक विरोध अपनी जगह है लेकिन संकट के समय देश एक स्वर में बोलता है। विपक्ष की नकारात्मक राजनीति ने देश को शर्मसार करने का काम किया। खास तौर पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सवालों ने सेना को भी कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। दरअसल सर्जिकल स्ट्राइक पर पाकिस्तान तो सवाल उठा ही रहा था, साथ में देश के विपक्षी नेताओं ने भी सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो सरकार से इसके सबूत भी मांगने शुरू कर दिये। कांग्रेस के प्रमुख नेता पी. चिदंबरम और फिर संजय निरुपम ने तो सेना की साख पर ही सवाल खड़े कर दिये थे।

जीएसटीः जनता की सहूलियत के फैसले का भी विरोध

देश की आर्थिक आजादी की नयी कहानी लिखने वाला वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी एक जुलाई, 2017 को लागू किया गया था। लेकिन इसके लागू होने की प्रक्रिया में विपक्ष के कई दल रोड़े अटकाते रहे हैं। ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की नीति देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए है, देश में पूंजी निवेश बढ़ाने के लिए है, जनता की सहूलियत के लिए है। लेकिन विपक्ष को तो केंद्र सरकार के हर निर्णय का विरोध करना होता है इसलिए विरोध करते रहे। अपनी राजनीति के सामने देशहित से भी खिलवाड़ करता रहा।

अडानी ग्रुपः सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने आरोपों को सिरे से खारिज किया

अडानी ग्रुप पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर समूचे विपक्ष ने संसद की कार्यवाही बाधित रखी। अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग रिसर्च आने के बाद विपक्ष ने इसे मुद्दे मनाया और यहां तक कि मामला अदालत पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट्स का एक पैनल बनाया था। विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 24 जनवरी को जब हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट पेश की तो उसके बाद भारतीय शेयर बाजार में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं आया। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अरबपति गौतम अडानी की अगुवाई वाले ग्रुप पर ‘शेयरों में गड़बड़ी और लेखा धोखाधड़ी’ में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। हालांकि ग्रुप ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे पूरी तरह से आधारहीन बताया है।

सीएए (CAA): सुप्रीम कोर्ट का सीएए पर रोक लगाने से इनकार

यह कानून असम में अवैध प्रवास या भविष्य में देश में किसी भी तरह के विदेशियों के आगमन को प्रोत्साहित नहीं करता है। केंद्र ने कहा कि यह एक स्पष्ट कानून है जो केवल छह निर्दिष्ट समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है जो असम समेत देश में 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले आए थे। इसे लेकर विपक्ष ने खूब हंगामा किया। इसी गंभीरता इसी से समझा जा सकता है कि सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं सहित करीब 240 जनहित याचिकाओं अदालत में दाखिल की गई। याचिका दायर करने वाले अन्य महत्वपूर्ण लोगों में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एआइएमआइएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं। मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद, आल असम स्टूडेंट्स यूनियन, पीस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गैर-सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’, अधिवक्ता एमएल शर्मा और कानून के छात्रों ने भी इस अधिनियम को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

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