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नेशनल हेराल्ड की नई गुत्थी ने बढ़ाया राहुल-सोनिया के लिए संकट, I.N.D.I.A. की एकता और बंगाल के चुनावी समीकरण पर पड़ेगा प्रभाव

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नेशनल हेराल्ड का बहुचर्चित मामला एक बार फिर भारतीय राजनीति के केंद्र में है। प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा दर्ज किए गए नए मामले ने इस लंबे विवाद की कहानी को फिर से एक नई दिशा दे दी है। एजेंसियों का दावा है कि उन्हें वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ी नई सूचनाएं मिली हैं। ये जानकारियों ऐसी हैं, जिनसे साफ पता चलता है कि नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी मे मिलीभगत की है। सोनिया-राहुल के साथ-साथ कई अन्य प्रमुख व्यक्तियों के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली पुलिस ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की है। यह कार्रवाई प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर की गई है, जो इस हाई-प्रोफाइल मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही है। आरोप है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने पद का दुरुपयोग कर व्यक्तिगत लाभ उठाया है। नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी और सोनिया गांधी अपनी करतूतों के चलते घिर चुके हैं।

गांधी परिवार पर बढ़ता दबाव, नेतृत्व का बोझ और कानूनी चुनौतियां
करीब 2000 करोड़ रुपये की संपत्तियों को केवल 50 लाख रुपये में “अधिग्रहित” करने से जुड़े इस मामले का सबसे सीधा असर सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर पड़ रहा है। Young Indian कंपनी से जुड़े वित्तीय विवाद पहले भी कांग्रेस की राजनीति को भीतर तक हिलाते रहे हैं। नए मामले ने नेतृत्व की विश्वसनीयता पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। जब किसी राजनीतिक दल का सर्वोच्च नेतृत्व लगातार कानूनी लड़ाइयों में उलझ जाता है, तो संगठन का मनोबल प्रभावित होना लाजिमी ही है। उस दल की अपने ही सहयोगी गठबंधन में भूमिका कमजोर पड़ जाती है। कांग्रेस के भीतर यह चर्चा वर्षों से चलती रही है कि नेतृत्व का दबाव और मुकदमों का बोझ पार्टी के पुनर्निर्माण की राह में एक स्थायी रुकावट बन जाता है।

एफआईआर में सोनिया-राहुल के साथ सुमन दुबे और सैम पित्रोदा के नाम
इस नई एफआईआर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, कांग्रेस नेता सुमन दुबे और सैम पित्रोदा के साथ-साथ यंग इंडियन (वाईआई), डॉटैक्स मर्चेंडाइज लिमिटेड (Dotex Merchandise Ltd), डॉटैक्स प्रमोटर सुनील भंडारी और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) तथा अज्ञात अन्य को आरोपी बनाया गया है। ईडी सूत्रों के अनुसार, संघीय एजेंसी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 66(2) के तहत उपलब्ध शक्तियों का उपयोग करके पुलिस FIR दर्ज कराई। यह धारा केंद्रीय एजेंसी को कानून प्रवर्तन एजेंसी द्वारा आपराधिक पूर्ववर्ती अपराध के पंजीकरण के लिए सबूत साझा करने की अनुमति देती है, ताकि बाद में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया जा सके और जांच को आगे बढ़ाया जा सके। यह एफआईआर ईडी के मामले को मजबूत करेगी, जिसका आरोप पत्र एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, दिल्ली के आदेश से उत्पन्न हुआ है।

दो हजार करोड़ रुपये की संपत्तियों को केवल 50 लाख रुपये में अधिग्रहीत
बता दें कि यह आदेश भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा 26 जून, 2014 को एजेएल की संपत्तियों से जुड़ी कथित अनियमितताओं के संबंध में दायर एक निजी शिकायत पर संज्ञान लेते हुए दिया गया था। एफआईआर में ईडी द्वारा 4 सितंबर को ईओडब्ल्यू को भेजे गए एक पत्र में लगाए गए आरोपों का संज्ञान लिया गया है। ईडी के इस संचार की सामग्री वही है, जो केंद्रीय एजेंसी ने अपने आरोप पत्र में बताई है। ईडी ने अपने आरोप पत्र में आरोप लगाया था कि एक “आपराधिक साजिश” कांग्रेस पार्टी के पहले परिवार के नेतृत्व में, जिसमें सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी, दिवंगत कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीस, सैम पित्रोदा और एक निजी कंपनी यंग इंडियन शामिल हैं। एजेएल की 2000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों के धोखाधड़ी वाले अधिग्रहण से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग योजना में शामिल थे। सोनिया-राहुल यंग इंडियन के बहुसंख्यक शेयरधारक हैं, जिनमें से प्रत्येक के पास 38 प्रतिशत शेयर हैं। ईडी का दावा है कि उसकी जांच ने “निर्णायक रूप से” पाया है कि यंग इंडियन ने एजेएल की 2000 करोड़ रुपये की संपत्तियों को केवल 50 लाख रुपये में “अधिग्रहित” किया, जो उसके मूल्य से काफी कम था।

यह राजनीतिक हमला नहीं, करोड़ों की जालसाजी का प्रत्यक्ष प्रमाण
कांग्रेस की पहली प्रतिक्रिया हमेशा यही रही है कि यह “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” है। सवाल यह है कि क्या जनता इसे मानने को तैयार है? जब बार-बार करोड़ों की संपत्तियों, वित्तीय लेनदेन और कथित जालसाज़ी के आरोप सामने आते हैं, तब किसी भी दल को नैतिक रूप से खुद को साफ सिद्ध करना आसान नहीं रहता। जनता यह मानने लगती है कि जिन नेताओं के ऊपर पार्टी का मूल ढांचा खड़ा है, वे लगातार कानूनी विवादों में क्यों फंसे रहते हैं। कांग्रेस का संकट सिर्फ कानून या अदालत तक सीमित नहीं है। यह उसकी राजनीतिक छवि, जनविश्वास और विपक्ष में उसकी भूमिका पर सीधा प्रभाव डालती है। इसलिए यह शीशे की तरह साफ है कि यह कोई राजनीतिक हमला नहीं है, बल्कि कांग्रेस द्वारा किए गए धृत कर्मों का दुष्परिणाम है।

पहले से ही टूट रहे INDIA गठबंधन की एकता पर पड़ेगा असर
INDIA गठबंधन पहले ही कई असहमतियों और रणनीतिक मतभेदों से जूझ रहा है। राहुल गांधी और कांग्रेस को गठबंधन का “मुख्य चेहरा” बनाने का प्रयास कई क्षेत्रीय दलों को रास नहीं आ रहा। ममता बनर्जी से लेकर तेजस्वी यादव तक इसका विरोध कर चुके हैं। तेजस्वी ने तो बिहार में कांग्रेस का साथ देने का हश्र देख ही लिया। अब ममता को बंगाल चुनाव को लेकर चिंता है। दरअसल, नए मामले ने उन सभी दलों को और भी अधिक ताकत दे दी है जो पहले से ही कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे हैं। पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में विपक्षी गठबंधन की एकता अब और भी कठिन होती जाएगी, क्योंकि सहयोगी दलों को कांग्रेस के साथ मंच साझा करने से पहले राजनीतिक जोखिमों का मूल्यांकन करना होगा।

 

 

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का आधार और कमजोर होगा
पश्चिम बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य पहले ही लगातार बदल रहा है। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी विपक्षी राजनीति में अपनी स्वतंत्र भूमिका स्थापित करने की कोशिश करती रही हैं। वे कई बार राहुल गांधी और कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठा चुकी हैं। अब नेशनल हेराल्ड का नया प्रकरण उनके लिए एक ताज़ा राजनीतिक हथियार का काम करेगा। कांग्रेस पहले ही बंगाल में सीमित उपस्थिति रखती है। अब यह मामला तृणमूल को कांग्रेस को “कमजोर, नेतृत्वहीन और समस्याग्रस्त पार्टी” के रूप में पेश करने का अवसर देगा। इससे कांग्रेस का बंगाल में आधार और कमजोर पड़ने की पूरी संभावना है। इसका फायदा 2026 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिल सकता है।

बिहार के राजनीतिक बदलाव और विपक्ष की भ्रष्टाचारी छवि का लाभ
भाजपा वर्षों से जिस सच्चाई को उजागर करती आई है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार और परिवारवाद से घिरी पार्टी है, उसे यह मामला पुनः नई ऊर्जा देता नजर आ रहा है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल जैसे राज्य, जहां भ्रष्टाचार, घोटालों और कटमनी की राजनीति पर जनता बेहद संवेदनशील है, वहां भाजपा इसे एक बड़ा मुद्दा बना सकती है। भाजपा की नीतिगत स्थिरता और “साफ़-सुथरी राजनीति” का संदेश, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के विवादों के चलते इसका फायदा अगले चुनाव में भाजपा को मिलने वाला है। हाल ही में बिहार में हुए राजनीतिक उतार-चढ़ाव ने विपक्ष की एकता को हिलाकर रख दिया है। भाजपा की वापसी और गठबंधन समीकरणों में हुए बदलाव ने पहले ही विपक्ष को कमजोर किया है। अब नेशनल हेराल्ड केस का नया अध्याय इस कमजोरी को और उजागर करता है। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष अब कई हिस्सों में बंटा दिखाई देता है। बिहार की तरह अन्य राज्यों में भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस से दूरी बनाए रखने की वजह तलाश रहे हैं। पीएम मोदी ने इसीलिए कांग्रेस को परजीवी नाम दिया है, जो जिसके साथ जुड़ती है, उसे ही खत्म कर देती है।

गांधी परिवार के इर्द-गिर्द भ्रष्टाचार कांग्रेस के लिए नुकसानदेह
यह सवाल अब पार्टी के भीतर भी पहले से अधिक तीखे रूप में पूछा जा रहा है। नेशनल हेराल्ड मामला पहले भी कांग्रेस के लिए नकारात्मक धारणा बनाता रहा है। अदालत का फैसला जो भी आए, लेकिन जनता की नजर में गांधी परिवार के इर्द-गिर्द भ्रष्टाचार, परिवारवाद, असफलता और विवादों की पुनरावृत्ति कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित होगी। बंगाल में ममता बनर्जी की दूरी, सहयोगी दलों की सतर्कता और कांग्रेस की अपनी सीमाएं, ये फैक्टर इस धारणा को और मजबूत करते हैं कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राजनीतिक रूप से कमजोर हो चुका है। कांग्रेस की राजनीतिक चुनौती सिर्फ बाहरी नहीं, आंतरिक भी है। कई कांग्रेस नेता वर्षों से कह रहे हैं कि पार्टी को नए नेतृत्व या व्यापक संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है। लेकिन पार्टी शीर्ष नेतृत्व पर निर्भरता कम नहीं कर पाई है। जब भी कोई नया केस सामने आता है, यह बहस फिर ज़िंदा हो जाती है। क्या कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन इसलिए खो रही है क्योंकि राहुल-सोनिया के नेतृत्व कमजोर पड़ता जा रहा है। 

जनता के जेहन में बड़ा यह सवाल है कि आखिरकार सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड केस में कैसे फंसे? आइए, हम विस्तार से इस बारे में बताते हैं…

करोड़ों के कांग्रेसी घपले वाला नेशनल हेराल्ड केस क्या है?
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने 2012 में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के ही मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे पर घाटे में चल रहे नेशनल हेराल्ड अखबार को धोखाधड़ी और पैसों की हेराफेरी के जरिए हड़पने का आरोप लगाया था। आरोप के मुताबिक, कांग्रेसी नेताओं ने नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों पर कब्जे के लिए यंग इंडियन लिमिटेड ऑर्गेनाइजेशन बनाया और उसके जरिए नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन करने वाली एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (AJL) का अवैध अधिग्रहण कर लिया।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने तो बकायदा चार्जशीट फाइल कर दी है। ईडी की चार्जशीट में राहुल गांधी और सोनिया गांधी को भी आरोपी बनाया गया है। चार्जशीट में कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा और राजीव गांधी फाउंडेशन के ट्रस्टी सुमन दुबे भी अभियुक्त हैं। दरअसल, नेशनल हेराल्ड अखबार का प्रकाशन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) करती है। इसका मालिकाना हक यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड के पास है। यही वह कंपनी है जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों की हिस्सेदारी है। यही वजह है कि ईडी की जांच की आंच इन दोनों तक जा पहुंची है। नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी और सोनिया गांधी अपनी करतूतों के चलते घिर चुके हैं। इस मामले में एक रोचक तथ्य यह भी है कि अगर 75 साल पहले सरदार पटेल की बात जवाहर लाल नेहरू मान लेते और बाद में ये लोग साजिश ना करते तो शायद आज राहुल गांधी और सोनिया गांधी को यह दिन ना देखने पड़ते।

करोड़ों की संपत्तियों पर यंग इंडियन ने कब्जा किया – ED
प्रवर्तन निदेशालय ने 15 अप्रैल को नेशनल हेराल्ड अखबार और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) से जुडे मनी लॉन्ड्रिंग केस में पहली चार्जशीट दाखिल कर दी। इसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे के नाम शामिल हैं। मामले की सुनवाई दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में होगी। कोर्ट ने ED से मामले की केस डायरी भी मांगी है। ED का आरोप है कि कांग्रेस नेताओं ने साजिश के तहत एसोसिएटेड जर्नल्स लि. (एजेएल) की 2,000 करोड़ रुपए की संपत्तियों पर कब्जे के लिए उसका अधिग्रहण निजी स्वामित्व वाली कंपनी ‘यंग इंडियन’ के जरिए केवल 50 लाख रुपए में कर लिया। इस कंपनी के 76प्रतिशत शेयर सोनिया व राहुल के पास हैं। इस मामले में ‘अपराध से अर्जित आय’ 988 करोड़ रुपए की मानी गई। साथ ही संबद्ध संपत्तियों का बाजार मूल्य 5,000 करोड़ रुपए बताया गया है। जून 2022 में नेशनल हेराल्ड केस में राहुल गांधी से 5 दिनों में 50 घंटे पूछताछ हुई थी। फिर 21 जुलाई 2022 में नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी से 3 दिन में 12 घंटे सवाल हुए थे। इस दौरान उनसे 100 से ज्यादा सवाल किए गए।

आजादी से पहले शुरु हुए थे नेशनल हेराल्ड समेत तीन अखबार
इतिहास की बात करें तो 1937 में एसोसिएट जर्नल का गठन हुआ। इसके बाद 9 सितंबर 1938 को जवाहर लाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड अखबार शुरू किया। यह बात आजादी मिलने के ठीक 9 साल पहले की है। इस अखबार को शुरू करने में हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके तहत तीन अखबार थे, अंग्रेजी में ‘नेशनल हेराल्ड’, हिंदी में ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘कौमी आवाज’.यही नेशनल हेराल्ड आज सुर्खियों में बना हुआ है। नेशनल हेराल्ड केस में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत कई लोगों पर ईडी ने 988 करोड़ रुपए के मनी लॉन्ड्रिंग मामले को लेकर चार्जशीट दायर की है। इसे लेकर ही बवाल है।

फिरोज के कमजोर संचालन से अखबार आर्थिक संकट में आया
जवाहर लाल नेहरू के निजी सचिव ओ. एम. मथाई ने अपनी किताब में सरदार पटेल और नेहरू की कहानी का जिक्र है। इसमें इस बात का भी जिक्र है कि फिरोज गांधी इस कंपनी के संचालन में बहुत अच्छे नहीं थे। इसलिए यह नेशनल हेराल्ड आर्थिक संकट में फंस गया। इसे आर्थिक संकट से उबारने के लिए जनहित निधि ट्रस्ट के रूप में बदल दिया गया। इस नए ट्रस्ट पर भी नेहरू परिवार का ही कब्जा रहा। इस ट्रस्ट के सभी ट्रस्टी नेहरू और उनके परिवार के बेहद करीबी लोग बनाए गए। उस समय विज्ञापन के नाम पर कई बड़े औद्योगिक घरानों से लाखों की रकम एक साल में इस अखबार ने हासिल की।

बड़ौदा के महाराजा से ही मांग ली थी दो लाख की रिश्वत
अपनी किताब में ओ. एम. मथाई ने तो यहां तक दावा किया कि नेशनल हेराल्ड के लिए बड़ौदा के महाराजा से पूरे दो लाख रुपए की रिश्वत मांग ली गई थी। सरदार वल्लभभाई पटेल को जब इसकी सूचना मिली थी तो उन्होंने इसकी शिकायत नेहरू से की थी। नेहरू के प्रधानमंत्री रहते ही दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर नेशनल हेराल्ड को ऑफिस बनाने के लिए जमीन भी आवंटित की गई। 1950 में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नेहरू को पत्र लिखकर नेशनल हेराल्ड का समर्थन करने के लिए सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग करने के साथ ही संदिग्ध धन उगाही के बारे में भी चेतावनी दी थी। सरदार पटेल के पत्राचार में दर्ज इन चिंताओं को नेहरू ने खारिज कर दिया था, जबकि वह इसके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में आशंकित थे।दशकों बाद अब सच हो रही है सरदार पटेल की चेतावनी
दशकों बाद सरदार पटेल की ये चेतावनी अब लोगों के सामने आ रही है, जब ईडी इस मामले की जांच कर रही है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की जो चेतावनी पत्र के रूप में तब शुरू हुई थी, वह अब एक बड़े घोटाले में बदल गई है। ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ इस मामले में आरोपपत्र दायर किया है। इसमें उन पर यंग इंडिया लिमिटेड के जरिए 5,000 करोड़ रुपए की संपत्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है, जो उनके नियंत्रण में है और नेशनल हेराल्ड और उसकी मूल कंपनी एसोसिएट जर्नल लिमिटेड से जुड़ी है। 5 मई 1950 को सरदार वल्लभभाई पटेल ने नेहरू को पत्र लिखकर चिंता जताई कि नेशनल हेराल्ड ने हिमालयन एयरवेज से जुड़े दो व्यक्तियों से 75,000 रुपए से अधिक की रकम स्वीकार की है। उन्होंने बताया कि एयरलाइन ने भारतीय वायुसेना की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अवैध रूप से रात्रि हवाई डाक सेवा के लिए सरकारी अनुबंध इसके जरिए हासिल किया है। उसी पत्र में सरदार वल्लभभाई पटेल ने नेहरू को आगाह किया कि नेशनल हेराल्ड ने अखानी नामक एक व्यवसायी से धन स्वीकार किया था, जो उनकी विमानन कंपनी के लिए रात्रि डाक अनुबंध हासिल करने में शामिल था। सरदार पटेल ने उल्लेख किया कि अखानी टाटा और एयर सर्विसेज ऑफ इंडिया जैसी फर्मों से भी धन जुटा रहा था।

नेशनल हेराल्ड के लिए धन जुटाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग
सरदार पटेल ने पत्र में आगे नेहरू को लिखा था कि अखानी पर बैंकों से धोखाधड़ी करने के लिए विभिन्न अदालतों में पहले से ही कई आरोप हैं। उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अहमद किदवई द्वारा नेशनल हेराल्ड के लिए धन जुटाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करने के बारे में भी चेतावनी पत्र के जरिए दी थी, जिसमें जेपी श्रीवास्तव जैसे लखनऊ स्थित व्यापारियों से धन इकट्ठा करना भी शामिल है। उसी दिन, 5 मई 1950 को नेहरू ने पटेल को ऐसे लहजे में जवाब दिया था, जिससे लगता था कि उन्हें शांत करने की कोशिश की जा रही थी। नेहरू ने अपने पत्र में उल्लेख किया था कि उन्होंने अपने दामाद फिरोज गांधी, जो उस समय नेशनल हेराल्ड के महाप्रबंधक थे, से इस अवैध धन संग्रह के आरोपों की जांच करने के लिए कहा है।

सरदार पटेल ने नेहरू के रुख पर स्पष्ट असंतोष जताया था
इसके ठीक अगले ही दिन 6 मई को पटेल ने नेहरू के दावों का दृढ़ता से खंडन करते हुए फिर से नेहरू को जवाब दिया। उन्होंने साफ कहा कि अवैध धन की उगाही पूरी तरह से जारी है। फिर पटेल को शांत करने का प्रयास किया गया। लेकिन सरदार पटेल के द्वारा अवैध फंडिंग के बारे में जो चिंता व्यक्त की गई थी, उसे दरकिनार कर दिया गया। हालांकि, तब नेहरू ने यह स्वीकार किया था कि इसमें कुछ गलतियां हुई होंगी। इसके बाद 10 मई, 1950 को लिखे अपने अंतिम पत्र में सरदार पटेल ने नेहरू के इस रुख पर स्पष्ट असंतोष व्यक्त किया था। गृह मंत्री के रूप में उन्होंने भुगतानों से जुड़ी बेईमानी और नेशनल हेराल्ड के वित्तपोषण से जुड़े संदिग्ध व्यक्तियों पर गहरी चिंता व्यक्त की थी।

करोड़ों की कंपनी को खरीदने और बेचने वाला एक ही पक्ष- भाजपा
अब भाजपा की तरफ से भी यही दावा किया गया है कि नेशनल हेराल्ड का मामला बड़ा विचित्र है, जिसमें हजारों करोड़ रुपए की संपत्तियों वाली एक कंपनी महज 90 करोड़ रुपए की देनदारी में बिक गई और इसे खरीदने और बेचने वाला दोनों एक ही पक्ष के थे। जो कांग्रेस देश में इतने साल तक सत्ता में रही, उसके रहते 2008 में यह अखबार बंद हो गया। यानी सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस अपनी इस विरासत को नहीं बचा पाई। भाजपा की तरफ से तो यह भी दावा किया गया है कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेता चाहते ही नहीं थे कि यह अखबार चले। भाजपा की तरफ से यह भी कहा गया कि 5 मई से पहले 3 मई 1950 को भी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा था, जिसका स्पष्ट उल्लेख कॉरेस्पोंडेंस ऑफ सरदार पटेल में मिलता है। इस पत्र में उन्होंने लिखा कि यदि यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के द्वारा शुरू किया गया अखबार था, तो सरकार से जुड़े हुए लोगों की इसमें इतनी संलिप्तता आपत्तिजनक है

2000 करोड़ रुपए की बिल्डिंग पर कब्जे की साजिश- स्वामी
सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप था कि ऐसा दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित हेराल्ड हाउस की 2000 करोड़ रुपए की बिल्डिंग पर कब्जा करने के लिए किया गया था। स्वामी ने 2000 करोड़ रुपए की कंपनी को केवल 50 लाख रुपए में खरीदे जाने को लेकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत केस से जुड़े कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग की थी। जून 2014 ने कोर्ट ने सोनिया, राहुल समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ समन जारी किया। अगस्त 2014 में ED ने इस मामले में एक्शन लेते हुए मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। दिसंबर 2015 में दिल्ली के पटियाला कोर्ट ने सोनिया, राहुल समेत सभी आरोपियों को जमानत दे दी।

 

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