जम्मू-कश्मीर को लेकर आज जो स्थिति है वह देश के पहले प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता जवाहरलाल नेहरू के गलत फैसलों के वजह से पैदा हुई हैं।दरअसल, नेहरू ने कई ऐसे फैसले लिए, जो वक्त के साथ नासूर बन गए और जिनका दर्द अब भी हिन्दुस्तान का जनमानस झेल रहा है। आइए, एक नजर डालते हैं जवाहरलाल नेहरू के कुछ ऐसे ही फैसलों पर।
दरअसल, नेहरू चीन की समाजवादी नीतियों से काफी प्रभावित थे, और चीन के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की वकालत करते थे। उन्होंने भारतीयों और चीनियों के बीच एक सकारात्मक संवाद स्थापित करने के लिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा भी दिया, लेकिन बदले में चीन ने वर्ष 1962 में भारत पर युद्ध थोप दिया। चीन ने भारत की नाक के नीचे से तिब्बत को भी हड़प लिया और आज वह भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा किए बैठा है। इतना ही नहीं, भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश पर भी चीन अपना दावा जताता रहा है। यदि आज भारत के पास सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट होती तो अब तक शायद कश्मीर मुद्दे का हल हो चुका होता। साथ ही, भारत मसूद अजहर जैसे आतंकियों पर भी नकेल कस चुका होता।
कहते हैं, भीम राव आंबेडकर ने नेहरू की विदेश नीति पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था– जवाहर लाल नेहरू चीन के लिए कैंपेन कर रहे है, समझना मुश्किल है कि वो भारत के लिए काम करते हैं या चीन के लिए। भारत को सुरक्षा परिषद का स्थायी मेम्बर बनने का न्योता मिला पर नेहरू चीन के लिए कैंपेन कर रहे हैं।
वर्ष 1948 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो भारतीय सेना पाकिस्तानियों को खदेड़ने में सफल रही थी और भारतीय सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इतना ही नहीं, युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार मिली थी और बलूचिस्तान के सभी कबायली समूहों की संसद (जिरगा) ने प्रस्ताव पास किया था कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन तभी अचानक पंडित नेहरू ने सीजफायर का एलान कर दिया, क्योंकि वे शांति का माहौल चाहते थे।
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