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मोदी सरकार की चेतावनियों को राज्यों और पावर प्लांट्स ने किया नजरअंदाज, कृत्रिम बिजली और कोयला संकट को लेकर मचाया हाहाकार

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देश में विपक्ष शासित राज्य सरकारें अपनी नाकामी से जनता का ध्यान भटकाने के लिए ‘कृत्रिम संकट’ पैदा कर ‘खौफ की सियासत’ करती है। इसकी पोल कोयला मंत्रालय के पत्रों ने खोली है। जिनमें बार-बार राज्य सरकारों और बिजली प्लांट्स को आगाह किया गया था कि मानसून के चलते कोयला माइनिंग पर असर पड़ सकता है। इसलिए पहले से कोयला का स्टॉक तैयार कर लें। लेकिन केंद्र सरकार की चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया। कोयला मंत्रालय ने 25 फरवरी से पहले जितनी जल्दी हो सके राज्य सरकारों और निजी बिजली प्लांट्स को आवंटन के अनुसार कोयला उठाने के लिए कहा था। एक पत्र में कोयला सचिव अनिल जैन ने यह भी संकेत दिया था कि यदि कोयला नहीं उठाया गया तो आत्म-प्रज्वलन के कारण कोल इंडिया के पिथेड भंडार में आग लग सकती है।

कोयला सचिव के बाद बिजली सचिव आलोक कुमार और अतिरिक्त सचिव विवेक कुमार देवांगन की ओर से महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और राजस्थान को कई पत्र लिखे गए, जिनमें लोड-शेडिंग की चेतावनी दी गई थी। कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 28 सितंबर को महाराष्ट्र के बिजली मंत्री नितिन राउत को पत्र लिखकर भारी बारिश के चलते राज्यों में कोयले को लेकर पैदा हुई स्थिति के बारे में जानकारी दी। इसके बावजूद स्टेट यूटिलिटी ने कोयला उठाने से मना कर दिया। दरअसल ये संकट राज्यों की वजह से खड़ा हुआ है। राज्यों ने कोल इंडिया के भंडार से अपना कोटा नहीं हटाया और हाहाकार मचाने लगे। कई राज्यों ने बिजली की मांग में बढ़ोतरी की तैयारी करने की बजाय डर पैदा करने की कोशिश की।

NTPC ने केजरीवाल के दावे की निकाली हवा

NTPC ने केजरीवाल सरकार के बिजली कटौती के दावे को खारिज करते हुए कहा कि दिल्‍ली को जितनी बिजली मुहैया कराई, डिस्‍कॉम्‍स उसका केवल 70 प्रतिशत ही इस्तेमाल कर पाया। यानि 30 प्रतिशत बिजली सरप्‍लस रही। दिल्‍ली के डिस्‍कॉम्‍स को दादरी स्थित थर्मल स्‍टेशन की यूनिट-1 से 756 मेगावॉट का अलॉकेशन है। लेकिन नवंबर 2020 से डिस्‍कॉम्‍स इस स्‍टेशन से बिजली नहीं ले रहा जबकि फिक्‍स्‍ट रेट 97 पैसे प्रति किलोवाट घंटा है जो कि वर्तमान रेट 3.20 रुपये प्रति kWh से काफी कम है।

पूरे साल सोयी रही राजस्थान की कांग्रेस सरकार

कोल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल के मुताबिक राजस्थान ने पूरे साल अपने हिस्से का कोयला नहीं लिया। बकाया 500-600 करोड़ रुपये भी नहीं दिए। अचानक कोयला की मांग करने लगे। राजस्थान के पावर प्लांट को जितनी जरूरत है, उतना कोयला दिया जा रहा है। कम कोयला आवंटन की बात गलत है। प्रमोद अग्रवाल ने सवाल किया कि राजस्थान की खुद की अपनी माइंस हैं, वे खुद क्यों नहीं कोयले का उत्पादन शुरू करते ? जब स्टॉक करना था, तब राज्यों ने कोयला नहीं लिया।

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