आखिरकार कांग्रेस के भीतर उस सच्चाई का ज्वालामुखी फूट ही गया, जिसे वर्षों से पार्टी राजसी कालीन के नीचे दबाती चली आ रही है। कांग्रेस नेत्री नवजोत कौर सिद्धू ने यह चौंकाने वाला खुलासा कर दिया कि कांग्रेस में “500 करोड़ लगाने वाले को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है।” यह केवल एक आरोपित टिप्पणी-मात्र नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के भीतर की उस सड़ी हुई राजनीति का एक्स-रे है, जिसे सुनते ही पार्टी नेतृत्व बौखला गया। नवजोत कौर सिद्धू का निलंबन दिखाता है कि कांग्रेस का आलाकमान यह समझने में विफल है कि समस्या सजा देकर या आवाज़ दबाकर हल नहीं होगी। सच को दबाने का परिणाम सिर्फ विवाद को और हवा देना मात्र होता है। पार्टी ने जो कदम उठाया, उसने यह संदेश दिया कि भीतर की गंदगी को सार्वजनिक करने वाले किसी भी सदस्य को खामोश कर दिया जाएगा। इसी से जनता में यह धारणा और मजबूत हुई कि सोनिया-राहुल और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के लिए पार्टी के भीतर पारदर्शिता और नैतिकता केवल नारे ही हैं।

‘500 करोड़ में मुख्यमंत्री बनाओ’ ने कांग्रेस पार्टी के परखच्चे उड़ाए
पंजाब कांग्रेस से अध्यक्ष रहे नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी ने “500 करोड़ में मुख्यमंत्री बनाओ” जैसा विस्फोटक बयान दबे-छुपे अंदाज में नहीं दिया है, बल्कि मीडिया से बातचीत में खुलेआम कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को नंगा कर दिया है। नवजोत कौर का खुला आरोप केवल एक गुस्से भरी टिप्पणी नहीं, बल्कि लम्बे समय से चल रही उस अंदरूनी संस्कृति का खुला प्रदर्शन है, जिसमें पदों की बेंचिंग, लॉबिंग और पैसों-पैसों की राजनीति ने नैतिकता और सार्वजनिक जवाबदेही को निगल लिया है। जब पार्टी ने जवाब देने के बजाय सच बोलने वाली नेता को निलंबित कर दिया, तो उसने साफ कर दिया कि वह दोष क्यों छुपाना चाहती है। क्योंकि खुली जांच और सार्वजनिक बहस से जो परदा टूटेगा वह पार्टी की रही-सही इज्जत के परखच्चे उखाड़कर रख देगा।

असंवेदनशील, गैरजिम्मेदार, नैतिक रूप से बेईमान और भ्रष्ट प्रधान हैं वड़िंग
पंजाब कांग्रेस से सस्पेंड किए जाने के बावजूद नवजोत कौर सिद्धू के तेवर और तीखे हो गए हैं। मंगलवार को अमृतसर में नवजोत कौर ने सस्पेंड किए जाने पर प्रदेश अध्यक्ष राजा वड़िंग के लिए कहा- यह कार्रवाई उस प्रधान ने की, जिसे कोई नहीं मानता। राणा गुरजीत भी इसी नोटिस से चल रहे हैं। मेरी हाईकमान से बात हो रही है। हम चोरों का साथ नहीं देंगे। अगर 4-5 लोगों को हटा दें तो फिर देखेंगे। नवजोत कौर ने कहा कि मैं एक असंवेदनशील, गैरजिम्मेदार, नैतिक रूप से बेईमान और भ्रष्ट प्रधान के साथ खड़े होने से इनकार करती हूं। मैं उन सभी भाइयों और बहनों के साथ खड़ी हूं, जिन्हें उसकी अक्षमता और गैरजिम्मेदार व्यवहार से चोट पहुंची है। मैं उसे प्रधान मानने से इनकार करती हूं। मुझे हैरानी है कि मुख्यमंत्री उसे क्यों बचा रहे हैं।

सांसद सुखजिंदर रंधावा ने नवजोत कौर सिद्धू को कानूनी नोटिस भेजा
कांग्रेस की पंजाब इकाई के वरिष्ठ नेता और गुरदासपुर से सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने निलंबित पार्टी नेता नवजोत कौर सिद्धू को मंगलवार (9 दिसंबर) को कानूनी नोटिस भेजा है। उनसे अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगने या कानूनी कार्रवाई का सामना करने को कहा। पार्टी के राजस्थान प्रभारी रंधावा ने नोटिस में कौर द्वारा मीडिया में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाने संबंधी बयानों पर आपत्ति जताई। कौर कांग्रेस की पंजाब इकाई के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी हैं। कांग्रेस ने नवजोत कौर को मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए 500 करोड़ रुपये वाले उनके बयान के लिए सोमवार (8 दिसंबर) को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। रंधावा के वकील ने नवजोत कौर को भेजे गए कानूनी नोटिस में कहा कि झूठे, निराधार और मानहानिकारक बयान दिए, जिनका इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारण और रिपोर्टिंग की गई।

प्रदेश अध्यक्ष पर लगे आरोप का मानवीय और राजनीतिक भार
कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी के रूप में रंधावा ने कार्य करते हुए भ्रष्टाचार किया, जिसमें रुपये के बदले पार्टी के टिकट बांटना भी शामिल है। नवजोत ने कहा कि रंधावा के स्मगलरों से संबंध हैं। रंधावा के पास इतनी फार्म लैंड कहां से आई? अपनी पत्नी को तो जिता नहीं सके। रंधावा ने सिद्धू की पीठ में छुरा घोंपा। नवजोत कौर द्वारा सीधे पार्टी अध्यक्ष पर ‘भ्रष्ट’ कहे जाने का अर्थ सिर्फ व्यक्तिगत आरोप नहीं है। यह संगठनात्मक विफलता की गम्भीर चेतावनी है। यदि पार्टी के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति ऐसे आरोपों से मुक्त नहीं है, तो छोटे स्तर पर अनुशासन और जवाबदेही की क्या बात की जाए? ऐसे आरोप पार्टी की छवि के साथ-साथ उसकी विचारधारा की भी जड़ों से हिला देते हैं।

कौर के क्रोध से कर्नाटक के डीके की नाराजगी को मिली आग
पंजाब का मामला अकेला ही खतरनाक नहीं है। कर्नाटक में डीके शिवाकुमार की नाराजगी ने इस आग को राष्ट्रीय आकार दे दिया है। शिवाकुमार का आक्रोश यह संकेत देता है कि सत्ता के भीतर निर्णय-प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी केवल पंजाब तक सीमित नहीं, बल्कि कई राज्यों में गहरे स्तर पर मौजूद है। जब एक अनुभवी और प्रभावशाली नेता यह महसूस करे कि उसे किनारे कर दिया गया या उसके हितानुसार निर्णय नहीं लिये गये, तो वह सार्वजनिक संघर्ष की राह पकड़ लेता है। कांग्रेस के भीतर यह विभाजन जल्दी ही संगठनात्मक टूट में बदल सकता है। सबसे चिंताजनक पहलू पार्टी हाईकमान की मौन नीति है। पत्रकारों और सार्वजनिक मंचों पर जहां विपक्ष पर तीखे बोल फटते हैं, वहीं अपने घर की पोल खुलते ही गूंगी चुप्पी दिखाई देती है। यह चुप्पी नेतृत्व की विफलता की निशानी है।
नैतिकता का पतन, टूटती एकता और बढ़ता आंतरिक असंतोष
यदि कांग्रेस के स्वयंभू आलाकमान ने इस समय भी मजबूती से सुधार नहीं किये, तो यह संकट केवल रिपोर्ट-लाइन तक सीमित रहेगा। विविध राज्यों में इसका गंभीर असर दिखेगा। उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल और ज्यादा गिरेगा और आगामी चुनावों में उम्मीदवारों को संगठनात्मक कमजोरी का बोझ उठाना कठिन होगा। कांग्रेस का आंतरिक असंतोष बाहर निकलकर सार्वजनिक हो चुका है और यह प्रवाह तेज होने वाला है। कांग्रेस के पास अब दो रास्ते हैं। या तो यह संकट खुली ईमानदारी से स्वीकार कर पार्टी व्यवस्था का पुनर्निर्माण करे, या फिर चुप्पी और दबाव से इसे ठप कर, गिरती साख को और खो दे। नवजोत कौर के आरोपों ने सिर्फ एक बयान नहीं दिया, बल्कि उन्होंने कांग्रेस के भीतर की विषैली हवा को सार्वजनिक कर दिया है। यदि पार्टी ने तुरंत, पारदर्शी और निर्णायक प्रतिक्रिया नहीं दी तो आने वाले वर्षों में कांग्रेस का किरदार और भी घटिया और हाशिये पर चला जाएगा।









