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‘दगाबाज’ उद्धव ठाकरे को शीर्ष कोर्ट से फिर मिला करारा झटका, SC ने कहा- जिसने विश्वास मत का ही सामना नहीं किया, उसे कैसे कर सकते हैं बहाल, महाराष्ट्र में और मजबूत हुई डबल इंजन सरकार

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महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ दगाबाजी करके जोड़-तोड़ की सरकार बनाने वाले उद्धव ठाकरे को अब सुप्रीम कोर्ट से भी बड़ा झटका मिला है। उद्धव ठाकरे की ओर से सर्वोच्च अदालत में पेश अधिवक्ताओं ने सरकार को बहाल करने की अपील करते हुए दलीलें दी थीं। सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि वह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार को कैसे बहाल कर सकता है, जब मुख्यमंत्री ने फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया था। पीठ ने उद्धव ठाकरे की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी की दलीलों पर कहा, “तो, आपके अनुसार, हम क्या करते हैं? आपको बहाल करते हैं? लेकिन आपने इस्तीफा दे दिया। ऐसा लग रहा है जैसे अदालत से उस सरकार को बहाल करने के लिए कहा जा रहा है, जिसने फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे दिया है।” शीर्ष अदालत के इस फैसले से न सिर्फ ठाकरे गुट को बीजेपी से धोखेबाजी का दंड मिला है, बल्कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और देवेन्द्र फणनवीस की डबल इंजन की सरकार और मजबूत हुई है। इससे राज्य के विकास को और रफ्तार मिलेगी।भाजपा से दगाबाजी करके शिवसेना के उद्धव ठाकरे बने थे महाराष्ट्र के सीएम
दरअसल, 29 जून 2022 को महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट चरम पर पहुंच गया था जब शीर्ष अदालत ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली 31 महीने पुरानी गठबंधन सरकार को बहुमत परीक्षण कराने के राज्यपाल के निर्देश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। ठाकरे ने हार को भांपते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी थी। इससे पहले 2019 में बेहद नाटकीय घटनाक्रम और बीजेपी से दबाबाजी के बाद शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस के बेमेल गठबंधन से उद्धव ठाकरे सरकार निकली थी। राज्य में विधानसभा के चुनाव 21 अक्टूबर को हुए और नतीजे 24 अक्टूबर को आए थे। भाजपा 105 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। 56 सीटों के साथ शिवसेना दूसरी बड़ी पार्टी बनी। स्वभाविक रूप से शिवसेना को बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी थी, लेकिन उद्धव ठाकरे ने भितरघात करते हुए एनसीपी और कांग्रेस से गठजोड़ कर लिया। कम सीटें होने के बावजूद शिवसेना से ठाकरे सीएम बन गए।उद्धव ठाकरे ने हार को मानते हुए मुख्यमंत्री पद से दिया था इस्तीफा
उद्धव ठाकरे की बात करें तो महाराष्ट्र के 19वें मुख्यमंत्री के तौर पर वो 29 नवंबर 2019 से लेकर 29 जून 2022 तक ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सके। सिर्फ 943 दिनों के कार्यकाल के बाद उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने पड़ा। उद्धव ठाकरे ने हार को मानते हुए मुख्यमंत्री पद से दे दिया इस्तीफा था। इसी के साथ महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार का सूरज अस्त हो चुका है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में बतौर मुख्यमंत्री पूरे पांच सालों तक कुर्सी पर रह पाना इतना भी आसान नहीं रहा है। इससे पहले सिर्फ दो ही मुख्यमंत्री पूरे पांच सालों तक मुख्यमंत्री बने रहने में सक्षम रहे। पहले कांग्रेस नेता वसंत नाइक, जो साल 1963 से लेकर 1967 तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। वहीं यह कारनामा करने वाले दूसरे नेता बीजेपी के देवेंद्र फणवीस रहे। जिन्होंने साल 2014 से लेकर 2019 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। बता दें कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार सरीखे दिग्गज नेता भी कभी बतौर मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे।अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने नौ कार्य-दिवसों में की सुनवाई
अब ठाकरे गुट की अपील पर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की। ठाकरे के वकीलों ने अदालत से समय को वापस करने और यथास्थिति को बहाल करने की अपील की। इसमें कहा गया कि जैसे 2016 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में नबाम तुकी को फिर से स्थापित किया था, वैसे ही इस बार भी किया जाए। ठाकरे गुट का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ से राज्यपाल बी एस कोश्यारी के फ्लोर टेस्ट के आदेश को रद्द करने का आग्रह किया। पीठ, जिसमें जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं, ने ठाकरे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट द्वारा दायर क्रॉस याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। साथ ही, ठाकरे गुट के अधिवक्ता सिंघवी से पूछा, “अदालत उस मुख्यमंत्री को कैसे बहाल कर सकती है, जिन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना भी नहीं किया।” शीर्ष अदालत ने नौ कार्य दिवसों में दोनों पक्षों और राज्यपाल की दलीलें सुनीं, जिनका प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया था।तब यह तार्किक बात होती, बशर्ते विधानसभा के पटल पर विश्वास मत खो देते- कोर्ट
शिवसेना राजनीतिक संकट के मद्देनजर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने के दौरान पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता करने वाले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, ‘यह (सरकार को बहाल करना) एक तार्किक बात होती, बशर्ते आप विधानसभा के पटल पर विश्वास मत खो देते । फिर आप निश्चित रूप से सत्ता से बेदखल हो जाते क्योंकि विश्वास मत आपके साथ नहीं रहता।’ सीजेआई ने कहा, ‘हमारी समस्या यह है कि बौद्धिक पहेली को देखें। ऐसा नहीं है कि राज्यपाल द्वारा तलब किए गए विश्वास मत के कारण आपको सत्ता से बेदखल किया गया है। आपने किसी भी कारण से इसे नहीं चुना, आप विश्वास मत का सामना नहीं करना चाहते थे।’ शीर्ष अदालत ने नौ दिनों तक दलीलें सुनने के बाद, महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के संबंध में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समूहों की क्रॉस-याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

 

 

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