गुजरात में राज्यसभा की सीट जीतने वाले अहमद पटेल को शरद यादव ने जीत पर बधाई दी है। बधाई देने में कोई खराबी नहीं है, बधाई तो कोई भी किसी को देता है। लेकिन इस बधाई की टाइमिंग जरूर कुछ बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। दरअसल पार्टी लाइन से हटकर गुजरात जेडीयू के विधायक ने कांग्रेस के अहमद पटेल को वोट दे दिया तो जेडीयू के महासचिव के सी त्यागी ने पार्टी के गुजरात प्रभारी अरुण श्रीवास्तव को पदमुक्त कर दिया। अरुण श्रीवास्तव शरद यादव के नजदीकी माने जाते हैं और नीतीश समर्थक इसे पार्टी के साथ धोखा मान रहे हैं। जाहिर तौर पर अब नीतीश कुमार पर यह दबाव है कि पार्टी लाइन से अलग जाने वालों पर जल्द से जल्द कार्रवाई करें। तो क्या शरद यादव के जेडीयू में अब दिन पूरे हो गए हैं?
भ्रष्टाचार का साथ देने को लेकर नीतीश नाराज!
पार्टी के विधायकों की राय से जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया तो शरद यादव ने जनता दल यूनाइटेड-भाजपा गठजोड़ पर कोई खुशी नहीं प्रकट की। इसके विपरीत उन्होंने जरूर कहा कि जदयू, राजद और कांग्रेस का महागठबंधन टूटने से उन्हें पीड़ा हुई है। दरअसल नीतीश कुमार जिस कद और जिस मिजाज के नेता हैं वे भ्रष्टाचार से कतई समझौता नहीं कर सकते हैं। लेकिन शरद यादव ने पार्टी लाइन से हटकर जब नीतीश के निर्णय पर सवाल उठा दिये तो उन्होंने इसे भ्रष्टाचार का समर्थन मान लिया है। हालांकि शरद यादव के बयान पर अब तक कोई बात नहीं कही है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि शरद यादव द्वारा भ्रष्ट लालू परिवार के समर्थन में बोलने से नीतीश कुमार नाराज हैं।
शरद से छुटकारा पाना चाहते हैं नीतीश!
दरअसल शरद के पास लालू प्रसाद का ऑफर पहले से है, वे कांग्रेस के नजदीकी भी हैं और टच में भी हैं। बीते दिनों वामपंथी नेताओं से उन्होंने मुलाकात भी की है। इतना ही नहीं शरद यादव संसद में अब भी विपक्षी खेमे के साथ है। इस बीच वे दस अगस्त को पटना जा रहे हैं जहां से वे मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर सहित कई जगहों की यात्रा करेंगे। उनकी तीन दिनों की यह यात्रा बदलते राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर काफी अहम है। क्योंकि उन्होंने इस दौरान जनता से राय लेने की बात कही है। दूसरी तरफ शरद यादव द्वारा बार-बार बीजेपी के साथ जाने को लेकर नीतीश कुमार पर परोक्ष हमला और नीतीश कुमार की चुप्पी समाजवादी राजनीति में बदलाव के आहट के संकेत हैं।
राजनीतिक जमीन टटोलने की कवायद में शरद
बकौल शरद यादव जब उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझता है तो वे जनता के बीच जाते हैं और जनता ही उन्हें रास्ता बताती है। शरद यादव का 10 अगस्त से होने वाला तीन दिन का बिहार दौरा इसी की कड़ी में है। बिहार से दिल्ली लौटने पर वे 17 अगस्त के सम्मेलन करेंगे। सम्मेलन में किसान आत्महत्या, भीड़ द्वारा आम आदमी की पीट-पीट कर हत्या किये जाने के मुद्दे चर्चा होगी। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि समाजवादी राजनीति में ऐसे सम्मेलन बुलाना अपनी पैठ टटोलने और भविष्य की राजनीति की भूमिका तैयार करने के लिए हमेशा से अहम रही है। ऐसे में शरद यादव के अगले कदम पर सबकी निगाहें टिकी हैं।
जेडीयू ने शरद को दिखाया पार्टी कानून का आईना
10 अगस्त से शरद यादव को बिहार दौरे पर जेडीयू का रूख हमलावर है। जाहिर तौर पर पार्टी अध्यक्ष पर पहले सवाल उठाया और फिर अब जनता के बीच जाकर निर्णय लेने की नौटंकी पर जेडीयू ने अपना स्टैंड क्लीयर करते हुए कहा कि उनकी इस यात्रा से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। पार्टी के आधिकारिक बयान में कहा गया, ”जेडीयू का कानून और नीतियां शरद की ही बनाई हुई हैं, अब अगर शरद खुद इन कानूनों के पालन से पीछे हटते हैं तो ये गंभीर बात है।” साफ है कि शरद के इस निर्णय से पार्टी असहज है। ऐसे में शरद यादव क्या फैसला लेते हैं यह तो वक्त बताएगा। लेकिन जिस तरह से नीतीश कुमार अनुशासन पसंद नेता हैं क्या शरद यादव द्वारा पार्टी लाइन की अवहेलना वे बर्दाश्त कर पाएंगे?
… तो क्या जेडीयू के मार्गदर्शक मंडल में रहेंगे शरद !
17 अगस्त को दिल्ली में सम्मेलन करने के बाद 19 अगस्त को पटना में जदयू कार्यकारिणी की बैठक होगी, जिसमें शरद यादव ने भी शामिल होने की पुष्टि की है। इतना ही नहीं बीते पांच अगस्त को शरद यादव ने लालू प्रसाद की 27 अगस्त की रैली में शामिल होने पर कहा, ”जेडीयू में हूं, पार्टी की स्थापना काल से हूं, मैं इसे कैसे छोड़ सकता हूं।” आठ अगस्त को तेजस्वी की रैली में शामिल होने की अटकलें भी झूठी साबित हो चुकी हैं। जाहिर तौर पर यह साफ नहीं हो पा रहा है कि जेडीयू में अगर शरद यादव रहेंगे तो उनकी हैसियत क्या होगी? कहा तो यह भी जा रहा है कि शरद यादव उसी दिन अघोषित रुप से जदयू के मार्गदर्शक मंडल में चले गए जिस दिन से नीतीश कुमार जदयू के अध्यक्ष बने।
बहरहाल शरद यादव का बयान और जेडीयू की पार्टी लाइन दो ध्रुवों पर खड़ी नजर आ रही है। शरद यादव विपक्ष की एकजुटता की वकालत कर रहे हैं, कांग्रेस, वामपंथी और अन्य दलों के नेताओं से मिल भी रहे हैं और दूसरी ओर वे जेडीयू में बने रहने की भी बात कह रहे हैं। हालांकि राजनीति में संदर्भ, परिस्थिति पल-पल बदलते हैं और इसके साथ चीजें भी नाटकीय ढंग से बदलती हैं। शरद यादव की नाराजगी और नीतीश कुमार के निर्णय पर क्या कुछ होने वाला है यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राजनीतिक जानकार तो यही कह रहे हैं कि जिस तरीके से भ्रष्टाचारी जमात का बोझ ढो रहे नीतीश कुमार ने लालू एंड कंपनी से पल्ला झाड़ लिया अब वक्त आ गया है कि वे शरद यादव से भी छुककारा पा ही लें!