कहावत है कि जब जहाज डूबने वाला होता है तो सबसे पहले उसमें से चूहे भाग खड़े होते हैं। बिहार में कई बरसों तक राज करने वाले राष्ट्रीय जनता दल का भी पार्टी रूपी जहाज डूबने के कगार पर है। इसीलिए विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के 8 विधायक पार्टी से साफ-साफ किनारा करते नजर आ रहे हैं। इनमें बाहुबली आनंद मोहन के बेटे, अनंत सिंह की पत्नी से लेकर एक बार जीते भरत बिंद तक शामिल हैं। तेज प्रताप यादव परिवार की इमेज को डैमेज कर हैं तो बाहुबली अनंत सिंह, राजबल्लभ यादव, आनंद मोहन, रामा सिंह अपने-अपने एरिया में चुनौती दे रहे हैं। इन विधायकों की बगावत से RJD को विधानसभा चुनाव में बहुत नुकसान होने वाला है। क्योंकि इनमें कुछ ऐसे कद्दावर नेता भी हैं, जिनका प्रभाव सिर्फ अपनी सीट पर ही नहीं, बल्कि अन्य सीटों पर भी है। ऐसे में तेजस्वी यादव अभी तक तो सिर्फ भाई तेजप्रताप के बागी तेवरों को कोस रहे थे, लेकिन आने वाले समय में यह तय है कि उन्हें अपनी ही पार्टी के और नेताओं की बगावत से भी जूझना पड़ सकता है।
विधानसभा चुनाव से पहले ही तेजस्वी यादव पर दोहरी मार
दरअसल, तेजस्वी यादव अगले चुनाव में मुंगेरी लाल की तरह सीएम बनने का सपना देखने में लगे हुए हैं। हालांकि उनका यह ख्याली पुलाव पकने वाला नहीं है। तेजस्वी यादव ने इसीलिए पिछले माह वोटर अधिकार यात्रा के तहत नवादा रैली में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान कर एक बड़ा दांव खेला। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ”आने वाले चुनाव में हम सब मिलकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाएंगे।” दिलचस्प बात यह रही कि तेजस्वी ने राहुल के लिए जो खुला समर्थन जताया, वैसा ही समर्थन देने से राहुल गांधी साफ-साफ मुकर गए। यानी तेजस्वी की सारी कोशिशों के बावजूद उनको महागठबंधन का सीएम फेस बनाने का ऐलान नहीं हुआ। दरअसल, कांग्रेस अभी बिहार की सत्ता की राजनीति में खुलकर दांव लगाने से बचना चाहती है? बिहार में जब चंद महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं तो राहुल गांधी का यह मौन कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है। क्योंकि राजनीति में कई बार मौन शब्दों से ज्यादा असर छोड़ जाता है। तेजस्वी यादव दोहरी मुश्किल में हैं। एक तरफ राहुल का मौन आड़े आ रहा है तो दूसरी ओर विधायक उन्हें बीच मैदान में छोड़े जा रहे हैं।
आइए, देखते हैं कि तेजस्वी यादव का साथ कौन-कौन से विधायक छोड़ने का मन बना रहे हैं और इसके चुनाव में राजद पर क्या असर पड़ने वाला है…
तेज प्रताप यादव: तेजस्वी और परिवार को इमेज को डैमेज कर रहे
इस लिस्ट में सबसे ऊपर RJD सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव हैं। मई में उनको पार्टी और परिवार से बाहर निकाल दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट कर अपनी नई रिलेशनशिप का ऐलान किया था। तेज प्रताप फिलहाल हसनपुर से RJD के विधायक हैं। वह महुआ से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। जब पार्टी से निकला दिया गया है तो जाहिर है टिकट RJD नहीं देगी। महुआ से RJD के मुकेश रौशन विधायक हैं। चुनाव नजदीक आते-आते तेज प्रताप के तेवर तेजस्वी और परिवार के प्रति कड़े होते जा रहे हैं। वे जहानाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान तेजस्वी के समर्थन में नारे लगाने पर भड़क गए। इतना सुनते ही तेज प्रताप ने कहा- ‘यहां फालतू बात मत करो। किसी व्यक्ति विशेष की सरकार नहीं आती है, जो घमंड करेगा, वो जल्दी गिरेगा और अगर नौटंकी करोगे तो रोजगार नहीं मिलेगा।’
विभा देवी: पीएम के मंच पर दिखीं लालू के खास रहे राजबल्लभ की पत्नी
गयाजी में 22 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी के मंच पर नवादा से RJD विधायक विभा देवी दिखीं। इसके बाद चर्चा है कि वह 2025 का विधानसभा चुनाव RJD के टिकट पर नहीं लड़ेंगी। वैसे आधिकारिक तौर पर उन्होंने अब तक पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है। लेकिन पीएम के मंच पर दिखने के बाद अब उनका पार्टी में रहना मुश्किल हो रहा है। 2020 विधानसभा चुनाव में लालू यादव के खास रहे बाहुब ली राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी ने निर्दलीय श्रवण कुमार को हराया था। तीसरे स्थान पर JDU के कौशल यादव थे। हाल में कौशल यादव RJD में शामिल हुए हैं। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि विभा का रास्ता अलग हो सकता है। दरअसल, नवादा की राजनीति में कौशल यादव और राज बल्लभ यादव एक-दूसरे के विरोधी हैं। बता दें कि राजबल्लभ यादव परिवार 1990 से ही नवादा में एक शक्ति का केंद्र रहा है। उनके बड़े भाई कृष्णा यादव भी विधायक रहे। इस परिवार का नवादा के आसपास के विधानसभा सीटों पर भी असर है। राज बल्लभ 2000 में RJD के टिकट पर चुनाव जीते तो श्रम मंत्री बनाए गए थे। इस सीट पर 2019 के उपचुनाव में JDU के कौशल यादव जीते। 2020 के चुनाव में राज बल्लभ की पत्नी विभा लड़ीं और जीत गई।
तेजस्वी से तकरार क्यों- 2022 में विधान परिषद का चुनाव था। राजबल्लभ अपने भतीजे को चुनाव लड़वाना चाहते थे। तेजस्वी ने राजबल्लभ की मर्जी से अलग श्रवण कुशवाहा को कैंडिडेट बना दिया। राजबल्लभ ने भतीजे और कृष्णा यादव के बेटे अशोक यादव को निर्दलीय उतार दिया। अशोक यादव चुनाव जीत गए। इसके बाद राजबल्लभ 2024 के लोकसभा चुनाव में छोटे भाई विनोद यादव को चुनाव लड़वाना चाहते थे। तेजस्वी ने फिर उनकी बात नहीं मानी और MLC चुनाव में हारे श्रवण कुशवाहा को कैंडिडेट बना दिया। राजबल्लभ यादव ने अपने भाई विनोद यादव को निर्दलीय मैदान में उतार दिया। इसका सीधा नुकसान RJD के कैंडिडेट को हुआ। RJD का यादव वोट बिखर गया। विनोद यादव को करीब 39 हजार वोट मिले। श्रवण कुशवाहा 67 हजार वोट से ये चुनाव हार गए। यहां से BJP के विवेक ठाकुर चुनाव जीते।
चेतन आनंद: फ्लोर टेस्ट के समय आनंद ने बदला था पाला
शिवहर से RJD विधायक चेतन आनंद ने फरवरी 2024 में नीतीश सरकार के फ्लोर टेस्ट के दौरान ही पाला बदल लिया था। वह RJD की जगह JDU के साथ हो गए थे। हालांकि, चेतन आनंद ने अब तक आधिकारिक तौर पर RJD से इस्तीफा नहीं दिया है। अभी उनकी मां लवली आनंद शिवहर से JDU की सांसद हैं। चेतन आनंद बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन के बड़े बेटे हैं। वह भी शिवहर से सांसद रह चुके हैं। यहां राजपूत, ब्राह्मण, मुस्लिम और पटेल समाज जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाता है। इस इलाके के सवर्ण समाज में आनंद मोहन की पकड़ शुरू से मजबूत रही है। सकती है
तेजस्वी से तकरार क्यों- DM जी. कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को नीतीश सरकार ने 2023 में जेल मैनुअल में संशोधन कर रिहा कर दिया। जेल से बाहर आते ही आनंद मोहन नीतीश कुमार के साथ घूमने लगे। वैसे उनकी राजनीति की शुरुआत लालू शासन के विरोध से ही हुई थी। पिता को जेल से बाहर निकालने और लोकसभा चुनाव में मां को टिकट देने के वादे ने चेतन आनंद को तेजस्वी यादव से दूर कर दिया।
नीलम देवी: बाहुबली अनंत सिंह के चलते पत्नी की राह भी अलग
बाहुबली पूर्व विधायक अनंत सिंह की राह RJD से अलग हो गई है। उनकी पत्नी और विधायक नीलम देवी JDU की तरफ हो गई हैं। AK-47 केस में सजा होने के बाद अनंत सिंह की सदस्यता रद्द हो गई थी। उसके बाद 2022 में हुए उपचुनाव में नीलम देवी RJD के टिकट पर चुनाव लड़ी और जीत गईं। फरवरी 2024 में नीतीश सरकार की फ्लोर टेस्ट के दौरान नीलम देवी JDU की तरफ हो गईं। इसके बाद अनंत सिंह को लोकसभा चुनाव से पहले पेरोल मिली और उन्होंने ललन सिंह के लिए जमकर प्रचार किया। ललन सिंह चुनाव जीत गए। AK-47 केस में अनंत सिंह हाईकोर्ट से बरी हो गए हैं और चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। मोकामा की राजनीतिक जमीन पर अनंत सिंह की मजबूत पकड़ है। उनको चुनाव हराना टफ है। बीते 20 साल से उनको कोई हरा नहीं पाया है। 2005 से लगातार उनका कब्जा है। वह JDU-RJD, यहां तक की वह निर्दलीय भी चुनाव जीत चुके हैं।
तेजस्वी से तकरार क्यों- तेजस्वी यादव और अनंत सिंह के बीच राजनीतिक पटरी नहीं बैठ रही है। उनका जेल से बाहर आना एक कारण माना जाता है। चूंकि, नीतीश सरकार में ही वह जेल गए और उसी सरकार में बरी भी हुए। यहां भूमिहारों का वोट बैंक काफी प्रभाव रखता है। इसके अलावा कुर्मी, यादव, धानुक, पासवान और मुस्लिम भी अच्छी संख्या में हैं। RJD की तरफ से 2025 में यहां कौन उम्मीदवार होगा, अभी तय नहीं है।
प्रकाशवीर चौधरी: तेजस्वी ने यात्रा में ही टिकट काटने का किया ऐलान
रजौली से प्रकाश वीर RJD के टिकट पर लगातार दो बार से जीत रहे हैं। प्रकाश वीर चौधरी (पासी) कम्युनिटी से आते हैं। विभा देवी के साथ वे भी PM मोदी के साथ मंच पर थे। प्रकाश वीर ने इस पर सफाई दी थी, ‘मुझे तीन दिन पहले आमंत्रण आया था। इसलिए हम लोग गए। प्रधानमंत्री हम सबके हैं। हम लोग देखने और सुनने गए थे कि PM देश के गरीबों के लिए क्या-क्या काम कर रहे हैं। राजबल्लभ जी का आदेश मिल जाएगा, तो अभी रिजाइन कर देंगे।’ प्रकाश वीर, राज बल्लभ यादव के करीबी माने जाते हैं। बताया जाता है कि वह ही उन्हें टिकट दिलवाते हैं और जिताते हैं। अब जब राज बल्लभ परिवार RJD से दूर जा रहा है तो प्रकाश वीर का रहना मुश्किल होगा। रजौली विधानसभा में SC-ST कम्युनिटी के करीब 97 हजार वोट हैं। इनके अलावा यहां अति पिछड़ा और यादव के लगभग 1 लाख वोट हैं।
तेजस्वी से तकरार क्यों- दरअसल, लोकसभा चुनाव में ही तेजस्वी यादव ने साफ कर दिया था कि प्रकाश वीर को विधानसभा का टिकट नहीं देंगे। तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा के दौरान नवादा पहुंचे थे। वहां कुछ लोगों ने प्रकाश वीर को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं देने की मांग की, इस पर तेजस्वी यादव ने अपनी सहमति दे दी।
प्रह्लाद यादव: दबंग छवि के विधायक ने RJD को दिया झटका
लखीसराय के सूर्यगढ़ा से विधायक प्रह्लाद यादव RJD के संस्थापक सदस्य कहे जाते हैं। 1995 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। दबंग और बाहुबली छवि के प्रह्लाद यादव ने फरवरी 2024 में नीतीश सरकार के फ्लोर टेस्ट के दौरान RJD से अलग लाइन लिया और सरकार के पाले में चले गए। हाल में उनके टिकट को लेकर NDA के अंदर ही बयानबाजी सुनने को मिली थी। एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने कहा था, ‘सूर्यगढ़ा JDU की सीट है तो JDU ही उम्मीदवार तय करेगी। हम अपने सामाजिक समीकरण को देखते हुए निर्णय लेंगे। प्रह्लाद यादव डिप्टी CM विजय सिन्हा के करीबी माने जाते हैं। वह कह चुके हैं कि मेरी कुर्बानी को तवज्जो दी जानी चाहिए। विजय सिन्हा के कहने पर ही मैं NDA के साथ आया था।
तेजस्वी से तकरार क्यों- प्रह्लाद यादव का बालू का बड़ा कारोबार है। या यूं कहें बालू के पैसे से ही उनकी पूरी राजनीति चलती है। ऐसे में सरकार के आसपास रहने से उनको फायदा दिखा और तेजस्वी के खिलाफ पाला बदला। वैसे प्रह्लाद यादव हमेशा लालू परिवार के साथ रहे। लंबे समय तक लखीसराय के पार्टी के जिलाध्यक्ष भी थे। इलाके में काफी प्रभावशाली माने जाने वाले प्रह्लाद यादव पहली बार 1995 में निर्दलीय विधायक चुने गए थे। इसके बाद वह 2000, 2005, 2015 और 2020 में RJD के टिकट पर जीतते रहे हैं। 2025 विधानसभा चुनाव लड़ने का भी उन्होंने ऐलान किया है।
संगीता कुमारी: दलितों के सम्मान की बात कह संगीता ने छोड़ा साथ
फरवरी 2024 में नीतीश सरकार के फ्लोर टेस्ट के दौरान RJD से किनारा करने वाली चौथी विधायक संगीता कुमारी थीं। तब उन्होंने कहा था, ‘मुझे लगा कि कहीं न कहीं पार्टी (RJD) में दलितों का सम्मान नहीं हो रहा। इसलिए हमने यह निर्णय लिया।’ संगीता दलितों का सम्मान करने वाली BJP की तरफ चली गई थी। कहा जाता है कि RJD के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की करीबी होने की वजह से संगीता कुमार को मोहनिया से टिकट दिया गया था। वह मूल रूप से कैमूर की रहने वाली हैं।
तेजस्वी से तकरार क्यों- 2020 विधानसभा चुनाव में संगीता ने बीजेपी के निरंजन राम को हराया था। निरंजन राम के अब तेजस्वी यादव के चक्कर काटने की चर्चाएं आम हैं। दूसरी संगीता को आरजेडी अब टिकट देने वाली नहीं है।
भरत बिंद: लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में हुए थे शामिल
भभुआ से RJD विधायक भरत बिंद भाजपा के संपर्क में हैं। उन्होंने 2020 विधानसभा चुनाव में भाजपा की रिंकी रानी पांडेय को हराया था। कैमूर जिले की भभुआ विधानसभा सीट में कोयरी और कुर्मी वोटर अधिक हैं। सवर्णेों में ब्राह्मण और कायस्थ अधिक हैं। भरत बिंद ने राजनीति की शुरुआत जिला परिषद से की है। वह 2015 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। हार गए। 2020 में RJD के टिकट पर लड़े और जीत गए।
तेजस्वी से तकरार क्यों- भाजपा में शामिल होने की वजह से तेजस्वी यादव से 36 का आंकड़ा है। इसके अलावा चर्चा है कि 2025 विधानसभा चुनाव में भभुआ सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है। कांग्रेस के मुन्ना पांडेय विधानसभा चुनाव की तैयारी भी कर रहे हैं।
वीणा सिंह: आरजेडी छोड़ सकती हैं बाहुबली रामा सिंह की पत्नी
विधानसभा चुनाव से पहले महनार की राजनीति भी बदलती दिख रही है। महनार से बाहुबली नेता रामा सिंह की पत्नी वीणा सिंह RJD से विधायक हैं। 2020 में रामा सिंह की एंट्री जब RJD में हुई थी तो रघुवंश प्रसाद सिंह ने विरोध किया था। रघुवंश बाबू ने तब पार्टी से इस्तीफा तक दे दिया था। रघुवंश बाबू का परवाह किए बिना वीणा सिंह को टिकट दिया गया था। उनके पति पूर्व सांसद रामा सिंह 2024 में RJD का साथ छोड़ चिराग पासवान वाली LJP(R) में चले गए। महनार सीट पर LJP(R) के टिकट पर रामा सिंह के खुद चुनाव लड़ने की चर्चा है। वैशाली एरिया में रामा सिंह की मजबूत पकड़ है। वह एरिया में राजपूतों के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। राजपूत वोट बैंक चुनावी दृष्टिकोण से अहम है।
तेजस्वी से तकरार क्यों- माना जाता है कि रामा सिंह की पकड़ तेजस्वी यादव के राघोपुर विधानसभा सीट पर भी है। रामा सिंह 2024 लोकसभा चुनाव में वैशाली से टिकट चाहते थे। लेकिन तेजस्वी ने नहीं दिया। वहां से पार्टी ने बाहुबली मुन्ना शुक्ला को टिकट दे दिया। इसके बाद रामा सिंह का पार्टी से मोह भंग हो गया।
विधायकों के पार्टी छोड़ने से RJD पर पड़ेगा बहुत असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘7 सिटिंग विधायकों ने RJD से दूरी बना ली है। इसमें से लगभग 5 सीटों में ऐसे हालात बच चुके हैं कि अब RJD को विधानसभा चुनाव में टिके रहने के नाकौं चने चबाने पड़ेंगे। राजनीतिक और जातिगत समीकरण आरजेडी के खिलाफ है। इसके अलावा लालू यादव ने ऐन चुनाव से पहले तेज प्रताप यादव को पार्टी से बाहर किया है। इसमें से नवादा और रजौली राज बल्लभ के प्रभाव वाली सीट है। राज बल्लभ जिसे चाहेंगे वही जीतेगा। शिवहर में मिलाजुला खेल हो सकता है। मोकामा में अनंत सिंह जिधर रहेंगे जीत होगी। कुल मिलाकर तेजस्वी यादव ने अपनी ही पार्टी के विधायकों से तकरार मोल लेकर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है।