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अफगानिस्तान के हालात ने फिर सिद्ध की CAA की उपयोगिता, कट ऑफ डेट बढ़ाये जाने की उठी मांग

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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां के हालात काफी खराब हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उनकी सरकार वहां फंसे हुए भारतीय नागरिकों,अफगान हिन्दुओं और सिखों को निकालने के लिए ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ चला रही है। अभी तक 800 से अधिक लोगों के साथ पवित्र गुरुग्रंथ साहिब के तीन स्वरूपों को भी सुरक्षित भारत लाया गया है। कट्टर इस्लामी विचारधारा वाले तालिबान के पूर्व के शासन में उत्पीड़न और हिंसा के कटु अनुभव ने वहां के हिन्दुओं और सिखों को पलायन कर भारत में शरण लेने पर मजबूर किया है। ऐसे हालात में देश में एक बार फिर संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) की उपयोगिता को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।

केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने अफगान संकट का जिक्र करते हुए कहा कि जिस तरह से वहां सिख और हिंदू बुरे हालात से गुजर रहे हैं यह दर्शाता है कि देश के लिए सीएए बेहद जरूरी है। वहीं अकाली दल के नेता मंजिंदर सिंह सिरसा ने प्रधानमंत्री मोदी से सीएए की कट ऑफ डेट 2014 से 2021 करने की गुहार लगाई है, ताकि अफगानिस्तान से आने वाले लोग लाभान्वित हों और यहां एक सुरक्षित जीवन जी सकें। गौरतलब है कि अफगानिस्तान की तरह पाकिस्तान और बांग्ला देश में पिछले 75 साल से उत्पीड़न और हिंसा के शिकार हिन्दुओं और सिखों के लिए प्रधानमंत्री मोदी देवदूत बनकर सामने आए और इनको संरक्षण देने के लिए नागरिकता संशोधन कानून बनाया।

क्यों जरूरी है सीएए ?

अफगानिस्तान के अलावा पाकिस्तान में हिन्दू और सिख अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न जारी है। हाल ही में लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति को तीसरी बार तोड़ दिया गया। जबरन शादी और धर्मांतरण, मंदिरों, गुरुद्वारों और सांस्कृतिक विरासतों पर हमले की घटनाएं हो रही हैं। पाकिस्तान सरकार ऐसे हमलों को रोकने में पूरी तरह से नाकाम है। इससे अल्पसंख्यक भय के माहौल में जीने को मजबूर है। इसका नतीजा है पाकिस्तान में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी, जो 2011 में घटकर 3 प्रतिशत हो गई। वहीं बांग्लादेश में उत्पीड़न की वजह से 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो 2011 में घटकर 7 प्रतिशत हो गई।

2022 में सीएए बनेगा ‘मोदी कवच’

नागरिकता संशोधन कानून अभी तक लागू नहीं किया गया है। लेकिन इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिंदू, जैन, बौद्ध, पारसी, सिख और ईसाई अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जो 2014 से पहले छह सालों से भारत में रह रहे थे। सीएए को 12 दिसंबर, 2019 को नोटिफाई किया गया था और 2020 में ये कानून का रूप ले चुका है। लेकिन लोकसभा और राज्यसभा की कमेटियों से इस कानून के तहत नियम तैयार करने के लिए जनवरी 2022 तक का वक्त मांगा गया है। 

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