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फिर फेक न्यूज फैलाते पकड़ा गया ‘द प्रिंट’, हिंदुओं को बदनाम करने के लिए शेयर किया फर्जी वीडियो, मुस्लिमों का कब्रिस्तान तबाह करने का लगाया आरोप

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तथाकथित सेक्युलर और बुद्धिजीवी मीडिया और इससे जुड़े लोग हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं। इस मामले में द प्रिंट न्यूज बेवसाइट काफी आगे हैं। ‘द प्रिंट’ के स्तंभकार सीजे वेरलेमैन ने 1 सितंबर, 2021 को ट्विटर पर बिना तारीख वाली वीडियो साझा की। साथ ही दावा किया कि हिंदुओं के एक समूह ने नाथन में मुस्लिमों के कब्रिस्तान को बर्बाद कर दिया। उन्होंने लिखा, “कट्टरपंथी हिंदुओं ने भारत के नाथन में एक मुस्लिम कब्रिस्तान को तबाह कर दिया।”

इसी ट्वीट के बाद हिंदुओं को बदनाम करने के लिए इस वीडियो को शेयर किया जाने लगा। अब्दुल हमीद लोन ने कहा, “हिन्दू कट्टरपंथियों ने भारत के नाथन में एक मुस्लिम कब्रिस्तान को अपवित्र और नष्ट कर दिया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह एक बड़ा प्रश्नचिह्न है कि भारत दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप में किस ओर जा रहा है और आप सभी चुप हैं।”

न्यूज एजेंसी मुस्लिम मिरर ने लिखा, “हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के नग्गर तहसील के नाथन गाँव में पुलिस की मौजूदगी में हिन्दू कट्टरपंथियों ने एक मुस्लिम कब्रिस्तान को बर्बाद कर दिया।”

जब इस वायरल हो रहे वीडियो और सीजे वेरलेमन के दावे की सच्चाई पता की गई, तो वो झूठा निकला। दरअसल वीडियो में दिखाई दे रहा स्था्न कब्रिस्तान ना होकर मजार है, जिसे जीमन पर अवैध कब्जा कर बनाया गया था। हिमाचल प्रदेश में हिंदू जागरण मंच के महासचिव कमल गौतम ने भी इसी वीडियो को ट्विटर पर शेयर किया था। उन्होंने बताया था कि हिंदू जागरण मंच की सिरमौर इकाई ने “इस्लामिक जिहादियों द्वारा नाहन में भूमि जिहाद एजेंडे के तहत निर्मित एक अवैध मजार को उखाड़ फेंका था।” उन्होंने आगे कहा, “जिहादी मेडिकल कॉलेज नाहन के पास भूमि पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे थे।”

एचजेएम के प्रदेश सचिव मनब शर्मा का कहना है कि रात में ही कुछ लोगों ने मजार बनाने के लिए निर्माण सामग्री इकट्ठी की थी। हालांकि, प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी जानकारी मिलने के बाद प्रशासन और पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में अवैध निर्माण को हटा दिया गया। इसलिए, वीडियो में प्रशासन और पुलिस के पूर्ण सहयोग से हिंदू जागरण मंच द्वारा एक अवैध मजार को ध्वस्त करते हुए दिखाया गया है। ऐसे में द प्रिंट के पत्रकार का ‘हिंदुत्व कट्टरपंथियों’ द्वारा नष्ट किया गया मुस्लिम कब्रिस्तान का दावा पूरी तरह से झूठा है।

आइए देखते हैं द प्रिंट और इस्लामिक विचारधारा से प्रभावित सीजे वेरलेमैन इससे पहले कब-कब फर्जी खबरें प्रकाशित कर चुके हैं…

वो वीडियो देखें, जिसे शेखर गुप्ता ने प्राइवेट कर दिया

प्रोपगेंडा पत्रकार शेखर गुप्ता ने अपने वीडियो शो ‘Cut The Clutter’ के जरिए फेक न्यूज फैलाने की कोशिश की, लेकिन पोल खुल जाने पर वीडियो को प्राइवेट कर दिया। कांग्रेसी झुकाव वाले इस पक्षकार ने निष्पक्षता की आड़ में लोगों के बीच गलत जानकारी परोसने की कोशिश की। पूरी दुनिया को पता है कि ब्लूम्सबरी इंडिया पब्लिकेशन ने इस्लामी कट्टरपंथियों और लेफ्ट लिबरलों के दबाव में आकर दिल्ली दंगों पर आधारित करीब-करीब छप चुकी किताब ‘दिल्ली रायट्स 2020: द अनटोल्ड स्टोरी’ को छापने से इनकार कर दिया। लेकिन खुद को कथित सेकुलर-लिबरल बताने वाले ‘द प्रिंट’ के इस संस्थापक ने इसके लिए तीन लेखकों को संजीव सान्याल, डॉ. आनंद रंगनाथन और संजय दीक्षित को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। जबकि सच्चाई यह है कि मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितलकर और प्रेरणा मल्होत्रा की किताब ‘Delhi Riots 2020: The Untold Story’ ना छापने पर ब्लूम्सबरी पब्लिकेशन के खिलाफ इन्हीं लोगों ने आवाज उठाई थी।

शेखर गुप्ता ने अपने वीडियो में कहा कि ब्लूम्सबरी से संजीव सान्याल, डॉ. आनंद रंगनाथन और संजय दीक्षित ने अपनी कई किताबें प्रकाशित करवाई हैं इन्होंने उसके साथ अपने संबंध तोड़ने की धमकी दी। प्रोपेगेंडा पक्षकार शेखर गुप्ता ने अपने वीडियो में इन लेखकों के जिस ट्वीट का इस्तेमाल किया वो किताब छापने से इनकार करने के फैसले के बाद का था। इस वीडियो के बाद इन लेखकों ने शेखर गुप्ता पर गलत जानकारी देने, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर सामने रखने और ट्वीट को गलत तरीके से पेश करने के लिए कोर्ट में ले जाने की चेतावनी दी। इसके बाद अपनी चोरी पकड़ने जाने पर शेखर गुप्ता ने यूट्यूब पर अपलोड वीडियो को तुरंत ‘प्राइवेट’ मोड में कर दिया। पब्लिक से प्राइवेट होने पर लोग अब इस वीडियो को यूट्यूब पर नहीं देख सकते।

आप देखिए वीडियो का वो हिस्सा जिसमें पक्षकार शेखर गुप्ता ने ब्लूम्सबरी इंडिया पब्लिकेशन को दोषी ठहराने की जगह ब्लूम्सबरी के फैसले के खिलाफ किताब के समर्थन में आए लोगों को ही दोषी ठहराने की कोशिश की-

 

शेखर गुप्ता ने माना वे निष्पक्ष नहीं हैं

खुद को निष्पक्ष बताने वाले प्रोपगेंडा पत्रकार शेखर गुप्ता ने आखिर मान लिया कि वे निष्पक्ष नही हैं। शेखर गुप्ता ने अपने मीडिया समूह ‘द प्रिंट’ के तीन साल पूरे होने पर आयोजित एक यूट्यूब कार्यक्रम में माना कि अगर कोई भी पत्रकार दावा करता है कि वह निष्पक्ष है तो वह झूठ बोल रहा है। आखिर पत्रकार बनने से पहले वह इंसान था इसलिए कैसे निष्पक्ष हो सकता है। उन्होंने साफ कहा कि हम इंसान हैं और हम निष्पक्ष नहीं हो सकते हैं। हम न तो कोई मशीन हैं और न ही कोई रोबोट हैं। हम हर पांच साल में मतदान करने जाते हैं और किसी न किसी राजनीतिक दल को अपना वोट देते हैं। हर व्यक्ति की अपनी कोई न कोई राजनीतिक विचारधारा होती है। ऐसे में निष्पक्षता का दावा सही नहीं हो सकता है।

Asianet News ने खोली शेखर गुप्ता की पोल

शेखर गुप्ता फेक न्यूज फैलाने के लिए कुख्यात हैं। इसी महीने अगस्त, 2020 में उन्होंने गलत खबर फैला कर कर्नाटक सरकार और बेंगलुरु पुलिस को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन Asianet News ने शेखर गुप्ता की पोल खोल दी।

दरअसल, शेखर गुप्ता ने एक पत्र जारी किया जिसमें लिखा गया कि 11 अगस्त को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में खबर करने गए कारवां के पत्रकारों के साथ बदसलूकी की गई और उसी दिन बेंगलुरु में खबर कवर कर रहे इंडिया टुडे, द न्यूज मिनट और सुवर्ण न्यूज 24X7 के पत्रकारों पर सिटी पुलिस द्वारा हमला किया गया। ये सभी पत्रकार उस समय ड्यूटी पर थे। ये दोनों घटनाएं निंदनीय है।  

शेखर गुप्ता के इस पत्र को Asianet News (सुवर्ण न्यूज) ने गलत बताते हुए कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। उनके पत्रकारों पर हमला बेंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा नहीं बल्कि उन्मादी भीड़ द्वारा किया गया और उनके पत्रकारों को पिटा गया। उसके तीन रिपोर्ट्स घायल हैं और इस संबंध में बेंगलुरु में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।   

पूर्व मेजर जनरल के नाम पर झूठ फैलाते पकड़े गए शेखर गुप्ता
प्रोपगेंडा पक्षकार शेखर गुप्ता ने 23 जुलाई,2020 को द प्रिंट में Dropping lightweight tanks in Ladakh not enough. India’s forces need to be made more lethal शीर्षक से एक आर्टिकल प्रकाशित किया। द प्रिंट में दावा किया गया कि पूर्व मेजर जनरल बीएस धनोआ का कहना है कि लद्दाख में सिर्फ हल्के टैंक तैनात करना पर्याप्त नहीं है, यहां सेना को और अधिक घातक बनाने की जरूरत है। चीन के साथ तनाव के बीच वेबसाईट व्यूज बढ़ाने के लिए शेखर गुप्ता ने इस फेक न्यूज का सहारा लेकर सनसनी फैलाने की कोशिश की। फेक न्यूज फैलाने में माहिर शेखर गुप्ता ने ORF की वेबसाइट पर एक दिन पहले प्रकाशित बीएस धनोआ के आलेख Why Ladakh needs tanks को टाइटल बदलकर अपने यहां प्रकाशित किया। और ट्वीट कर सरकार को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन बीएस घनोआ ने उन्हें तगड़ी फटकार लगाई।

द प्रिंट का पाखंड- हर हाल में मोदी विरोध है इनका एजेंडा
शेखर गुप्ता अपनी वेबसाइट द प्रिंट से अक्सर इस तरह का नैरेटिव पेश करने की कोशिश करते है कि लोगों के मन में मोदी सरकार के प्रति गलत धारणा पैदा हो। ‘द प्रिंट’ में 2 मई, 2020 को कोरोना को लेकर प्रकाशित खबर में कहा गया कि स्थिति सामान्य है, फिर भी सब कुछ बंद है, लॉकडाउन है।

इसी द प्रिंट ने 9 जून को लिखा कि देश को बहुत जल्द अनलॉक किया जा रहा है।

एक जगह लॉकडाउन करने का विरोध, दूसरी जगह लॉकडाउन में राहत देने का विरोध। हर हाल में मोदी विरोध ही इनका एजेंडा है। क्या आपने इससे बड़ा पाखंडी देखा है-

इसके पहले प्रोपगेंडा पत्रकार शेखर गुप्ता ने 30 मार्च को वेबसाइट ‘द प्रिंट’ से फेक न्यूज फैलाने की कोशिश की। द प्रिंट में दावा किया गया कि मोदी सरकार कोरोना वायरस लॉकडाउन को 14 अप्रैल के बाद भी कुछ हफ्तों के लिए बढ़ा सकती है। ‘Modi govt could extent coronavirus lockdown by a week a migrant exodus triggers alarm’ शीर्षक की ‘एक्सक्लूसिव’ रिपोर्ट में कहा गया कि दिल्ली एनसीआर से पलायन संकट के कारण लॉकडाउन को एक हफ्ते बढ़ाया जा सकता है।

प्रसार भारती ने इस बारे में जब इस दावे पर सरकार से बात की तो कहा गया कि इस तरह की कोई योजना नहीं है और ये सरासर गलत खबर है।

कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने कहा कि लॉकडाउन बढ़ाने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि केंद्र सरकार के पास अभी ऐसी कोई योजना नहीं है। ऐसी खबरों को देखकर हैरानी होती है। सरकार की अभी लॉकडाउन बढ़ाने की कोई योजना ही नहीं है।


द प्रिंट इससे पहले भी कई बार फेक खबर फैलाने की कोशिश कर चुकी है। इस फेक न्यूज को लेकर जब थू-थू होने लगी तो प्रिंट ने अपनी खबर वेबसाइट से डिलीट कर दी।

‘द प्रिंट’ का एक और कारनामा
द प्रिंट ने Hindi news anchors such as Rubika Liyaquat and Sayeed Ansari are like Muslim leaders of BJP हेडलाइन से एक खबर प्रकाशित की। इस लेख के जरिए समाज को धर्म और जाति के नाम पर बांटने की भरपूर कोशिश की गई।

लेख की शुरूआत में लिखा गया कि कोरोना वायरस महामारी के दौर में न्यूज मीडिया के लिए रिपोर्टिंग करना एक मुश्किल और जोखिम भरा काम है। इसमें संक्रमण होने का पूरा खतरा है, फिर भी कई रिपोर्टर जान जोखिम में डालकर अपनी पेशेवर जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन पत्रकारिता के पेशे में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी जान तो जोखिम में नहीं डाल रहे हैं लेकिन वे हर दिन पेशेवर कारणों से अपनी अंतरात्मा, अपने जमीर और वजूद को खतरे में डाल रहे रहे/रही हैं और उसे बचाने की कोशिश कर रहे/रही हैं या मान चुके/चुकी हैं कि ये मुमकिन नहीं है। 

इस लेख में ये कहने की कोशिश की गई है कि आखिर मुसलमान होते हुए भी रोमाना इसार खान, रुबिका लियाकत और सईद अंसारी जैसे मुस्लिम एंकर्स कैसे अपने ही समुदाय को खबरें प्रसारित कर निंदा करते हैं और कहीं न कहीं ये सब ये लोग मजबूरी में करते हैं। 

द प्रिंट की इस खबर का रुबिका लियाकत ने तीखी निंदा की है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि मुझे विक्टिम कार्ड वाले एजेंडा में फ़िट न पा कर, भाई लोगों को काफी दुख हो रहा है। मुसलमानों को मुख्यधारा से अलग ऐसे रखा जाता है। हिंदुस्तान में मुसलमान ख़ुद को बेचारा और डरा हुआ बताए तभी इन जैसों का हीरो बना पाता है। @ThePrintIndia अपनी दुकान कहीं और सजाना..

एएनआई की पत्रकार स्मिता प्रकाश ने भी इस लेख की निंदा की है और लिखा है कि आगे क्या? हिन्दू एंकर, जैन एंकर, बौद्ध एंकर, सिख एंकर और फिर इसके बाद किस जाति के एंकर और फिर नार्थ, साउथ, वेस्ट और ईस्ट इंडिया के एंकर !

 

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