प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त, 2022 को 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए ‘आजादी के अमृत काल’ का जिक्र किया था। उन्होंने अगले 25 साल की यात्रा को देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण करार दिया था और इस अमृत काल में विकसित भारत, गुलामी की हर सोच से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता व नागरिकों द्वारा अपने कर्तव्य पालन के पंच प्रण का आह्वान किया था। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने गुलामी की हर सोच से मुक्ति दिलाने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन देश का एक ऐसा तबका है जो आजादी के 75 साल बाद भी गुलामी की मानसिकता से मुक्त नहीं हुआ हैं। अंग्रेज तो भारत से चले गए लेकिन अपने पीछे गुलाम मानसिकता वाले ऐसे लोगों को छोड़कर गए, जो देश के सर्वोच्च न्यायालय से ज्यादा बीबीसी और विदेशियों की बातों पर भरोसा करते हैं।
भारत की ताकत को कमजोर करना टुकड़े-टुकड़े गिरोह का एकमात्र लक्ष्य
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रीजीजू ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ पर छिड़े विवाद पर कहा कि भारत में अभी भी कुछ लोग औपनिवेशिक नशे से दूर नहीं हुए हैं। वे बीबीसी को सुप्रीम कोर्ट से ऊपर मानते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग अपने नैतिक आकाओं को खुश करने के लिए किसी भी हद तक देश की गरिमा और छवि को कम करने में लगे हैं।’ उन्होंने कहा कि इन लोगों से कोई उम्मीद नहीं है जिनका ”एकमात्र उद्देश्य” भारत को कमजोर करना है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा “वैसे भी इन टुकड़े-टुकड़े गिरोह के सदस्यों से कोई बेहतर उम्मीद नहीं है, जिनका एकमात्र लक्ष्य भारत की ताकत को कमजोर करना है।”
वैसे भी इन टुकड़े-टुकड़े गिरोह के सदस्यों से कोई बेहतर उम्मीद नहीं है, जिनका एकमात्र लक्ष्य भारत की ताकत को कमजोर करना है।
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) January 22, 2023
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने से गुलाम मानसिकता वाले परेशान
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रीजीजू ने यह ट्वीट उन लोगों के लिए किया है, जो बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के आदेश के बाद केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साध रहे हैं। दरअसल मोदी सरकार ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के यूट्यूब और ट्विटर पर उसके लिंक के इस्तेमाल को लेकर रोक लगा दी है। डॉक्यूमेंट्री से जुड़े वीडियो को लेकर करीब 50 ट्वीट किए गए, उन्हें भी ब्लॉक कर दिया गया है। इसके बाद मोदी विरोध में अंधे और गुलामी की मानसिकता वाले लोग डॉक्यूमेंट्री पर पाबंदी लगाने का विरोध कर रहे हैं। वे गुजरात दंगा मामले में प्रधानमंत्री मोदी को सुप्रीम कोर्ट से मिली क्लीन चिट की अनदेखी करते हुए बीबीसी की प्रोपेगैंडा डॉक्यूमेंट्री का समर्थन कर रहे हैं। इनमें कांग्रेस और उसके तथाकथित सेक्युलर-लिबरल सरपरस्त शामिल है, जिन्हें देश की जनता, संविधान और न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है।
केंद्र सरकार ने एक डॉक्यूमेंट्री के लिए बीबीसी की आलोचना की। इसलिए, मोदी असहिष्णु और फासीवादी हैं।
इंदिरा गांधी ने 1970 में 2 साल के लिए बीबीसी पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन वह एक महान लोकतांत्रिक नेता थीं।
आमतौर पर लेफ्ट लिबरल डिज़ाइनर मीडिया और पत्रकारों का पाखंड। #Modi2024 https://t.co/SFILw8mgBf— “संकल्प से सिद्धी” जयहिद! (@vinay9466) January 22, 2023
कांग्रेस को देश के सुप्रीम कोर्ट पर नहीं, बीबीसी पर ज्यादा भरोसा
प्रधानमंत्री मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के विवाद के बीच, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि पार्टी सच्चाई को दबा नहीं सकती। उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी को कुछ पसंद नहीं है, तो वे इसे राष्ट्र-विरोधी करार देते हैं और इसे हटा देते हैं। कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ अपनी लड़ाई में प्रसारकों के समर्थन की जरूरत नहीं है। हमें परवाह नहीं है कि मीडिया हमारे बारे में क्या कहती है। चौधरी ने कहा कि भारत को एक धर्मनिरपेक्ष और अधिक सहिष्णु सरकार की जरूरत है। वहीं कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्विटर पर कहा कि प्रधानमंत्री और उनके ढोल बजाने वालों का कहना है कि उन पर बीबीसी की नई डॉक्यूमेट्री में उनकी बदनामी की गई है। उस पर सेंसरशिप लगाई गई है।
PM and his drumbeaters assert that the new BBC documentary on him is slanderous. Censorship has been imposed. Then why did PM Vajpayee want his exit in 2002, only to be pressurised not to insist by the threat of resignation by Advani? Why did Vajpayee remind him of his rajdharma? pic.twitter.com/wwUkDQvlXi
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 21, 2023
टीएमसी सांसदों ने डॉक्यूमेंट्री पर पाबंदी किया विरोध
तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा और डेरेक ओब्रायन ने रविवार को केंद्र पर निशाना साधते हुए 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी की विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री और प्रधानमंत्री मोदी का लिंक साझा किया और कहा कि हम सेंसरशिप स्वीकार नहीं करेंगे। दोनों सांसदों ने सरकार के निर्देश पर “ब्लॉक” किए गए ट्विटर लिंक की एक सूची भी साझा की। ओ’ब्रायन उन विपक्षी नेताओं में शामिल थे, जिनके डॉक्यूमेंट्री पर किए गए ट्वीट को ट्विटर ने हटा दिया था। मोइत्रा ने ट्वीट किया कि बीबीसी की रिपोर्ट साझा करने के लिए सरकार द्वारा नागरिकों के ट्विटर लिंक ब्लॉक कर दिए गए। टीएमसी सांसद ने कहा कि वह “सेंसरशिप” स्वीकार नहीं करेंगी।
Twitter links of citizens blocked by Govt for sharing @BBC report. @derekobrienmp & @pbhushan1 on it . My link is still up.
सच कहना अगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं pic.twitter.com/2lcwy9Soyb
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) January 22, 2023
मोदी विरोध में अंधे सेक्युलर और लिबरल सुप्रीम कोर्ट को भूले
बीबीसी की इस विवादित डॉक्यूमेंट्री को मोदी विरोध में अंधे और जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह की बात करने वाले वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी शेयर किया था। उन्होंने इस विवादित डॉक्यूमेंट्री को देखने की वकालत की थी। डॉक्यूमेंट्री पर भारत में पबांदी लगाये जाने पर प्रशांत भूषण ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि 2002 के गुजरात दंगों पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री देखकर मोदी सरकार काफी डर गई है। इसलिए #BBCDocumentary के सभी लिंक को सेंसर कर दिया। इसी तरह तथाकथित सेक्युलर और लिबरल पत्रकार विनोद कापड़ी ने भी इस विवादित डॉक्यूमेंट्री को शेयर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी पर निशाना साधा था।
Why is the Modi govt so petrified of people seeing the BBC documentary on the 2002 Gujarat riots, that it censors all links to the #BBCDocumentary. Why don’t they respond to the facts stated there in a civilised manner. Shows they can’t face the truth. They have much to hide
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) January 22, 2023
पीएम मोदी के समर्थन में 300 से ज्यादा दिग्गजों ने लिखा पत्र
उधर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर चल रहे विवाद के बीच, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों और सेवानिवृत्त सशस्त्र बलों के दिग्गजों सहित कम से कम 302 हस्ताक्षरकर्ताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन में शनिवार (22 जनवरी, 2023) को एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में तथ्यात्मक रिपोर्टिंग का अभाव है। पूर्व राजनयिकों ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के बारे में गलत तथ्यों का हवाला देकर, यूके भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने और भारत के साथ संबंधों को खराब करने की कोशिश कर रहा है। बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में कोई तथ्यात्मक रिपोर्टिंग नहीं है। उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की पूरी तरह से अनदेखी की है। सुप्रीम कोर्ट के 452 पन्नों के फैसले ने प्रधानमंत्री मोदी को पूरी तरह से दोषमुक्त कर दिया और बताया कि घटनाएं कैसे हुईं।
Retired judges, retired bureaucrats and retired armed forces veterans co-sign a statement rebutting the BBC documentary ‘Delusions of British Imperial Resurrection?’ pic.twitter.com/XCFROpYzPl
— ANI (@ANI) January 21, 2023
आइए देखते हैं यूपीए के शासनकाल में ही सुप्रीमकोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर उन सभी आरोपों से नरेन्द्र मोदी को बरी कर दिया था, जो उन पर लगाए गए थे…
गुजरात दंगा मामले में पीएम मोदी को सुप्रीम कोर्ट से मिली क्लीन चिट
सत्य को परेशानी एवं कष्टों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वह अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं होता। साजिशें और झूठ कुछ समय के लिए परेशान कर सकते हैं लेकिन वो अधिक समय तक टिक नहीं सकते। आखिरकार उन्हें सत्य से पराजीत होना ही पड़ता है। यह बात सच साबित हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने 2002 गुजरात दंगा मामले में ज़किया जाफरी की याचिका खारिज करते हुए जमकर फटकार लगाई। ज़किया ने SIT की उस क्लोज़र रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसमें गुजरात दंगे की साज़िश के आरोप से तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुक्त कर दिया गया था।
मजिस्ट्रेट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
शुक्रवार (24-06-2022) को जस्टिस ए एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी टी रविकुमार की बेंच ने मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिका में तथ्य नहीं हैं। इसलिए यह अपील आदेश देने योग्य नहीं है। इस टिप्पणी के साथ ज़किया की अपील को कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि मामले में मजिस्ट्रेट का आदेश सही था। उन्होंने सभी पहलुओं को देखने के बाद उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए आदेश दिया था।
न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का प्रयास
सबसे हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने जहां SIT के कामकाज की तारीफ की, वहीं इस मामले को जानबूझकर लंबा खींचने की बात कहकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि कुछ लोगों ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का प्रयास किया, ताकि मामला चर्चा में बना रहे। इस केस में हर उस व्यक्ति की ईमानदारी पर सवाल उठाए गए, जो मामले को उलझाए रखने वाले लोगों के आड़े आ रहा था। कोर्ट ने यहां तक कहा कि अपने निहित स्वार्थ के लिए न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
पीएम मोदी का नाम जुड़ा होने से मामले को खींचा गया
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ज़किया की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बहस की थी। उन्होंने SIT पर सबूतों की अनदेखी का आरोप लगाया था। वहीं SIT की तरफ से मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा था। रोहतगी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता मामले में प्रधानमंत्री मोदी का नाम जुड़ा होने के चलते इसे खींचते रहने की कोशिश कर रहे हैं। रोहतगी ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा था, “अगर इन्हें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई जांच पर भी भरोसा नहीं है, तो क्या अब स्कॉटलैंड यार्ड (ब्रिटिश पुलिस मुख्यालय) की जांच टीम को बुलाने की मांग करना चाहते हैं?”
साजिश, संघर्ष और सत्य
गौरतलब है कि इससे पहले 2012 में मजिस्ट्रेट और 2017 में हाई कोर्ट SIT की क्लोज़र रिपोर्ट को मंजूरी दे चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में दंगों की जांच के लिए पूर्व सीबीआई निदेशक आर के राघवन के नेतृत्व में SIT का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद SIT ने दंगों की व्यापक साज़िश के पहलू की जांच की। मुख्यमंत्री मोदी से भी अपने कार्यालय में बुला कर पूछताछ की। 2012 में SIT ने मजिस्ट्रेट के पास क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दी। SIT ने मोदी समेत 63 लोगों के साज़िश में हिस्सेदार होने के आरोप को गलत पाया। दंगों में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया ने मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस रिपोर्ट के खिलाफ प्रोटेस्ट पेटिशन दाखिल की थी। इसके बाद लंबी कानूनी प्रक्रिया के तहत साजिशों का अंत हुआ और सत्य की जीत हुई।