चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इन दिनों में बिहार में राजनीति के प्रति जागरूकता लाने के लिए पदयात्रा कर रहे हैं। हर दिन लोगों से मिलते हैं और बात करते हैं। बीजेपी, आरजेडी, कांग्रेस सबके किए गए कामों की चर्चा करते हुए लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि जात-पात को देखकर नेता मत चुनें। इसी पदयात्रा के क्रम में उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव पर निशाना साधा। राहुल गांधी पर तंज कसते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि वह कांग्रेस के बड़े नेता हैं। आपके बाबू जी की पार्टी है तो कोई भी नेता बन जाएगा। इसी तरह उन्होंने तेजस्वी यादव के बारे में कहा कि उसकी क्या पहचान है? वो नौंवी फेल आदमी है। क्रिकेट खेलने गए तो वहां पानी ढोते थे। लालू के लड़के हैं इसलिए सब लोग जानते हैं। अब इसे लेकर लालू यादव की बेटी और तेजस्वी की बहन रोहिणी आचार्य को मिर्ची लग गई। दरअसल कांग्रेस और लालू यादव की पार्टी परिवारवाद को ही बढ़ावा देती है, इसीलिए इन्हें सच सुनना पसंद ही नहीं आता।
राहुल गांधी की योग्यता क्या है, बाबू जी दुकान है मालिक बन गए
चुनावी रणनीतिकार ने राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा कि राजीव गांधी के लड़के हैं राहुल गांधी इसलिए वह कांग्रेस के बड़े नेता हैं। आपके बाबू जी की पार्टी है तो कोई भी नेता बन जाएगा। बाबूजी की दुकान है तो कोई भी जाकर बैठ जाएगा और मालिक हो जाएगा। इसमें आपकी योग्यता क्या है?
तेजस्वी यादव लालू के लड़के हैं इसलिए सब लोग जानते हैं
प्रशांत किशोर ने अपने बयान में कहा कि तेजस्वी यादव की क्या पहचान है? वो नौंवी फेल आदमी है। क्रिकेट खेलने गए तो वहां पानी ढोते थे। लालू के लड़के हैं इसलिए सब लोग जानते हैं।
“तेजस्वी यादव की क्या पहचान है, वो नौंवी फेल आदमी है, क्रिकेट खेलने गए तो वहां पानी ढोते थे… लालू यादव के लड़के हैं इसलिए सब लोग जानते हैं।”
जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर ने डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर तंज कसा, देखिए। #RJD #TejashwiYadav #Bihar | @PrashantKishor pic.twitter.com/LPMfiQrfFT
— Bihar Tak (@BiharTakChannel) November 16, 2023
रोहिणी आचार्य ने लिखा- प्रशांत किशोर को कोई पहचानता भी है?
तेजस्वी को नौंवी फेल कहते ही उनकी बहन रोहिणी आचार्य को मिर्ची लग गई। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा, “ये है कौन? इसको कोई पहचानता भी है?” रोहिणी आचार्य ने अपने ट्वीट में पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पवन वर्मा, सीएम नीतीश कुमार, राहुल गांधी अभिषेक बनर्जी, जगन रेड्डी, स्टालिन का नाम लेते हुए प्रशांत किशोर का राजनीतिक पिता बता दिया।
कभी राहुल गाँधी इसके बाबूजी , कभी अभिषेक बनर्जी इसके बाबूजी , कभी जगन रेड्डी इसके बाबूजी तो कभी स्टालिन इसके बाबूजी ..
अभी फिर से इसने सबसे पहले वालों को अपना बाप बना रखा है सिर्फ नाम नहीं उजागर कर पा रहा है..
भाजपा की दलाली करता है इसलिए मीडिया की कृपा दृष्टि इस पर बना रहता है— Rohini Acharya (@RohiniAcharya2) November 17, 2023
लालू के बेटे न होते तो कौन सी नौकरी मिल जाती?
प्रशांत किशोर इससे पहले भी बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर निशाना साध चुके हैं। 25 अप्रैल 2023 को प्रशांत किशोर (पीके) ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के बेटे पर तंज कसते हुए कहा कि अगर तेजस्वी यादव लालू जी के बेटे नहीं होते तो उन्हें कौन सी नौकरी मिल जाएगी देश में? पीके ने कहा था कि तेजस्वी ने कहा था कि पहली कैबिनेट के बाद ही 10 लाख नौकरियां दे देंगे, लेकिन सौ कैबिनेट हो गअ। नौकरी क्यों नहीं मिल रही है, या नहीं मिल रही है तो मांग लो माफी और कह दें कि भाई मैं नहीं दे सकता। ये तो सब जानता है कि जीवन बीत जाएगा वो 10 लाख नौकरी नहीं दे सकते।
#WATCH | “Tejashwi Yadav talked about providing 10 lakh jobs in the first cabinet meeting itself…everyone knows he can’t give 10 lakh jobs. If Tejashwi Yadav was not the son of Lalu Prasad Yadav, what job would he have got in the country?”: Prashant Kishor pic.twitter.com/WMINher3YI
— ANI (@ANI) April 25, 2023
अग्निवीर योजना पर जाति को लेकर फेक न्यूज फैलाया
फेक न्यूज फैलाते हुए तेजस्वी यादव ने जुलाई 2022 में अग्निवीर योजना पर कहा था कि इसमें सरकार धर्म और जाति के आधार पर भर्ती करने की योजना बना रही है। तेजस्वी यादव ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘जात न पूछो साधु की लेकिन जात पूछो फौजी की। संघ की बीजेपी सरकार जातिगत जनगणना से दूर भागती है लेकिन देश सेवा के लिए जान देने वाले अग्निवीर भाइयों से जाति पूछती है। ये जाति इसलिए पूछ रहे हैं, क्योंकि देश का सबसे बड़ा जातिवादी संगठन आरएसएस बाद में जाति के आधार पर अग्निवीरों की छंटनी करेगा।’ सच्चाई यह है भर्ती फॉर्म में जाति संबंधी कॉलम हमेशा से है, इसमें कुछ भी नया नहीं है। लेकिन तेजस्वी यादव थोड़ा भी पढ़े लिखे होते तब पता होता न।
जात न पूछो साधु की
लेकिन जात पूछो फौजी कीसंघ की BJP सरकार जातिगत जनगणना से दूर भागती है लेकिन देश सेवा के लिए जान देने वाले अग्निवीर भाइयों से जाति पूछती है।
ये जाति इसलिए पूछ रहे है क्योंकि देश का सबसे बड़ा जातिवादी संगठन RSS बाद में जाति के आधार पर अग्निवीरों की छंटनी करेगा। pic.twitter.com/31F1JDTd9J
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) July 19, 2022
तेजस्वी ने शपथ लेते ही मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल शुरू कर दिया
अगस्त 2022 में आरजेडी और जेडीयू गठबंधन की सरकार बनते ही बिहार में मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल शुरू हो गया। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने जहां हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए उनके प्रतीक चिन्ह टीका और शिखा पर विवादित टिप्पणी की है, वहीं मुस्लिमों को खुश करने के लिए उर्दू और बांग्ला टीचरों के रिक्त पदों की सूची मांगी गई है।
बिहार के सेक्युलर सरकार के शीर्ष नेताओं ने हिंदू प्रतीक चिन्ह टीका-शिखा पर हमले शुरू कर दिए हैं। pic.twitter.com/k1H2LbBQmV
— Shandilya Giriraj Singh (@girirajsinghbjp) August 12, 2022
एक उपमुख्यमंत्री की सड़कछाप भाषा देखिए, सब ठंडा दिया जाएगा
सत्ता मिलते ही उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की सड़कछाप भाषा देखिए और उसमें में धमकी देखिए। यही वजह है कि राज्य अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। तेजस्वी यादव ने कहा था- “भाजपा के एक केंद्र में मंत्री हैं न जो बिहार में खेला करना चाह रहे थे महाराष्ट्र वाला वो जरा लाइन में रहें सबके ठंडा दिया जाएगा। इधर-उधर जो कर रहे हैं न, जिनका सपना टूटा है न मुख्यमंत्री बनने का वो समझ जाएं, ज्यादा ख्वाब न देखें। दिल्ली वाले नहीं बचा पाएंगे। ये बिहार है।”
एक सूबे के उपमुख्यमंत्री जब ऐसी सड़कछाप भाषा में धमकी दे तो अन्य अपराधियों के हौसलें बुलंद होना जायज़ बात है फिर तो , ख़ैर इन्हें चाहे जितना बड़ा जिम्मेदारी का पद क्यों न मिले , रहेंगे ये बैल बुद्धि ही ! pic.twitter.com/uDIMxbsyt5
— NIK’HILL (@zeqlouu) August 26, 2022
अब देश परिवारवाद की राजनीति से मुक्त होने को छटपटा रहा है। ठाकरे और शरद पवार का किला ढह चुका, अब अन्य की बारी है। इस पर एक नजर –
परिवारवाद की राजनीति अब नहीं चलेगी, ठाकरे और पवार परिवार का किला ढहा!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 76वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ पूरी ताकत से निर्णायक लड़ाई लड़ने का संकल्प व्यक्त किया था। परिवारवाद की राजनीति देश के विकास में सबसे बड़ी बाधक है। इसे देश की जनता अब समझने लगी है। यही वजह है देश की राजनीति भी करवट लेने लगी है। इसकी शुरुआत महाराष्ट्र से हो चुकी है। पहले ठाकरे परिवार और फिर पवार परिवार का किला ढह रहा है और वहां की राजनीति एक नई इबारत लिख रही है। महाराष्ट्र में बाला साहब ने अपनी पार्टी शिवसेना की कमान उद्धव के हाथ में दी थी लेकिन उनमें अपने पिता के समान राजनीतिक और नेतृत्व के गुण बिलकुल भी नहीं थे। इसी तरह शरद पवार ने अपनी पार्टी एनसीपी की कमान अपनी बेटी सुप्रिया सुले देने की चाल चली और भतीजे अजित पवार को उपेक्षित छोड़ दिया। इसका नतीजा सामने है कि उद्धव ठाकरे के हाथ से निकलकर पार्टी एकनाथ शिंदे के पाले में और शरद पवार के हाथ से निकलकर अजित पवार के पाले में चली गई।
योग्य नेताओं को उपेक्षित कर मिला था उद्धव को शिवसेना की कमान
उद्धव के हाथ में शिवसेना की कमान बाला साहब ने भी इस कारण दी कि उनके दो और बेटों में से एक की पहले ही दुर्घटना में मौत हो गई थी और मझले बेटे ने बाप से बगावत कर दी थी। उनकी तुलना में उद्धव जरा शांत स्वभाव के हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनमें पिता के समान राजनीतिक और नेतृत्व के गुण भी हों। इस तरह बाला साहब ने एक तरह से अन्य योग्य नेताओं की उपेक्षा ही की थी। पिता के नाम का जाप (जिसे उद्धव के दाएं हाथ संजय राउत ने ‘बाप के नाम पर वोट मांगना’ कहा था) उद्धव की राजनीतिक विवशता बन गई थी। उनका कार्यकर्ताओं से न तो वैसा सम्पर्क है और न ही भाषण में वह ओज था जो कि बाला साहेब के भाषण में हुआ करता था। इस तरह शिवसैनिकों को लगा कि पार्टी में उनका करियर ‘सेवक’ के ऊपर नहीं है। कोई सर सेनापति कभी नहीं बन सकता क्योंकि यह पद तो ठाकरे परिवार के लिए आरक्षित है। तो फिर आम शिव सैनिक या छोटे सरदार क्या करें? तकरीबन यही स्थिति देश में हर उस पार्टी में है, जो व्यक्ति केन्द्रित है। वहां विचार है भी तो व्यक्तिवाद की छाया में ही है।
राजनीति के दिग्गज शरद पवार को भतीजे से मिली पटखनी
राजनीति के दिग्गज शरद पवार ने हाल ही में एनसीपी में फेरबदल किया। उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को नई जिम्मेदारी देते हुए कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। इसके बाद से खबरें आ रहीं थीं कि अजित पवार इससे नाराज हैं। इसके बाद से बगावत के सुर सुनाई पड़े और आखिरकार जो हुआ वह सबके सामने है। सबसे आश्चर्य की बात है कि राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले शरद पवार को कानोकान खबर नहीं पड़ी। कुछ लोग राजभवन पहुंच रहे हैं, इस बारे में असलियत का पता लगाने के लिए शरद पवार ने जिन दिलीप वसले पाटील को फ़ोन किया, कुछ देर बाद पता चला कि खुद पाटील ने भी मंत्री पद की शपथ ले ली है। बताया जाता है कि अजित सुप्रिया सुले को नई जिम्मेदारी देने से ही नाराज नहीं थे बल्कि इस बात से भी नाराज थे कि जिस प्रकार शरद पवार ने पटना में विपक्षी बैठक में विपक्षी एकता बैठक में मंच साझा किया और राहुल गांधी के साथ सहयोग करने का फैसला किया। विधायकों का कहना है कि ये शरद पवार का एकतरफा फैसला था। इस बात को लेकर भी अजित पवार के समर्थन वाले विधायक नाराज थे।
नेहरू-गांधी परिवार ने परिवारवादी राजनीति की नींव रखी
देश पर 70 सालों तक शासन करने वाले नेहरू-गांधी परिवार ने खुद को एक तरह से ‘प्रथम परिवार’ के रूप में स्थापित कर देश की राजनीति को परिवारवाद की राजनीति करने की एक गलत दिशा दी। और अब तो यह कई राज्यों में फैल चुकी है। बिहार में लालू प्रसाद यादव से लेकर उत्तर प्रदेश में दिवंगत मुलायम सिंह यादव से होते हुए अखिलेश यादव तक और मायावती, झारखंड में शिबू सोरेन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, जम्मू-कश्मीर में फारुक अब्दुला और महबूबा मुफ्ती, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर रेड्डी, तेलंगाना में केसीआर, महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु में दिवंगत एम.करुणानिधि से होते हुए एम.के. स्टालिन तक और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल तक फैल चुकी है। केजरीवाल के परिवार का सदस्य हालांकि फिलहला कोई राजनीति में नहीं है लेकिन जिस तरह से 2013 से लेकर अब तक पार्टी के संयोजक बने हुए हैं, यह परिवारवाद का ही एक संकेत है।
केजरीवाल के अलावा कोई और AAP का संयोजक बन पाएगा?
आम आदमी पार्टी के गठन के समय जो संविधान पार्टी ने बनाया था, उसके मुताबिक़ दो बार से ज़्यादा एक व्यक्ति पार्टी का संयोजक नहीं बन सकता था। लेकिन पार्टी का संयोजक तो तीसरी बार भी केजरीवाल को ही बनना था इसीलिए पिछले साल हुए पार्टी के संविधान को बदल दिया गया। और फिर केजरीवाल को तीसरी बार संयोजक चुन लिया गया। यही नहीं पहले संयोजक का कार्यकाल तीन साल के लिए होता था अब इसे पांच साल के लिए कर दिया गया। आम आदमी पार्टी का गठन 2012 में हुआ था और तब से अब तक अरविंद केजरीवाल ही पार्टी के संयोजक बने हुए हैं। आम आदमी पार्टी के अंदर इस बात को लेकर बग़ावती सुर दिख नहीं रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि सब इस फ़ैसले से ख़ुश हों। आम आदमी पार्टी में संयोजक का पद वैसे ही है जैसा दूसरी पार्टियों में राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद। पार्टी के संयोजक पर ही पार्टी को चलाने की ज़िम्मेदारी होती है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि केजरीवाल ही तीसरी बार पार्टी के संयोजक क्यों चुने गए। अगर उनके अलावा कोई और भी पार्टी का संयोजक बनता तो क्या अरविंद केजरीवाल की छवि या ताक़त पार्टी में कम हो जाती? केजरीवाल क्या कह कर राजनीति में आए थे और आज कर क्या रहे हैं।
क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में एक ही परिवार का वर्चस्व
ऐसा भी नहीं है कि आम आदमी पार्टी अकेली राजनीतिक पार्टी है, जिसमें एक नेता पिछले 10 साल से सर्वोच्च पद पर बैठा हो। कांग्रेस पार्टी में भी सर्वोच्च पद गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा। समाजवादी पार्टी में भी यादव परिवार का ही वर्चस्व है, बहुजन समाज पार्टी में भी मायावती ही सत्ता के केंद्र में रहती है, इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल में लालू यादव, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी शरद पवार और तेलंगाना राष्ट्र समिति (भारतीय राष्ट्र समिति) में केसीआर का वर्चस्व रहता आया है।
क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद से राज्य और देश का विकास प्रभावित
जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार राज्य के प्रथम-परिवार बन गए। उत्तर प्रदेश में मुलायम और मायावती परिवार, बिहार में लालू यादव परिवार। इसी तरह कर्नाटक में देवगौड़ा परिवार, महाराष्ट्र में ठाकरे एवं पवार परिवार, तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी परिवार, तेलंगाना में केसीआर परिवार, आंध्र में नायडू एवं वाइएसआर परिवार ने अपनी-अपनी पार्टियों को पारिवारिक कंपनियों में बदल दिया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पार्टियों में ख़त्म होता लोकतंत्र आज देश के लिए सबसे बड़ी चिंताजनक बात है। पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र न होने और परिवारवाद की वजह से भ्रष्टाचार इन पार्टियों की सरकार में चरम पर है। पश्चिम बंगाल में ममता सरकार पर नियुक्तियों के मामले में एक के बाद भ्रष्टाचार के आरोप लगते जा रहे हैं। इसी तरह बिहार में लालू यादव के शासनकाल में चारा घोटाला से लेकर तमाम घोटाले सामने आए थे। उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के दौरान उनके छोटे भाई आनंद कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इसी तरह अब तेलंगाना में केसीआर परिवार पर तमाम तरह के आरोप लग रहे हैं।
उत्तर प्रदेश ने वंशवादी राजनीति को नकार दिया
क्षेत्रीय दलों में परिवारवाद की बात करें तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश ने वंशवादी राजनीति को पिछले विधानसभा चुनाव में नकार दिया था और समूचे देश के लिए एक बड़ा संकेत है। अब इसके बाद पश्चिम बंगाल की बारी है जहां भ्रष्टाचार की वजह से ममता का किला दिनों दिन ढहता जा रहा है। इससे लगता है कि अगले विधानसभा चुनाव में जनता ममता सरकार को उखाड़ फेंकेगी। वहीं बिहार में भी लोग जंगलराज और परिवारवाद त्रस्त आ चुके हैं और अगले विधानसभा चुनाव में राजद का वोट शेयर एवं सीटों की संख्या कम होने की बात कही जा रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजद को 23 फीसदी जबकि भाजपा को 19.5 पर्सेंट वोट मिले हैं। इसी तरह तेलंगाना में केसीआर ने अपनी सरकार में अपने बेटे और बेटी को मंत्रालय सौंप रखा है जिसके खिलाफ भी जनता में काफी गुस्सा है।
मुलायम परिवार: फूट से पार्टी हुई कमजोर, पार्टी को मिली लगातार हार
उत्तर प्रदेश की सियासत के दिग्गज खिलाड़ी माने जाने वाले दिवंगत मुलायम सिंह यादव का परिवार इन दिनों सियासी संकट से जूझ रहा है। यूपी के दिग्गज नेता और पिता मुलायम सिंह यादव से कमान हासिल करने के बाद अखिलेश यादव की पार्टी लगातार हार का सामना कर रही है। साल 2014, 2017, 2019 और 2022 में पार्टी लगातार पराजित हुई है। इसके पीछे कहीं न कहीं परिवारवाद का मुद्दा सामने आ रहा है।
मायावती परिवार: बसपा शासन में चलता था आनंद कुमार का सिक्का
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के भाई आनंद कुमार नोएडा में क्लर्क की नौकरी में थे। इसी बीच मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तो आनंद कुमार पार्टी में पर्दे के पीछे सक्रिय हो गए। इसी तरह से आनंद कुमार के बेटे आकाश आनंद का नाम भी बसपा में सभी की जुबान पर आ गए। आनंद कुमार की चर्चा मायावती की राजनीति चमकने के साथ चौतरफा फैली। प्रदेश में 2007-12 के बसपा शासनकाल में आनंद का दबदबा सर्वाधिक रहा। हालांकि राजनीति से उनका सीधा सरोकार नहीं रहता था परंतु बेहिसाब धन कमाने को लेकर तमाम आरोप लगे। दर्जनों कंपनियों में भागेदारी के साथ आनंद कुमार को बड़ी बहन मायावती का दाहिना हाथ माना जाता था। कई मामलों में आरोपित आनंद एक समय में नोएडा प्राधिकरण में सामान्य क्लर्क हुआ करते थे। उन पर फर्जी कंपनी बनाकर करोड़ों रुपये लोन लेने और पैसे को रियल एस्टेट में निवेश कर मुनाफा कमाने का भी आरोप है। इससे पहले भी वर्ष 2017 में पहली बार बसपा उपाध्यक्ष बनने से पहले आनंद कुमार पार्टी के सार्वजनिक कार्यक्रमों से हमेशा दूर ही रहते थे। उनको न कभी पार्टी मंच पर बुलाया जाता था और न ही वह राजनीति को लेकर कोई बयान देते थे। उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ति के बाद उन्हें मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर माना जाने लगा था।
बादल परिवार: सत्ता से जमानत जब्त तक
कभी एनडीए के साथ मिलकर पंजाब में शासन करने वाले बादल परिवार के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल अब संकट से जूझ रहा है। परिवार और पार्टी के मुखिया प्रकाश सिंह बादल ने यहां एक दशक तक मुख्यमंत्री के तौर पर शासन किया। अब हाल ऐसे हुए कि संगरूर उपचुनाव में पार्टी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई। वहीं, विधानसभा चुनाव में विक्रम सिंह मजीठिया समेत कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा।
केसीआर परिवारः 5 लोग सरकार में, छठे को लाने की तैयारी
तेलंगाना में केसीआर की सरकार में परिवारवाद हावी है। केसीआर के परिवार के 5 लोग अभी सरकार में हैं। ऐसी पारिवारिक पार्टियां अपने परिवार से बाहर नहीं सोच सकतीं। केसीआर परिवार के पांच सदस्य पहले से ही पार्टी की राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल हैं और प्रमुख पदों पर हैं। केसीआर के बेटे मंत्री और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं, जबकि बेटी कविता एमएलसी हैं। केसीआर के भतीजे जोगिनापल्ली संतोष कुमार राज्यसभा सांसद हैं। एक अन्य करीबी रिश्तेदार बोयिनपल्ली विनोद हैं, जो राज्य के योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं। अब केसीआर के बड़े भाई रंगाराव के बेटे चुनावी राजनीति में उतर सकते हैं। इन दिनों, वह लगभग हमेशा केसीआर के साथ उनके दौरों और बैठकों में देखे जाते हैं। वह फार्महाउस पर भी नियमित रूप से आते हैं। ऐसी भी खबरें हैं कि केसीआर जिले के किसी निर्वाचन क्षेत्र से रंगा राव के बेटे को मैदान में उतारने के लिए अविभाजित मेडक जिले के नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं।
ममता परिवारः तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से बनर्जी परिवार की संपत्ति बेहिसाब बढ़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 5 भाइयों और एक भाभी पर आय से ज्यादा संपत्ति जमा करने के आरोप हैं। कोलकाता हाईकोर्ट में लगी पिटीशन के मुताबिक 2011 में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से बनर्जी परिवार की संपत्ति बेहिसाब बढ़ी। पिटीशन में कहा गया है कि कोलकाता की हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर ज्यादातर प्रॉपर्टी बनर्जी परिवार की हैं। ममता की भाभी कजरी बनर्जी पर कई प्रॉपर्टी मार्केट रेट से कम कीमत में खरीदने का आरोप है। भतीजे अभिषेक बनर्जी कई कंपनियों में डायरेक्टर हैं। हालांकि, ममता का कहना है कि नातेदारों से मेरा कोई मतलब नहीं है। कोई भी मेरे साथ नहीं रहता। जबकि उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी को अब पार्टी में नंबर दो माना जाने लगा है।
नेहरू-गांधी परिवार ने देश पर थोपा था परिवारवाद
भारतीय राजनीति पर परिवारवाद थोपने का श्रेय नेहरू-गांधी परिवार को जाता है। कांग्रेस में जिस परिवारवाद का बीज गांधी परिवार ने बोया था, वह बीज कांग्रेस की जगह लेनी वाली तमाम क्षेत्रीय पार्टियों में वटवृक्ष बन गया। इस प्रकार परिवारवाद ने योग्यता और आंतरिक लोकतंत्र का अपहरण कर लिया। कांग्रेस के नेताओं ने सत्ता में बने रहने के लिए एक ही परिवार का गीत गाने में समय बिताया जिसका नतीजा यह हुआ कि देश का विकास प्रभावित हुआ। आजादी के 70 साल बाद देश में साक्षरता कार्यक्रम चल रहा है तो इसका श्रेय इसी चाटुकारी राजनीति को है। इसी तरह शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं आम आदमी की पहुंच से दूर बनी रहीं। पार्टियों को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाने की जो शुरूआत नेहरू-गांधी परिवार ने की, वह आज भी जारी है, लेकिन जनता ने अब इन्हें नकारने का मन बना लिया है।
परिवारवाद को बढ़ावा देने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की हुई उपेक्षा
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में अर्से से एक ही परिवार का कब्जा है। नेहरू से लेकर उनकी पुत्री इंदिरा गांधी, फिर उनके पुत्र राजीव गांधी, फिर उनकी पत्नी सोनिया गांधी और पुत्र राहुल गांधी का परिवार ही कांग्रेस का नीति-नियंता है। सोनिया गांधी लंबे समय से पार्टी की मुखिया हैं। कांग्रेस ने वंशवाद की वजह से कई प्रतिभाशाली दिग्गज नेताओं की उपेक्षा की। सरदार पटेल से लेकर बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी सरीखे दिग्गजों ने कांग्रेस को एक आंदोलन के रूप में चलाया, लेकिन स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने उन्हें भुला दिया। इसी तरह स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की सरकारों में जिस किसी नेता का कद ऊंचा होने लगता उसे बाहर का रास्ता दिखा जाता था।
पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद परिवारवाद का सूरज ढलने लगा
वर्ष 2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के साथ देश से वंशवाद की राजनीति का सूरज अस्त होना प्रारंभ हो गया है। मोदी के कुशल नेतृत्व, भ्रष्टाचार रहित और जन-केंद्रित शासन ने जाति और तुष्टीकरण की राजनीति पर जीत हासिल करनी शुरू कर दी है। वंशवाद की राजनीति का मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कई राजनीतिक और शासन संबंधी प्रयोग भी किए हैं। भ्रष्टाचार रोकने के लिए जनकल्याणकारी योजनाओं को जनधन-आधार-मोबाइल से जोड़ा। इंटरनेट मीडिया के जरिये सीधे मतदाताओं तक पहुंचना शुरू कर दिया। आज मोदी ने वंशवाद की राजनीति के पैरोकारों को राजनीति को पूर्णकालिक काम की तरह मानने पर बाध्य कर दिया है। कुल मिलाकर मोदी युग में वंशवाद की राजनीति का अंत भी शुरू हो गया है।