साल 2008 में दिल्ली के निजामुद्दीन थाने में मौलाना साद के खिलाफ जमीन हड़पने के मामले को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अगर नहीं दबाया होता तो आज देश भर में कोरोना इस गति से नहीं फैलता। दरअसल, तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद के हिस्ट्रीशीटर होने की बात सामने आ रही है। साल 2008 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानि भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने मौलाना साद और उसके सहयोगी पर ऐतिहासिक महत्व के लाल महल स्मारक की जमीन हड़पने की कोशिश का मामला दर्ज किया था। आश्चर्य की बात यह है कि दिल्ली पुलिस की प्राथमिक जांच में मामले के सही पाए जाने के बावजूद मौलाना साद और उसके सहयोगी मौलाना जुबेर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इतना ही नहीं, कुछ समय के बाद एफआईआर को बंद कर दिया गया। मामले में न तो गिरफ्तारी हुई और न ही चार्जशीट फाइल की गई। गौरतलब है कि मरकज के जरिए कोरोना फैलाने के मामले में साद पर गैर-इरादतन हत्या के साथ ही कई मुकदमे दायर किए गए हैं। मौलाना पर प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला भी दर्ज किया है। मौलाना साद अब भी फरार चल रहा है।
मौलाना के खिलाफ क्या था मामला
मौलाना साद पर सरकारी जमीन हड़पने का केस दर्ज
अक्टूबर 2008 में दर्ज हुई शिकायत
1 नवंबर 2008 को दर्ज एफआईआर में मौलाना साद आरोपी
लाल महल के ऐतिहासिक गुंबदों के पास गहरी खुदाई की गई
बाद में दिल्ली पुलिस ने सरकारी विभाग की शिकायत को गलत बताया
साद तेरे कितने दाग!
मार्च में निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात का आयोजन कराया
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विदेशियों समेत हजारों लोग शामिल हुए
कार्यक्रम में शामिल जमात के कई लोग कोरोना से संक्रमित पाए गए
जिन राज्यों में जमात के लोग वापस गए वहां भी संक्रमण फैला
देश में कोरोना मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ाने का जिम्मेदार
मरकज के खिलाफ 2016 में भी दर्ज हुआ मुकदमा
20 जून 2016 को मरकज के अंदर मारपीट का आरोप
साद के सहयोगियों ने कुछ लोगों को बांध कर पीटा
निजामुद्दीन थाने में दर्ज हुई एफआईआर
मौलाना साद ने पीड़ितों के खिलाफ ही करा दी क्रॉस एफआईआर
कोर्ट में दोनों पक्षों में हुआ समझौता