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पीएम मोदी और सीएम योगी से डरे सपा प्रमुख अखिलेश यादव, यूपी में गठबंधन के लिए साथियों की तलाश जारी

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे समाजवादी पार्टी में हताशा बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव साथियों की तलाश में जुटे हुए हैं। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने बुधवार (24 नवंबर, 2021) को लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात की। इस मुलाकात के साथ ही यूपी के सियासी गलियारों में आरएलडी, महान दल, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), शरद पवार की एनसीपी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के बाद आम आदमी पार्टी के साथ सपा के गठबंधन की सम्‍भावनाओं को लेकर चर्चा तेज हो गई।

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह तीसरी बार लखनऊ स्थित लोहिया ट्रस्‍ट के दफ्तर में अखिलेश यादव से मिले। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच करीब एक घंटे तक बातचीत हुई। सूत्रों के अनुसार सपा और आप के बीच गठबंधन पर बातचीत चल रही है। यह मुलाकात उसी क्रम में थी। हालांकि दोनों के बीच सीटों के बंटवारे का फार्मूला अभी तक तय नहीं हुआ है। इससे पहले आम आदमी पार्टी के यूपी प्रभारी संजय सिंह सपा के संस्‍थापक और पूर्व मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह यादव के जन्‍मदिन समारोह में भी शामिल हुए थे। वहां भी अखिलेश यादव से उनकी मुलाकात हुई थी। दो महीने पहले भी संजय सिंह सपा प्रमुख से मिले थे। 

हालांकि अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी के दरवाजे सभी छोटे दलों के लिए खुले हुए हैं और बीजेपी को हराने के लिए वे ऐसी सभी पार्टियों को साथ हाथ मिलने के लिए तैयार है। गौरतलब है कि मिशन-2022 की तैयारियों जुटे अखिलेश यादव इस बार बड़ी पार्टियों की जगह छोटे दलों से गठबंधन पर जोर दे रहे हैं। राष्‍ट्रीय लोकदल को 36 सीटें देकर उन्‍होंने गठबंधन को अंतिम रूप दिया। इसके अलावा पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा से सपा का गठबंधन हो चुका है।

अखिलेश यादव को लग गया है कि वो अकेले बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। इसलिए छोटे दलों से गठबंधन कर जातीय समीकरणों को साधने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि विधानसभा चुनाव में छोटे दल कम मार्जिन वाली सीटों पर ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं। लेकिन पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को गठबंधन से ज्यादा फायदा नहीं हुआ था। 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी के साथ गठबंधन किया था और अपने कोटे की तीन सीटें बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा आरएलडी को दी थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को करारी हार का सामना करना पड़ा। गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर आरएलडी का प्रभाव है। यहां पर तीन कृषि कानूनों को लेकर असंतोष था, लेकिन कानून वापस लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने अखिलेश यादव को मुश्किल में डाल दिया है।

 

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