Home विचार सोनिया गांधी को अचानक क्यों याद आया महिला आरक्षण विधेयक 

सोनिया गांधी को अचानक क्यों याद आया महिला आरक्षण विधेयक 

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कांग्रेस की वजह से महिला आरक्षण विधेयक 20 साल से अटका हुआ है। वही कांग्रेस महिलाओं की हमदर्द बनने की कोशिश कर रही है। पिछले 20 साल से संसद में इस विधेयक को रोकने के लिए अगर कोई पार्टी सबसे ज्यादा जिम्मेदार है तो वह कांग्रेस ही है। अब विपक्ष में आने पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को महिला आरक्षण विधेयक की याद आई है। महिला आरक्षण विधेयक पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है, आपके पास बहुमत है, आप इस विधेयक को पास करवाएं। सोनिया गांधी के पीएम मोदी को पत्र लिखने के राजनीतिक गलियारों में कई मायने लगाये जा रहे हैं। मीडिया का एक हिस्सा इसे कांग्रेस का नया राजनीतिक दांव बता रहा है, तो कुछ इसे महिलाओं की हमदर्दी हासिल कर उनके वोट बटोरने का हथकंडा करार दे रहे हैं।

वहीं भाजपा साफ कर चुकी है कि वह महिला आरक्षण विधेयक के लिए शुरू से प्रतिबद्ध है। भाजपा का कहना है कि सोनिया गांधी अगर विधेयक को पास करवाना चाहती हैं तो उन्हें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और सपा नेता मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखना चाहिए। वास्तव में कांग्रेस के साथ ये दोनों दल भी इस विधेयक की राह में रोड़े अटकाने के लिए जिम्मेदार रहे हैं।  

विधेयक को बनाया राजनीतिक हथकंडा
एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि 2010 में राज्यसभा में पास होने के बाद से 2014 तक यूपीए की ही सरकार थी और सरकार की अगुआ थी कांग्रेस पार्टी। ऐसे में यूपीए और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती तो इस दौरान इसे आसानी से पास करवा सकती थी, लेकिन कांग्रेस ने अपने निहित स्वार्थों के कारण ऐसा नहीं किया। वह इसे राजनीतिक हथकंडे और वोटबैंक की राजनीति के रूप में इस्तेमाल करती रहीं।

महिला संगठनों का दावा है कि राज्यसभा से लोकसभा तक के लिए विधेयक को 5 मिनट का सफर तय करना था, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ऐसा करने में नाकाम रही। इसके लिए वे कांग्रेस की कमजोर इच्छाशक्ति को जिम्मेदार ठहराते हैं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की मंशा पर सवाल होना लाजमी है। सोनिया गांधी चाहती तो यूपीए अध्यक्ष के तौर पर सहयोगी दलों के लिए इसे पास करवाने के लिए दबाव डाल सकती थीं।

कांग्रेस ने नहीं किया वादा पूरा
महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने को लेकर कांग्रेस ने देश से बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन ये वादे केवल सब्जबाग ही साबित हुए। 4 जून, 2009 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने घोषणा की थी कि यूपीए सरकार इसे 100 दिन के भीतर पास करवायेगी। चुनावी मुद्दा और राष्ट्रपति की घोषणा के बावजूद कांग्रेस ने इसे पास नहीं करवाया, तो यूपीए प्रमुख होने के नाते सोनिया गांधी से इसपर सवाल किये जाने चाहिए। कांग्रेस की इस लापरवाही के कारण विधेयक 2010 में राज्यसभा से पास होने के बावजूद लोकसभा में पास नहीं हो सका।

पत्र की टाइमिंग को लेकर भी सवाल
मीडिया में इस पत्र की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। क्या महिला आरक्षण विधेयक को पास करवाकर सोनिया गांधी देश में कांग्रेस की धूमिल हो चुकी छवि को साफ करने का प्रयास कर रहीं हैं या यह 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए उठाया गया कदम है। ऐसे में यह उनकी चुनावी राजनीति का ही एक हथकंडा है। 2014 के लोकसभा और उसके बाद से हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों से साफ है कि कांग्रेस ने महिलाओं में अपनी पैठ खो दी है। साफ है कि कांग्रेस महिलाओं में काफी कम हो चुकी पार्टी की लोकप्रियता से हताश हो चुकी है। 

कांग्रेस ने विधेयक को अधर में लटकाया
संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला महिला आरक्षण विधेयक वर्ष 1996 की देवगौड़ा सरकार के समय पहली बार संसद में पेश हआ था। काफी पशोपेश और खींचतान के बाद 2010 में इसे राज्यसभा में इसे पारित कर दिया गया, लेकिन उसके बाद यह लोकसभा में पास नहीं करवाया गया। कांग्रेस को यदि महिलाओं की इतनी चिंता थी तो उसी समय महिला आरक्षण विधेयक को पास क्यों नहीं करवाया। क्या कारण था कि यूपीए ने इसे लोकसभा में लाकर फंसा दिया।

क्रेडिट और दांवपेंच का खेल 
महिला आरक्षण विधेयक को लेकर दूसरा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस पार्टी इस विधेयक को पास करा कर क्रेडिट लेना चाहती है या उसकी मंशा इसके जरिए दांवपेंच का खेल खेलने की है। कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान महिलाओं के लिए कुछ भी नहीं किया। अब मोदी सरकार में लगातार होते महिला सशक्तीकरण से कांग्रेस के पांव के नीचे से जमीन खिसक रही है।

विपक्ष की नकारात्मक भूमिका
यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल इस विधेयक के विरोधी रहे हैं। जब यह विधेयक 2008 में यूपीए के कार्यकाल के दौरान राज्यसभा में पेश हुआ, उस समय भी इन दलों ने जमकर हंगामा किया था। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, सपा प्रमुख मुलायम सिंह को ये विधेयक किसी भी सूरत में मंजूर नहीं था। विधेयक को लेकर इन दलों की अभी तक वही राय बनी हुई है।

हंगामों की भेंट चढ़ता रहा विधेयक
यह विधेयक वर्ष 1996 की देवगौड़ा सरकार के समय संसद में पेश हआ था, लेकिन लालू प्रसाद और मुलायम सिंह के विरोध के कारण पारित नहीं हो सका। 1997 में यही नतीजा रहा। अटल सरकार ने 1998,1999 और 2003 में इसे पास कराने की कोशिश की, लेकिन यह विपक्ष के हंगामे के कारण संभव नहीं हो सका। 2010 में किसी तरह राज्यसभा से यह विधेयक पास तो हो गया लेकिन लोकसभा में अटक गया। तभी से यह विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया।

विपक्षी दलों से नहीं किया मशविरा
वहीं भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ने महिला आरक्षण विधेयक पर अपने सहयोगी दलों से सलाह-मशविरा नहीं किया है। उसके सहयोगी दलों ने अभी तक अपना रूख साफ नहीं किया है। ऐसा ना हो कि विधेयक एक बार फिर से सदन में औंधे मुंह गिर जाए, या हंगामा करके पेश ही ना होने दिया जाए। इसलिए सरकार इस विधेयक को लेकर पूरी सतर्कता बरत रही है।

 

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