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अमृतकाल में खुशखबरी! पीएम मोदी के राज में LOC पर शारदा माता मंदिर में चैत्र नवरात्र से दर्शन, 1947 में शारदा पीठ और मंदिर किया था क्षतिग्रस्त, कर्नाटक से देवी मां की मूर्ति लाने से लौटी रौनक

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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के खात्मे के बाद अमन-चैन और खुशहाली की बयार के बाद पीएम मोदी सरकार का कश्मीर के लिए अगला कदम देवा मां के आशीर्वाद से जुड़ा है। पवित्र चैत्र नवरात्रों में जम्मू कश्मीर के उत्तरी इलाके में नियंत्रण रेखा के पास प्राचीन माता शारदा देवी के मंदिर में इस बार श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे। सेवा शारदा कमेटी (SSC) के मुताबिक उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में स्थित मंदिर का निर्माण पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में शारदापीठ मंदिर की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा को फिर से शुरू करने के लिए किया जा रहा है। मंदिर का निर्माण कार्य पिछले साल ही शुरू किया गया है। मां शारदा देवी का मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह लगभग 5000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर है। 1947 में विभाजन के बाद पाकिस्तानी कबाइली हमले के बाद यह मंदिर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका था। अब 75 साल बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो गया है। इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए 22 मार्च यानी चैत्र नवरात्री के दिन खोला जाएगा।कश्मीरी पंडित सदियों से कुलदेवी के रूप में मां शारदा की करते हैं पूजा
नब्बे के दशक में जिन कश्मीरी पंडितों को जम्मू-कश्मीर से अत्याचार करने के बाद भागने को मजबूर किया गया, यह मंदिर उन्हीं कश्मीरी पंडितों के लिए एक आस्था का प्रतीक है। कश्मीरी पंडित कुल देवी के रूप में मां शारदा की पूजा करते हैं। अब कर्नाटक के श्रृंगेरी मठ से शारदा मंदिर की मूर्ति लाई गई है। यह मूर्ति 3000 किमी दूर से शारदा माता की शोभा यात्रा के रूप में लाई गई। शारदा मंदिर में मूर्ति की प्राण- प्रतिष्ठा होने के साथ ही चैत्र नवरात्र में भक्तों के लिए मंदिर दर्शनार्थ खोल दिया जाएगा। कश्मीर पंडितों का कहना है कि पहले श्रीनगर से शारदा देवी मंदिर तक वार्षिक यात्रा निकाली जाती थी। इस प्राचीन धार्मिक यात्रा को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि करतारपुर कॉरडोर की तर्ज पर इस शोभा यात्रा की भी शुरूआत की जा सकती है।

कर्नाटक के श्रृंगेरी से शारदा मूर्ति को एलओसी तीतवाल तक ले जाने के लिए यात्रा
कश्मीर की शारदा समिति बचाओ ने 24 जनवरी से कर्नाटक में श्रृंगेरी से शारदा मूर्ति को एलओसी तीतवाल तक ले जाने के लिए यात्रा शुरू की थी। यात्रा बेंगलुरू, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, जयपुर और गुड़गांव में प्वाइंट टू प्वाइंट ठहरने के बाद 20 मार्च को तीतवाल पहुंची है। एलओसी पर कुपवाड़ा के तंगधार सेक्टर में नवनिर्मित शारदा मंदिर में स्थापना के लिए मूर्ति पहुंच गई है, जिसके पहुंचने पर वहां के स्थानीय लोगों ने जश्न मनाया। शारदा समिति बचाओ के सदस्य मूर्ति को सजाए गए वाहन में कश्मीरी पंडित भवन से विभिन्न शहरों में ले जाते हैं। यहां कश्मीर में एलओसी तीतवाल में नवनिर्मित शारदा यात्रा मंदिर की कथा है। शारदा यात्रा मंदिर, तीतवाल, कश्मीर शारदा पीठ पीओके के तीर्थ यात्रा मार्ग पर स्थित है। प्राचीन काल से, चंद्र कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शारदा पीठ की वार्षिक तीर्थयात्रा होती थी। तीतवाल से शारदा पीठ तक पवित्र गदा (छड़ी मुबारक) निकाली जाती है। शारदा पीठ भारतीय उपमहाद्वीप की शिक्षा का केंद्र था, यहां शास्त्र और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए विद्वान श्रद्धा से आते थे। शारदा लिपि कश्मीर की मूल निवासी है, जिसका नाम विद्या की देवी और शारदा पीठ की मुख्य देवी सरस्वती के नाम पर रखा गया है।धार्मिक मान्यता है कि यहां सती का दायां हाथ गिरा था, यह शक्तिपीठों में से एक है
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के इस बयान के बाद मां शारदा शक्ति पीठ के इस मंदिर को लेकर चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई, जो 75 सालों से PoK में है। यह हिंदू धर्म की देवी सरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है, जो अब खंडहर में तब्दील हो रहा है। इस पीठ का इतिहास सदियों पुराना है और शारदा पीठ को महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां माता सती का दायां हाथ गिरा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती की मृत्यु के बाद शोकाकुल भगवान शिव सती के शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में काट दिया था। ये सभी हिस्से धरती पर जहां गिरे, वे सभी पवित्र स्थल बन गए और शक्ति पीठ कहलाए।बंटवारे से पहले तीन प्रमुख तीर्थों में शामिल था शारदा पीठ
यह पीठ नीलम, मधुमती और सरगुन नदी की धाराओं के संगम के पास हरमुख पहाड़ी पर करीब 6500 फीट की ऊंचाई पर है, जो PoK के मुजफ्फराबाद से 140 किलोमीटर और कश्मीर के कुपवाड़ा से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे से पहले शारदा पीठ, मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ गुफा के साथ जम्मू-कश्मीर के तीन प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल था। अब मंदिर खंडहर हालत में है बिना किसी साज-सज्जा वाले मंदिर में अब बस पत्थरों के स्लैब ही बचे हैं। 2009 में प्रकाशित हुई किताब ‘कल्चरल हेरिटेज ऑफ कश्मीरी पंडित्स’ में कश्मीरी लेखक अयाज रसूल नाजकी ने शारदा पीठ से जुड़ी एक लोक कथा का जिक्र किया है। इस कथा के अनुसार- अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध के दौरान देवी शारदा ने ज्ञान के पात्र की रक्षा की थी। शारदा देवी ये पात्र लेकर घाटी में गईं और उसे एक गहरे गड्ढे में छिपा दिया। इसके बाद उन्होंने उस पात्र को ढंकने के लिए खुद को एक ढांचे में बदल लिया। अब यही ढांचा शारदा पीठ के रूप में खड़ा है।  शारदा पीठ को कई हजार साल पुराना माना जाता है। यह श्रीनगर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर पीओके में है। प्रमुख शक्तिपीठों में से एक यह पीठ कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। हालांकि अब इसके अवशेष ही बचे हैं। कहा जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान 237 ईसा पूर्व में शारदा मंदिर की स्थापना हुई थी। हिंदू देवी सरस्‍वती को शारदा भी कहते हैं। 11-12वीं सदी के कवियों की पुस्तकों में भी है मां शारदा पीठ का उल्लेख
शारदा पीठ मंदिर आर्किटेक्चर, डिजाइन और कंस्ट्रक्शन स्टाइल में अनंतनाग स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर से काफी मिलता-जुलता है। मार्तंड मंदिर का निर्माण भी ललितादित्य ने ही कराया था। 11वीं सदी में कश्मीरी कवि बिल्हण ने शारदा पीठ के अध्यात्म और शिक्षा की अहमियत के बारे में लिखा था। 11वीं सदी में भारत आने वाले फारसी विद्धान अल-बरूनी ने मुल्तान सूर्य मंदिर, स्थानेश्वर महादेव मंदिर और सोमनाथ मंदिर के साथ ही शारदा पीठ का जिक्र भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे चर्चित मंदिरों के रूप में किया था। 12वीं सदी में प्रसिद्ध कश्मीरी कवि कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में शारदा पीठ का जिक्र एक प्रमुख पूजा स्थल के रूप में किया गया था। कई इतिहासकारों ने लिखा है कि प्राचीन कश्‍मीर में शारदा पीठ ज्ञान-प्राप्ति का एक प्रमुख केंद्र था। ईरानी इतिहासकार अल-बरूनी के अनुसार आठवीं सदी तक यह मंदिर प्रमुख तीर्थस्‍थल बन चुका था।
आदि शंकराचार्य ने खोला था शारदा पीठ का चौथा द्वार

14वीं सदी में लिखे गए माधवीय शंकर विजयम में ‘सर्वजन पीठम’ नाम की परीक्षा का जिक्र है। शारदा पीठ के चार द्वार थे और कोई विद्वान ही इन्‍हें खोल सकता था। ये द्वार पहले भी खोले जा चुके थे, मगर दक्षिणी द्वार को कोई नहीं खोल सका था। शंकराचार्य ने चुनौती स्‍वीकार कर ली। केरल से पैदल चलकर कश्‍मीर पहुंचे। लोगों ने उनका स्‍वागत किया, मगर विद्वान तुनक गए। जैसे ही वह दक्षिणी द्वार के पास पहुंचे, उन्‍हें न्‍याय दर्शन, बौद्ध, दिगंबर जैन के विद्वानों ने रोक लिया। फिर आदि शंकराचार्य ने उन सबको शास्‍त्रार्थ में पराजित कर दिया। जैसे ही शंकराचार्य प्रवेश करने को थे, उन्‍हें देवी शारदा ने चुनौती दी। उस आवाज ने कहा कि प्रवेश के लिए केवल सर्वज्ञानी होना पर्याप्‍त नहीं, पवित्र भी होना चाहिए और चूंकि शंकराचार्य राजा अमरूक के महल में रहे थे, पवित्र नहीं हो सकते। शंकराचार्य ने जवाब दिया कि उनके शरीर ने कभी कोई पाप नहीं किया है और किसी और के पाप उन पर नहीं लादे जा सकते। मां शारदा ने शंकराचार्य का तर्क स्‍वीकार कर लिया और उन्‍हें अनुमति दे दी। दक्षिण भारत के ब्राह्मण आज भी शारदा पीठ को नमन करके कर्मकांड करते हैं।पिछले साल सात दशक बाद नवरात्र में शारदा पीठ पर मां की पूजा-अर्चना कराई

कश्मीरी हिंदुओं के साथ नब्बे के दशक में हुए नरसंहार की पोल खोलती फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ रिलीज होने के बाद से ही नित-नए रिकार्ड बना रही है। फिल्म के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री और उनकी रिसर्च टीम ने कड़ी मेहनत कर कश्मीर के तत्कालीन हालात, कश्मीरी पंडितों पर जुल्म के की खुलासे किए हैं। इसी फिल्म के एक डायलॉग ने 73 साल पुरानी परंपरा को फिर से जिंदा कर दिया है। इस डायलॉग का सिरा पकड़कर चित्तौड़गढ़ के आर्किटेक्ट व्यवसायी चंद्रशेखर चंगेरिया ने पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित शारदा पीठ की मौजूदा स्थिति को जाना। देश की 51 शक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ की ‘दुर्दशा’ से चंगेरिया आहत हुए और उन्होंने मित्रों की मदद से 73 साल बाद नवरात्र में शारदा पीठ पर मां की पूजा-अर्चना कराई। मंत्रोचार हुए और पुष्प अर्पित किए गए। यह पीठ करीब 1948-49 से बंद है।

फिल्म द कश्मीर फाइल्स में भी शारदा पीठ का जिक्र

फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में भी शारदा शक्तिपीठ का जिक्र आया है। इसी फिल्म के एक डायलॉग ने 73 साल पुरानी परंपरा को फिर से जिंदा कर दिया है। पिछले साल फिल्म के डायलॉग का सिरा पकड़कर चित्तौड़गढ़ के आर्किटेक्ट व्यवसायी चंद्रशेखर चंगेरिया ने पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित शारदा पीठ की मौजूदा स्थिति को जाना। देश की 51 शक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ की ‘दुर्दशा’ से चंगेरिया आहत हुए। दरअसल, फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित का रोल कर रहे अनुपम खेर का डायलॉग था ‘जहां शिव, सरस्वती, ऋषि कश्यप, शंकराचार्य हुए, वो कश्मीर हमारा, जहां पंचतंत्र लिखा गया, वो कश्मीर हमारा’। फिल्म देखने के बाद चंद्रशेखर ने जानकारी जुटाई तो शारदा पीठ के बारे में पता चला। चंद्रशेखर ने चैत्र नवरात्रि में यहां पूजा करवाने की ठानी।शारदा बचाओ कमेटी और गांव के युवाओं के सहयोग से पीठ पर पहुंची पूजा सामिग्री
इस शारदा पीठ के महत्व को जान लेने के बाद अब आते हैं वर्तमान में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ निवासी चंद्रशेखर की भक्ति पर। द कश्मीर फाइल्स देखने के बाद उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि शारदा पीठ POK के नीलम घाटी जिले के शारदा गांव में है। चंद्रशेखर ने कश्मीरी पंडितों के हक के लिए संघर्षरत और शारदा बचाओ कमेटी से जुड़े रविन्द्र पंडित से संपर्क किया। उन्होंने भी कुछ जानकारी दी। इसके बाद चंद्रशेखर ने इंटरनेट के जरिए ही शारदा गांव के कुछ दुकानदारों के फोन नंबर जुटाए। गांव में रह रहे एक युवक से बात की तो वह शारदा पीठ तक पूजा सामग्री पहुंचाने के लिए राजी हो गया। इस युवक का उसके दो स्थानीय दोस्तों ने भी सहयोग किया।PoK और शारदा पीठ को भारत में मिलाने की होती रही है मांग

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और शारदा पीठ को भारत में मिलाने की मांग बरसों से होती रही है। कुछ माह पहले 23वें कारगिल दिवस के मौके पर जम्मू में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर, भारत का अभिन्न हिस्सा था, भारत का हिस्सा है और हमेशा-हमेशा रहेगा। रक्षा मंत्री ने कहा कि ऐसा कैसे संभव है कि बाबा अमरनाथ शिव के रूप में हमारे साथ हैं तो मां शारदा की शक्तिपीठ LOC के दूसरी तरफ कैसे रह सकती है। कश्मीरी पंडितों की कुलदेवी मां शारदा की इस पीठ पर हिंदू देवी सरस्‍वती का मंदिर है, जिन्‍हें शारदा भी कहा जाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ ने शारदा पीठ का जिक्र करते हुए कहा कि संसद में PoK के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित हो चुका है।

कश्मीर के हिंदू राजा ललितादित्य ने बनवाया था शारदा पीठ मंदिर
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इस मंदिर के निर्माण हजारों साल पुराना है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शारदा पीठ का निर्माण 5 हजार साल पहले 273 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के समय में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण पहली सदी में कुषाण वंश के शासन के दौरान हुआ था। शारदा मंदिर पर केस स्टडी करने वाले फैज उर रहमान का कहना है कि शिक्षाविदों के मुताबिक शारदा पीठ का निर्माण कश्मीर पर शासन करने वाले कर्कोटा राजवंश के ताकतवर हिंदू शासक ललितादित्य मुक्तपीड ने कराया था। ललितादित्य ने कश्मीर पर 724 ईस्वी से 760 ईस्वी तक शासन किया था। इस दावे को इसलिए भी सही माना जाता है कि क्योंकि राजा ललितादित्य बड़े-बड़े मंदिरों के निर्माण में माहिर थे।

शंकराचार्य और कश्मीरी कवि कल्हण समेत कई विद्वानों ने की शारदा यूनिवर्सिटी में पढ़ाई
शारदा पीठ का सबसे पुराना लिखित जिक्र छठी से आठवीं सदी के दौरान नीलमत पुराण में मिलता है। नीलमत पुराण, कश्मीर के इतिहास के बारे में सबसे प्राचीन पुस्तक है। छठी से 12वीं शताब्दी के दौरान शारदा पीठ न केवल एक मंदिर,बल्कि शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र भी था। शारदा पीठ के परिसर में शारदा यूनिवर्सिटी थी, जहां पढ़ने के लिए देश-विदेश से छात्र आते थे। इसी में शंकराचार्य और कश्मीरी कवि कल्हण भी पढ़े हैं। शारदा यूनिवर्सिटी में करीब 5 हजार छात्र पढ़ते थे और वहां दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी थी। उस समय शारदा यूनिवर्सिटी की गिनती नालंदा और तक्षशिला जैसे शिक्षा के चर्चित केंद्रों में होती थी।

 

करतारपुर कॉरिडोर के साथ तेज हुई शारदा पीठ के दर्शन की अनुमति देने की मांग
भारतीय तीर्थयात्रियों को शारदा पीठ जाने की अनुमति दिए जाने की मांग अतीत में भी उठ चुकी है। ये मांग नवंबर 2019 में करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद और तेज हो गई। करतारपुर कॉरिडोर बनने से भारतीय सिखों के पाकिस्तान स्थित गुरद्वारा दरबार साहिब जाने का रास्ता खुल गया। साल 2007 में देश के पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान सरकार से शारदा पीठ के जीर्णोद्धार की मांग की थी। 2019 में कई मीडिया रिपोर्ट्स में पाकिस्तानी सरकार के भारतीयों के शारदा पीठ दर्शन के लिए एक कॉरिडोर बनाने की खबरें आई थीं, लेकिन बाद में पाकिस्तानी सरकार ने इस दिशा में आगे कोई प्रयास नहीं किया।

 

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