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गुरमेहर कौर के नाम राजीव चंद्रशेखर का खुला खत

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राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र गुरमेहर कौर को एक पत्र लिखा है। अपने पत्र में राजीव चंद्रशेखर ने गुरमेहर को हर तरह से समर्थन देने की बात की है और राजनीतिक सक्रियता की तारीफ भी की है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आपको आलोचना के लिए भी तैयार रहना होगा। राजीव चंद्रशेखर का यह पत्र दैनिक जागरण अखबार में अमन की खोशली आशा के नाम से छपा है-

प्रिय गुरमेहर। अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि शहीदों और उनके परिवार के प्रति मेरे मन में अपार सम्मान का भाव है। मैं खुद एक सैनिक का बेटा हूं और मेरा बचपन उन्हीं लोगों के बीच बीता जिन्होंने देश की सेवा की और बलिदान दिए। देश के लिए शहीदों के योगदान से बढ़कर कुछ भी नहीं जिसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। वह सबसे बड़ा बलिदान है। अमर शहीदों की भी एक लंबी फेहरिस्त है। इनमें परमवीर चक्र के पहले विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा भी एक हैं जिन्होंने 1948 में भारत-पाक युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी। उस समय उनकी उम्र महज 24 साल थी। इसी तरह 21 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल भी अमर हो गए। फिर कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन विजयंत थापर और कैप्टन विक्रम बत्रा के बलिदान को भला कौन भुला सकता है। आप अभी उम्र के जिस पड़ाव पर हैं ये सभी उससे कुछ अधिक उम्र के थे। मुझे ऐसे तमाम शेरदिल परिवारों के साथ जुड़ने का सम्मान और अनुभव मिला। यह सच है कि उनमें से अधिकांश में बदले की भावना या नफरत हावी नहीं होती, क्योंकि उन्हें यही लगता है कि वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह किसी और को न सहना पड़े। लिहाजा आपके मन में तनिक भी संदेह नहीं रहना चाहिए कि हमारे देश में अधिकांश लोग आपके पिता कैप्टन मंदीप सिंह की सेवा और बलिदान का भरपूर सम्मान करते हैं।

अपने जीवन में आपको जिस पीड़ा से गुजरना पड़ा ईश्वर न करे किसी बच्चे या परिवार को उसका सामना करना पड़े। राष्ट्र सेवा में पिता, पति, बेटे या भाई को खोना किसी भी परिवार के लिए बड़ा त्रासद होता है। इसके बदले में हम विनम्रता के साथ सलामी और उदारता के साथ समर्थन ही दे सकते हैं। मेरे लिए यह किसी भी लिहाज से स्वीकार्य नहीं कि इस महान देश में कोई भी आपके या आपके परिवार की सुरक्षा को लेकर इतर राय रखे। इससे भी इन्कार नहीं कि कुछ तत्वों के कारण हालिया दौर में सोशल मीडिया पर छींटाकशी के मामले बढ़े हैं। मैं आपके परिवार की सुरक्षा और आपकी अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर बारंबार पूरी प्रतिबद्धता के साथ आश्वस्त करता हूं। मैंने आपका वीडियो देखा और खासी दिलचस्पी के साथ आपके विचारों को सुना। मैं आपके साहस और जज्बे की सराहना करता हूं कि आपने अपने मन की बात को इस तरह कहा। आपकी हिम्मत देखकर आपके पिता को जरूर आप पर गर्व होता।

विश्वविद्यालय ऐसी जगह है जहां आप अलग-अलग तरह के विचारों के साथ प्रयोग के लिए स्वतंत्र होते हैं जिनमें आदर्शवाद सरीखी धारा भी शामिल है। लिहाजा यहां मैं आपके सामने दो पहलू पेश करता हूं कि आप उन पर भी कुछ मनन करें। आपने पाकिस्तान को माफ करने की बात कही। हालांकि मैं शांति को लेकर आपकी मंशा समझता हूं, लेकिन यहीं आप पाकिस्तान को लेकर गलती कर रही हैं। केवल आतंकी हमलों में ही 15,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जिससे हजारों परिवार प्रभावित हुए हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि सीमा-पार से हम पर हिंसा थोपी जा रही है। इस कड़वी हकीकत को हमें समझना ही होगा। हमारे सुरक्षा बलों के हजारों जवानों ने इन आतंकी हमलों से निपटने के दौरान अपने प्राणों का बलिदान दिया है।

कोई भी युद्ध नहीं चाहता। हम भी नहीं चाहते। आखिरकार भारत को महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन के बाद ही आजादी मिली थी, मगर हमें अक्सर धमकाया गया और जबरन हिंसा थोपी गई। हमें 1962 के चीनी हमले से भी सबक लेना चाहिए। अब मैं राष्ट्रपति ओबामा के भाषण का जिक्र करता हूं। उन्होंने यह भाषण 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार समारोह में दिया था। यह शायद शांति की इच्छा और उसके साथ-साथ खुद की सुरक्षा के लिए सशक्त सेना की दुविधा को भी सुलझाता है। ओबामा ने कहा था, ‘हिंसा से कभी स्थाई शांति नहीं आती। इससे सामाजिक समस्या भी नहीं सुलझती, बल्कि यह नई समस्या पैदा कर हालात और जटिल बना देती है। गांधी और किंग के विचारों में कुछ भी कमजोर या निराशावादी नहीं है, मगर मैं केवल उनके दिखाए रास्ते पर नहीं चल सकता। मुझे दुनिया को वास्तविक नजरिये से देखना होगा और अपने लोगों पर मंडराते खतरे की स्थिति में मैं हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकता। दुनिया में शैतानी ताकतों का भी अस्तित्व है। कोई भी अहिंसक आंदोलन हिटलर की सेना को नहीं हरा सकता था। केवल बातचीत के जरिये ही अल-कायदा से हथियार नहीं छुड़ाए जा सकते थे। कई बार ताकत जरूरी हो जाती है और इस पर निराश होने की जरूरत नहीं है। यह विकल्पों की सीमाओं को ही दर्शाता है।’

शांति को लेकर आपकी सक्रियता की मैं कद्र करता हूं, मगर केवल शांति की चाह से ही पाकिस्तान में आतंकी हथियार नहीं छोड़ने वाले। शांति की चाहत में हम इस तथ्य से मुंह नहीं फेर सकते कि देश के कुछ जरूरी दायित्व होते हैं कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए सैन्य बंदोबस्त रखे। आपके पिता ने भी वही किया। वह और उनके जैसे तमाम लोग उन्हीं मूल्यों की रक्षा के लिए लड़े। वे इसलिए नहीं लड़े कि उन्हें युद्ध पसंद था या वे सामने मौजूद शख्स से नफरत करते थे। उन्होंने इसलिए सेवा और बलिदान दिया, क्योंकि वे भारत और भारतीयों से प्रेम करते थे। अमन और चैन को लेकर मैं भी आपकी जैसी ही इच्छा रखता हूं, लेकिन सिर्फ चाहने भर से शांति नहीं आने वाली और खासतौर से पाकिस्तान के मामले में। इसके लिए भारत और पाकिस्तान की जनता को पाकिस्तान सरकार पर हरसंभव दबाव बनाना होगा कि वह आतंक को समर्थन देने की अपनी नीति से बाज आए। केवल इसी तरीके से शांति स्थापित हो सकती है किसी तरह की गुहार या मान-मनुहार से नहीं।

मैं युवाओं की राजनीतिक जागरूकता और सक्रियता का जबरदस्त समर्थक हूं। अगर आपने राजनीतिक सक्रियता का विकल्प चुना है तो आपको और ताकत मिले। मुझे यकीन है कि आप राष्ट्र और राष्ट्रीयता को लेकर अपने पिता और परिवार के मूल्यों का ध्यान रखेंगी, साथ ही यह भी कि राजनीतिक विमर्श में आलोचना के लिए भी तैयार रहना चाहिए। कई बार यह शोरशराबे और मिजाज बिगाड़ने वाला होता है। यह आज की कटु सच्चाई है। लिहाजा इसके लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि आप इसमें कदम रख चुकी हैं। मैं इस देश और इसके युवाओं में बेहद यकीन रखता हूं और आशा करता हूं कि मेरे शब्दों से आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और पिछले कुछ मुश्किल दिनों के बाद कुछ सुकून मिलेगा। मैं यह भी आशा करता हूं कि आप इससे और अच्छी तरह परिचित होंगी कि पाकिस्तान कैसे आतंक फैलाता है और दूसरे उसे किस नजर से देखते हैं और हमें अपनी सुरक्षा की जरूरत क्यों है? मैं आपको और आपके परिवार को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। जय हिंद।

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