जून, 2016 में बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन के बारे में जब ये कहा कि- भाजपा सरकार के सत्ता में आने का बाद से राजन कांग्रेस के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं, तो उनके इस बयान पर काफी विवाद हुआ था। लेकिन बीतते वक्त के साथ ऐसी कई बातें हुई हैं जिससे लगता है कि रघुराम राजन ने लगातार कांग्रेस के लिए ‘बैटिंग’ की है।
दरअसल लगातार सामने आ रहे बैंकिंग घोटाले के तार कांग्रेस कार्यकाल से जाकर जुड़ते हैं। 2008 से 2014 तक दिए गए बड़े ऋणों में से कई एनपीए हो गए। जिस सोना आयात कानून की खामियों को देखते हुए एनडीए सरकार ने आते ही खत्म कर दिया, रघुराम राजन उस नीति की वकालत कर रहे हैं।
गौरतलब है कि बैंकिंग क्षेत्र में हो रही वित्तीय संचालन की निगरानी का जिम्मा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का होता है। आरबीआई का मुखिया होने के नाते गवर्नर पर इसकी देख रेख की जिम्मेदारी अधिक होती है, जबकि तत्कालीन सरकार भी उतनी ही जिम्मेदार होती है। लेकिन दोनों ही मामलों में रघुराम राजन तत्कालीन कांग्रेस सरकार का बचाव करते हुए दिख रहे हैं।
CNBC-TV18 को दिए अपने इंटरव्यू में वे कांग्रेस के काले कारनामों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।
स्वर्ण आयात योजना के समर्थन में राजन
रघुराम राजन 2013 से 2016 तक आरबीआई के गवर्नर रहे हैं। उसी दौरान 2014 में 80: 20 गोल्ड स्कीम आई थी। उन्होंने दलील दी है कि ”जहां तक 80:20 गोल्ड स्कीम की बात है तो इसे तब लाया गया था जब गोल्ड सप्लाई घट गई थी और इंडियन ज्वैलरी सेक्टर में नौकरी के मौके बनाने की कोशिश की गई थी। 2013 में रुपए की कमजोरी का बुरा दौर देखने के बाद 2014 में सरकार गोल्ड इंपोर्ट बढ़ाने की कोशिश कर रही थी। तभी उस वक्त सरकार ने 80:20 स्कीम शुरू किया था। इस स्कीम के तहत कुछ शर्तों के साथ गोल्ड इंपोर्टर्स को दोबार इंपोर्ट शुरू करने की अनुमति दी गई थी।”
रघुराम राजन की इस बात में सच्चाई हो सकती है, लेकिन वह ये बात नहीं बता रहे कि नई दिल्ली के होटल रेडीसन में 14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई। इसमें भारत सरकार की ओर से नियुक्त निदेशक दिनेश दुबे ने चोकसी को 550 करोड़ लोन देने का विरोध किया। 16 सितंबर को इस बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती को भी दी। इसके बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, बावजूद इसके मेहुल चोकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया। केंद्रीय वित्त सचिव और आरबीआई को इस फैसले की जानकारी भी लगी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
कांग्रेस को पाक-साफ बताने की कोशिश
रघुराम राजन कहते हैं कि, ”किसी भी पॉलिसी के नकारात्मक और सकारात्मक पहलू होते हैं। पीएनबी स्कैम के बाद कई तरह के आरोप लगे। यह देखने की जरूरत है कि पीएनबी में घोटाला कैसे हुआ। क्या खामियां थीं।”
लेकिन ये तथ्य है कि इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (आईबीजेए) ने 26 जुलाई 2014 को राजन को एक लेटर लिखा था और यूपीए सरकार के कार्यकाल के आखिरी दिन गोल्ड स्कीम 80:20 को मंजूरी दी गई थी। आखिर रघुराम राजन की जानकारी में होने के बाद भी इसे रोकने के लिए कोई पहल क्यों नहीं की गई? इतना ही नहीं अगर रघुराम राजन को ये बातें पता थीं, तो भी मोदी सरकार को इसकी तत्काल जानकारी क्यों नहीं दी गई। क्या इसके पीछे भी कोई साजिश थी?
रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी से किया किनारा
रघुराम राजन अपनी इस जिम्मेदारी से बचना चाह रहे हैं कि उनकी जानकारी में ये फर्जीवाड़ा किया गया। उन्होंने कहा, ”अगर आरबीआई को इसकी जानकारी होती तो वह इसे रोकने के लिए जितना हो सकता था करता।”
राजन के दावों से इतर यह सर्वविदित है कि बैंक सहित तमाम वित्तीय संस्थाओं के कार्यों की देखरेख पर नजर केंद्र सरकार नहीं बल्कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया करता है। 4 सितंबर 2013 से सितंबर 2016 तक RBI के गवर्नर रघुराम राजन ही थे। उनकी नियुक्ति कांग्रेस ने की थी और यह माना जा सकता है कि देश की वित्तीय संस्थाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, 2016 तक कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। जाहिर है रघुराम राजन की जिम्मेदारी बनती थी कि बैंकों में हो रहे ऐसे फर्जीवाड़ों पर रोक लगाने की कवायद करते। अलबत्ता यह भी देखने वाली बात है कि इस दौरान उन्होंने कभी ऐसे मामलों पर ध्यान भी नहीं दिया, जबकि एनपीए और बैड लोन जैसे मामले 2008 से ही बढ़ते जा रहे थे।
LoU पर अपनी जिम्मेदारी से झाड़ा पल्ला
रघुराम राजन के गवर्नर रहते हुए उन्होंने बहुत से LoU’s साइन किए थे और उनका इस्तेमाल लैटर्स ऑफ क्रेडिट के लिए भी किया जाता था। हालांकि गवर्नर रहते हुए 3 अगस्त 2016 को आपने सभी बैंकों को स्विफ्ट सिस्टम की बारीकी से पड़ताल करने को कहा था। जाहिर है उन्हें इस घोटाले का अंदाजा लग गया था परन्तु उन्होंने गवर्नर रहते हुए भी इस पर एक्शन नहीं लिया। उन्होंने सरकार को भी ये जानकारी नहीं ती कि कोर बैकिंग के स्विफ्ट कनेक्शन से आगे चलकर परेशानी आ सकती है।
इसका दूसरा पहलू ये है कि पीएनबी जैसे फर्जीवाड़े को बढ़ावा देने के लिए मूल रूप से कांग्रेस ही जिम्मेवार इसलिए है कि उस दौर में भी ऐसे बैड लोन और एनपीए को लेकर सवालात खड़े किए गए, लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने इसे अनसुना कर दिया। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब मुंह बंद रखने तक की धमकी दी जाती थी। इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दूबे के इस पत्र को देखिये तो काफी कुछ समझ में आ जाएगा।
Whistle blower Dinesh Dubey, former Director of Allahabad Bank, says he had sounded out UPA on large scale illegitimate loans to Mehul Choksi’s companies but was threatened to keep quite. His letters to RBI and Fin Sec in MoF under Congress went unheard. https://t.co/OIHP6VpKRg pic.twitter.com/PTxFzFAJq5
— Amit Malviya (@malviyamit) 16 February 2018
वर्तमान सरकार पर दोष मढ़ने का प्रयास
रघुराम राजन की बातों से ये भी साबित होता है कि वे वर्तमान सरकार को इसके लिए अधिक जिम्मेदार मान रहे हैं। हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से नहीं कहा है लेकिन ये बात सही है कि उन्होंने कांग्रेस को बचाने की पुरजोर कोशिश की है। वे ये भी सवाल उठा रहे हैं कि हमारे बैंकिंग सिस्टम में लीकेज क्यों हैं? तो रघुराम राजन को ये ज्ञान आरबीआई गवर्नर की कुर्सी से हटने के बाद क्यों आया है?