आप इस चित्र को गौर से देखिए…राहुल गांधी हाथ को कटोरानुमा बनाकर कुछ बोल रहे हैं और उनके पास बैठे महासचिव केसी वेणुगोपाल और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मन ही मन सोच रहे हैं !! पहले आपको बताते हैं कि राहुल बाबा जयपुर की प्रेस कांफ्रेंस में क्या फरमा रहे हैं- ‘हमारी पार्टी में तानाशाही नहीं है। हमारी पार्टी में थोड़ी बयानबाजी, थोड़ा डिस्कशन होता है। पार्टी के लोग बोलना चाहें तो हम उन्हें डराकर चुप नहीं कराते…।’ अब जरा कांग्रेस महासचिव और मुख्यमंत्री के मन की बात भी टटोलते चलिए। वेणुगोपाल सोच रहे हैं कि हाईकमान द्वारा भेजे दो आब्जर्वर को धूल चटाते हुए अपने विधायकों के इस्तीफे दिलवाना और पार्टी के न चाहने के बाद भी ताल ठोंककर सीएम की कुर्सी जमे रहना तानाशाही नहीं तो क्या है? मुख्यमंत्री के मन में चल रहा है कि एआईसीसी तो लिखित आदेश देकर कहती है कि खबरदार अब से कोई बयानबाजी नहीं होगी। बगल में बैठे वेणुगोपाल भरी मीटिंग में धमकाते हैं कि अब कोई बोला तो 24 घंटे में बाहर कर दिया जाएगा…और राहुल बाबा बोल रहे हैं कि हम बोलने से नहीं रोकते!?राजस्थान में राहुल किस मुंह से तानाशाही न होने और मुंह बंद न कराने की बाते कर रहे हैं
ऐसे में राहुल गांधी किस मुंह से तानाशाही न होने और बयानबाजी पर कोई रोक-टोक लगाने की बात कह रहे हैं। क्या वो भारत जोड़ो यात्रा में इतने रम गए हैं कि उन्हें कुछ भी नहीं पता कि आखिर पार्टी में चल क्या रहा है और वास्तविकता में वो मीडिया के सामने बोल क्या रहे हैं? कम से कम जिस राजस्थान में खुलेआम तानाशाही का राज चल रहा है और बोलने देने से रोकने की लाख कोशिशों के बाद भी बयानों के ऐसे-ऐसे तीर निकल रहे हैं, जिससे कांग्रेसी ही घायल हो रहे हैं। उसी राजस्थान में आकर मीडिया के सामने राहुल गांधी ऐसी बातें कैसे कर सकते हैं? क्या राहुल गांधी को लगता है कि मीडिया कांग्रेसियों की हालिया करतूतों को भूल गया होगा?कांग्रेस राज की तानाशाही को तो साढ़े चार दशक से दुनिया जानती है
यदि राहुल गांधी को याद नहीं तो हम सिलसिलेवार तानाशाही के राज और कांग्रेसी कथित लोकतंत्र में जुबानों को बंद करनी की तफ्सील से जानकारी दे देते हैं। वैसे राहुल को अपनी दादी की जग-प्रसिद्ध तानाशाही तो याद होगी, जिसने देश को आपातकाल तक में झोंक दिया था। वह कहानी फिर सही। फिलहाल तो राजस्थान की बात पर आते हैं। उस राजस्थान कांग्रेस की बात करते हैं, जिसकी कलह देशभर में चर्चित है। हो भी क्यों न, गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद नेता अशोक गहलोत के इशारे पर उनके समर्थकों ने कांग्रेस आलाकमान के सामने न सिर्फ शातिराना बगावत की, बल्कि तानाशाही से सीएम की कुर्सी भी संभाले हुए हैं। उन्हें कोई हटाकर की जुर्रत तो करते दिखाए। सीएम हटाते-हटाते सरकार ही गिर जाएगी।कांग्रेस महासचिव ने 25 सितंबर को मुंह बंद रखने के लिए जारी की थी एडवाइजरी
राजस्थान कांग्रेस में राजनीति तो इस सरकार की नींव से ही शुरू है। खूब फल-फूल रही है और यह पिछले सितंबर को अपने चरम पर थी। कांग्रेस में राजनीति की इस पॉलिटिक्स की शुरूआत 24 सितंबर से हुई. जब राजस्थान के मुख्यमंत्री हाउस में विधायक दल की बैठक तय की गई थी। इसके बाद के दिनों में कांग्रेस की गहलोत बनाम पायलट की अंदरूनी लड़ाई के कई रंग देखने को मिले। आरोप प्रत्यारोपों के बीच गद्दार और दलाल जैसे शब्द बाण छोड़े गए। कांग्रेस नेताओं को मुंह बंद रखने के लिए बकायदा लिखित एडवाइजरी जारी हुई। केन्द्रीय नेतृत्व को नेताओं की बयानबाजी पर रोक लगाने का फरमान जारी करना पड़ा। लेकिन सियासी संग्राम तब भी था और राहुल के राजस्थान से जाने की वेट कर रहा है। इसके बाद फिर से कांग्रेस नेताओं के बीच तलवारें निकलना तय है।
कांग्रेस के युवराज को याद दिलाने के लिए अभी हाल ही में उनकी यात्रा के दौरान ही हुए तानाशाही से लेकर मुंह बंद रखने तक के किस्सों को एक बार फिर ताजा कर देते हैं…
24 सितंबर – सीएलपी की बैठक
हाईकमान के निर्देश पर राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। सीएम गहलोत से मंथन के बाद ही सीएम हाउस में 25 सितंबर की शाम 7 बजे बैठक तय की गई। राहुल की बगल में बैठे इन्हीं राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ट्वीट करके इसकी जानकारी साझा की। सोनिया गांधी ने ऑब्जर्वर के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे (अब अध्यक्ष) और अजय माकन (अब पूर्व प्रभारी) को बैठक में प्रस्ताव पास करने की जिम्मेदारी दी गई।
25 सितंबर – बगावत, आधी रात को इस्तीफे और तानाशाही
ऑब्जर्वर मल्लिकार्जुन खड़के और अजय माकन दोपहर को जयपुर पहुंचे। शाम 7 बजे मुख्यमंत्री निवास पर विधायक दल की बैठक में जाना था। इससे पहले की तय रणनीति के मुताबिक गहलोत गुट के विधायक शांति धारीवाल के आवास पर जुटना शुरू हो गए। कुल 91 विधायक धारीवाल के बंगले पर एकत्रित हुए। यहां सबने मिलकर तय किया कि अशोक गहलोत को सीएम पद से नहीं हटने देंगे और सचिन पायलट या उनके गुट से किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। विधायक दल की बैठक में एक प्रस्ताव पास होना था कि राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री का फैसला अब हाईकमान करेगा। चूंकि गहलोत गुट के विधायकों को शंका थी कि हाईकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाएगा। इसी के चलते गहलोत गुट के विधायक सीएलपी की बैठक से पहले धारीवाल के बंगले पर एकत्रित हुए। विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करते हुए सभी विधायक अपना इस्तीफा लेकर विधानसभा अध्यक्ष के आवास पर पहुंच गए। हाईकमान से बगावत कर आधी रात को विधायकों ने इस्तीफे दे दिए।
26 सितंबर – ऑब्जर्वर खाली हाथ लौटे
25 सितंबर की देर रात तक ऑब्जर्वर मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन विधायकों का इंतजार करते रहे। आधी रात के बाद तक ड्रामा चलता रहा। 26 सितंबर की सुबह कांग्रेस की बगावत और तानाशाही देशभर में सुर्खियां बन गई। विधायकों की तानाशाही पर अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को काफी गुस्सा आया। दोपहर दो बजे वे दिल्ली लौटे। दिल्ली जाने से पहले मल्लिकार्जुन खड़के ने मुख्यमंत्री को फोन करके होटल में बुलाया और बातचीत की लेकिन अजय माकन का मूड खराब हो गया था। वे अशोक गहलोत से मिले बिना ही होटल से निकल कर एयरपोर्ट पहुंच गए। शाम पांच बजे सोनिया गांधी के आवास पर मुलाकात की। राहुल गांधी को क्यों यह पता नहीं कि राजस्थान कांग्रेस में तानाशाही की सोनिया गांधी लिखित में रिपोर्ट मांगी थी।26 सितंबर को केबिनेट मंत्री शांति धारीवाल ने प्रदेश प्रभारी और ऑब्जर्वर अजय माकन पर गंभीर आरोप लगाए। धारीवाल ने कहा कि अजय माकन ने सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाये जाने की लॉबिंग की। षड़यंत्र के तहत सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की साजिश रची गई। जो लोग सरकार गिराने में लगे हुए थे, उनके साथ मिलकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते थे लेकिन हमने उनके मंसूबे पूरे नहीं होने दिए।
27 सितंबर – नेताओं को मुंह बंद रखने की एडवाइजरी
सीएलपी की बैठक से बहिष्कार से खफा अखिल भारतीय कांग्रेट कमेटी के महासचिव ने केबिनेट मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री महेश जोशी और आरटीडीसी के चेयरमैन धर्मेन्द्र राठौड़ को नोटिस जारी किए। तीन नेताओं को नोटिस मिलने के बाद संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने 27 सितंबर को लिखित एडवाइजरी जारी करके पार्टी नेताओं के खिलाफ बयानबाजी करने पर रोक लगा दी थी। लेकिन मुंह बंद रखने की हिदायत काम नहीं आई। एडवाइजरी के कुछ ही दिन बाद फिर से गहलोत और पायलट खेमों के नेताओं ने बयानबाजी शुरू कर दी। पहली गाइडलाइन फेल होने के बाद अब वेणुगापेाल ने बैठक में नाराजगी जताते हुए 24 घंटे में बाहर करने की धमकी तक दे डाली।
28 सितंबर – सीएम को दिल्ली बुलाया
प्रदेश कांग्रेस में मचे घमासान पर तीन दिन तक चुप्पी साधने के बाद 28 सितंबर की रात 10 बजे अशोक गहलोत दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में मीडिया से बातचीत के दौरान गहलोत ने कहा कि ये छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती है, जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। ये कांग्रेस का इंटरनल मामला है। इसे जल्द सुलझा लिया जाएगा। इस दौरान गहलोत ने यही कहा कि सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। इस पूरे मामले पर वे अपने विवेक से फैसला लेंगी।
29 सितंबर- हाईकमान के चरणों में सरकार
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से मुलाकात की। 10 जनपथ पहुंचने से पहले दिल्ली के मीडियाकर्मियों ने अशोक गहलोत की गाड़ी को घेरा और बात करनी चाहिए, लेकिन उन्होंने बात नहीं की। इसी दौरान अपनी कार में बैठे गहलोत के हाथ में पकड़े कागज की मीडियाकर्मियों ने फोटो ले ली। इस कागज पर माफीनामा लिखा हुआ था। साथ ही सचिन पायलट द्वारा वर्ष 2020 में की गई बगावत और उनके समर्थित विधायकों की गणित के आंकड़े लिखे हुए थे। सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद गहलोत ने मीडिया से कहा कि राजस्थान कांग्रेस में जो भी हुआ। उसके लिए वे काफी दुखी और आहत हैं। आलाकमान द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को पास कराने की जिम्मेदारी मेरी थी, लेकिन मैं पास नहीं करा सका। आलाकमान अब जो भी निर्णय लेगा, हमें स्वीकार है।30 सितंबर – माफीनामा या तानाशाही
सीएम अशोक गहलोत के माफीनामे की पूरे देश में चर्चा रही। इस माफीनामे में अलग अलग बिन्दु लिखे थे। यह भी लिखा था कि सचिन पायलट पार्टी छोड़ने वाले हैं। पायलट पहले ऐसे नेता हैं जिसने प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए सरकार गिराने की कोशिश की। पायलट के साथ केवल 18 विधायक होने की बात भी लिखी हुई थी। यह भी लिखा था कि अगर पायलट को सीएम बना दिया तो प्रदेश के विधायकों में भय का माहौल बनेगा। यह भी संकेत दिए कि ऐसा होने पर सरकार गिर सकती है।