Home विचार ‘डोकलाम’ पर बार-बार ‘झूठ’ बोलकर देशहित को नुकसान पहुंचा रहे राहुल

‘डोकलाम’ पर बार-बार ‘झूठ’ बोलकर देशहित को नुकसान पहुंचा रहे राहुल

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एक अगस्त को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद सुलझा लिया गया है और अब जो भी विवाद है वह भूटान और चीन के बीच का है। सुषमा ने यह बयान संसद में दिया है, यानि इसका मतलब ये है कि इसमें कोई भी जानकारी देश से छिपाई नहीं गई है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पर एक अगंभीर टिप्पणी की है और ट्वीट कर कहा,  ‘‘आश्चर्य है! चीन की ताकत के सामने सुषमाजी जैसी महिला कैसे झुक गईं और असहाय हो गईं? हमारे नेता के पूरी तरह असहाय हो जाने के ये मायने हैं कि सीमा पर हमारे बहादुर जवानों के साथ विश्वासघात हो रहा है।’’

जाहिर है राहुल गांधी देश की संसद को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं जहां सुषमा स्वराज ने कहा कि डोकलाम पुरानी स्थिति में रत्ती भर भी बदलाव नहीं हुआ है और वहां किसी प्रकार का नया निर्माण भी नहीं हुआ।

अब राहुल गांधी इसके बाद भी राजनीतिक लाभ के लिए डोकलाम मुद्दे को तूल देने में लगे हैं। वे सत्ता की कुर्सी पाने की होड़ में देशहित भी भूल बैठे हैं और दो देशों के बीज गैर जरूरी विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल राहुल गांधी ने अपनी अपरिपक्वता का परिचय बार-बार दिया है। आइये हम ऐसे ही कुछ मामलों पर नजर डालते हैं।

डोकलाम मामले पर सरकार के स्टैंड का विरोध
जून, 2017 में भारत-चीन के बीच 73 दिनों तक सिक्किम से सटे डोकलाम क्षेत्र जबर्दस्त तनातनी का माहौल रहा। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिन हालातों में चोरी-छिपे भारत में मौजूद चीन के राजदूत लिओ झाओहुई से मिलने पहुंच गए उसने सारे देश को हैरान कर दिया। लेकिन पार्टी ने पहले मुलाकात से इनकार किया और फिर स्वीकार किया। सवाल उठने लगे कि राहुल और अन्य कांग्रेसी नेताओं के मन में कुछ गलत नहीं था तो उनकी पार्टी को पहले इस मुलाकात पर झूठ क्यों बोलना पड़ा?

चीनी राजदूत से मिले राहुल के लिए चित्र परिणाम

राफेल पर देश से बार-बार झूठ बोल रहे राहुल 
गत 20 जुलाई को संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल डील पर एक बार फिर ‘झूठ’ बोला और देश को गुमराह करने की कोशिश की। हालांकि उनके इस गलत बयानी को फ्रांस की सरकार ने पकड़ लिया और वक्तव्य जारी कर तुरंत इसका खंडन कर दिया। दरअसल राहुल गांधी इस सौदे को लेकर लगातार भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि मोदी सरकार के दौरान हुई यह डील यूपीए सरकार की तुलना में प्रति विमान 59 करोड़ रुपये सस्ती है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के दौरान 36 राफेल विमान का सौदा 1.69 लाख करोड़ में किया गया था, जबकि मोदी सरकार ने यही सौदा 59, 000 हजार करोड़ रुपये कम में किया है। जाहिर है राहुल के इस बयान पर फ्रांस की सफाई देश के लिए फजीहत का सबब बनी।

राहुल ने बहरीन में देश की नीतियों की आलोचना की
8 जनवरी, 2015 को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बहरीन के दौरे पर थे। वहां आर्गेनाइजेशन ऑफ पीपुल ऑफ इंडियन ओरिजिन की एक बैठक में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार के विरोध में कई बातें कहीं। राहुल ने रोजगार संकट, गिरती जीडीपी, नोटबंदी के गलत आंकड़े पेश कर और असहिष्णुता का मुद्दा उठाकर अपनी तुच्छ मानसिकता का परिचय दिया।

अमेरिका में भी राहुल ने किया था भारत को बदनाम
सितंबर, 2017 में जब राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर थे, तो उन्होंने यूएस की बर्कले यूनिवर्सिटी में भाषण देते समय, तमाम नीतियों को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा था। उस वक्त भी राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार पर झूठे आरोप लगाकर, विदेश में भारत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।


सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध
2016 में 28-29 सितंबर की रात पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में किया गया सर्जिकल स्ट्राइक शायद पहला ऐसा मौका था जब भारत में सेना और राजनीति एक पंक्ति में आ खड़ी हुई। दिलचस्प यह रहा कि लगभग हर विचारधारा और पार्टी के नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर किसी प्रकार का विरोध नहीं किया, लेकिन कांग्रेस ने अपनी कुत्सित राजनीति का परिचय यहां भी दे दिया। अक्टूबर, 2016 में राहुल गांधी ने सर्जिकल स्ट्राइक को ‘खून की दलाली’ करना कहा और पीएम मोदी पर इसका दोष मढ़ा। राहुल के ये कहने के पीछे जो भी भाव रहा हो, लेकिन यहां भी अपनी अपरिपक्व राजनीति का इजहार किया।

‘आजादी गैंग’ को राहुल गांधी का समर्थन
जेएनयू में छात्रों के एक वर्ग ने 9 फरवरी, 2016 को देशविरोधी नारेबाजी की थी। जेएनयू छात्र संघ के नेताओं की मौजूदगी में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और ‘कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा’ जैसी भड़काऊ नारेबाजी की थी। इन नारों को सुनने के बाद सारा देश स्तब्ध था, सरकार राष्ट्रद्रोहियों पर कार्रवाई में जुटी थी, लेकिन कांग्रेस भारत विरोधियों के समर्थन में कूद पड़ी थी। तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तब जेएनयू पहुंचकर कहा था- “केंद्र सरकार छात्रों की आवाज नहीं सुन रही है। जो लोग छात्रों की आवाज दबा रहे हैं, वह सबसे बड़े राष्ट्र विरोधी हैं। राहुल गांधी ने भले ही अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की, लेकिन इस दौरान वह देश में एक और विभाजन की लकीर जरूर खींच गए।

रोहिंग्या मुसलमान पर विरोध
रोहिंग्या मुसलमान आज पूरी दुनिया के लिए समस्या हैं। ये रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के लिए जहां आतंकवाद की समस्या हैं तो बांग्लादेश के लिए बढ़ती आबादी की चिंता का सबब हैं। मोदी सरकार का संकल्प रहा है कि वो ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना से खिलवाड़ नहीं होने देगी। एक ओर रोहिंग्या को लेकर तमाम शंकाएं हैं दूसरी ओर कांग्रेस रोहिंग्या पर राजनीति कर रही है। राहुल गांधी ने रोहिंग्या के बारे में अटपटा बयान दिया और देश की फजीहत करवा दी। उन्होंने कहा कि ”मैं इंसानियत के साथ”। वे ऐसा कहकर यह साबित करना चाहते थे कि वर्तमान सरकार मानवता भूल गई है। जाहिर है ऐसा कहकर वे यही बताना चाह रहे थे कि देश की सरकार अलग हैं और वे अलग। खास बात ये है कि रोहिंग्या जिन देशों के नागरिक हैं वही इन्हें आतंकी मानते हुए अपने यहां रखना नहीं चाहते। म्यांमार के दूसरे पड़ोसी देश बांग्लादेश, इंडोनेशिया, थाइलैंड भी रोहिंग्या को शरण देने को तैयार नहीं। करीब 50 मुस्लिम देशों ने आतंक से रोहिंग्या का नाता देखकर इन्हें शरण देने से मना कर रखा है। जाहिर है ऐसे में राहुल का ये बयान देश के स्टैंड के विपरीत है जिससे दुनिया में भारत के प्रति गलत संदेश गया। 

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