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RAHUL Gandhi को अपनी हार का डर…इसलिए नहीं लड़ना चाहते चुनाव! देश के केवल सात राज्य ही साथ…21 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेशों की कांग्रेस कमेटियों ने अभी तक नहीं किया समर्थन?

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क्या अजब संयोग है कि एक ओर भारत कांग्रेस से मुक्त हो रहा है और दूसरी ओर कांग्रेस गांधी परिवार से मुक्त होने की राह पर है! करीब ढाई दशक से कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार ने जकड़ रखा है। अध्यक्ष की कुर्सी सोनिया और राहुल के बीच फुटबाल बनी घूम रही है। गत 24 साल में पहली बार अध्यक्ष की कुर्सी के गांधी परिवार से बाहर जाने के समीकरण बन रहे हैं। कांग्रेस के दो दिग्गज नेता पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकते हैं। एक तरफ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं तो दूसरी तरफ केरल से पार्टी सांसद शशि थरूर ताल ठोंक रहे हैं। चूंकि गहलोत पर गांधी परिवार का वरदहस्त है, इसलिए थरुर की हालत जितेंद्र प्रसाद जैसी हो सकती है, जिन्हें साल 2000 में सोनिया गांधी से करारी शिकस्त मिली थी।आखिर राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की जिम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं ?
पहले बात राहुल गांधी की… आखिर वो अध्यक्ष बनने की जिम्मेदारी से क्यों भाग रहे हैं ? क्या कांग्रेस में बहती बयार ने उन्हें अहसास करा दिया है ? या वे 2024 की एक और संभावित हार का सदमा अपने सिर नहीं लेना चाहते ? दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि राहुल गांधी के लिए शरणागत होते हुए केवल सात राज्यों की कांग्रेस कमेटियों ने राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने का प्रस्ताव पास किया है। बाकी राज्यों की या तो राहुल गांधी में दिलचस्पी नहीं है, या फिर उनकी कांग्रेस कमेटियों ने ऐसा करने की जरूरत भी नहीं समझी।राहुल शरणम् गच्छामि…का पाठ करते हुए केवल सात राज्यों की कांग्रेस कमेटियों ने दिया समर्थन
राहुल गांधी की अध्यक्ष न बनने की ‘मजबूरी’ के बीच हाल ही में महाराष्ट्र, बिहार, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु कांग्रेस कमेटियों ने उन्हें अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास किया है। जबकि राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस कमेटियां पहले ही सर्व-सम्मति से इसे मंजूरी दे चुके हैं। राहुल चाहते तो इस तरह के प्रस्ताव पारित करने पर पहले दिन से ही रोक लग जाती, लेकिन शायद वो देखना चाहते थे कि स्वत:स्फूर्त कितने राज्यों का कांग्रेस संगठन अभी भी उनके साथ खड़ा है? बड़ा सवाल यही है कि इस रेट-रेस से क्या यह खुलासा नहीं होता कि इन सात राज्यों के अलावा बाकी 21 राज्य और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के कांग्रेसी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाना ही नहीं चाहते? शायद राहुल गांधी को इतने राज्यों की नापसंदगी की अहसास है, इसीलिए वो अध्यक्ष बनने के लिए इतना ना-नुकर कर रहे हैं।…तो लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी में 22 साल बाद इस तरह का मुकाबला होगा
अब अगर कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति नहीं बनती और चुनाव होता है तो लोकतंत्र की दुहाई देने वाली पार्टी में 22 साल बाद इस तरह का मुकाबला होगा। वर्ष 2000 में सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें प्रसाद को शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इससे पहले, 1997 में सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट के बीच अध्यक्ष पद को लेकर मुकाबला हुआ था, जिसमें सीताराम केसरी जीते थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थरूर के सोनिया गांधी से मिलने और अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर करने के बाद यह संभावना बढ़ गई कि वो चुनाव लड़ेंगे। इधर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी सोनिया-राहुल से मुलाकातें संकेत देती हैं कि वो गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में उतार सकते हैं। राहुल गांधी के न कह देने के बाद सोनिया गांधी के पास वैसे भी दूसरा विकल्प नहीं है।राहुल के डर से ढाई दशक के बाद गांधी परिवार से बाहर के नेता को कमान मिलेगी
अगर अशोक गहलोत और शशि थरूर चुनाव लड़ते हैं तो दो दशक से ज्यादा समय के ऐसा होगा जब गांधी परिवार से अलग कोई कैंडिडेट चुनावी मैदान में होगा। इससे पहले नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहने के दौरान सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष का चुनाव जीते थे। दरअसल, हाल ही में कांग्रेस के युवा सदस्यों ने पार्टी में बदलाव के लिए एक ऑनलाइन याचिका दी थी। तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद थरूर ने ट्विटर पर इसका समर्थन किया है। कार्यकर्ताओं की याचिका शेयर करते हुए थरूर ने लिखा- मैं इस याचिका का स्वागत करता हूं। इसमें अब तक 650 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने हस्ताक्षर किए हैं। मुझे इसका समर्थन कर आगे बढ़ाने में खुशी हो रही है।कांग्रेस सांसद थरूर युवाओं की ऑनलाइन याचिका से आगे बढ़े, अब युवाओं से ही उम्मीदें
इस ऑनलाइन याचिका में पार्टी के युवा सदस्यों ने सुधारों की मांग की है। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष पद के हर उम्मीदवार को यह संकल्प लेना चाहिए कि निर्वाचित होने पर वह ‘उदयपुर नवसंकल्प’ को पूरी तरह लागू करेगा। राजस्थान के उदयपुर में मई 2022 में हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद ‘उदयपुर नवसंकल्प’ जारी किया गया था, जिसमें पार्टी के संगठन में कई सुधार सुझाए गए थे। इनमें ‘एक व्यक्ति, एक पद’ और ‘एक परिवार, एक टिकट’ की व्यवस्था की बातें प्रमुख हैं।सोनिया गांधी के ही नक्शेकदम पर चल रहे हैं राहुल गांधी…उन्हें भी चाहिए कठपुतली नेता
दूसरी ओर अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के उम्मीदवार हो सकते हैं और अगर ऐसा होता है तो गांधी परिवार के भरोसेमंद होने और लंबे राजनीतिक तजुर्बे के चलते उनकी दावेदारी सबसे मजबूत होगी। वैसे, गहलोत ने एक बार फिर कहा है कि वह राहुल गांधी को चुनाव लड़ने के लिए मनाने का प्रयास करेंगे। लेकिन राहुल के बयानों से ऐसी उम्मीद नजर नहीं आती कि वो गहलोत की बातों में आकर फिर से कोई रिस्क लेंगे। दरअसल, जिस प्रकार सोनिया गांधी ने दिखावे के लिए प्रधानमंत्री पद ठुकराकर फिर अपना मनचाहे व्यक्ति को पीएम बनाया और पर्दे के पीछे ‘मौनी बाबा’ के युग में दस साल तक उन्होंने राज किया। ऐसा ही कुछ राहुल गांधी करना चाहते हैं। वे खुद अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं संभालकर किसी ऐसे कठपुतली नेता को कांग्रेस प्रधान बनाएंगे, ताकि संगठन से सारे सूत्र उनके ही हाथ में रहें। आपको याद होगा कि पार्टी प्रमुख की जिम्मेदारी संभालने के लिए राहुल से की गयी अपील के बावजूद, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने इस महीने की शुरूआत में कहा था कि उन्होंने फैसला कर लिया है, लेकिन अपनी योजनाओं का खुलासा नहीं करेंगे।

गहलोत के अध्यक्ष और सीएम दोनों ही बनने के संकेत के बाद सचिन समर्थकों के तोते उड़े
राजस्थान की राजनीति में जिसे कुछ कांग्रेसियों ने चुका हुआ नेता मान लिया था, वह गहलोत पूरे दम के साथ फिर उभरकर आ गए हैं। हालात यह हैं कि उन्होंने ऐसे संकेत दिए हैं यदि उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनना भी पड़ा तो मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में सचिन पायलट समर्थकों के तोते उड़ रहे हैं। हालांकि यह आलाकमान के ऊपर के कि पार्टी की गाइडलाइन के विपरीत वह एक व्यक्ति को दो पद दे या नहीं। आइये, आपको बताते हैं कि गहलोत के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद क्या-क्या संभावनाएं हो सकती हैं….विकल्प 1 : गहलोत अपने विश्वसनीय को ही बनाएंगे सीएम
पार्टी ने यदि एक व्यक्ति-एक पद पर ही जोर दिया और गहलोत को सीएम पद से हटना भी पड़ा, तो भी वो हार मानने वाले नहीं है। अपनी मजबूत पकड़ होने के चलते गहलोत अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान की बागडोर किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में दे सकते हैं जो उनके प्रति वफादार हो। राजनीतिक रूप से तेज हो और जिसकी स्वीकार्यता हो। इस रेस में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल सबसे आगे नजर आते हैं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी और बीडी कल्ला भी इस रेस में हैं। हालांकि उनके साथ कई दूसरे फैक्टर भी शामिल हैं। शांति धारीवाल का अनुभव व मजबूत पक्ष हैं, जो उन्हें इस दौड़ में सबसे आगे रख सकते हैं।विकल्प 2 : पायलट को सरकार चलाने की मुश्किल में डालेंगे
यह दूसरी संभावना है कि गहलोत के अध्यक्ष बनने के बाद आलाकमान गहलोत के न चाहने के बावजूद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना सकता है। इस स्थिति में राजस्थान में सचिन पायलट की स्वीकार्यता और सरकार चलाने पर नजर होगी। युवाओं में तो वे लोकप्रिय हैं, मगर विधायकों में उनकी स्वीकार्यता भी देखी जाएगी। अशोक गहलोत के अध्यक्ष रहते विधायक पायलट की ओर रुख करें, इसकी संभावनाएं कम लगती हैं। वहीं गहलोत के अध्यक्ष रहते पायलट स्वतंत्र रूप से काम कर सकेंगे या नहीं, इस पर भी सवाल रहेगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की स्थिति राजस्थान में पंजाब जैसी न हो, इस पर भी हाईकमान की नजर रहेगी।विकल्प 3 : सचिन पायलट को बना सकते हैं प्रदेशाध्यक्ष
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक एक संभावना यह भी है कि अशोक गहलोत के विश्वस्त को सीएम और सचिन पायलट को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया जाए। वहीं 2023 में सचिन पायलट के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाए। राजस्थान में वैसे हर 5 साल में सरकार बदलने का ट्रेंड है। वहीं दूसरी तरफ अगर वे अच्छा परफॉर्म करते हैं और सरकार बना लेते हैं तो उनका करियर उड़ान पर जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो गोविंदसिंह डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ेगा। ऐसे में गहलोत के विश्वस्त डोटासरा की लॉटरी लग सकती है। उन्हें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर मुख्यमंत्री बना सकती है। राहुल गांधी की तर्ज पर ऐसे में राजस्थान में सत्ता से सारे सूत्र गहलोत के हाथ में ही रहेंगे।विकल्प 4 : गहलोत अध्यक्ष न बनें और CM ही रहें
हालांकि अब इस विकल्प में ज्यादा दम नहीं दिख रहा है, क्योंकि गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का मन बना लिया है। राहुल गांधी यदि आगे नहीं आए तो गहलोत को पार्टी की कमान मिल सकती है, लेकिन यदि अंतिम मौके पर गांधी परिवार का ही कोई सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया तो ऐसे में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ही रहेंगे और संगठन में भी बदलाव नहीं होगा। ऐसे में पायलट के लिए एक संभावना यह हो सकती है कि वे केंद्र में चले जाएं। उन्हें कांग्रेस महासचिव बनाया जाए और वे पार्टी के लिए काम करें। ऐसी स्थिति में कई राजनीतिक लोग सचिन के पार्टी छोड़ने की बात भी करते हैं।

 

 

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