कांग्रेस पार्टी के तयशुदा अध्यक्ष राहुल गांधी आजकल कभी ‘सवाल का जवाब’ और कभी ‘जवाब का सवाल’ ढूंढने में लगे हुए हैं। वैसे बच्चों की तरह सवाल पूछने की उनकी ये आदत नई नहीं है। 10 साल की मनमोहन सरकार के दौरान भी ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने अपनी ही सरकार की फजीहत कराई। अलबत्ता, कौतुहल की वजह से वे बचपन में भी सवाल पूछते होंगे, लेकिन शायद उन्हें कोई समझा नहीं पा रहा कि भविष्य में भी पुरखों से विरासत में मिली राजनीति करनी है, तो बचपना छोड़नी पड़ेगी। लोकतंत्र में सवाल पूछना उनका हक है, लेकिन जब अपने सवालों से वे खुद सवाल बन चुके हैं, तो उनके राजनीतिक शुभचिंतकों की चिंता स्वभाविक है।
मनमोहन सरकार के अध्यादेश को बकवास बताया
घटना सितंबर, 2013 की है। भ्रष्टाचार में डूबी तत्कालीन मनमोहन सरकार अपने दागी नेताओं को बचाने के लिए एक अध्यादेश लेकर आई थी। उस अध्यादेश में दागी नेताओं की संसद सदस्यता बरकार रखे जाने की बात थी। सही में अगर राहुल चाहते तो मनमोहन सिंह को वैसा अध्यादेश तैयार करने की हिम्मत ही नहीं होती, लेकिन शायद कांग्रेस आलाकमान की सोची- समझी रणनीति के तहत राहुल के लिए एक ड्रामे का मंचन किया गया। दिल्ली में प्रेस क्लब को उनके ड्रामे के लिए मंच उपलब्ध कराया गया। वहां पर कांग्रेस के प्रेस कांफ्रेंस में अचानक पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहुंचे और उन्होंने अध्यादेश को फाड़ डालने तक की बात कह दी। राहुल ने कहा, “अध्यादेश पर मेरी राय है कि यह सरासर बकवास है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए।” यानी राहुल गांधी ने उस सरकार की मंशा पर ही सवाल उठाया था, जिसमें उनकी इच्छा के बिना एक पत्ता भी हिलना नामुमकिन था।
यूपी में फाड़ी चुनावी वादों की लिस्ट
2017 में कांग्रेस ने राहुल गांधी की अगुवाई में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके यूपी विधानसभा चुनाव लड़ी, लेकिन 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में उसी राहुल गांधी ने एक अलग चेहरा दिखाया था। उन्होंने एक चुनावी सभा में समाजवादी पार्टी के वादों की लिस्ट ये कहकर फाड़ दी थी कि ये सब 20 सालों से सुनते आ रहे हैं। अब अगर यूपी का विकास नहीं हुआ था, तो क्या उसके लिए अकेले अखिलेश या उनकी पार्टी जिम्मेदार है ? तब 8 साल से केंद्र में मां-बेटे की सरकार थी। दोनों अमेठी और रायबरेली के सांसद हैं। यानी यूपी में विकास नहीं होने के लिए कांग्रेस भी जिम्मेदार थी। यही नहीं बाद में ये बात भी सामने आई कि राहुल ने जो कागज फाड़ा था, वह एसपी की वादों की लिस्ट नहीं, कांग्रेस के नेताओं की ही एक लिस्ट थी। यानी यहां भी वे नौटंकी कर रहे थे।
आईएसआई के संपर्क में मुजफ्फरनगर के लड़के- राहुल
अक्टूबर, 2013 में उन्होंने इंदौर की एक रैली में ये कहकर सनसनी मचा दी थी कि यूपी के मुजफ्फरनगर के कुछ मुस्लिम लड़के आईएसआई के संपर्क में हैं। राहुल इतनी सी बात नहीं समझ पाए कि वे जो सवाल उठा रहे हैं, उसका जवाब भी उन्हीं से मांगा जाएगा। क्योंकि उस वक्त केंद्र में राहुल और सोनिया की ही सरकार थी, जो मनमोहन सिंह के नाम से बेनामी की गई थी।
गरीबी का भोजन से लेना-देना नहीं- राहुल
अगस्त, 2013 में राहुल ने इलाहाबाद के पंडित गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के एक कार्यक्रम में कहा था, ‘गरीबी सिर्फ एक मानसिक स्थिति है। इसका भोजन, रुपये या भौतिक चीजों से कोई लेना-देना नहीं। उन्होंने यहां तक कहा कि जबतक आदमी खुद में आत्मविश्वास नहीं लाएगा, उसकी गरीबी खत्म नहीं होगी।’
राहुल ने मधुमक्खी का छत्ता किसे कहा ?
अप्रैल, 2013 में दिल्ली के एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा था कि ‘चीन में केंद्रीकृत व्यवस्था है, इसलिए उसे ड्रैगन कहा जाता है, क्योंकि वह ताकतवर है। जबकि लोग हमें चीन से तुलना करने के लिए हाथी कहते हैं। लेकिन हम हाथी नहीं, मधुमक्खी का छत्ता हैं।’ राहुल ने यह बात कहकर एक तरह से मनमोहन सरकार के दौरान देश में मौजूद व्यवस्था पर ही सवाल उठाया था, जिसके ‘छत्ते’ के केंद्र में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं।
आलू की फैक्ट्री
इसी साल यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान एक रैली में राहुल गांधी ने आलू की फैक्ट्री लगाने में असमर्थता जताते हुए किसानों से सहानुभूति जताई थी। हालांकि इसके बाद वे सोशल मीडिया पर हंसी के पात्र बन गए थे। अगर उन्हें कभी बताया गया होता कि आलू, फैक्ट्री में नहीं किसानों के खून-पसीने से खेतों में उगाया जाता है तो वह ऐसी हरकत नहीं करते। उन्होंने कहा था, “केंद्र में मेरी सरकार नहीं है, मैं तो सिर्फ दबाव बना सकता हूं। आप चाहते हैं कि यहां पर आलू की फैक्ट्री लगाई जाए, लेकिन मोदी सरकार आपकी मांग नहीं मान रही है।”
इंदिरा कैंटीन को बताया अम्मा कैंटीन
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में इंदिरा कैंटीन योजना की लॉन्चिंग में भी राहुल गांधी के ज्ञान पर सवाल उठ गए। पहली बार में उन्होंने योजना का नाम ही गलत बता दिया। जबकि यह योजना उनकी दादी यानी इंदिरा गांधी के नाम पर शुरू हो रही थी, लेकिन राहुल गांधी ने उसे तमिलनाडु में जयललिता के नाम पर चलने वाली अम्मा कैंटीन बता दिया। हालांकि, बाद में उन्हें भूल का अंदाजा हुआ और उन्होंने गलती सुधारने की कोशिश की। लेकिन जिस व्यक्ति में सामान्य ज्ञान का इतना अभाव है उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?
फटे कुर्ते दिखाने पर उठे सवाल
बात उत्तराखंड की एक रैली की है। 10 साल तक देश के खजाने को लूटने वाली सरकार के परोक्ष तौर पर सर्वेसर्वा रहे राहुल गांधी ने यहां मंच से अपना फटा कुर्ता दिखाया। राहुल की ये हरकत शायद किसी को पसंद नहीं आई, लेकिन अगर राहुल गांधी को ये अंदाजा होता कि उनकी ऐसी हरकतों का लोगों पर असर क्या पड़ रहा है, तो वे ऐसी गलती कभी नहीं करते। लेकिन न तो उन्हें इस का एहसास है और न ही उनके पिच्छलग्गू कुछ बताने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
राहुल गांधी की इन्हीं हरकतों के चलते जनता लगातार हर चुनावों में कांग्रेस को सबक सिखाती रही है, लेकिन वे समझने के लिए तैयार नहीं हैं। पिछले कुछ समय में, खासकर गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने ऐसी ही कई उल्टी-सीधी हरकतें की हैं, जिसके चलते उनकी मानसिकता और समझ को लेकर गंभीर सवाल पैदा हो रहे हैं। वे कभी गलत आंकड़ा पेश करते हैं, तो कभी झूठ बोलकर जनता को बरगलाने का प्रयास करते हैं।
महंगाई को लेकर राहुल की समझ पर सवाल
राहुल ने हाल ही में ट्विटर पर लिखा “जुमलों की बेवफाई मार गई, नोटबंदी की लुटाई मार गई “ “GST सारी कमाई मार गई बाकी कुछ बचा तो – महंगाई मार गई “ “बढ़ते दामों से जीना दुश्वार, बस अमीरों की होगी भाजपा सरकार?” राहुल गांधी ने इस सवाल के साथ एक इन्फोग्राफिक्स भी पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने गैस सिलिंडर, प्याज, दाल, टमाटर, दूध और डीजल के दामों का हवाला देकर 2014 और 2017 के दामों की तुलना में सभी चीजों के दामों में वास्तविक दामों से सौ फीसदी ज्यादा की बढ़ोतरी दिखा दी है। जैसे ही राहुल गांधी ने ये ट्वीट किया, लोगों ने इस चालाकी को पकड़ लिया और फिर शुरू हो गई राहुल की खिंचाई।
आगे आपको बताते हैं कि पिछले कुछ समय से राहुल गांधी किस तरह से झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं:-
महिला साक्षरता के गलत आंकड़े देने पर घिरे
राहुल गांधी ने 3 दिसंबर को “22 सालों का हिसाब, गुजरात मांगे जवाब” अभियान के तहत प्रधानमंत्री मोदी से महिला सुरक्षा, पोषण और महिला साक्षरता से जुड़ा सवाल पूछा था, लेकिन इस सवाल के साथ राहुल ने जो इन्फोग्राफिक्स पोस्ट किया था उसमें गुजरात की महिला साक्षरता के उल्टे आंकड़े दिखाए थे। इन आंकड़ों में दिखाया गया था कि 2001 से 2011 के बीच गुजरात में महिला साक्षरता दर में 70.73 से गिरकर 57.8 फीसदी हो गई है।
राहुल गांधी ने जो आंकड़े दिखाए थे वे सरासर गलत थे। गुजरात में महिला साक्षरता की सच्चाई इसके उलट है। सही आंकड़ों के मुताबिक गुजरात में 2001 से 2011 के बीच महिला साक्षरता में 12.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। यह वृद्धि 1991 से 2001 के बीच हुई 8.9 फीसदी बढ़ोतरी से काफी ज्यादा है। इतना ही नहीं इस दौरान राष्ट्रीय स्तर पर हुई साक्षरता वृद्धि से भी ये काफी ज्यादा है। इससे एक बार फिर साफ हो गया है कि राहुल गांधी झूठे आंकड़े पेश कर गुजरात सरकार को बदनाम करने की साजिश कर रहे हैे।
गुजरात में बेरोजगारी के झूठे आंकड़े देकर फंसे
24 नवंबर को गुजरात में दो रैलियों में राहुल गांधी ने बेरोजगारी के अलग-अलग आंकड़े पेश कर दिए। 24 नवंबर को पोरबंदर में राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात में 50 लाख बेरोजगार युवा क्यों हैं? वहीं उसी दिन अहमदाबाद में चुनावी सभा में कहा कि गुजरात में 30 लाख बेरोजगार क्यों हैं?
45000 करोड़ एकड़ जमीन की बात कहकर बने सवाल
गुजरात चुनाव में प्रचार के दौरान ही राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोलने के क्रम में ऐसा कुछ कह दिया था जो कि असंभव है। राहुल ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी ने अपने उद्योगपति दोस्तों को 45000 करोड़ एकड़ जमीन दे दी, लेकिन राहुल ने जमीन का जो आंकड़ा बोला वह असंभव है। 45000 करोड़ एकड़ जमीन इस धरती से भी तीन गुना ज्यादा है। आपको बता दें कि पूरी धरती ही लगभग 13000 करोड़ एकड़ की है।Statue of Unity पर झूठ बोलकर फंसे
राहुल गांधी ने गुजरात में पाटीदारों को कहा कि मोदी सरकार के लिए शर्मनाक है कि नर्मदा नदी पर बनने वाला Statue of Unity सरदार पटेल की प्रतिमा made in China होगी। राहुल गांधी एक बार फिर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चक्कर में सरदार पटेल के नाम पर झूठ बाेला।Sardar Patel ji ki murti ban rahi hai,aur wo bhi China me ban rahi hai.Uske peechey ‘made in China’ likha hua hai,sharm ki baat hai-R Gandhi pic.twitter.com/Zbaasjza0T
— ANI (@ANI) September 26, 2017
— नंदिता ठाकुर (@nanditathhakur) September 26, 2017
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— Avinash Choubey (@avinashchoubey) September 26, 2017
डोकलाम के दौरान चीनी राजदूत से मुलाकात पर सवाल
देश के जवान जब सिक्किम की सीमा पर चीनी दबंगई का मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे, सीमा पर चीन की दादागीरी का पीएम मोदी हर स्तर पर प्रतिकार कर रहे थे, उसका जवाब दे रहे थे, उस समय कांग्रेस उपाध्यक्ष ‘दुश्मनों’ को गले लगा रहे थे। भारत और चीन में युद्ध जैसे हालात में भी सरकार को सूचना दिए बिना कांग्रेस के ‘युवराज’ ने चीनी दूतावास जाकर वहां के राजदूत लियो झाओहुई से मुलाकात की। गौर करने वाली बात यह भी है कि चीनी दूतावास के WeChat अकाउंट ने 8 जुलाई को राहुल की बैठक की पुष्टि की थी जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी की चीनी राजदूत से मुलाकात करने की खबरों को ‘फर्जी’ करार देते हुए इसे सिरे से खारिज किया था।
जवाब का सवाल मांगते राहुल
पिछले दिनों जवाब का सवाल मांगते हुए राहुल गांधी का एक वीडियो बहुत ज्यादा वायरल हुआ था। उस वीडियो को देखने के बाद ये बात साफ हो गई कि राहुल गांधी अपनी ही फजीहत क्यों करा बैठते हैं। क्योंकि उन्हें न तो भारत की और न ही भारतवासियों के बारे में कुछ भी पता है। उन्हें जो कुछ सिखाया जाता है, जो कुछ समझाया जाता है, वे उसी के आसपास मंडराते रह जाते हैं। उनकी अपनी कोई सोच ही नहीं है, शायद वे कभी बना ही नहीं पाए हैं।जाहिर है कि राहुल गांधी भले ही मोदी सरकार पर सवालों की बौछार करने में जुटे हों, लेकिन असलियत ये है कि वे खुद ही सवालों में घिरे हुए हैं। यही वजह है कि कांग्रेस को बपौती मानने वाली गांधी-नेहरू परिवार के एकाधिकार पर अब पार्टी के अंदर से ही गंभीर सवाल उठने लगे हैं। क्योंकि कांग्रेस में जिस नेता की भी थोड़ी जमीर बची हुई है, वह राहुल गांधी को आनुवांशिक अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है। लेकिन तय है कि राहुल या उनकी मां सोनिया गांधी कभी उन सवालों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होंगे।