Home विचार प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति से मालदीव में पस्त हुआ चीन

प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति से मालदीव में पस्त हुआ चीन

SHARE

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अक्सर सभी विदेश यात्राओं पर विपक्ष सवाल खड़े करता रहा है। हालांकि उनके सवालों का जवाब भारत की बढ़ती कूटनीतिक शक्ति से मिल रहा है। कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से अहम मालदीव पर एक बार फिर भारत का प्रभुत्व स्थापित हो गया है। भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा के अनुसार मालदीव के एक्सक्लूसिव इकॉनामिक जोन (ईईजेड) की निगरानी भारत की नौसेना ने फिर शुरू कर दी है।

मालदीव की सुरक्षा भारतीय नौसेना के हवाले
दरअसल भारत के पड़ोसी देश मालदीव में पिछले की महीनों से राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति है और इसमें चीन का दखल माना जा रहा था। कहा जा रहा था कि मालदीव का झुकाव चीन की तरफ हो गया है। इस बात में थोड़ी सत्यता अवश्य है, क्योंकि मालदीव ने अपने संविधान में कई तरह के फेरबदल कर अपने कई द्वीप चीन को दे दिए है। लेकिन भारत ने अपनी कूटनीति से इस पूरे प्रकरण को अपने पक्ष में मोड़ लिया है और मालदीव की समुद्री सीमा में भारतीय नौसेना की पहुंच फिर से स्थापित कर दी है। यह तय हुआ है कि हिंद महासागर के इस छोटे से देश की सुरक्षा का जिम्मा भारतीय नौसेना निभाएगी। इसके लिए वहां पर नौसेना का निगरानी जहाज आईएनएस सुमेधा तैनात किया जाएगा। मालदीव की सेना उसकी मदद करेगी। साथ ही नौसेना के मरीन कमांडो भी मालदीव भेजे जाएंगे।

चीन को अब यह समझ आ गया है कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी हैं, तब तक वह भारत पर अपनी शर्तें थोप नहीं सकता। चीन को यह भी स्पष्ट संदेश दिया जा चुका है कि भारत अपने हित को सर्वोपरि मानता है और देश हित से वह कतई समझौता नहीं करने जा रहा है। 

दरअसल चीन को अब यह समझ आ गया है कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी हैं, तब तक वह भारत पर अपनी शर्तें थोप नहीं सकता। चीन को यह भी स्पष्ट संदेश दिया जा चुका है कि भारत अपने हित को सर्वोपरि मानता है और देश हित से वह कतई समझौता नहीं करने जा रहा है। आइये कुछ ऐसे ही प्रकरण पर नजर डालते हैं जहां पीएम मोदी की कूटनीति से चीन पस्त हुआ- 

अरुणाचल में पेट्रोलिंग से बढ़ी चीन की टेंशन
अरुणाचल के सीमाई इलाके में 1962 युद्ध के बाद से अब तक कोई गोली नहीं चली है। इसके साथ एक सच यह भी है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत मंसूबा पाले बैठा है और अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता रहा है। हालांकि मोदी सरकार ने चीन के इस दावे को सख्ती से खारिज किया है। मोदी सरकार के दृढ़ निश्चय के कारण प्रदेश में जहां विकास कार्यों में तेजी आई है, वहीं सीमा सुरक्षा पर भी बल दिया गया है। चीन के सुबानसीरी इलाके में भारतीय सेना ने पेट्रोलिंग की तो चीन ने ऐतराज जताया, लेकिन भारत ने चीन की इस हिमाकत का जवाब में वहां सेना की गश्ती और तेज कर दी। गौरतलब है कि चीन ने आसफिला सेक्टर में 21, 22 और 23 दिसंबर को सेना की पट्रोलिंग पर विरोध जताया था।

पैंंगोंग झील से चीनी सैनिकों को खदेड़ा
चीन ने उत्तरी पैंगोंग झील के पास गाड़ियों के जरिये 28 फरवरी, 7 मार्च और 12 मार्च 2018 को घुसपैठ की। कहा जा रहा है कि चीनी सैनिक 6 किलोमीटर तक अंदर घुस आए थे।  लेकिन ITBP ने चीन के इस घुसपैठ पर विरोध जताया और चीनी सैनिकों को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया। दरअसल पैंगोंग का ये वही इलाका है, जहां पर 2017 के अगस्त महीने में चीनी सैनिकों ने भारतीय सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी की थी। इस साल भी चीनी सैनिकों ने पैंगोंग झील के पास उत्तरी पैंगोंग में ITBP के साथ बहस करने की कोशिश की थी, जिसको ITBP ने नाकाम कर दिया और उन्हें वापस अपनी सीमा में खदेड़ दिया।

डोकलाम में चीनी आर्मी को पीछे धकेला
वर्ष 2017 के जून महीने में चीन भारत-चीन-भूटान की सीमा के पास बने ट्राइ जंक्शन डोकलाम में घुसपैठ की थी। भूटान के इलाके में पड़ने वाला यह इलाका सामरिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है, परन्तु भारत ने चीनी सैनिकों को वापस उसकी सीमा में धकेल दिया। हालांकि 73 दिनों के आसपास तक चले इस प्रकरण में जिस तरह के मौखिक आक्रामकता और गीदड़ भभकी का प्रदर्शन चीन ने किया और उसके जवाब में जिस राजनीतिक परिपक्वता और टेंपरामेंट का परिचय भारत ने दिया उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद बढ़ा दिया। जिस तरह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सेना और कूटनीतिज्ञों ने डोकलाम प्रकरण पर चीन को पछाड़ लगाई इससे दुनिया की नजरों में यह संदेश गया है कि भारत केवल अपने हित के लिए नहीं बल्कि अपने पड़ोसी देशों के हितों की रक्षा के लिए भी तत्पर रहता है।

ओबीओआर पर चीन को धमकाया
चीन द्वारा PoK से वन रोड वन बेल्ट इनीशिएटिव का भारत ने प्रतिकार किया है और उसकी काट भी खोज ली है। दरअसल वन रोड, वन बेल्ट इनीशिएटिव चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो चीन को साठ से अधिक देशों से जोड़ेगा। इसी के तहत ये परियोजना चीन को मध्य एशिया के देशों से सीधे सड़क द्वारा जुड़ने के लिए भी एक विकल्प देता है।

दरअसल, वन बेल्ट-वन रोड उस चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर यानि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से गुज़रता है, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पड़ता है। भारत इसे अपना हिस्सा मानता है और इस इलाके में आर्थिक गतिविधियों में चीन के शामिल होने पर ऐतराज जताया है। भारत ने इस मसले पर स्पष्ट रुख अख्तियार किया है और कहा है- ”कोई भी देश ऐसे प्रोजेक्ट को स्वीकार नहीं कर सकता जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की उसकी चिंताओं को नकारता हो।” मोदी सरकार के इस रुख से चीन परेशान है। दरअसल चीन यह जानता है कि चीन के इस इनीशिएटिव में बिना भारत के शामिल हुए सफल नहीं हो सकती है।

श्रीलंका के हंबनटोटा पर चीन को घेरा
दिसंबर, 2017 में श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को 99 साल के पट्टे पर दे दिया है। चीन का दावा है वह इसका व्यावसायिक उपयोग करेगा, लेकिन चीन की नीयत पर संदेह इसलिए है कि साल 2014 में चीन की एक पनडुब्बी कोलंबो के पास हम्बनटोटा बंदरगाह के पास आ गई थी। लेकिन भारत सरकार ने चीन की इस चाल से बिना घबराए चीन को मात देने की तैयारी कर ली है।  इसके तहत वह हम्‍बनटोटा से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर मथाला एयरपोर्ट का अधिग्रहण करेगा। मतलब साफ है कि बंदरगाह से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर भारत की मौजूदगी हमेशा रहेगी। ऐसे में वह किसी भी परिस्थिति में चीन की हरकत पर नजर रख सकेगा।

मालदीव में चीन की दखल को नकारा
मालदीव में भारत के प्रति बढ़ते समर्थन को देखते हुए चीन चिढ़ा हुआ है। चीन भारत को धमकी भी देता है कि अगर भारत वहां दखल देगा तो चीन चुप नहीं बैठेगा। लेकिन मोदी सरकार की नीति से घिरा बैठा चीन इस मामले में सिवाय छटपटाने और धमकी देने के कुछ नहीं कर सकता है। दरअसल मालदीव में चीन के प्रति लोगों का गुस्सा भड़क रहा है और भारत के प्रति समर्थन बढ़ रहा है। इतना ही नहीं वहां का सुप्रीम कोर्ट और लोकतांत्रिक ताकतें भी भारत की तरफ उम्मीद लगाए बैठी है।

दलाईलामा को समर्थन देकर समझाया
केंद्र सरकार ने  2 मार्च को यह साफ किया है कि पड़ोसी देश चीन को खुश करने के लिए दलाई लामा को लेकर उसके स्टैंड में कोई बदलाव नहीं आया है। यह भी कहा कि दलाई लामा देश में कहीं भी धार्मिक आयोजन के लिए स्वतंत्र हैं। जाहिर है यूपीए सरकार के समय तो चीन की एक घुड़की से कांग्रेस सरकार परेशान हो जाती थी। इतना ही नहीं वह चीन के मान-मानऔव्वल में भी विश्वास करते थे। लेकिन अब परिस्थिति बदल गई है। दलाईलामा ने मोदी सरकार के राज में ही अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया जिससे चीन चिढ़ गया, लेकिन भारत सरकार ने अपने स्टैंड में कोई बदलाव नहीं किया।

Leave a Reply