नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले तीन साल में ना केवल देश को पूरी तरह से ऊर्जा संकट से बाहर निकाल लिया है, बल्कि आज देश बिजली की मांग की तुलना में करीब-करीब दोगुना उत्पादन क्षमता हासिल कर चुका है। यही नहीं अब बिजली उत्पादन के क्षेत्र में मांग और उत्पादन का अंतर लगभग खत्म हो चुका है। करीब 5 साल पहले का वो दिन याद कीजिए, जब पूरे देश में बिजली संकट के चलते त्राहिमाम मच गया था।
ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ चुका है देश
मई 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही देश में ऊर्जा क्षेत्र की विकराल समस्या के समाधान के लिए जिस विजन और मिशन के साथ निर्णय लिए और उसपर अमल करना शुरू कर दिया, जिसके परिणाम देश के सामने है-
- 28 फरवरी 2017 को देश में बिजली की उच्चतम मांग 159 गीगावॉट थी, जबकि कुल उत्पादन क्षमता 315.4 गीगावॉट की हो चुकी थी।
- 2016-17 में मांग और उत्पादन में अंतर सिर्फ 716 करोड़ यूनिट रह गया है, जो 2012-13 में 8,690.5 करोड़ यूनिट था।
- इसमें कोयले पर 68.2 प्रतिशत, जल पर 14.1 प्रतिशत, अक्षय उर्जा पर 15.9 प्रतिशत और परमाणु ऊर्जा पर 1.8 प्रतिशत उत्पादन निर्भर था।
- फरवरी 2017 में देश में पारंपरिक स्रोतों से 1,05,774.6 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ, जो 2012-13 में मात्र 91,205.6 करोड़ यूनिट ही हुआ था।
- देश में बिजली का ट्रांसमिशन करने वाली सरकारी कंपनी पावरग्रिड ने 31 दिसंबर, 2016 तक 1,34,018 सर्किट किलोमीटर लंबा तारों का जाल बिछाया है। 2015-16 में इसकी कुल आमदनी 6 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक थी।
- पावरग्रिड ने वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को नेशनल ग्रिड में लेने की पूरी व्यवस्था कर ली है।
- फरवरी 2017 के आंकड़ों के अनुसार देश में वैकल्पिक ऊर्जा में 26.54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 2012-13 में कुछ भी नहीं थी।
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत देश के सभी गांवों में 1000 दिन के अंदर बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। 23 मार्च, 2017 तक बिजली से वंचित 18,452 गांवों में से 12,699 गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है। 1 मई, 2018 से पहले बाकी बचे गांवों को भी रौशन करने का काम तेजी से चल रहा है। काम की गति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में अब मात्र 9 गांव ही बचे हैं जहां बिजली पहुंचाने का काम आखिरी चरण में है।
UJALA (Unnat Jyoti by Affordable LED for All)
मोदी सरकार बिजली उत्पादन, वितरण और गांवों में बिजली पहुंचाने के अभियान के साथ ही बिजली की बचत और कम ऊर्जा खपत वाले LED बल्ब लगाने की योजना पर भी तेज गति से काम कर रही है। 23 मार्च, 2017 तक देशभर में 22 करोड़ 5 लाख 88 हजार 510 LED बल्ब लगाए जा चुके थे, जिससे सालाना 2,864.7 करोड़ KWh ऊर्जा और 11 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की बचत होगी। इतना ही नहीं इससे प्रतिवर्ष कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 2 करोड़ 30 लाख टन से ज्यादा की कमी भी होगी।
दीर्घकालिक सोच से संभव हुआ देश का सपना
तीन साल के भीतर देश में ऊर्जा सेक्टर में हुआ कायाकल्प संपूर्ण और दीर्घकालिक ढांचागत सुधारों पर फोकस रखकर संभव हुआ है, जिसका लक्ष्य सभी के लिए चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध कराना है।
One Nation, One grid, One Frequency
मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही ट्रांसमिशन फ्रंट पर अधिक बिजली वाले राज्यों से कम बिजली वाले राज्यों तक बिजली आपूर्ति में मौजूद तमाम अड़चनों को दूर करने का काम शुरू किया और उसके बेहतरीन परिणाम मिलने शुरू हो गए।
UDAY (Ujwal DISCOM Assurance Yojana)
पावर वैल्यू चेन के सबसे कमजोर लिंक को ठीक करने के उद्देश्य से UDAY के तहत इस क्षेत्र की भूत, वर्तमान और भावी परेशानियों को दूर करने का काम किया जा रहा है। इससे DISCOM के लिए परिचालन में एक स्थायी सुधार का रास्ता निकला है, साथ ही सरकार भी बिजली लागत में कमी लाने के बहुत सारे उपाय कर रही है। इन प्रयासों के चलते उम्मीद है कि 2018-19 तक देश के सभी DISCOM लाभ कमाने लगेंगी।
मोदी सरकार से पहले बदहाल हो चुका था ऊर्जा क्षेत्र
मोदी सरकार ने ऊर्जा क्षेत्र का कैसे और कितना कायालट किया है ये समझना तब तक संभव नहीं है जबतक हम उस दौर का आकलन न कर लें, जो इस सरकार को विरासत में मिला था।
- 30-31 जुलाई, 2012 को देश के 5 में से 3 पावर ग्रिड उत्तरी, पूर्वी और पूर्वोत्तर पूरी तरह फेल हो गए थे । इन तीनों पर करीब करीब 50 हजार मेगावट बिजली के ट्रांसमिशन का भार था। एक साथ तीन ग्रिड फेल होने से देश की 60 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या का जीवन एक साथ ठहर गया था।
- संकट की शुरुआत आगरा स्थित लाइन में एक तकनीकी गड़बड़ी से हुई। लेकिन समय रहते सभी राज्यों के ग्रिड पर से तत्काल लोड कम करने को कह दिया जाता तो उतना बड़ा संकट पैदा नहीं होता। लेकिन आदेश जारी करते-करते समय हाथ से निकलता चला गया और पूरा ग्रिड ही ठप हो गया।
- जिस समय देश में बिजली की आपात स्थिति उत्पन्न हुई थी, उस समय और भी कई कारण मौजूद थे जिससे समस्या बहुत विकराल हो गई, यानी-
1. मांग और आपूर्ति में 10 प्रतिशत से भी अधिक का अंतर
2. राज्यों का ग्रिड अनुशासन का पालन न करना
3. ग्रिड्स के मेंटेनेंस पर ध्यान न देना
4. देश में उत्पादित 205 गीगावाट उर्जा का आधा हिस्सा सिर्फ कोयले पर निर्भर
5. कोयला और गैस की कमी के चलते 24,000 मेगावॉट से अधिक की उत्पादन क्षमता बेकार पड़ी थी। पूरा सेक्टर निष्क्रियता के दुष्चक्र और पॉलिसी पारालाइसिस में फंसा था।
6. मार्च 2012 तक कुल 200 गीगावॉट उत्पादन क्षमता में से केवल 25 गीगावॉट बिजली ही गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों (नवीकरणीय ऊर्जा) से मिलती थी और सौर ऊर्जा का हिस्सा तो बहुत ही कम था।
7. ट्रांसमिशन एवं वितरण की स्थिति बेहद खराब
8. 2014 में जब मोदी सरकार बनी तो 2/3 कोयला आधारित प्लांट्स में 7 दिन से भी कम कोयले का स्टॉक बचा था। आज ये स्थिति बिल्कुल बदल चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित तीनों मंत्रालयों बिजली, कोयला और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति को दी जिससे तालमेल की कमी न रहे और परिणाम आज पूरी दुनिया के सामने है। आज देश में पारंपरिक ही नहीं गैर-पारंपरिक ऊर्जा का भी भरपूर उत्पादन हो रहा है और वो सौर ऊर्जा के बहुत बड़े बाजार के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। एक आकलन के अनुसार अगले तीन साल में देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ कर 20 हजार मेगावॉट होने की संभावना है और इसी के चलते अब विदेशी कंपनियों की निगाहें भी भारत पर लगी हुई हैं। क्योंकि बीते तीन साल में भारत में सौर ऊर्जा का उत्पादन स्थापित क्षमता से चार गुना बढ़कर 10 हजार मेगावॉट पार कर गया है, जो देश की बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का 16 प्रतिशत है।