कश्मीरी हिंदुओं के साथ नब्बे के दशक में हुए नरसंहार की पोल खोलती फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ रिलीज होने के बाद से ही नित-नए रिकार्ड बना रही है। फिल्म के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री और उनकी रिसर्च टीम ने कड़ी मेहनत कर कश्मीर के तत्कालीन हालात, कश्मीरी पंडितों पर जुल्म के की खुलासे किए हैं। इसी फिल्म के एक डायलॉग ने 73 साल पुरानी परंपरा को फिर से जिंदा कर दिया है। इस डायलॉग का सिरा पकड़कर चित्तौड़गढ़ के आर्किटेक्ट व्यवसायी चंद्रशेखर चंगेरिया ने पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित शारदा पीठ की मौजूदा स्थिति को जाना। देश की 51 शक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ की ‘दुर्दशा’ से चंगेरिया आहत हुए और उन्होंने मित्रों की मदद से 73 साल बाद नवरात्र में शारदा पीठ पर मां की पूजा-अर्चना कराई। मंत्रोचार हुए और पुष्प अर्पित किए गए। यह पीठ करीब 1948-49 से बंद है।
अनुपम खेर के डायलॉग से शारदा पीठ को खोजकर पूजा कराने का इरादा किया
शारदा पीठ के लिए ये पहल 900 किमी दूर बसे चित्तौड़गढ़ के आर्किटेक्ट व्यवसायी चंद्रशेखर चंगेरिया ने की। दरअसल, चंद्रशेखर कुछ दिन पहले द कश्मीर फाइल्स मूवी देख रहे थे। फिल्म में पुष्कर नाथ पंडित का रोल कर रहे अनुपम खेर का डायलॉग था ‘जहां शिव, सरस्वती, ऋषि कश्यप, शंकराचार्य हुए, वो कश्मीर हमारा, जहां पंचतंत्र लिखा गया, वो कश्मीर हमारा’। फिल्म देखने के बाद चंद्रशेखर ने जानकारी जुटाई तो शारदा पीठ के बारे में पता चला। चंद्रशेखर ने चैत्र नवरात्रि में यहां पूजा करवाने की ठानी।
सरस्वती को समर्पित शारदा पीठ ज्ञान और हिंदू जागरण का प्रमुख केंद्र
इस स्टोरी के आगे जाने से पहले शारदा पीठ का इतिहास जान लेने जरूरी हो जाता है। शारदा पीठ को कई हजार साल पुराना माना जाता है। यह श्रीनगर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर पीओके में है। प्रमुख शक्तिपीठों में से एक यह पीठ कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। हालांकि अब इसके अवशेष ही बचे हैं। कहा जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान 237 ईसा पूर्व में शारदा मंदिर की स्थापना हुई थी। हिंदू देवी सरस्वती को शारदा भी कहते हैं। उन्हीं को समर्पित शारदा पीठ प्राचीन कश्मीर में ज्ञान और हिंदू जागरण का केंद्र था।
इतिहासकारों ने अपनी लेखनी में शारदा पीठ का किया है जिक्र
कई इतिहासकारों ने लिखा है कि प्राचीन कश्मीर में शारदा पीठ ज्ञान-प्राप्ति का एक प्रमुख केंद्र था। ईरानी इतिहासकार अल-बरूनी के अनुसार आठवीं सदी तक यह मंदिर प्रमुख तीर्थस्थल बन चुका था। 11वीं शताब्दी में कश्मीरी कवि बिल्हण ने शारदा पीठ के बारे में लिखा। उन्होंने कश्मीर को शिक्षा का संरक्षक बताया और उसकी ऐसी ख्याति के पीछे शारदा पीठ को वजह लिखा। कल्हण के महाकाव्य ‘राजतरंगिणी’ में भी शारदा पीठ को उपासना के प्रमुख स्थल के रूप में जिक्र है। कल्हण ने शारदा पीठ के राजनीतिक महत्व के बारे में भी लिखा है।
आदि शंकराचार्य ने खोला था शारदा पीठ का चौथा द्वार
14वीं सदी में लिखे गए माधवीय शंकर विजयम में ‘सर्वजन पीठम’ नाम की परीक्षा का जिक्र है। शारदा पीठ के चार द्वार थे और कोई विद्वान ही इन्हें खोल सकता था। ये द्वार पहले भी खोले जा चुके थे, मगर दक्षिणी द्वार को कोई नहीं खोल सका था। शंकराचार्य ने चुनौती स्वीकार कर ली। केरल से पैदल चलकर कश्मीर पहुंचे। लोगों ने उनका स्वागत किया, मगर विद्वान तुनक गए। जैसे ही वह दक्षिणी द्वार के पास पहुंचे, उन्हें न्याय दर्शन, बौद्ध, दिगंबर जैन के विद्वानों ने रोक लिया। फिर आदि शंकराचार्य ने उन सबको शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया। जैसे ही शंकराचार्य प्रवेश करने को थे, उन्हें देवी शारदा ने चुनौती दी। उस आवाज ने कहा कि प्रवेश के लिए केवल सर्वज्ञानी होना पर्याप्त नहीं, पवित्र भी होना चाहिए और चूंकि शंकराचार्य राजा अमरूक के महल में रहे थे, पवित्र नहीं हो सकते। शंकराचार्य ने जवाब दिया कि उनके शरीर ने कभी कोई पाप नहीं किया है और किसी और के पाप उन पर नहीं लादे जा सकते। मां शारदा ने शंकराचार्य का तर्क स्वीकार कर लिया और उन्हें अनुमति दे दी। दक्षिण भारत के ब्राह्मण आज भी शारदा पीठ को नमन करके कर्मकांड करते हैं।
शारदा बचाओ कमेटी और गांव के युवाओं के सहयोग से पीठ पर पहुंची पूजा सामिग्री
इस शारदा पीठ के महत्व को जान लेने के बाद अब आते हैं वर्तमान में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ निवासी चंद्रशेखर की भक्ति पर। द कश्मीर फाइल्स देखने के बाद उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि शारदा पीठ POK के नीलम घाटी जिले के शारदा गांव में है। चंद्रशेखर ने कश्मीरी पंडितों के हक के लिए संघर्षरत और शारदा बचाओ कमेटी से जुड़े रविन्द्र पंडित से संपर्क किया। उन्होंने भी कुछ जानकारी दी। इसके बाद चंद्रशेखर ने इंटरनेट के जरिए ही शारदा गांव के कुछ दुकानदारों के फोन नंबर जुटाए। गांव में रह रहे एक युवक से बात की तो वह शारदा पीठ तक पूजा सामग्री पहुंचाने के लिए राजी हो गया। इस युवक का उसके दो स्थानीय दोस्तों ने भी सहयोग किया।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से शारदा पीठ पर की गई वर्चुअल पूजा अर्चना
इस तरह चंद्रशेखर ने चैत्र नवरात्रि के पहले दिन खंडहर हो चुकी शारदा पीठ में वीडियो कॉल के जरिए फूल-फल, अगरबत्ती और नोट बुक-कलम भेंट करते हुए ऑनलाइन पूजा की। चंद्रशेखर ने बताया कि ऑनलाइन पूजा के दौरान उनके मित्र भरत सोनी, एकता शर्मा, प्रकाश कुमावत, दिलीप लोढ़ा, हर्षित जीनगर, राजेश साहू, सोनू वैष्णव, हितेश नाहर एवं मांडलगढ़ से ऋषि कुमावत ने शारदा पीठ के दर्शन किए। शारदापीठ मंदिर पर पूजा के लिए चंगेरिया और उनकी मदद करने वाले लोगों ने मंदिर तक पहुंचने के लिए तीर बार कोशिश की। आर्मी एरिया होने से वहां पहुंचना संभव नहीं था। इसके बाद शनिवार को तीनों मंदिर में पहुंच गए और पूजा-अर्चना की।कभी सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक शारदा पीठ अब खंडहर में तब्दील
चंद्रशेखर के मुताबिक शारदा पीठ कभी कश्मीरी पंडितों समेत सभी हिंदुओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल है। अब यह पीठ खंडहर बन चुकी है। 73 साल से यहां पूजा-अर्चना भी बंद थी। इस मंदिर को ऋषि कश्यप के नाम पर कश्यपपुर के नाम से भी जाना जाता था। शारदा पीठ भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक था। शैव संप्रदाय के जनक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए और महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। 11वीं शताब्दी में लिखी गई संस्कृत ग्रन्थ राज तरंगिणी में शारदा देवी के मंदिर का उल्लेख है। साभार- राकेश पाराशर. फोटो क्रेडिट-दैनिक भास्कर।