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पीएम स्वनिधि का कमाल: रेहड़ी-पटरी वालों के लिए वरदान बनी मोदी सरकार की यह योजना

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शहर की सुबह हो या शाम की रौनक, रेहड़ी–पटरी वाले हर वक्त हमारे आसपास होते हैं। सब्जी, फल, चाय, कपड़े या स्ट्रीट फूड हमारी रोजमर्रा की जिंदगी इन्हीं पर टिकी होती है। सड़क किनारे ठेला लगाने वाले और पटरी पर सामान बेचने वाले लोग हमारी अर्थव्यवस्था की असली रीढ़ हैं। लेकिन लंबे समय तक ये लोग सिस्टम से बाहर रहे, बिना पहचान और बिना सहारे के।

अक्सर ये लोग पूंजी की कमी और साहूकारों के कर्ज के जाल में फंसे रहते थे। बैंक से कर्ज मिलना मुश्किल, तय वेंडिंग जोन की कमी और सरकारी योजनाओं से दूरी इन सबने उनके जीवन को हमेशा असुरक्षित बनाए रखा। इन्हीं हालात को बदलने के लिए 01 जून 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम स्वनिधि योजना की शुरुआत की।

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि PMSVANidhi) योजना एक विशेष माइक्रो-क्रेडिट सुविधा योजना है। इस योजना से अभी तक वेंडर, हॉकर, ठेले वाले, रेहड़ी वाले, ठेली फलवाले सहित लाखों लोगों ने लाभ उठाया है। इस योजना के तहत लोन लेने के लिए उन्हें कोई गारंटी देने की जरूरत नहीं होती है। लोन को चुकाने के लिए सरकार आपको एक साल का समय देती है और अगर आप लोन समय पर वापस कर देते हैं तो आपको उसमें छूट भी मिलती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘पीएम स्वनिधि’ योजना ने इन छोटे दुकानदारों की किस्मत बदल दी है। जो योजना महामारी के समय एक छोटी सी मदद के रूप में शुरू हुई थी, वह आज करोड़ों परिवारों की आत्मनिर्भरता का सबसे बड़ा सहारा बन गई है। हाल ही में मोदी सरकार ने एक और बड़ा फैसला लेते हुए इस योजना की अवधि 31 मार्च 2030 तक बढ़ा दिया है।

मोदी सरकार ने इसके लिए 7,332 करोड़ रुपये का बजट रखा है, जो यह दर्शाता है कि सरकार इन छोटे उद्यमियों को लेकर कितनी गंभीर है। योजना के तहत 1.15 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। इनमें 50 लाख नए रेहड़ी–पटरी विक्रेता भी शामिल होंगे, जो पहली बार औपचारिक वित्तीय व्यवस्था से जुड़ेंगे। इससे अब रेहड़ी-पटरी वालों को अपना भविष्य धुंधला नहीं, बल्कि सुरक्षित नजर आ रहा है।

पहले इस वर्ग को बैंक के चक्कर लगाने पड़ते थे, लेकिन अब बैंक खुद इनके पास पहुंच रहे हैं। नई व्यवस्था के तहत लोन की किस्तों को भी काफी आकर्षक बना दिया गया है। अब पहले चरण का लोन 10,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये कर दिया गया है। दूसरा चरण अब 25,000 रुपये का है और तीसरे चरण में वेंडर्स पूरे 50,000 रुपये तक का लोन ले सकते हैं। वह भी बिना किसी गारंटी के! इससे छोटा काम शुरू करना और आसान होगा।

योजना में डिजिटल लेन-देन को भी खास तवज्जो दी गई है। समय पर दूसरा ऋण चुकाने वाले विक्रेताओं को यूपीआई से जुड़ा रुपे क्रेडिट कार्ड दिया जाएगा। यह क्रेडिट कार्ड अचानक आने वाले खर्चों या छोटे निवेश के लिए तुरंत मददगार साबित होगा। उन्हें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे रेहड़ी–पटरी विक्रेताओं की रोजमर्रा की परेशानियां काफी हद तक कम होंगी।

डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए कैशबैक का भी प्रावधान किया गया है। रोज की बिक्री पर साल में 1,200 रुपये तक का कैशबैक मिलेगा।
थोक खरीद पर भी राहत दी गई है। 2,000 रुपये या उससे ज्यादा की खरीद पर हर लेन-देन में कैशबैक मिलेगा, जिससे लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा।

डिजिटल भुगतान, यूपीआई और क्रेडिट कार्ड के जरिए ये लोग धीरे-धीरे अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं। सरकार ने इस योजना को कई बार राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया है। 2023 में इसे प्रधानमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार और 2022 में डिजिटल परिवर्तन के लिए रजत पुरस्कार मिल चुका है।

‘स्वनिधि से समृद्धि’ अभियान के तहत सिर्फ दुकानदार ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार को सुरक्षा दी जा रही है। 47 लाख से अधिक परिवारों की प्रोफाइलिंग की गई है ताकि उन्हें आयुष्मान भारत और बीमा जैसी 8 बड़ी सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। अभियान के तहत लोक कल्याण मेलों का आयोजन किया गया। 17 सितंबर से 15 अक्टूबर 2025 तक देशभर में ये मेले लगे। इन मेलों में विक्रेताओं को न सिर्फ लोन मिला, बल्कि उन्हें दूसरी सरकारी योजनाओं से भी जोड़ा गया।

इसके अलावा, स्ट्रीट फूड बेचने वालों को साफ-सफाई की ट्रेनिंग (FSSAI के जरिए) भी दी जा रही है। इससे उनके खाने की क्वालिटी बढ़ रही है और ग्राहकों का भरोसा भी, जिससे उनकी रोजाना की कमाई में इजाफा हो रहा है। इससे रेहड़ी–पटरी से शुरू होकर आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ता यह सफर अब और मजबूत होता दिख रहा है। आज ये वेंडर्स किसी के कर्जदार नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के सक्रिय हिस्सेदार और आत्मनिर्भर भारत के सच्चे सिपाही बन चुके हैं।

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