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पीएम मोदी की भारतीय खिलौना की रीब्रांडिंग की अपील कर गई काम, निर्यात में हुई 61 % वृद्धि, चीनी खिलौनों के ऊपर भारत के स्वदेशी खिलौने हावी!

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आज से कुछ सालों पहले तक मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। परंतु कुछ ही सालों के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूरदर्शी सोच को धरातल पर उतारकर हर मोर्चे पर लोगों को सशक्त बनाने का काम किया है। आज के समय में भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों में जुटा हुआ है। इसका ताजा उदाहरण खिलौना उद्योग है जिसने कुछ ही वर्षों के भीतर विकास के नए आयाम गढ़े हैं। पिछले तीन साल में भारतीय खिलौना बाजार में जबरदस्त तेजी आई है। पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के प्रयासों से ही यह करिश्मा संभव हुआ है। दरअसल, इस दौरान केंद्र सरकार ने देश में खिलौना बाजार से जुड़े तमाम खिलौना निर्माताओं और कारोबारियों को प्रोत्साहित किया है। केवल इतना ही नहीं मोदी सरकार ने देश की जनता को घरेलू खिलौनों को खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित किया। इसके चलते एक ओर भारत में खिलौनों का निर्यात बढ़ा तो वहीं खिलौनों का आयात भी घट गया। इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली बल्कि खिलौना उद्योग के फलने-फूलने से लोगों को रोजगार भी मिला है।

भारत का खिलौना उद्योग तेजी से फल-फूल रहा

तीन-चार वर्षों पहले तक भारत खिलौने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। खासतौर पर देश के खिलौना क्षेत्र पर चीन का बड़ा कब्जा था। भारत में 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आया करते थे। परंतु अब इसमें बहुत ही बड़ा बदलाव देखने को मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ का आह्वान भारत के खिलौना क्षेत्र को बदल रहा है। देश में खिलौना उद्योग तेजी से फलने-फूलने लगा है। महज तीन सालों के अंदर भारत में खिलौने के आयात में 70 फीसदी की कमी आई है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक तीन सालों में खिलौना आयात में 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। केवल इतना ही नहीं भारत अब दूसरे देशों को भी अपने बनाए गए खिलौने निर्यात कर रहा है। तीन सालों में खिलौने के निर्यात में 61 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है।

पीएम मोदी की भारतीय खिलौना की रीब्रांडिंग की अपील से बदला माहौल

अगस्त 2020 में ‘मन की बात’ के अपने संबोधन में पीएम मोदी ने ‘भारतीय खिलौना स्टोरी की रीब्रांडिंग’ की अपील की थी और घरेलू डिजाइनिंग को सुदृढ़ बनाने तथा भारत को खिलौनों के लिए एक वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में बनाने के लिए बच्चों के लिए सही प्रकार के खिलौनों की उपलब्धता, खिलौनों का उपयोग सीखने के संसाधन के रूप में करने, भारतीय मूल्य प्रणाली, भारतीय इतिहास और संस्कृति पर आधारित खिलौनों की डिजाइनिंग करने पर जोर दिया था। तत्पश्चात भारतीय खिलौना उद्योग को सरकार की कई सारी प्रोत्साहन नीतियों से लाभ पहुंचा है और इसके परिणाम ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम की सफलता प्रदर्शित करती है। यही वजह है अब आयात मुख्य रूप से खिलौनों के कुछ कंपोनेंट तक सीमित रह गए।

खिलौना निर्यात में हुई 61.39 % की बढ़ोतरी

व्यापारिक उत्पादों को वर्गीकृत करने के लिए एक मानकीकृत नामकरण का उपयोग किया जाता है और इसे एक कोड नाम दिया जाता है। एचएस कोड 9503, 9504 एवं 9503 के लिए, खिलौना निर्यात वित्त वर्ष 2018-19 के 202 मिलियन (20.2 करोड़) डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 326 मिलियन (32.6 करोड़) डॉलर रहा जो 61.39 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दर्शाता है। एचएस कोड 9503 के लिए, खिलौना निर्यात बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 के 109 मिलियन (10.9 करोड़) डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान बढ़कर 177 मिलियन (17.7) डॉलर पर पहुंच गया।

आत्मनिर्भरता की ओर कदम, खिलौना आयात में 70.35% की कमी

देश में खिलौनों के आयात की बात करें तो जो खिलौने भारत विदेश से खरीदता था अब उसमें भारी कमी आई है। एचएस कोड 9503, 9504 एवं 9503 के लिए भारत में खिलौनों का आयात वित्त वर्ष 2018-19 के 371 मिलियन (37.1 करोड़) डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 110 मिलियन (11 करोड़) डॉलर रहा जो 70.35 प्रतिशत की कमी दर्शाता है। एचएस कोड 9503 के लिए, खिलौना आयात में और तेजी से कमी आई है जो वित्त वर्ष 2018-19 के 304 मिलियन (30.4 करोड़) डॉलर की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान घट कर 36 मिलियन (3.6 करोड़) डॉलर पर आ गया। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने के साथ-साथ भारत का खिलौना बाजार भी तेजी से फल-फूल रहा है। महज तीन साल के भीतर भारत के खिलौना बाजार में यह तेजी आई है।

वैश्विक बाजार में भारतीय खिलौना उद्योग की हिस्सेदारी

भारतीय खिलौना उद्योग का कारोबार करीब 1.5 अरब डॉलर का है जो वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का 0.5% है। भारत में खिलौना निर्माता ज्यादातर एनसीआर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य भारतीय राज्यों के समूहों में स्थित हैं। बाजार का 90% हिस्सा असंगठित है। वहीं MSME क्षेत्र से करीब 4,000 खिलौना उद्योग इकाइयां हैं। माना जाता है कि भारत में खिलौना उद्योग में 2024 तक 2-3 अरब डॉलर तक बढ़ने की क्षमता है। भारतीय खिलौना उद्योग वैश्विक उद्योग के आकार का केवल 0.5% है जो एक बड़े संभावित विकास अवसर का संकेत देता है। वैश्विक औसत 5% के मुकाबले घरेलू खिलौनों की मांग 10-15% बढ़ने का अनुमान है। इस दिशा में भारत उम्मीद से भी ज्यादा तेजी से काम कर रहा है।

भारतीय खिलौना बाजार से चीन का वर्चस्व खत्म

प्रोत्साहन देने के बाद भारत सरकार द्वारा खिलौना उद्योग को कई तरह के कदम भी उठाए गए। सरकार ने खिलौना क्षेत्र में घरेलू उत्पादन बढ़ाने और खिलौने के आयात को कम करने के उद्देश्य से फरवरी 2020 में मूल सीमा शुल्क (Basic Custom Duty) को 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दिया था। इससे विदेशों से आने वाले खिलौने महंगे हो गए। इसके अतिरिक्त आयात होने वाले खिलौनों की गुणवत्ता मापने के लिए सैंपल टेस्टिंग की जाने लगी। दरअसल, सस्ते होने की वजह से चीनी खिलौने ने अपनी पकड़ भारतीय बाजार पर बना रखी थी। परंतु इनकी गुणवत्ता खराब होती थी। चीनी खिलौने में निम्न वर्ग की प्लास्टिक व अन्य खराब कच्चे माल का प्रयोग किया जाता था। हालांकि गुणवत्ता नियंत्रण आदेश लग जाने के कारण ऐसे माल का आयात होना कम हो गया है और इससे घरेलू उद्योगों को उभरने का मौका मिला। इसके साथ ही वर्ष 2021 में “द इंडिया टॉय फेयर 2021” का भी आयोजन किया गया था। देश के एक हजार से भी अधिक खिलौना विनिर्माता ने हिस्सा लिया था और इस मंच के माध्यम से उन्हें अपने प्रोडक्ट को दुनिया के सामने पेश करने का मौका मिला था। तो कुछ इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रोत्साहन और सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों से भारत के खिलौना उद्योग को बढ़ावा मिला और चीन का वर्चस्व भारतीय बाजार से खत्म होता गया।

‘वोकल फॉर लोकल’ को मिला बढ़ावा

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 2-5 जुलाई 2022 तक टॉय बिज बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी आयोजित की गई। प्रदर्शनी में भारतीय लोकाचार पर आधारित खिलौनों का प्रदर्शन किया गया जो ‘वोकल फॉर लोकल’ थीम का विधिवत समर्थन करते हैं। प्रत्येक खिलौना वर्ग के पास किफायती और हाई-एंड संस्करण थे। यह 2019 में आयोजित प्रदर्शनी के 12वें संस्करण की तुलना में एक महत्वपूर्ण बदलाव है जिसमें 116 स्टॉल थे और 90 स्टॉल केवल आयातित खिलौनों का प्रदर्शन कर रहे थे। इस प्रदर्शनी में भारत के 3,000 से अधिक आगंतुकों तथा सऊदी अरब, यूएई, भूटान, अमेरिका आदि से अंतरराष्ट्रीय खरीदार शिष्टमंडल ने भाग लिया। कुछ इस प्रकार भारत सरकार लगातार भारतीय खिलौना बाजार के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है और इसके नतीजे महज तीन साल के भीतर ही हमें देखने को भी मिल रहे हैं।

अब भारत में बन रहे GI टैग वाले खिलौने

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित टॉय बिज बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी के दौरान 96 प्रदर्शकों ने पारंपरिक प्लश खिलौनों, निर्माण उपकरण खिलौनों, गुड़िया, बिल्डिंग ब्लौक्स खिलौनों, बोर्ड गेम्स, पजल्स, इलेक्ट्रोनिक खिलौनों, शिक्षाप्रद खिलौनों, राइड-ऑन से लेकर विविध उत्पाद वर्ग प्रदर्शित किए। सभी खिलौना उत्पाद ‘मेड इन इंडिया’ उत्पाद थे जो लघु, मझोले तथा बड़े उद्यमों द्वारा घरेलू रूप से विनिर्मित्त थे। जीआई टैग वाले खिलौने जैसे कि चेन्नापटना, वाराणसी आदि का भी प्रदर्शन किया गया।

खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टर में स्थान मिला

सरकार ने खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टर में स्थान दिया है। भारतीय खिलौनों को वैश्विक खिलौना बाजार में बड़ी भूमिका निभाने हेतु खिलौना उद्यमियों को प्रेरित किया जा रहा है। सरकार भारतीय खिलौनों को प्रोत्साहित करते हुए विदेशी खिलौनों की निर्भरता कम करने और भारतीय क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने और भारतीय खिलौने के ज्यादा से ज्यादा निर्यात के प्रयासों में जुट गई है। सरकार की रणनीति है कि सिर्फ घरेलू ही नहीं, बल्कि वैश्विक खिलौना बाजार में भी भारतीय खिलौनों की छाप दिखाई दे। खिलौना उत्पादकों से कहा गया है कि वे ऐसे खिलौने बनाएं, जिनमें एक भारत, श्रेष्ठ भारत की झलक हो और उन खिलौनों को देख दुनिया वाले भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के प्रति गंभीरता जताएं और भारतीय मूल्यों को समझ सकें।

देश में खिलौना निर्माण के कई सिद्धहस्त कारीगर

इस बात में कोई दो राय नहीं कि देश में खिलौना निर्माण के कई कलस्टर हैं, जिनकी अपनी पहचान है और वहां पर सैंकड़ों कारीगर अपने अपने तरीके से स्वदेशी खिलौनों का निर्माण कर रहे हैं। अमूमन, ये घरेलू कारीगर जो खिलौना बनाते हैं, उनमें भारतीयता व हमारी संस्कृति की स्पष्ट छाप होती है, अद्भुत झलक मिलती है। यही वजह है कि इन कारीगरों और खिलौना निर्माण के कलस्टर को नए विचारों व सृजनात्मक तरीके से प्रोत्साहित किया जा रहा है। यही नहीं, तकनीक और नए आइडिया वाले खिलौनों के निर्माण के दौरान उत्पाद की गुणवत्ता पर भी ध्यान रखा जा रहा है, ताकि वे वैश्विक मानकों को पूरा कर सकें।

बाजार में दो तरह के खिलौने

बाजार में मुख्य रूप से दो तरह के खिलौने दिखते हैं। कुछ खिलौने एसे होते हैं जो बच्चों की मौज-मस्ती का जरिया बनकर उन्हें खुशी प्रदान करते हैं। वहीं दूसरी किस्म के खिलौने बच्चों को खुश करने के साथ ही उनके मानसिक विकास में भी उपयोगी होते हैं। पुराने समय में खिलौने प्राकृतिक चीजों से बनते थे, जैसे लकड़ी, पत्थर या मिट्टी लेकिन आजकल ये प्लास्टिक, फर और दूसरी कृत्रिम चीजों से बन रहे हैं। आजकल गुड़िया से लेकर मैकेनिकल सेट, डिजाइनर बोर्ड गेम्स, पजल्स, कम्प्यूटर गेम्स, स्टफ्ड एनिमल्स, रिमोट कंट्रोल कार आदि बनाए जाते हैं।

खिलौना क्षेत्र के लिए भारत सरकार द्वारा की गई युक्तियां

विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने 2019 में अधिसूचना जारी कर प्रत्येक खेप के नमूना परीक्षण का आदेश दिया था और जब तक गुणवत्ता परीक्षण सफल नहीं होता, बिक्री की अनुमति नहीं दी थी। विफलता की स्थिति में, खेप को या तो वापस भेज दिया जाता है या आयातक की कीमत पर उसे नष्ट कर दिया जाता है। सरकार ने 25 फरवरी 2020 को खिलौना ( गुणवत्ता नियंत्रण ) आदेश जारी किया था जिसके माध्यम से खिलौनों को अनिवार्य भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) प्रमाणीकरण के तहत ला दिया गया है। गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) के अनुसार, प्रत्येक खिलौना संगत भारतीय मानक की आवश्यकताओं के अनुरूप होगा तथा बीआईएस ( अनुरूपता आकलन ) विनियमन, 2018 की स्कीम-1 के अनुसार बीआईएस से एक लाइसेंस के तहत मानक चिन्ह धारण करेगा। यह घरेलू विनिर्माताओं तथा विदेशी विनिर्माताओं, जो अपने खिलौनों का भारत में निर्यात करना चाहते हैं, दोनों पर ही लागू है। इससे जहां भारतीय खिलौना में गुणवत्ता आई है वहीं अब निर्यात में भी आसानी हुई है। अब बीआईएस द्वारा प्रमाणित खिलौने ही देश के बाजार में बेचे जा सकते हैं।

घरेलू विनिर्माताओं को 843 लाइसेंस दिए गए

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने खिलौनों की सुरक्षा के लिए घरेलू विनिर्माताओं को 843 लाइसेंस प्रदान किए हैं जिसमें से 645 लाइसेंस गैर-बिजली वाले खिलौनों के लिए प्रदान किए गए हैं तथा 198 लाइसेंस बिजली वाले खिलौनों के लिए प्रदान किए गए हैं। इसके अतिरिक्त 6 लाइसेंस अंतरराष्ट्रीय खिलौना विनिर्माताओं को प्रदान किए गए हैं।

खिलौना निर्माण के विभिन्न पहलू

खिलौने बनाने के लिए आवश्यक पॉलिएस्टर और संबंधित फाइबर के उत्पादन में भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। इससे कम लागत पर कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित हुई और भारत के खिलौना उद्योग को फलने- फूलने में मदद मिली है। इलेक्ट्रॉनिक और रिमोट-कंट्रोल खिलौनों के निर्माण के लिए सटीक उपकरण पर तकनीकी जानकारी की आवश्यकता होती है। इस तरह कुशल कारीगरों की आवश्यकता होती है। भारतीय खिलौना कंपनियों में कारीगरों और शिल्पकारों की भी व्यापक जरूरत होती है और इससे उनको रोजगार मिलता है। पारंपरिक खिलौने संस्कृति का प्रतिबिंब हैं और श्रम-उन्मुख उद्योग में महत्वपूर्ण हैं जो समुदायों में मौजूद मान्यताओं और परंपराओं को प्रदर्शित करते हैं।

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