रूस के सोची में 21 मई, 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अनौपचारिक मुलाकात हुई। राष्ट्रपति पुतिन से पीएम मोदी का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया, वहीं पीएम मोदी ने चौथी बार राष्ट्रपति चुने जाने के लिए राष्ट्रपति पुतिन को बधाई दी। उन्होंने कहा, ”भारत के साथ राष्ट्रपति पुतिन का विशेष रिश्ता रहा है। मेरे राजनीतिक जीवन में रूस का विशेष महत्व रहा है।’‘ उन्हेंने भारत और रूस के संबंधों के महत्व पर कहा, ”भारत और रूस के बीच लंबे समय से दोस्ताना संबंध हैं। मैं राष्ट्रपति पुतिन का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने मुझे अनौपचारिक वार्ता के लिए आमंत्रित किया है।”
दरअसल दोनों नेताओं की मुलाकात निकट भविष्य में भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग की दशा और दिशा तय करने वाली है। इसके साथ ही यह मुलाकात बदलती वैश्विक परिस्थियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका अब बड़ी हो गई है।
वैश्विक स्तर पर देशों के संबंधों ने बहुत तेजी से बदलाव हो रहे हैं। एक ओर जहां यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के बीच दूरियां बढ़ गई हैं, वहीं अरब देशों में भी तेजी से घटनाक्रम बदल रहे हैं। दूसरी ओर चीन और अमेरिका के बीच आई तल्खी विश्व कूटनीति में एक नई परिस्थिति पैदा कर रही है।
इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को रूस के राष्ट्रपति द्वारा निमंत्रण दिया जाना और पीएम मोदी का रूस जाना भी इसी कूटनीति की अगली कड़ी मानी जा सकती है। जाहिर है तेजी से बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में पीएम मोदी का यह दौरा बेहद अहम है।
दरअसल मोदी और पुतिन के बीच दिसंबर, 2018 तक चार और द्विपक्षीय मुलाकातों की तैयारी है। आगे किन मुद्दों पर दोनों देशों को सहमति बनानी है, इसका फैसला सोची में कर लिया जाएगा।
ईरान से अफगानिस्तान और मध्य एशिया होते हुए रूस तक रेल और सड़क मार्ग का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करने के साथ आपसी सहयोग से तीसरे देशों में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने पर खास जोर दिया जाएगा।
दरअसल भारत के हित के लिए प्रधानमंत्री मोदी किसी तरह के अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं आते हैं। वे एक साथ कट्टर दुश्मन देश जॉर्डन, अरब और इजरायल तक को साध जाते हैं तो अमेरिका और रूस से भी बेहतर संबध रखने में सफल हैं।
हालांकि एक वक्त था जब भारत विश्व समुदाय में अलग-थलग पड़ चुका था और वैश्विक मुद्दों पर मूकदर्शक हुआ करता था, लेकिन बीते चार सालों में अब वह दौर काफी पीछे छूट चुका है। आज पूरी दुनिया में भारत को गंभीरता से लिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कई चीजें ऐसी हुई हैं जिससे यह बात साबित होती है कि भारत को अब कोई हल्के में नहीं ले सकता। पीएम मोदी के लीडरशिप में भारत न केवल विश्व क्षितिज पर दमदार स्थिति में आया है बल्कि ग्लोबल ताकत बन गया है। आइये हम ऐसे ही कुछ उदाहरण देखते हैं-
अमेरिका और रूस से एक साथ दोस्ती
अमेरिका और रुस की अदावत सभी जानते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की के कूटनीतिक कौशल के कारण आज दोनों ही देश भारत के साथ खड़े दिखते हैं। वर्ष 2017 में चीन में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में जिस तरह से रूस ने भारत का साथ देते हुए चीन की हेकड़ी गुम कर दी वह काबिले तारीफ है। ठीक इसी तरह पाकिस्तानपरस्त रहे अमेरिका को भारत की तरफ ले आना भी बड़ी बात है। आज अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका ने भारत से दोस्ती की खातिर आज पाकिस्तान को हर मंच पर अकेला छोड़ दिया है।
‘कट्टर तिकड़ी’ को एक साथ साध गए पीएम मोदी
विदेश नीति के तौर पर उनकी उपलब्धियां आंकी जाए तो इस बात से अंदाजा लग जाएगा कि किस तरह उन्होंने इजरायल और फिलीस्तीन जैसे आपस में दुश्मन देशों के बीच संतुलन स्थापित किया। विशेष यह कि प्रधानमंत्री ने बारी-बारी दोनों ही देशों का दौरा किया और भारत की विदेश नीति के अपने स्टैंड पर कायम रहे। दोनों ही देशों ने भारत के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। 10 फरवरी को जब प्रधानमंत्री ने फिलीस्तीन का दौरा किया तो ऐसा अद्भुत नजारा दिखा जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। जॉर्डन के हेलिकॉप्टर पर सवार प्रधानमंत्री मोदी फिलीस्तीन के आसमान में उड़ रहे थे और उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रही थी इजरायल की वायुसेना। विश्व राजनीति के लिए ऐसा अनोखा काम कोई और नही हो सकता है।
History in the making. In a first-ever visit by an Indian Prime Minister to Palestine, PM @narendramodi on the way to Ramallah in a chopper provided by Jordan government and escorted by choppers from Israel Air Force. pic.twitter.com/Nx7AtyLS8W
— Raveesh Kumar (@MEAIndia) 10 फ़रवरी 2018
Asean देशों को चीन के ‘चंगुल’ से छुड़ाया
26 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के राजपथ पर विश्व ने एक और अनोखा दृश्य तब देखा जब आसियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्ष भारत की जमीन पर एक साथ दिखे। थाइलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई आसियान के नेताओं ने भारत को अपनी इस इच्छा से अवगत कराया है कि रणनीतिक तौर पर अहम भारत-प्रशांत क्षेत्र में ज्यादा मुखर भूमिका निभाए। साफ है कि आसियान देशों के नेताओं का पीएम मोदी पर भरोसा व्यक्त किया जाना विश्व राजनीति में भारत के दबदबे को दिखा रहा है।
जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा
जलवायु परिवर्तन पर काम करने के लिए भारत वैश्विक नेतृत्व को प्रेरित कर रहा है क्योंकि भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरत का 40% हिस्सा 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया है। भारत ने ऊर्जा के लिए कोयले से सौर की तरफ रूख करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। सौर और पवन ऊर्जा में भारी निवेश से बिजली की कीमतें भी कम हुई हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार यह साहस भी दिखाया है जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग किया तो दुनिया की नजर भारत पर ठहर गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व मंच पर अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज करा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर ही इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का गठन हुआ जिसमें 121 देश शामिल हैं।
आतंकवाद पर दुनिया ने स्वीकारा पीएम मोदी का आह्वान
आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं। पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे साथ हैं। जी-20 हो या हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन, ब्रिक्स हो या सार्क समिट सभी ने हमारे साथ आतंकवाद को मानवता का दुश्मन बताते हुए दुनिया को इसके खिलाफ एक होने का आह्वान किया है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातर बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत को एक और कामयाबी मिली है। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव जीत लिया है। अब भारत अगले दो वर्षों तक अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन का सदस्य बना रहेगा। कुल 10 सदस्यों वाले इस संगठन का भारत 1959 से सदस्य है। फिलहाल जो चुनाव हुआ है वह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन की एक काउंसिल के लिए हुआ है। यहां वह काउंसिल कैटेगरी बी की है जिसके लिए पहली बार चुनाव हुआ है। चुनाव के बाद इंग्लैण्ड में मौजूद भारतीय हाई कमीशन ने खुशी जाहिर करते हुए ट्वीट किया कि यह देश के लिए गर्व की बात है।
India enters the IMO Council under category B having won 144 votes, the second highest in the category. A proud moment for the country @SushmaSwaraj @MEAIndia @shipmin_india @IMOHQ pic.twitter.com/bZO2NFKICk
— India in the UK (@HCI_London) December 1, 2017
नौवहन मंत्री नितिन गडकरी ने खुद लंदन जाकर IMO के वार्षिक समारोह में हिस्सा लिया था और भारत के लिए सपोर्ट भी मांगा था। IMO यूएन की ऐसी एजेंसी है जो नौवहन के बचाव और सुरक्षा पर नजर रखती हैं। यह एजेंसी जहाजों द्वारा फैलाए जाने वाले प्रदूषण पर भी नजर रखती है। भारत और जर्मनी के साथ ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, स्पेन, ब्राजील, स्वीडन, नीदरलैंड और यूएई इसके सदस्य हैं।
ICJ में भारत का झंडा बुलंद
संयुक्त राष्ट्र में भारत को बड़ी जीत तब मिली जब दलवीर भंडारी लगातार दूसरी बार अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। दलवीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन आखिरी दौर में अपनी हार देखते हुए उन्हें नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल शुरुआती ग्यारह राउंड में दलवीर भंडारी संयुक्त राष्ट्र महासभा की वोटिंग में ग्रीनवुड पर भारी बढ़त बनाए हुए थे, लेकिन सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड आगे हो जाते थे। यूएन महासभा में दलवीर भंडारी को 183 वोट मिले, जबकि उन्हें सुरक्षा परिषद के सभी 15 वोट मिले। गौर करें तो यह जीत भंडारी की नहीं बल्कि भारत के उस बढ़े कद की है जो पिछले तीन सालों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ा है। कभी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन आज भारत के सामने बौना साबित हो रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर बना ‘अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन’
दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए चिंता जता रही थी, लेकिन भारत ने बड़ी पहल की और वैश्विक स्तर पर अमेरिका और फ्रांस के साथ इसके लिए इनोवेशन की तरफ कदम बढ़ाया गया। 26 जनवरी, 2016 को गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया तो एक ‘नये अध्याय’ की शुरुआत हुई। दरअसल ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई पहल का परिणाम है और इसकी घोषणा भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में की गई थी। आईएसए के गठन का लक्ष्य सौर संसाधन समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और इसे बढ़ावा देना है। अब तक इस मंच से दुनिया के 36 से अधिक देश जुड़ चुके हैं।
डोकलाम पर चीन ने देखी भारत की धमक
अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक-टैंक हडसन इंस्टिट्यूट के सेंटर ऑन चाइनीज स्ट्रैटजी के डायरेक्टर माइकल पिल्स्बरी नो कहा कि चीन की बढ़ती ताकत के समक्ष मोदी अकेले खड़े हैं। दरअसल ये टिप्पणी उन्होंने ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को ध्यान में रखते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और उनकी टीम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के खिलाफ मुखर रही है। दरअसल अमेरिकी थिंक टैंक का मानना बिल्कुल सही है, क्योंकि भारत ने चीन को डोकलाम विवाद में भी अपनी दृढ़ता का परिचय करा दिया है और चीन को अपनी सेना को वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा। चीन ने भारत को युद्ध की भी धमकी दी लेकिन पीएम मोदी की नीतियों से चीन अकेला हो गया और पश्चिमी देशों ने उसे संयम बरतने की सलाह दी। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े रहे।
अंतरिक्ष कूटनीति से सार्क को दी नई दिशा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरूरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।
प्रधानमंत्री मोदी की नीति से पस्त हुआ पाकिस्तान
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में ऐसा घिरा है कि उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। हाल में ही जब चीन ने पाकिस्तान की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर ओबीओआर को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत की साजिश की बात कही थी। दूसरी ओर अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है तथा वह पाकिस्तान से सहयोग में भी लगातार कटौती कर रहा है। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं।
सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत को दुनिया का साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैठ को तबाह किया तो विश्व समुदाय भारत के साथ खड़ा रहा। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका। इसके अलावा चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली।
सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता को कई देशों का समर्थन
2014-15 में प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न देशों की यात्राएं कीं। कई लोगों ने इन यात्राओं पर तंज भी कसे और कुछ ने तो उन्हें ‘एनआरआई प्रधानमंत्री’ तक कह डाला, लेकिन इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नुख्ताचीनी पर बिना ध्यान दिये अपनी यात्रा को व्यापक बना रहे थे। इन यात्राओं में वे तीन प्रमुख एजेंडों के साथ आगे बढ़ रहे थे। अलग-अलग देशों के साथ संबंधों में सुधार, निवेश आमंत्रित करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सीट के लिए समर्थन जीतना उनका प्रमुख उद्देश्य था। दरअसल भारतीय इतिहास में कोई और प्रधानमंत्री नहीं जिन्होंने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए इतनी मेहनत की है। अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस और जापान जैसे देशों के राजदूत और नेताओं को भारत के पक्ष में लाकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए लगभग सभी देशों का समर्थन हासिल कर लिया। यह समर्थन इस अंतरराष्ट्रीय मंच की स्थिति के लिए भारत की पात्रता दिखाने के उनके प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम था।
पीएम मोदी के आह्वान से योग को दुनिया ने दिया समर्थन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 21 जून, 2015 को विश्व के 192 देश जब ‘योगपथ’ पर चल पड़े तो सारे संसार में योग का डंका बजने लगा। आधुनिकता के साथ अध्यात्म का मोदी मंत्र दुनिया के देशों को भी भाया और इसी कारण पीएम मोदी की पहल को 192 देशों का समर्थन मिला। 177 देश योग के सह प्रायोजक के तौर पर इस आयोजन से जुड़ भी गए। अब पूरी दुनिया योग शक्ति से आपस में जुड़ी हुई महसूस होने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनथक प्रयास से योग को आज पूरी दुनिया में एक नई दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह अनायास नहीं है कि पूरी दुनिया में योग का डंका बज रहा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भारत की नीति और भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति से प्रभावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग का पूरी दुनिया में प्रसार किया है।
जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की एक ऐसी शक्ति बनकर उभरा है जिसे झुकाया नहीं जा सकता। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का अहम स्थान है, तो सामरिक क्षेत्र में भी भारत ने अपनी हनक का अहसास कराया है। सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में भारत ने जहां अपनी जिम्मेदारी निभाई है, वहीं पर्यावरण संतुलन जैसे मुद्दे पर भी भारत की पहल सराहनीय रही है। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख ने जहां देश-दुनिया को सोचने को मजबूर किया है, वहीं विश्व शांति की ओर भारत के प्रयासों को दुनिया के देशों ने मान्यता दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। विदेश नीति के तौर पर उनकी उपलब्धियां आंकी जाए तो पीएम मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है।