प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वैश्विक नीतियां दुनियाभर के उन देशों से मुकाबला कर रही हैं, जिनसे एक दशक पहले तक भारत मुकाबला करने की सोच भी नहीं पाता था। बेहतर आर्थिक नीतियों के चलते ही भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन चुका है। अब सैन्य और रक्षा मोर्चे पर भी देश तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। टेक्नोलॉजी को भी अपनी ताकत में बदलने के मोदी-मंत्र का ही कमाल है कि अब भारत चीन या उसके पिछलग्गू पाकिस्तान के साइबर हमलों का भी मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। भारत के खिलाफ किसी भी देश के किसी भी तरह के साइबर हमलों का जवाब देने के लिए भारतीय सेना ने भी कमर कस ली है। इस बीच पीएम मोदी की दुश्मन की आंख में आंख डालकर जवाब का ही परिमाण है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी तीखे तेवर अख्तियार किए हैं। लद्दाख और उत्तर पूर्व में चीन से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चल रही तनातनी के बीच राजनाथ सिंह ने चीन को दो-टूक कह दिया है कि दोनों देशों में आपसी संबंधों का विकास सीमाओं पर शांति पर ही निर्भर है।
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद से भारतीय सीमाओं को बेहतर बनाने पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है। चीन को यही बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसके चलते डोकलाम से लेकर गलवान तक उसकी दोगली चालें उजागर हुई हैं। एक ओर तो पिछले कुछ वर्षों में भारत और चीन के बीच कई मुलाकातें हुई हैं। इन सब कोशिशों को दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने के पहल की तरह से ही देखा गया। दूसरी ओर सरहद पर चीन सैनिक घात लगाकर भारतीय सैन्य जवानों पर हमला करने की रणनीति बना रहे हैं। हालांकि हर बार भारतीय रणबांकुरों ने चीन के सैनिकों को धूल चटा दी है, लेकिन वो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। यही वजह है कि चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शिंगफू के साथ बैठक में राजनाथ सिंह ने साफ-साफ कह दिया कि एलएसी पर शांति के स्थापित किए बिना आपसी संबंध बेहतर नहीं बनाए जा सकते।
इस बीच सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे की अध्यक्षता में हुई सेना कमांडरों के सम्मेलन के दौरान नई स्पेशल यूनिट स्थापित करने का फैसला लिया गया है, जो चीन और पाकिस्तान के साइबर हमलों का मुंहतोड़ जबाव देगी। भारतीय सेना ने अपनी साइबर युद्ध पहल के तहत इन खतरों और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए नई विशेषज्ञ इकाइयों को चालू करने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संचार नेटवर्क की सुरक्षा और इस विशिष्ट डोमेन में तैयारियों के स्तर को बढ़ाने के लिए भारतीय सेना में कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग्स (CCOSW) को खड़ा किया जा रहा है। दरअसल, ग्रे जोन युद्ध के साथ-साथ पारंपरिक अभियानों में साइबर स्पेस सैन्य डोमेन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में उभरा है।
रक्षा मंत्रालय के कुशल दिशा-निर्देशन में पिछले कुछ वर्षों में सेना ने वर्चुअल हनी ट्रैपिंग और हैकिंग के रूप में विरोधियों की साजिशों का मुकाबला करने के लिए कई कदम उठाए हैं। डिफेंस साइबर एजेंसी इन मुद्दों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं के स्तर पर काम कर रही है। लगातार बदलते समय में दुश्मन देश साइबर युद्ध के जरिए ऐसे-ऐसे काम कर जाते हैं, जो उनकी सेनाएं नहीं कर पाती। पाकिस्तान और चीन सोशल मीडिया पर प्रोपेगेंडा चलाकर भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलते रहते हैं। इन खतरों को भांपते हुए सेना ने पहली बार साइबर विंग बनाने का फैसला लिया है। अभी तक साइबर चुनौतियों से निपटने के लिए सेना के पास कोई मजबूत स्थापित तंत्र नहीं है। हाल में संपन्न हुए सेना कमांडर सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया है कि सेना की हर कमांड अब साइबर विंग से लैस होगी।
अग्निपथ योजना की प्रगति की समीक्षा, 2023 रूपांतरण वर्ष घोषित
यह विंग सेना के इंटरनेट नेटवर्क को भी साइबर हमलों से बचाएगी तथा साइबर सुरक्षा से संबंधित अन्य सभी योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित करेगी। हर विंग में साइबर विशेषज्ञों की तैनाती करेगी। इस सम्मेलन में सेना की मारक क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल को बेहतर करने पर भी चर्चा हुई। सेना ने कहा कि आधुनिक संचार प्रणालियों पर बढ़ती निर्भरता पर जोर देने वाली ‘नेट केंद्रीयता’ की ओर तेजी से होते झुकाव के बीच इस मंच ने नेटवर्क की सुरक्षा जरूरत की समीक्षा की। सम्मेलन में सेना में किए जा रहे बदलावों जैसे, आधुनिकीकरण, थियेटर कमान के गठन, मानव संसाधन से जुड़े मुद्दों तथा अन्य प्रक्रियाओं की समीक्षा की गई। इसके साथ ही 2023 को रूपांतरण वर्ष घोषित किया गया है। इससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि इस साल तीनों सेनाओं के एकीकरण से बनने वाली पहली थियेटर कमान आकार ले लेगी। इसके अलावा अग्निपथ योजना के क्रियान्वयन की प्रगति पर भी विचार-विमर्श किया गया।
गलवान में सीमा उल्लंघन के बाद चीनी रक्षा मंत्री की यह पहली यात्रा
इस बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के अपने समकक्षों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। उन्होंने कजाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान और चीन के रक्षा मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं। गलवान में सीमा उल्लंघन के बाद चीनी रक्षा मंत्री की यह पहली यात्रा है। अध्यक्षता वाली बैठक के दौरान, द्विपक्षीय रक्षा से संबंधित मुद्दों और पारस्परिक हित के अन्य मामलों पर मंत्रियों द्वारा चर्चा की गई। पहली द्विपक्षीय बैठक कजाकिस्तान के रक्षा मंत्री, कर्नल जनरल रुस्लान झाक्सिल्यकोव के साथ आयोजित की गई, जिसके बाद चीनी रक्षा मंत्री ली शांगफू, ईरान के रक्षा मंत्री, ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद रजा घरेई अष्टियानी, ताजिकिस्तान के रक्षा मंत्री कर्नल जनरल शेराली मिर्ज़ो से साथ बैठक हुई। राजनाथ सिंह ने चीन के रक्षा मंत्री के साथ द्विपक्षीय बातचीत के दौरान साफ शब्दों में कहा कि मौजूदा समझौतों के उलंघन ने द्विपक्षीय संबंधों के पूरे आधार को नष्ट कर दिया है। एलएसी से जुड़े मुद्दों को मौजूदा समझौतों और प्रतिबद्धताओं के अनुसार हल करने और सीमा पर पीछे हटने का तार्किक रूप से डी-एस्केलेशन के साथ पालन करना चाहिए।