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वंदे मातरम सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि मां भारती की आराधना, एक संकल्प और मंत्र है जो भविष्य का हौसला देता है- पीएम

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज, 07 नवंबर 2025 को नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर सालभर चलने वाले उत्सव का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने स्मारक डाक टिकट और विशेष सिक्का भी जारी किया।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि वंदे मातरम सिर्फ शब्द नहीं, एक संकल्प है, मां भारती की आराधना है, एक ऐसा मंत्र है जो भविष्य का हौसला देता है। उन्होंने कहा कि हर गीत का अपना भाव होता है और वंदे मातरम का मूल भाव है भारत – मां भारती की शाश्वत संकल्पना।

महान स्वतंत्रता सेनानी बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वर्ष 1875 में अक्षय नवमी के दिन इस गीत की रचना की थी, जो बाद में उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ का हिस्सा बना। पीएम मोदी ने कहा कि यह गीत उस समय लिखा गया था जब देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था, लेकिन इसके शब्द कभी गुलामी में कैद नहीं हुए। प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम गुलामी के अंधकार में आशा की ज्योति बन गया और स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्रोत बना।

उन्होंने बताया कि 1896 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कांग्रेस अधिवेशन में इसे गाया था, और 1905 में बंगाल विभाजन के समय यह गीत देश को जोड़ने वाला नारा बन गया। हर आंदोलन में, हर क्रांतिकारी के होंठों पर वंदे मातरम था। महात्मा गांधी ने इसे संपूर्ण भारत का प्रतीक बताया, जबकि श्री अरविंदो ने इसे आत्मबल जगाने वाला मंत्र कहा।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वंदे मातरम में भारत माता को सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा के रूप में देखा गया है- मां जो ज्ञान भी देती है, समृद्धि भी और शक्ति भी। उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्र को मां के रूप में देखने की परंपरा प्राचीन है। वेदों में कहा गया है “माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः” यानी यह धरती हमारी मां है, और हम उसके पुत्र हैं। इसी भावना ने स्वतंत्रता संग्राम में स्त्री-पुरुष दोनों की समान भागीदारी सुनिश्चित की।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत वंदे मातरम के स्वप्न को साकार कर रहा है। विज्ञान, तकनीक और अर्थव्यवस्था में भारत नई ऊंचाइयां छू रहा है। उन्होंने कहा कि जब भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बनता है, जब हमारी बेटियां फाइटर जेट उड़ाती हैं, तब हर भारतीय का नारा होता है वंदे मातरम! उन्होंने यह भी कहा कि नया भारत मानवता की सेवा में कमला और विमला का रूप है, तो आतंकवाद के विनाश में दशप्रहरणधारिणी दुर्गा का।

उन्होंने कहा कि 1937 में वंदे मातरम के कुछ पदों को अलग कर देने का निर्णय दुखद था, क्योंकि इससे राष्ट्रगीत की आत्मा को विभाजित किया गया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम के विभाजन ने देश के विभाजन के बीज बो दिए। आज की पीढ़ी को यह जानना जरूरी है, क्योंकि वही विभाजनकारी सोच आज भी देश के सामने चुनौती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आनंदमठ में जब संतान भवानंद वंदे मातरम गाता है, तो पूछा जाता है कि तुम अकेले क्या कर पाओगे? उसका उत्तर है जिस माता के इतने करोड़ पुत्र हों, वह अबला कैसे हो सकती है। उन्होंने कहा कि आज भारत माता की 140 करोड़ संताने हैं, यानी 280 करोड़ भुजाएं। यह भारत का सामर्थ्य है, और हमें खुद पर विश्वास करना होगा। वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि मां भारती के प्रति 140 करोड़ भारतीयों के अटूट प्रेम, आत्मविश्वास और संकल्प का प्रतीक है।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने उस प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया, जो वन्देमातरम् की ऐतिहासिक यात्रा और उसके सांस्कृतिक महत्त्व को अत्यंत प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करती है। देखिए कुछ तस्वीरें-

प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन-

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