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पवन खेड़ा को सुप्रीम कोर्ट से तत्काल राहत मिल गई, लेकिन आखिर ऐसी राहत सबको क्यों नहीं मिलती ?

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केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक सवाल के लिखित जवाब में जुलाई 2022 में राज्यसभा को बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में 72,062 मामले लंबित है। इनमें से कुछ ऐसे मामले हैं, जो काफी पुराने हैं। सुप्रीम कोर्ट लंबित मामलों के बोझ तले दबा हुआ है, जिसकी वजह से फैसला आने में वर्षों लग जाते हैं। लेकिन कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें कुछ घंटों में ही फैसला हो जाता है। जैसा कि कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा की जमानत मामले में हुआ। पवन खेड़ा को जिस तरह सुप्रीम कोर्ट से तत्काल राहत मिली, उससे लोगों को काफी हैरानी हुई। इसको लेकर लोगों में जिज्ञासा के साथ सवाल भी पैदा हुए कि आखिर यह कैसे हुआ ? ऐसी राहत सबको क्यों नहीं मिलती ? अगर इन सवालों का जवाब एक वाक्य में दिया जाए तो कहा जा सकता है कि भले देश में मोदी सरकार है, लेकिन एक अनौपचारिक और वैकल्पिक इकोसिस्टम है, जिसे कांग्रेस ने पिछले 75 सालों में बनाया और पोषित किया है।

दरअसल गुरुवार (23 फरवरी, 2023) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिवंगत पिताजी के अपमान के मामले में असम पुलिस ने कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा को दिल्ली एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया था। पवन खेड़ा के गिरफ्तार होते ही कांग्रेस का पूरा इकोसिस्टम सक्रिय हो गया। इसको ऐसे प्रोजेक्ट किया गया, मानो देश पर कोई बड़ी आपदा आ गई हो। रात-दिन सुप्रीम कोर्ट के चौकठ पर खड़ी कांग्रेस के बड़े-बड़े वकीलों की टीम जमानत दिलाने के अभियान में लग गई। वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सीजेआई डीवाई चन्द्रचूड़ के सामने खेड़ा की गिरफ्तारी का मामला उठाया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने भी तेजी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मामला सामने आते ही खेड़ा को फौरी राहत देते हुए निर्देश दिया कि उन्हें 28 फरवरी तक के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि इस दौरान याचिकाकर्ता संबंधित अदालत में नियमित जमानत याचिका दाखिल कर सकते हैं।

पवन खेड़ा को मिली फौरी राहत ने लोगों को भी हैरान किया है। उन्हें लग रहा कि ऐसी राहत तो आम लोगों को भी मिलनी चाहिए, जिन्हें तत्काल राहत की जरूर होती है। लेकिन ऐसा नहीं हो पता है। क्योंकि उनके पास ना तो कांग्रेस की तरह अभिषेक मनु सिंघवी, कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम जैसे नामी और बड़े-बड़े वकीलों की फौज होती है और ना ही उनके पास महंगे वकीलों को फीस देने के लिए पैसे होते हैं। प्रशांत भूषण जैसे कुछ ऐसे भी वकील है, जो एक एजेंडे के तहत काम करते हैं और फांसी की सजा पाये आतंकी के लिए रात में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। मामलों की लिस्टिंग सिस्टम में ऐसे वकीलों को प्राथमिकता दी जाती है, जो वर्षों से इस सिस्टम के दांवपेंच से अवगत है और उनकी इस सिस्टम में गहरी पैठ है। मामलों की लिस्टिंग सिस्टम में मौजूद सुराख उनको त्वरित सुनवाई में मदद करते हैं। 

अक्सर देखा जाता है कि कोई जांच एजेंसी या सरकारी संस्था कांग्रेस के खिलाफ कार्रवाई करती है, तो वो सिस्टम पर बीजेपी और आरएसएस के कब्जे का आरोप लगाने लगती हैं। दरअसल 70 साल तक शासन में रहने की वजह से शासन-प्रशासन में कांग्रेस का एक वैकल्पिक इकोसिस्टम विकसित हो गया है, जो आज भी किसी न किसी रूप में कांग्रेस के प्रति निष्ठा रखता है। ऐसे में जब मोदी सरकार में एजेंसियां अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है,तो कांग्रेस को लगता है कि वो जिस तरह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करती रही है, उसी तरह बीजेपी भी करती होगी। लेकिन ऐसा मोदी सरकार में नहीं होता। प्रधानमंत्री मोदी जांच एजेंसियों के अधिकारियों को किसी दबाव और प्रोपेगेंडा से प्रभावित हुए बिना कार्य करने की पूरी आजादी देते हैं। 

आइए दखते हैं सुप्रीम कोर्ट ने कब-कब अपने दोहरे चरित्र का परिचय देते हुए अपने ही फैसले को कटघरे में खड़ा किया है… 

सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में बुलडोजर पर लगाया ब्रेक

दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच एमसीडी के द्वारा अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर बुलडोजर चलाया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर पर ब्रेक लगाने और यथास्थिति बनाए रखने का फरमान सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। जमीयत ने अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने की गुहार लगायी। वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले को उठाया। इसके बाद कोर्ट ने जिस तरह की तेजी दिखाई, वो काफी हैरान करने वाली था। तब भी सवाल उठे कि क्या सुप्रीम कोर्ट अवैध कब्जा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई पर त्वरित सुनवाई करने और सजायाफ्ता आतंकियों के लिए आधी रात को खोलने के लिए है ? इससे अपराधियों, उपद्रवियों और आतंकियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। 

धर्म संसद में विवादित बयान पर कार्रवाई और मुस्लिमों के बयान पर मौन

कुर्बान अली और अंजना प्रकाश की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हीमा कोहली की पीठ ने 12 जनवरी,2022 को दिल्ली पुलिस और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में 17 दिसंबर को हरिद्वार में हुई धर्म संसद और 19 दिसंबर को दिल्ली में हुए एक और कार्यक्रम की जानकारी दी गई थी। साथ ही यह भी कहा गया था कि दोनों कार्यक्रमों में धर्मगुुरुओं ने खुलकर मुस्लिम समुदाय के संहार की बातें कहीं, लेकिन पुलिस ने अभी तक किसी को गिरफ्तारी नहीं किया। कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया। इसके बाद उत्तराखंड पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी, यति नरसिंहानंद समेत कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन इत्तेहाद मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां और असदुद्दीन ओवैसी के हिन्दुओं के खिलाफ विवादित बयान पर कोई आदेश जारी नहीं किया।

त्रिपुरा हिंसा मामले में चार मुस्लिम छात्रों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक

2021 में त्रिपुरा में कथित सांप्रदायिक हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले चार छात्रों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा पुलिस को मना किया। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने यह आदेश दिया। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने तब राज्य सरकार के वकील को चेतावनी दी थी कि अगर त्रिपुरा पुलिस लोगों को परेशान करने से परहेज नहीं करती है, तो वह गृह सचिव और संबंधित पुलिस अधिकारियों को तलब करेगी। दरअसल, चार लोगों को सीआरपीसी की धारा 41 ए के तहत त्रिपुरा दंगों पर उनके ट्वीट के लिए पेश होने के लिए नोटिस भेजा गया था। उधर त्रिपुरा की बीजेपी सरकार ने कोर्ट में सवाल उठाया कि स्वतंत्र जांच के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले ‘‘जनहितैषी’’ नागरिकों ने पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों में इस तरह की हिंसा की घटनाओं पर क्यों चुप्पी लगा रखी थी ? कुछ महीने पहले बड़े पैमाने पर हुई साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान नहीं जागी और त्रिपुरा जैसे छोटे से राज्य में हुईं कुछ घटनाओं के कारण अचानक उनकी जनहित की भावना जाग उठी।

शाहीनबाग से किसान आंदोलन तक सुप्रीम कोर्ट का लचीला रूख

साल 2019 के दिसंबर माह में जामिया नगर दंगों के साथ शुरू हुए शाहीन बाग प्रदर्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला में कहा कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन ही उचित है, जगह घेर कर बैठ जाना गलत है क्योंकि लोगों को इससे परेशानी होती है। कोर्ट ने फैसला देने में दस महीने (अक्टूबर 2020) का वक्त लगा दिया। इस दौरान जामिया और उसके आस-पास के लोग बंधक बने रहे। नोएडा आने-जाने वालों लोगों को सड़क पर जाम की वजह से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन कोर्ट मूकदर्शक बना रहा। 26 फरवरी, 2020 को सर्वोच्च न्यायलय में सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा कि सार्वजनिक सड़क प्रदर्शन के लिए नहीं है। मगर, ये समय इस मामले पर सुनवाई के लिए ठीक नहीं है। देरी से आए फैसले पर सवाल उठे थे कि इतने महीनों बाद इस निर्णय के क्या मायने हैं? क्या इससे यह सुनिश्चित होगा कि आगे कोई शाहीन बाग पैदा नहीं होगा ? इसका जवाब तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के रूप में सामने आया। एक साल तक दिल्ली बंधक बनी रही और सुप्रीम कोर्ट सिर्फ सुनवाई करता रहा।

मंदिर में दुकानों के लिए गैर हिंदुओं को रोका नहीं जा सकता : सुप्रीम कोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2021 में आंध्र प्रदेश सरकार के अधिकारियों को आदेश दिया कि सभी धर्मों के लोगों को कुरनूल में श्री ब्रमराम्बा मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में दुकानों के पट्टों की नीलामी की प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जाए। सुनवाई के दौरान जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा हालांकि यह कहा जा सकता है कि मंदिर परिसर के भीतर, कोई ऐसा कुछ नहीं कर सकता जो आस्था के लिए अपमानजनक हो। यहां शराब या जुआ नहीं खेला जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है कि अगर आप हिंदू धर्म से संबंधित नहीं हैं तो आप बांस, फूल या बच्चों को खिलौने नहीं बेचेंगे। दरअसल सैयद जानी बाशा की अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और ए एस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि किसी भी किरायेदार/ दुकान धारक को नीलामी में भाग लेने से या केवल उनके धर्म के आधार पर पट्टों के अनुदान से बाहर नहीं किया जाएगा।  

याकूब मेमन के लिए आधी रात में खुला सुप्रीम कोर्ट

याकूब मेमन की फांसी रुकवाने के लिए प्रशांत भूषण सरीखे वकीलों ने आधी रात में सुप्रीम कोर्ट खुलवाई, जहां डेढ़ घंटे तक सुनवाई हुई। इसके बाद उसकी फांसी रोकने वाली याचिका को खारिज किया गया। तत्कालीन मुख्य न्यायधीश एचएल दत्तू से लेकर जज दीपक मिश्रा के घरों तक के दरवाजे इसके लिए खटखटाए गए। उससे पहले सुबह के 3 बजे सुप्रीम कोर्ट कभी नहीं खुली थी। 3 जजों की पीठ ने ये सुनवाई की। गौरतलब है कि जुलाई 1962 में जन्मा याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) था, लेकिन 1993 के बम धमाकों में उसका बड़ा रोल सामने आया। 

बंगाल हिंसा मामले में तुरंत सुनवाई से किया इनकार

पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के गुंडे बीजेपी कार्यकर्ताओं को चुन-चुनकर निशाना बना रहे हैं। राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति काफी खराब है। इसे लेकर 3 मई, 2021 को ‘इंडिक कलेक्टिव’ नामक ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इंडिक कलेक्टिव ने इसे सुनवाई के लिए तुरंत लिस्ट करने की मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से पूछे गए सवालों के जवाब देने के बाद भी लिस्ट नहीं हो पाई। इंडिक कलेक्टिव के अनुसार उसकी तरफ से सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद और जे साईं दीपक ने वकील सुविदत्त सुंदरम के साथ मिल कर जस्टिस यूयू ललित के समक्ष इस मामले को 6 मई 2021 को उठाने के लिए मौखिक रूप से आग्रह किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।

मुस्लिम उपद्रवियों को बचाने के लिए संगठित गिरोह सक्रिय

मुस्लिमों के खिलाफ कर्रावाई होने पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले एक योजना के तहत काम कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि उनकी गलत बातों पर पर्दा पड़ा रहे। जैसे ही कोई मुस्लिम कानून और हिन्दुओं के खिलाफ काम करता है और सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करती है, तो यह संगठित गिरोह आरोपियों को बचाने के लिए मीडिया से लेकर कोर्ट तक सक्रिय हो जाता है। धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े ये गिरोह मुस्लिम अपराधियों और आतंकियों को आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी संरक्षण देकर उनका हौसला बढ़ते हैं। उन्हें पीड़ित बताने का हर मुमकिन कोशिश करते हैं। उपद्रवियों को पता है कि अगर वे हिंसा करेंगे तो उन्हें बचाने वाले सामने आ जाएंगे। इसी का नतीजा है कि देश के कई शहरों में रामनवमी और हनुमान जयंती के जुलूस पर पत्थरबाजी हुई। उपद्रवियों ने हिन्दुओं को घरों को आग के हवाले किया। लेकिन उपद्रवियों को पीड़ित बताकर बचाने का प्रयास किया जा रहा है।  

 

 

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