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विपक्षी एकताः दूल्हा तय नहीं हुआ, फूफा पहले ही नाराज! बेंगलुरू में लालू-नीतीश तो पटना में केजरीवाल-स्टालिन प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर चले गए

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देश में पिछले कुछ माह से विपक्षी एकता के ढोल पीटे जा रहे थे और राजनीति के जनाकार यह कहते आ रहे थे कि ये बेमेल शादी है यानि ये कब साथ हैं कब अलग यह कोई नहीं जानता। विपक्षी दलों की जब पटना में बैठक हुई थी तब केजरीवाल-स्टालिन प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर चले गए थे और अब बेंगलुरू की बैठक के बाद लालू-नीतीश प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर चले गए। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि लालू यादव और नीतीश कुमार के विमान का समय हो गया था इसीलिए वे चले गए। लेकिन वे तो चार्टर्ड प्लेन से आए थे फिर फ्लाइट का टाइम हो जाने की दलील समझ में नहीं आती। यानि विपक्षी एकता पर कहा जा सकता है कि दूल्हा तय नहीं हुआ, फूफा पहले ही नाराज हो गए! इस तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो पिछले कुछ माह से विपक्षी एकता के अगुवा बने हुए थे उनकी इच्छाओं पर भी तुषारापात हो गया और उनके प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के सपने पर ग्रहण लग गया।

पीएम उम्मीदवार व महागठबंधन के संयोजक बनना चाहते थे नीतीश कुमार
राजनीति के गलियारों में कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार विपक्षी महागठबंधन के संयोजक बनना चाहते थे। वे चले तो थे पीएम उम्मीदवार बनने लेकिन विपक्षी गठबंधन के पटना से कर्नाटक पहुंचते ही कांग्रेस ने हवा का रुख मोड़ दिया और नीतीश के विरोध में बेंगलुरू में पोस्टर भी लग गए। इस सब से नाराज नीतीश ने प्रेस कांफ्रेंस से दूरी बनाते हुए एक संदेश देने की कोशिश की है। ये तो वही बात हो गई कि दूल्हा तय नहीं हुआ और फूफा पहले ही नाराज हो गए।

पटना में केजरीवाल-स्टालिन प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर चले गए
बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक के बाद 23 जून 2023 को प्रेस कांफ्रेस में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने हिस्सा नहीं लिया था। उस वक्त यही कयास लगाए गए कुछ बातों को लेकर इनकी नाराजगी है। इसके बाद केजरीवाल जब दिल्ली पहुंचे तो AAP पार्टी ने सोशल मीडिया के अपने आधिकारिक पेज से बयान जारी किया। पार्टी का कहना था कि जबतक कांग्रेस दिल्ली में लाए गए अध्यादेश का विरोध नहीं करेगी तब तक पार्टी के लिए आगे ऐसी बैठकों में शामिल होना मुश्किल होगा। इसके बाद बेंगलुरू बैठक से पहले अध्यादेश पर समर्थन देने की बात कह कर केजरीवाल को विपक्ष के मंच पर ले आया गया।

बेंगलुरू में लालू-नीतीश प्रेस कांफ्रेंस छोड़कर चले गए
इसी तरह से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव 18 जुलाई 2023 को बेंगलुरु में हुई विपक्षी दलों की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेस में हिस्सा लिए बगैर पटना लौट गए। पटना लौटने पर भी उन्होंने मीडिया से कोई बातचीत नहीं की। बताया जाता है कि नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के लिए ‘इंडिया’ नाम से खुश नहीं हैं। इसके अलावा, बेंगलुरु की सड़कों पर उन पर हमला करने वाले पोस्टर भी उन्हें आपत्तिजनक लगे।

सबसे बड़ा सवाल- मोदी बनाम कौन?
अधिकांश विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनावों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को हटाना चाहते हैं। लेकिन आलम यह है कि वे प्रधानमंत्री उम्मीदवार ही नहीं तय कर पा रहे हैं। शायद इसे वे अभी टालते ही रहेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि ये मुद्दा गतिरोध की बड़ी वजह बन सकता है। हालांकि उन्होंने बेंगलुरू में नीतीश विरोधी पोस्टर लगाकर संकेत तो दे दिया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने विपक्ष के नेता पर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि फिलहाल चेहरे से ज़्यादा मुद्दे अहम हैं।

यह भी गौर करने वाली बात है कि विपक्ष के नेताओं में पीएम पद हासिल करने की हसरत कम नहीं है। ऐसे में अभी यह सिरफुटव्वल जारी रहेगी। विपक्ष के प्रमुख नेताओं पर एक नजर-

1. राहुल गांधी (कांग्रेस)
कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार राहुल गांधी होंगे। सबसे खास बात यह है कि राहुल के पास इस पद के लिए योग्यता के नाम पर कुछ भी नहीं है। न वो वह कभी मंत्री रहे न ही किसी कार्य का अनुभव। जहां मोदी 12 साल तक गुजरात के सीएम रहे, 9 साल तक पीएम रहे, वहीं राहुल गांधी ने कभी कोई प्रशासनिक पद नहीं संभाला। राजनीतिक पद तो छोड़िए राहुल ने कभी भी कहीं काम नहीं किया। राजनीति में आने वाले कुछ नेता वकील, प्रोफेसर, डॉक्टर, किसान, कार्यकर्ता हैं लेकिन राहुल गांधी ने कभी कुछ काम नहीं किया, वह सीधे पीएम बनना चाहते हैं। इसके अलावा वह 2000 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार मामले में जमानत पर बाहर हैं। मानहानि मामले में दोषी करार हैं और विदेशों में भारत के खिलाफ बोलने के लिए बदनाम हैं।

2. लालू प्रसाद यादव (राजद)
लालू यादव भ्रष्टाचार के मामले में दोषी हैं और फिलहाल चिकित्सा आधार पर जमानत पर हैं। वह 15 साल तक बिहार के सीएम और 5 साल तक रेल मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में बिहार जंगलराज के लिए कुख्यात हो गया। लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण आम बात थी। उनके कार्यकाल के दौरान, 1990 से 2000 तक, बिहार की प्रति व्यक्ति आय 1,373 रुपये से गिरकर 1,289 रुपये हो गई। बिजली 84 KWH से घटकर 60 KWH हो गई। 1999 में एक सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार निवेश के लिए सबसे खराब राज्य था। उनके रेल मंत्री के कार्यकाल में आईआरसीटीसी घोटाला हुआ। वह अपने हिंदू विरोधी रुख के लिए मशहूर हैं।

3. ममता बनर्जी (तृणमूल कांग्रेस)
ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। 2021 में विपक्षी बीजेपी के हिंदू समर्थकों के खिलाफ भारी हिंसा हुई। मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप उन पर लगता रहा है। उन्होंने ओबीसी आरक्षण में 118 मुस्लिम जातियों शामिल कर दिया। उनके मंत्री के यहां ईडी के छापे में लोगों ने नोटों के बंडल देखे। उनके कार्यकाल में कई घोटाले हुए जिनमें सारदा घोटाला, रोज़ वैली घोटाला की सबसे ज्यादा चर्चा हुई।

4. एमके स्टालिन (डीएमके)
एम करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन 2021 से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं। एक द्रविड़ नेता जिस पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लग रहा है। उनके सांसद हिंदू भावनाओं और रीति-रिवाजों का अपमान करते हैं और हिंदुओं और हिंदू देवताओं को गाली देते हैं। हिन्दू विरोधी तत्वों को सरकारी पदों पर नियुक्त किया, अनेक मन्दिर तोड़े। कैश फॉर जॉब घोटाला उनकी सरकार के दौरान हुआ।

5. शरद पवार (एनसीपी)
एनसीपी के संस्थापक शरद पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। मुंबई ब्लास्ट में 13वें बम का झूठ गढ़ने के लिए मशहूर हैं। उनके कार्यकाल के दौरान अंडरवर्ल्ड अपराध बढ़े। उन पर लाखन सिंह के माध्यम से दाऊद से जुड़े होने का आरोप लगा। उनकी सरकार में भूमि आवंटन घोटाला, लवासा घोटाला जैसे कई घोटाले हुए। उनकी पार्टी के कई नेता घोटालों के आरोप में जेल में हैं।

6. नीतीश कुमार (जेडीयू)
नीतीश कुमार 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। पिछले 18 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद, बिहार अभी भी भारत का अविकसित और कम औद्योगीकृत बड़ा राज्य है। वह पाला बदलने में मशहूर हैं और इसीलिए उनके विरोधी उन्हें अवसरवादी कहते हैं।

7. अखिलेश यादव (सपा)
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। उनका कार्यकाल भी लालू प्रसाद यादव की तरह खराब कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक हिंसा के लिए बदनाम रहा। माफिया से संबंध का आरोप लगा। उन पर मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विरोधी रुख का आरोप लगा। हाल ही में उनकी पार्टी के सदस्यों ने रामचरित मानस को जलाया था।

8.सीताराम येचुरी (माकपा)
कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी अमेरिका विरोधी, इजराइल विरोधी, पूंजीवाद विरोधी, हिंदू धर्म विरोधी, बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति के कट्टर विरोधी हैं और जे.एन.यू विचारधारा में विश्वास रखते हैं। 12 सितंबर 2020 को, उन्हें 2020 के दिल्ली दंगों में उनकी कथित भूमिका के लिए पूरक आरोप पत्र में नामित किया गया था।

9. अरविंद केजरीवाल (AAP)
AAP पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 2014 से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं। उनकी पार्टी के कई सदस्य और मंत्री भ्रष्टाचार के मामलों में जेल में हैं। शराब घोटाले में उनसे पूछताछ हो चुकी है। उनके पार्षद ताहिर हुसैन दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपी हैं। उनके विधायक अमानतुल्ला खान हिंदू विरोधी टिप्पणी के लिए मशहूर हैं। केजरीवाल ने किसान विरोध, सीएए विरोध, जेएनयू विरोध का समर्थन किया। जब उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगा तो वह पाकिस्तान में मशहूर हो गए। अयोध्या में राम मंदिर का विरोध किया। सीएम बनने से पहले फोर्ड फाउंडेशन से संबंध रखने का आरोप।

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