बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आप कुछ भी नाम दे सकते हैं- अवसरवादी, सत्तालोलुप, कुर्सी के लालची, झूठों का सरदार, स्वार्थी राजनीति के पुरोधा, धोखेबाज, दगाबाज और सीएम बनने के लिए पलटूराम…!! नीतीश के धतकर्म इतने निम्नस्तरीय हैं कि उनके लिए ऐसे कितने ही विशेषण कम पड़ रहे हैं। सवाल सिर्फ बीजेपी से गठबंधन तोड़कर उन्हीं लालू की गोद में बैठने का नहीं हैं, जिसने नीतीश कुमार को ऐसा सांप बताया था, जो हर दो साल बाद अपना केंचुल छोड़कर नया चमड़ा (गठबंधन) धारण कर लेता है। बड़ा सवाल नीतीश कुमार की उसी अंतरात्मा का भी है, जो अभी पांच साल पहले ही लालू के साथा महागठबंधन में रहने को गवाही नहीं देती थी। उनका महागठबंधन में इतना दम घुटता था कि काम करना ही मुश्किल था। अब नीतीश बार-बार पाला बदलने का रिकार्ड बनाकर, लालू की पार्टी से समझौता करके अपनी ही अंतरआत्मा की आवाज को अनसुना कर रहे हैं, जो उन्हें बुरी तरह से दुत्कार रही है। उन पर लाख लानतें भेज रही है।बिहार की जनता बार-बार ‘केंचुल’ बदलने के लिए नीतीश को कभी माफ नहीं करेगी
बिहार में सियासत में एक बार फिर बदलाव आया है। नीतीश कुमार ने देशभर में तेजी से खिलते कमल का साथ छोड़कर बुझी हुई लालटेन को फिर से जलाने का उपक्रम शुरू किया है। वे इसमें कितने सफल होते हैं, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि फिलहाल उनकी राजनीति पर बिहार की जनता से लेकर देशभर के राजनीतिक विश्लेषकों ने सवालिया निशान खड़े किए हैं। वो बीजेपी के गठबंधन के समय भी सीएम थे और लालटेन से जुड़कर भी सीएम ही रहेंगे। लेकिन भविष्य में होने वाले चुनाव में बिहार की जनता बार-बार पाला बदलने के लिए नीतीश कुमार को माफ नहीं करेगी। जनता ने एनडीए गठबंधन को सरकार चलाने के लिए जनादेश दिया था, लेकिन पलटूराम ने जनभावनाओं का निरादर करते हुए लालटेन सवारी शुरू कर दी है।अंतरात्मा की आवाज पर राजद वाले महागठबंधन से तोड़ा था नाता, अब आत्मा मर गई?
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी से नाता तोड़ा लिया है। अब दोबारा आरजेडी से हाथ मिला लिया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के घर मंगलवार को हुई बैठक के बाद ये बड़ा फैसला लिया गया। इसके बाद अब बिहार में जेडीयू और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सहयोग नई सरकार आज बनेगी। कांग्रेस की स्थिति तो वैसे ही पिछलग्गू पार्टी की बन गई है। उसने पहले ही नीतीश और तेजस्वी यादव की अगुवाई में नई सरकार को समर्थन देने का ऐलान किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जेडीयू की बैठक में पार्टी के सभी सांसद और विधायकों ने नीतीश कुमार के फैसला का समर्थन किया।
आदरणीय इस तस्वीर को भी ना भूलें pic.twitter.com/6OdpJayGKt
— Ritesh Sharma (@RiteshS39366680) August 9, 2022
नीतीश को लालू ने बार-बार केंचुल बदलने वाला सांप कहा था, अब उसी की गोद में बैठे
नीतीश कुमार के मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी (RJD), कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलकर नई सरकार बनाएंगे। हालांकि ये कोई पहली दफा नहीं है, जब नीतीश कुमार के बीजेपी से मतभेद और आरजेडी से नजदीकियां बढ़ी हो। करीब 40 साल के सियासी सफर में नीतीश कुमार ने कई मौके पर सिर्फ कुर्सी की खातिर और निजी स्वार्थ के चलते अपनी सोच ही नहीं निष्ठा भी बदली है। वे अब उसी लालू यादव की पार्टी के साथ हैं, जिसने कभी नीतीश कुमार को ऐसा सांप बताया था, जो हर दो साल बाद अपना केंचुल बदलता है और नया चमड़ा धारण करता है। लालू की बात आधी सच साबित हुई है। नीतीश ने फिर अपना केंचुल बदला है, लेकिन पुराने चमड़े (आरजेडी) को ही धारण कर लिया है।
आंकड़े बोलते हैं- पिछले चुनाव में बिहार में सिर्फ भाजपा का ही प्रदर्शन सुधरा है
How parties performed in Bihar
BJP:
2015- 53/157 = 33%
2020- 74/110= 67%JDU:
2015: 71/101= 71%
2020: 45/115= 39%RJD:
2015: 80/101= 80%
2020: 73/144= 50.6%Congress:
2015: 27/41= 67%
2020: 20/70= 28%BJP was the only big party that performed better, it was vote for BJP.
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) August 9, 2022
एक नजर: सांप तरह केंचुल बदलकर बार-बार इस तरह नीतीश ने गठबंधन किए
- 1994 में लालू प्रसाद यादव से अलग होकर पार्टी बनाई
- 1996 के 2013 तक बीजेपी के साथ ही रहे
- 2013 में नरेन्द्र मोदी के नाम पर बीजेपी से अलग हुए
- 2014 में 20 साल के बाद फिर से लालू का दामन थामा
- 2015 में आरजेडी के साथ मिलकर बनाई सरकार
- 2017 में आरजेडी छोड़कर फिर बीजेपी के साथ आए
- 2019-20 का चुनाव बीजेपी के साथ ही लड़े
- 2022 में फिर एनडीए से अलग होकर लालू से जुड़े
इन तीन बदलते बयानों के जानिए पलटूराम नीतीश कुमार की स्वार्थ की राजनीति
2013: चाहे हम मिट्टी में मिल जाएं, लेकिन बीजेपी के साथ नहीं रहेंगे
हमें भरोसा अटलजी के युग का था। बीजेपी का अब नया अवतार है। रहें या मिट्टी में मिल जाएं, आपसे हाथ नहीं मिलाएंगे।
(नीतीश कुमार-नरेन्द्र मोदी के पीएम प्रत्याशी बनने पर)
2017: अंतरआत्मा महागठबंधन में बने रहने की गवाही नहीं देती
महागठबंधन में स्थिति इतनी खराब हो गई है कि अब काम करना ही मुश्किल हो रहा है। अंतरात्मा महागठबंधन में रहने की गवाही नहीं देती।
(नीतीश कुमार- राजद को छोड़ने पर)
2022: पार्टी के विधायक बोले कि एनडीए को तुरंत ही छोड़ दें
पार्टी के सभी विधायकों, सांसदों ने तुरंत ही राष्ट्रीय डेमोक्रेटिक एलाइंस(एनडीए) से गठबंधन तोड़ने के कहा। अब हमको सात दलों का समर्थन हासिल है।
(नीतीश कुमार- बीजेपी का साथ छोड़कर इस्तीफा देने के बाद)
आइये, अब बिहार की सियासत और नीतीश कुमार की स्वार्थ की राजनीति पर विस्तार से नजर डालते हैं। नीतीश कैसे कुर्सी के लालच में धोखेबाजी और दगाबाजी करते रहे…
साल 2013 में बीजेपी से तोड़ा था नाता
जेडीयी और बीजेपी के बीच पहली बार 1998 में गठबंधन हुआ था। बिहार की राजनीति में कई ऐसे मौके आए जब नीतीश कुमार ने पाला बदला है। साल 2013 में बीजेपी की ओर से लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेन्द्र मोदी को पीएम का उम्मीदवार बनाना नीतीश को रास नहीं आया। 16 जून 2013 को बीजेपी ने मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया तो नीतीश कुमार खफा हो गए और उन्होंने बीजेपी के साथ अपने 17 साल पुराने नाते को तोड़ दिया और आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई2015 में बनी महागठबंधन की सरकार
नीतीश कुमार ने साल 2015 में राजनीति के अपने पुराने सहयोगी लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में बिहार की राजनीति में बदलाव आया और महागठबंधन को जीत हासिल हुई। इस चुनाव में जेडीयू और आरजेडी ने 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और 80 सीटों पर जीत हासिल की। जेडीयू ने 71 सीटों पर कब्जा जमाया। नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता बने और 5वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
साल 2017 में महागठबंधन में दरार, फिर बदला पाला
सिर्फ दो साल के बाद ही महागठबंधन में दरार पड़ गई. 26 जुलाई 2017 को नीतीश कुमार ने प्रदेश के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। उस दौरान भ्रष्टाचार के आरोप में डिप्टी सीएम तेजस्वी से इस्तीफे की मांग बढ़ने लगी थी। बाद में नीतीश कुमार ने कहा था कि ऐसे माहौल में काम करना मुश्किल हो गया था। नीतीश कुमार ने फिर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों की मदद से सरकार बनाई और 27 जुलाई को एक बार फिर बिहार के सीएम बने।
विधानसभा चुनाव में कम सीटों के बावजूद बीजेपी ने नीतीश को सीएम बनाया था
साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को कम सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बीजेपी ने उन्हें चुनाव में सिर्फ 43 सीटों पर जीत के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया। लेकिन महज दो साल बाद ही नीतीश की केंचुल बदलने की लालसा फिर जाग गई। सियासी गलियारों की चर्चा को सही ठहराते हुए नीतीश कुमार फिर से पाला बदल लिया। राजनीति के शुरूआती दिनों के साथी लालू यादव की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस के सहयोगी बन गए हैं। हालांकि, जेडीयू ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में एनडीए के उम्मीदवारों का समर्थन किया था, लेकिन सीएम नीतीश कुमार अंदरखाते लालू, तेजस्वी और सोनिया से संपर्क साधकर गिरगिट के समान रंग बदलने की साजिश में लगे रहे।
Nitish in 2020 realised that he won because of Modi-BJP.
In just one 20 months he forgot his lesson.
Looks like some journalist again presented him ‘Metaphorical Data’ that he can become PM again. pic.twitter.com/N9ltEG4qr5
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) August 9, 2022