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मोदी सरकार में राष्ट्रहित सर्वोपरि, कांग्रेस और अर्बन नक्सल की एक और हार, लोकसभा में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 पारित

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लोकसभा में 27 जुलाई 2023 को हंगामे के बीच वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 पारित हो गया। इस विधेयक को रोकने के लिए कांग्रेस, अर्बन नक्सल और लेफ्ट विंग इकोसिस्टम ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्हें सबसे बड़ी दिक्कत इस बात से थी कि यह विधेयक वामपंथी उग्रवाद और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रक्षा प्रोजेक्ट और पब्लिक यूटिलिटी प्रोजेक्ट के लिए निर्माण की अनुमति देता है। इससे जहां वामपंथी उग्रवाद और नक्सल गतिविधियां देश से खत्म होंगी वहीं अर्बन नक्सलों की दुकान भी बंद हो जाएगी। चीन इन नक्सलियों की हर स्तर पर मदद करता रहा है और कांग्रेस पार्टी का चीन के साथ गुप्त समझौता है। इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस और लेफ्ट विंग इस विधेयक का विरोध क्यों कर रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के ‘राष्ट्र प्रथम’ के विजन के अनुरूप मोदी सरकार में राष्ट्रहित सर्वोपरि है। इसी का नतीजा है कि तमाम विरोधों के बाद भी विधेयक लोकसभा में पारित हुआ है और यह देश के विकास और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। इससे आदिवासी समुदाय के समृद्धि के द्वार खुलेंगे और वे मुख्यधारा से जुड़ सकेंगे।

पहली बार 29 मार्च को बजट सत्र में पेश किया गया था विधेयक
विपक्ष के विरोध के बीच लोकसभा में वन संरक्षण संशोधन विधेयक पारित हो गया है। यह विधेयक पहली बार 29 मार्च 2023 को बजट सत्र के दौरान पेश किया गया था, हालांकि विपक्ष की आपत्तियों के बीच इसे जांच के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया था। इसके बाद समिति ने 20 जुलाई 2023 को अपनी रिपोर्ट संसद में रखी थी। विपक्षी दलों के नेता लगातार इसका विरोध कर रहे थे, लेकिन सभी की आपत्तियों को खारिज करते हुए इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।

विधेयक में चिड़ियाघर, सफारी, इको-पर्यटन की अनुमति का प्रावधान
लोकसभा में 27 जुलाई 2023 को हंगामे के बीच वन-संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 पारित कर दिया गया। यह विधेयक वन-संरक्षण अधिनियम 1980 में संशोधन के बारे में है। इसमें कुछ प्रकार की भूमि को अधिनियम के दायरे से बाहर करने का प्रावधान है। इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं, सड़क के किनारे छोटी सुविधाओं और निवास की ओर जाने वाली सार्वजनिक सड़कों के लिए आवश्‍यक, देश की सीमा के 100 किलोमीटर की सीमा के भीतर की भूमि शामिल है। इसमें वनों में की जाने वाली कुछ गतिविधियों को निर्दिष्ट किया गया है। इनमें शामिल हैं- चेक पोस्ट, बाड़ लगाना और पुल निर्माण करना। विधेयक में चिड़ियाघर, सफारी और इको-पर्यटन सुविधाओं की अनुमति का प्रावधान किया गया है।

विधेयक से आदिवासी समुदाय के हितों की रक्षा होगी
वन संरक्षण- संशोधन विधेयक से आदिवासी समुदाय के हितों की रक्षा होगी, सीमावर्ती क्षेत्र मजबूत होंगे, कृषि वानिकी को बढ़ावा मिलेगा और वनवासियों के लिए विकास की गुंजाइश बढे़गी। इससे आदिवासी बस्तियों को फायदा होगा। जैसे विधेयक में चिड़ियाघर, सफारी और इको-पर्यटन सुविधाओं की अनुमति का प्रावधान किया गया है। इससे सीधे-सीधे आदिवासियों की समृद्धि सुनिश्चित होगी।

विधेयक को लेकर विपक्षी दलों ने आदिवासियों में भ्रम फैलाया
विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लेकर आदिवासियों में भ्रम फैलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा। उन्होंने यहां तक कहा कि ये कानून बनने से आदिवासी समुदाय को बेदखल कर दिया जाएगा।

विभिन्न प्रकार की भूमि में कानून लागू होने का दायरा स्पष्ट हुआ
लोकसभा में पारित संशोधन में कानून का दायरा व्यापक बनाने के लिए एक प्रस्तावना को शामिल किया गया है। इसके साथ ही एक्ट का नाम बदलकर वन (संरक्षण एवं सवर्धन) अधिनियम, 1980 किया गया है ताकि इसके प्रावधानों की क्षमताएं इसके नाम में परिलक्षित हों, संशयों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार की भूमि में कानून लागू होने का दायरा स्पष्ट किया गया है।

अधिसूचित भूमि ही इस विधेयक के अंतर्गत आएगी
विधेयक के प्रावधान के मुताबिक भारतीय वन अधिनियम 1927 या अन्य किसी कानून के तहत वन के रूप में घोषित भूमि या 25 अक्टूबर 1980 को वन के रूप में अधिसूचित की गई भूमि ही इस विधेयक के अंतर्गत आएगी। 1996 से पहले गैर वन भूमि के तौर पर घोषित की गई भूमि अधिनियम के दायरे में नहीं आएगी।

आदिवासी और सीमावर्ती इलाकों में कनेक्टविटी बढ़ेगी
विधेयक को जैव विविधता, कृषि-वानिकी और वृक्ष आवरण को बढ़ाने के लिए लाया गया है। सरकार का ये भी तर्क है कि संशोधन विधेयक के बाद उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के साथ-साथ आदिवासी और सीमावर्ती इलाकों में सड़क की कनेक्टविटी को बढ़ावा मिलेगा।

भारतीय सीमा के 100 किलोमीटर के दायरे में सुरक्षा से जुड़ी परियोजनाओं को छूट शामिल
विधेयक में वन भूमि के उपयोग को लेकर कुछ छूट दिये जाने के प्रस्तावों को भी लोकसभा से मंजूरी दी गई है। इनमें अंतरराष्ट्रीय सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा, नियंत्रण रेखा से 100 किलोमीटर के दायरे में स्थित राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी रणनीतिक परियोजनाओं को छूट शामिल है। इसके अलावा सड़कों और रेलवे लाइनों के साथ बने मकानों और प्रतिष्ठानों को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए 0.10 हेक्टेयर वन भूमि उपलब्ध कराना प्रस्तावित है।

सुरक्षा अवसंरचना के लिए 10 हेक्टेयर भूमि का प्रावधान
सुरक्षा संबंधी अवसंरचना के लिए 10 हेक्टेयर तक भूमि और वाम चरमपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में सार्वजनिक सुविधा परियोजनाओं के लिए पांच हेक्टेयर तक भूमि देने का प्रावधान है। ये सभी छूट और रियायतें जो विधेयक में दी गई हैं उनके साथ कुछ शर्तें और परिस्थितियां जोड़ी गई हैं जैसे कि बदले में क्षतिपूर्ति वनीकरण, न्यूनीकरण योजना आदि, जैसा केन्द्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाएगा।

वनकर्मियों के लिए जरूरी सुविधाएं भी शामिल की गईं
निजी इकाइयों को वन भूमि पट्टे पर देने के मामले में मूल कानून के मौजूदा प्रावधानों में समानता लाने के लिए प्रावधान का विस्तार सरकारी कंपनियों के लिए भी कर दिया गया है। विधेयक में कुछ नई गतिविधियों को भी शामिल किया गया है, जैसे कि अग्रिम क्षेत्र में तैनात वनकर्मियों के लिए जरूरी सुविधाएं, वन संरक्षण के लिए वानिकी गतिविधियों के तहत इको टूरिज्म, चिड़ियाघर और सफारी जैसी गतिविधियां चलाना।

राज्य सरकार भी विकास योजनाएं ला सकेंगी
कानून की व्यवहारिकता के मामले में संशयों को दूर करने से प्राधिकरण द्वारा वन भूमि का गैर-वानिकी कार्यों के लिये इस्तेमाल से जुड़े प्रस्तावों के मामले में निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहतर होगी। सरकारी रिकार्ड में दर्ज ऐसी वन भूमि जिसे सक्षम प्राधिकरण के आदेश से 12.12.1996 से पहले ही गैर-वानिकी इस्तेमाल में डाल दिया गया है, उसका राज्य के साथ ही केन्द्र सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं का लाभ उठाने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकेगा।

वनों के बेहतर प्रबंधन का रास्ता साफ होगा
विधेयक में फ्रंटलाइन क्षेत्र में ढांचागत सुविधाओं को खडा़ करने जैसे वानिकी गतिविधियों को शामिल करने से वन क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा की स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सकेगी। कानून में उपयुक्त प्रावधानों की जरूरत के चलते वन क्षेत्र में मूलभूत अवसंरचना का सृजन मुश्किल रहा है जिससे कि वानिकी परिचालन, पुनर्सृजन गतिविधियां, निगरानी और सुपरविजन, वन आग से बचाव जैसे उपाय किए जा सकें। इन प्रावधानों से उत्पादकता बढ़ाने के लिए वनों का बेहतर प्रबंधन का रास्ता साफ होगा। इससे इकोसिस्टम, सामान और सेवाओं का प्रवाह भी बेहतर होगा जो कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने और वन संरक्षण में मददगार साबित होगा।

इकोटूरिज्म से आदिवासी समुदायों की आजीविका बढ़ेगी
प्राणी उद्यान और सफारी जैसी गतिविधियों का स्वामित्व सरकार का होगा और इन्हें संरक्षित क्षेत्र के बाहर केन्द्रीय प्राणी उद्यान प्राधिकरण द्वारा अनुमति प्राप्त योजना के अनुरूप स्थापित किया जायेगा। इसी प्रकार वन क्षेत्र में स्वीकृत कार्य योजना अथवा वन्यजीव प्रबंधन योजना अथवा टाइगर संरक्षण योजना के मुताबिक इकोटूरिज्म गतिविधियां होंगी। इस प्रकार की सुविधायें, वन भूमि और वन्यजीव के संरक्षण और सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने के साथ ही स्थानीय समुदायों की आजीविका बढ़ाने में सहयोग करेंगी और उन्हें विकास की मुख्यधारा के साथ जुड़ने का अवसर मिलेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आदिवासियों के उत्थान के लिए कई अभूतपूर्व काम किए गए हैं। इस पर एक नजर-

आदिवासी उत्थान के लिए मिशन मोड में काम कर रही मोदी सरकार
प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि आदिवासी समाज के विकास से ही “सबका विकास” सधेगा और इसी कारण केंद्र सरकार ने बीते कुछ वर्षों में आदिवासी जनजातीय समाज के उत्थान के लिए मिशन मोड में काम कर रही है ताकि उनके जीवन के सभी आयामों को बेहतर किया जा सके। नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में 16 फरवरी 2023 को “आदि महोत्सव” का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि “पहले जो खुद को दूर-सुदूर समझता था अब सरकार उसके द्वार जा रही है, उसको मुख्यधारा में ला रही है। आदिवासी समाज का हित मेरे लिए व्यक्तिगत रिश्तों और भावनाओं का विषय है। 21वीं सदी का नया भारत ‘सबका साथ सबका विकास’ के दर्शन पर काम कर रहा है।”

आदिवासी समुदाय के विकास के लिए “आदि महोत्सव”
बीते 8-9 वर्षों में आदिवासी समाज से जुड़े आदि महोत्सव जैसे कार्यक्रम देश के लिए एक अभियान बन गए हैं। आज़ादी के अमृत महोत्सव में आदि महोत्सव ने देश की आदि विरासत की भव्यता को पेश किया। भिन्न-भिन्न कलाएं, भिन्न-भिन्न कलाकृतियां! भांति-भांति के स्वाद, तरह-तरह का संगीत, ऐसा लगा जैसे भारत की अनेकता, उसकी भव्यता, कंधे से कंधा मिलाकर एक साथ खड़ी हो गई। आदि महोत्सव में जनजातीय संस्कृति, शिल्प, खान-पान, वाणिज्य और पारंपरिक कला को प्रदर्शित किया गया। जिससे आदिवासी समुदाय की समृद्धि के द्वार खुले।

आदिवासी उत्पादों की डिमांड लगातार बढ़ रही
आज भारत के पारंपरिक, और ख़ासकर जनजातीय समाज द्वारा बनाए जाने वाले प्रॉडक्ट्स की डिमांड लगातार बढ़ रही है। पूर्वोत्तर के प्रॉडक्ट्स विदेशों तक में एक्सपोर्ट हो रहे हैं। बांस से बने उत्पादों की लोकप्रियता में तेजी से वृद्धि हो रही है। आदिवासी उत्पाद ज्यादा से ज्यादा बाज़ार तक आए, इनकी पहचान बढ़े, इनकी डिमांड बढ़े, सरकार इस दिशा में भी लगातार काम कर रही है।

3 हजार से ज्यादा वनधन विकास केंद्र स्थापित
देश के अलग-अलग राज्यों में 3 हजार से ज्यादा वनधन विकास केंद्र स्थापित किए गए हैं। 2014 से पहले ऐसे बहुत कम, लघु वन उत्पाद होते थे, जो MSP के दायरे में आते थे। अब ये संख्या बढ़कर 7 गुना हो गई है। अब ऐसे करीब 90 लघु वन उत्पाद हैं, जिन पर सरकार मिनिमम सपोर्ट एमएसपी प्राइस दे रही है। 50 हजार से ज्यादा वनधन स्वयं सहायता समूहों के जरिए लाखों जनजातीय लोगों को इसका लाभ हो रहा है। 80 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूह, सेल्फ़ हेल्प ग्रुप्स, इस समय अलग-अलग राज्यों में काम कर रहे हैं। इन समूहों में सवा करोड़ से ज्यादा ट्राइबल मेम्बर्स हैं। इसका भी बड़ा लाभ आदिवासी महिलाओं को मिल रहा है।

जनजातीय आर्ट्स को प्रमोट करने पर सरकार का जोर
सरकार का जोर जनजातीय आर्ट्स को प्रमोट करने, जनजातीय युवाओं के स्किल को बढ़ाने पर भी है। इसी वजह से बजट में पारंपरिक कारीगरों के लिए पीएम-विश्वकर्मा योजना शुरू करने की घोषणा भी की गई है। पीएम-विश्वकर्मा के तहत आर्थिक सहायता दी जाएगी, स्किल ट्रेनिंग दी जाएगी, प्रॉडक्ट की मार्केटिंग के लिए सपोर्ट किया जाएगा। इसका बहुत बड़ा लाभ आदिवासी समुदाय के युवाओं को भी होने वाला है। देश में नए जनजातीय शोध संस्थान भी खोले जा रहे हैं। इन प्रयासों से ट्राइबल युवाओं के लिए अपने ही क्षेत्रों में नए अवसर बन रहे हैं।

राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान की शुरुआत की गई
देश में राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान खोला गया। इन प्रयासों से ट्राइबल युवाओं के लिए अपने ही क्षेत्रों में नए अवसर बन रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन के अनुरूप जून 2022 में राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान की शुरुआत की गई। देश में कई जनजाति अनुसंधान संस्थान हैं, लेकिन जनजातीय समाज की विविधताओं को जोड़ने के लिए कोई राष्ट्रीय लिंक नहीं था और पीएम मोदी के विजन के अनुरूप बनाया गया यह संस्थान इसी लिंक का काम करेगा।

एकलव्य मॉडल अवासीय विद्यालयों की संख्या में 5 गुना वृद्धि
देश में एकलव्य मॉडल अवासीय विद्यालयों की संख्या में 5 गुना की वृद्धि हुई है। 2004 से 2014 के बीच 10 वर्षों में केवल 90 एकलव्य आवासीय स्कूल खुले थे। लेकिन, 2014 से 2022 तक इन 8 वर्षों में 500 से ज्यादा एकलव्य स्कूल स्वीकृत हुए हैं। वर्तमान में, इनमें 400 से ज्यादा स्कूलों में पढ़ाई शुरू भी हो चुकी है। अनुसूचित जनजाति के युवाओं को मिलने वाली स्कॉलरशिप में भी दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी की गई है। इसका लाभ 30 लाख विद्यार्थियों को मिल रहा है।

जनजातीय गौरव दिवस की शुरुआत की गई
देश के आदिवासियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, धरोहर और उनके द्वारा राष्ट्र के निर्माण में दिए गए योगदान को याद करने के लिए वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। इसके बाद देशभर में 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाई गई थी। अब इसी सिलसिले को जारी रखते हुए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के द्वारा जनजातीय गौरव दिवस मनाने की परंपरा बन चुकी है।

भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू
वर्ष 2022 आदिवासी समाज के उत्थान की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुआ। मोदी सरकार ने देश को पहला आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दिया। आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई 2022 को भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण किया। इसके साथ ही वह देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गईं। राष्ट्रपति मुर्मू, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की उम्मीदवार थी, उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा के खिलाफ भारी अंतर से जीत हासिल की। 20 जून, 1958 को स्वर्गीय बिरंची नारायण टुडू के घर जन्मीं द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के सबसे दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक से हैं। अपने बचपन में आने वाली प्रतिकूलताओं के बावजूद, मुर्मू ने अपनी शिक्षा पूरी की और 1994-1997 तक बिना वेतन के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में सेवा करके अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की। मुर्मू ने 1997 में एक पार्षद के रूप में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। द्रौपदी मुर्मू ने वर्ष 2015 में झारखंड के राज्यपाल के रूप में शपथ ली और 2021 तक इस पद पर रहीं। झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल में भी, मुर्मू का नाम पहली महिला राज्यपाल के साथ-साथ पहली ओडिया महिला और आदिवासी नेता के रूप में भी जाता है।

आदिवासी हस्तशिल्प की विदेशों में मांग, 12 करोड़ डॉलर की कमाई
देश के निर्यात में हैंडीक्राफ्ट का हिस्सा बढ़ता जा रहा है। हैंडीक्राफ्ट का करीब 30 फीसदी की दर से निर्यात बढ़ रहा है। हैंडीक्राफ्ट में ट्राइफेड प्रोडक्ट्स की भी बड़ी हिस्सेदारी है, जिन्हें अब ग्लोबल मार्केट भी मिलने लगा है। यही वजह है कि आज आदिवासी समाज भी देश के विकास में अपना योगदान दे रहा है और भारत के आदिवासी समाज की अविश्वसनीय हस्तशिल्प एक वैश्विक पहचान बन रही है। नवंबर 2022 में जारी आंकड़ों के मुताबिक आदिवासी हस्तशिल्प ने विदेशी बाजारों में 12 करोड़ डॉलर से अधिक की कमाई की। आदिवासी उत्पादों को बेचने में ट्राइफेड इंडिया मंच प्रदान करता है और एक कनेक्टर की भूमिका निभाता है। आज आदिवासी हस्तशिल्प देश में 100 से ज्यादा रिटेल स्टोर पर उपलब्ध हैं।

पीएम मोदी ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 01 नवंबर, 2022 को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित मानगढ़ धाम पहुंचकर वहां भील ​​स्वतंत्रता सेनानी संत गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने धूणी पर पहुंचकर पूजन किया और आरती उतारी। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 1913 में ब्रिटिश सेना की गोलीबारी में जान गंवाने वाले आदिवासियों को भी श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री मोदी ने आदिवासियों के प्रमुख तीर्थ स्थल मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया। इस दौरान राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के मुख्यमंत्री उनके साथ थे। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें एक बार फिर से मानगढ़ धाम में आकर शहीद आदिवासियों के सामने सिर झुकाने का मौका मिला है। गौरतलब है कि 109 साल पहले 17 नवंबर 1913 को मानगढ़ टेकरी पर अंग्रेजी फौज ने आदिवासी नेता और समाज सेवक गोविंद गुरु के 1500 समर्थकों को गोलियों से भून दिया था। गोविंद गुरु से प्रेरित होकर आदिवासी समाज के लोगों ने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ ‘भगत आंदोलन’ चलाया था।

गुमनाम जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों पर सचित्र पुस्तक का प्रकाशन
आदिवासियों की भी आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अब प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर आजादी के अमृत काल में आदिवासी बलिदानियों के इतिहास को रोचक तरीके से संजोया जा रहा है। इसी कड़ी में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों एवं आदिवासी सेनानियों के बलिदान की कहानियों को अमर चित्रकथा के साथ मिलकर सचित्र पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर जारी किया। गुमनाम जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों पर सचित्र पुस्तक का प्रकाशन विरासत को संजोने के साथ ही युवा पीढ़ी को प्रेरित करती रहेगी।

जनजातीय पद्म पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया गया
भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनने पर द्रौपदी मुर्मू की ऐतिहासिक विजय का समारोह मनाते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 23 जुलाई 2022 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान में देश भर के जनजातीय पद्म पुरस्कार विजेताओं तथा अनुसूचित जनजाति के सांसदों की मेजबानी की। इस अवसर पर पद्म पुरस्कार विजेताओं ने अपनी जीवन यात्रा को साझा किया जो कि एक शानदार अनुभव रहा। पद्म पुरस्कार विजेताओं और उनकी यात्रा के साथ-साथ उपलब्धियां सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इन पद्म पुरस्कार विजेताओं का समाज में बहुत बड़ा योगदान है।

आदिवासी समुदाय के विकास पर ‘मंथन शिविर‘ आयोजित
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने 14 जुलाई 2022 को महाराष्ट्र के पालघर में जनजातीय समुदायों की अधिकारिता, कल्याण और विकास पर एक दो दिवसीय संगोष्ठी ‘मंथन शिविर‘ का उद्घाटन किया। केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री बिश्वेसर टुडु भी इस अवसर पर उपस्थित थे। संगोष्ठी में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों, राज्य शुल्क निर्धारण समिति, अनुदान विभाग तथा जनजातीय संग्रहालयों द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के तहत विभिन्न कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसमें अनुसूचित जनजाति घटक जनजातीय आबादी के स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर चर्चा भी शामिल थी। महाराष्ट्र के अतिरिक्त, जम्मू कश्मीर, बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गोवा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा, गुजरात, दादर एवं नागर हवेली, असम, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, नागालैंड, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु के जनजातीय कल्याण विभागों के प्रतिनिधियों ने भी संगोष्ठी में भाग लिया।

डिजिटल उद्यमिताः 10 लाख आदिवासी युवाओं को डिजिटल कौशल
जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने 28 जून 2022 को गोईंग ऑनलाइन ऐज लीडर्स (जीओएएल) कार्यक्रम का दूसरा चरण आरंभ किया। यह कार्यक्रम जनजातीय कार्य मंत्रालय तथा मेटा (फेसबुक) की एक संयुक्त पहल है। जीओएएल 2.0 पहल का लक्ष्य देश के जनजातीय समुदायों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने के जरिये 10 लाख युवाओं को डिजिटल रूप से कौशल प्रदान करना है तथा उनके लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए अवसरों को खोलना है। गौरतलब है कि गोल कार्यक्रम के पहले चरण को मई, 2020 में एक प्रमुख परियोजना के रूप में शुरू किया गया था। इस चरण में प्रशिक्षुओं को तीन पाठ्यक्रम आधारों में 40 घंटे से अधिक का प्रशिक्षण प्रदान किया गया था। ये पाठ्यक्रम थे- 1. संचार व जीवन कौशल, 2. डिजिटल उपस्थिति को सक्षम बनाना और 3. नेतृत्व व उद्यमिता। गोल कार्यक्रम के पहले चरण के तहत 23 राज्यों के 176 जनजातीय युवाओं को एक ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया के माध्यम से चयन किया गया। फेसबुक ने प्रशिक्षुओं को एक स्मार्ट फोन व इंटरनेट कनेक्टिविटी भी प्रदान की गई थी।

26.37 लाख जनजाति छात्रों को मिली छात्रवृत्ति
जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2022 से 31 दिसंबर 2022 तक डीबीटी के माध्यम से 26.37 लाख जनजातीय छात्रों को छात्रवृत्ति का वितरण किया। जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2022 से 31 दिसंबर 2022 तक 2637669 छात्रों को विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए 2149.70 करोड़ रुपये की एक राशि जारी की। इन योजनाओं में अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति, अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए मैट्रिक-पश्चात छात्रवृत्ति, अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए उच्चतर शिक्षा के लिए राष्ट्रीय अध्येता स्कीम, अनुसूचित जनजाति के छात्रों (टौप क्लास) के लिए उच्चतर शिक्षा के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति स्कीम, अनुसूचित जनजाति के छात्रों को विदेशों में पढ़ने के लिए राष्ट्रीय ओवरसीज छात्रवृत्ति शामिल है।

पीएमएएजीवाई के तहत जनजातीय बहुल गांवों का समग्र विकास
जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 2021-22 से 2025-26 के दौरान कार्यान्वयन के लिए ‘प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना (पीएमएएजीवाई) नामकरण के साथ जनजातीय उप-योजना (एससीए से टीएसएस) के लिए ‘विशेष केंद्रीय सहायता की पिछली योजना का पुनरोद्धार किया, जिसका लक्ष्य लगभग 4.22 करोड़ (कुल जनजातीय आबादी का लगभग 40 प्रतिशत) की जनसंख्या को कवर करते हुए उल्लेखनीय जनजातीय आबादी के साथ गांवों का समेकित विकास करना है। इसमें अधिसूचित एसटी के साथ सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कम से कम 50 प्रतिशत जनजातीय आबादी और 500 एसटी वाले 36,428 गांवों को कवर करने की परिकल्पना की गई है। इस स्कीम का मुख्य उद्वेश्य संयोजन दृष्टिकोण के माध्यम से चयनित गांवों का समेकित सामाजिक- आर्थिक विकास अर्जित करना है। 2021-22 और 2022-23 के दौरान कुल लगभग 16554 गांवों का लिया गया है। अभी तक, 1927.00 करोड़ रुपये की राशि पहले ही राज्यों को जारी की जा चुकी है।

927 करोड़ बढ़ा जनजातीय मंत्रालय का बजट
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय के लिए 8451 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय में 927 करोड़ की उल्लेखनीय वृद्धि की गई, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट परिव्यय 7524.87 करोड़ रुपये का रहा था। इस प्रकार, इसमें 12.32 प्रतिशत की बढोततरी की गई। अनुसूचित जनजाति घटक के रूप में 87,584 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई, जबकि इससे पिछले वर्ष यह राशि 78,256 करोड़ रुपये रही थी। अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए 41 केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा यह राशि आवंटित किए जाने की आवश्यकता है।

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