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परिवारवादियों का हो रहा है पत्ता साफ, मुलायम परिवार के इन सदस्यों को चखना पड़ा है हार का स्वाद

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उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के गढ़ रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने अपना परचम लहरा दिया है। लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने इन दोनों सीटों पर शानदार जीत दर्ज की है। आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और रामपुर से आजम खान ने विधायक बनने के बाद सांसदी से इस्तीफा दे दिया था। इन दोनों सीटों के हाथ से निकले के कारण समाजवादी पार्टी के अब लोकसभा में सिर्फ तीन सांसद बचे हैं।

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव की पार्टी ने पांच सीटें जीती थीं। इसी साल 2022 के विधानसभा चुनाव में करहल सीट से विधायक का चुनाव जीतने का बाद अखिलेश ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसी तरह आजम खान ने भी विधायक बनने के बाद सांसदी छोड़ दी थी। इन दोनों लोकसभा सीटों पर इन्होंने अपने करीबियों को टिकट दिया, लेकिन वोटरों ने उन्हें झटका दे दिया। आजमगढ़ में मुलायम सिंह यादव के भाई अभयराम यादव के बेटे धर्मेंद्र यादव एक बार फिर अपनी हार बचा नहीं पाए। उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बदायूं से हार का सामना करना पड़ा था।

अखिलेश यादव और आजम खान के उम्मीदवारों को उनके गढ़ में हराकर वोटरों ने परिवारवादी पार्टियों को तगड़ा संदेश दे दिया है। वोटर अब विकास चाहते हैं ना कि परिवार। लोकसभा उपचुनाव में परिवारवादियों का पत्ता साफ कर उत्तर प्रदेश की जनता ने यह साफ कर दिया है वो अब महज वोटबैंक नहीं रहे। अब तक परिवारवादियों का लक्ष्य सिर्फ सत्ताभोग रहा है, उन्होंने सिर्फ अपने परिवार, अपने नाते-रिश्तेदारों और उनके माफिया दोस्तों का ही ध्यान रखा है। परिवारवादी राजनीति ने अब तक आम लोगों का नुकसान ही किया है। ऐसे में परिवार के गढ़ में हार ने इन्हें सबक सीखाने के काम किया है।

वैसे यह पहली वार नहीं है कि वोटरों में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के परिवारवादी राजनीति को रेड सिगनल दिखानी शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही आम लोग परिवारवादी राजनीति की जगह विकासवादी राजनीति को तरजीह देने लगे हैं। वोटर किस तरह से मुलायम-अखिलेश परिवार को नकार रहे हैं आइए देखते हैं कुछ उदाहरण-

1. धर्मेंद्र यादव
ताजा मामला धर्मेंद्र यादव का है। मुलायम सिंह यादव के भाई अभयराम यादव के बेटे धर्मेंद्र यादव आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी से हार गए। उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बदायूं से हार का सामना करना पड़ा था।

2. डिंपल यादव
परिवारवादी राजनीति को लेकर वोटरों ने मुलायम सिंह की बहू और अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को दो बार हार का चखाया है। पिछले लोकसभा सभा चुनाव 2019 में उन्हें बीजेपी से हार का सामना करना पड़ा था। इसके पहले वो 2012 में कांग्रेस नेता और अभिनेता राजबब्बर से फिरोजाबाद उपचुनाव हार गई थीं। डिंपल यादव 2014 के चुनाव में सांसद रह चुकी है, लेकिन इसके बाद मतदाताओं के परिवारवादी राजनीति के खिलाफ जाने से 2019 में जीत नहीं पाई।

3. अक्षय यादव
अक्षय यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई रामगोपाल यादव के बेटे है। अक्षय यादव 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद से चुनाव जीते थे। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास नारे के बाद राज्य के मतदाताओं ने परिवारवादी राजनीति को नकारना शुरू कर दिया। इस कारण अक्षय यादव को 2019 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद से हार का सामना करना पड़ा।

4. शिवपाल यादव
शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं। मुलायम राज में सीएम के बाद सबसे ताकतवर माने जाने वाले शिवपाल यादव को परिवार में ही अखिलेश यादव से अनबन होने के बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनानी पड़ी। जसवंतनगर से विधायक शिवपाल यादव साल 2019 में फिरोजाबाद से चुनाव हार गए थे।

5. अपर्णा यादव
मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव परिवारवादी राजनीति को छोड़ बीजेपी में आ गई हैं। बीजेपी ने उन्हें 2022 के चुनाव में टिकट नहीं दिया। इसके पहले साल 2017 में अपर्णा यादव लखनऊ कैंट सीट से विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं।

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