Home विचार प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक नीतियों से उड़ी है चीन की नींद

प्रधानमंत्री मोदी की वैश्विक नीतियों से उड़ी है चीन की नींद

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भारत-चीन के रिश्तों में ऐसा क्या हुआ है कि छह महीने पहले जो चीन, भारत के वन बेल्ट वन रोड परियोजना के उद्घाटन समारोह में भाग न लेने को कोई महत्त्व नहीं दे रहा था, वही अचानक भारत से इस परियोजना के लिए बातचीत करने की पेशकश कर रहा है। भारत में चीन के राजदूत लू झाओहुई ने बयान दिया है कि चीन भारत के लिए वन बेल्ट वन रोड परियोजना का नाम बदलने को तैयार है। चीनी राजदूत के इस बयान से चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी अपनी सहमति दिखाकर, सबको चौंका दिया है।

ओबीओआर पर चीन को मिला सटीक जवाब- बीजिंग में 14-15 मई को हुए वन बेल्ट वन रोड परियोजना के विश्वव्यापी समारोह में हिस्सा लेने से भारत ने साफ मना कर दिया था। भारत का मत था कि इस परियोजना के तहत बनने वाला चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है और कश्मीर का यह हिस्सा भारत का है, इसलिए भारत इस परियोजना में तब तक शामिल नहीं हो सकता है, जब तक कश्मीर का यह हिस्सा योजना के दायरे में रहेगा। भारत को दूसरी बड़ी खामी यह नजर आ रही थी कि, ओबीओआर परियोजना में पारदर्शिता की कमी है, क्योंकि इसकी योजना बनाने से लेकर इसके क्रियान्यवन के लिए तंत्र स्थापित करने का सारा काम चीनी सरकार के पास है, इसमें अन्य देशों का कोई सहयोग नहीं लिया जा रहा है।
चीन ने भारत के इस रुख को क्षेत्र के विकास की बाधा बताते हुए, यह प्रोपगंडा किया कि यदि भारत, चीन का इस परियोजना में साथ नहीं देता है तो वह एशिया में अलग-थलग पड़ जायेगा और उसे आर्थिक विकास करने में दिक्कतें पैदा होगी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी चीन के इस दबाव को खारिज करते हुए, अपने सिद्धातों पर डटे रहे।डोकलाम पर भी मिला सटीक जवाब- ओबीओआर पर विश्वव्यापी समारोह खत्म करने के बाद भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन एक और चाल पर उतर आया। भूटान-सिक्किम-चीन सीमा पर स्थित डोकलाम के पठार पर सड़क बनाने के लिए उसने अपने सैनिकों को साजो सामान के साथ उतारने की कोशिश की। लेकिन चीन ऐसा कर पाता कि उससे पहले ही भारतीय सेना डोकलाम के पठार पर पहुंच गई और चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोक दिया। डोकलाम का पठार, भूटान का हिस्सा है, लेकिन इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय सैनिकों के पास है, क्योंकि सामरिक दृष्टि से उत्तरी पूर्वी राज्यों की सुरक्षा के लिए यह अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र है। 16 जून 2017 को शुरू हुआ यह विवाद 28 अगस्त 2017 को तब खत्म हुआ, जब चीन ने ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के भाग लेने को सुनिश्चित करने के लिए, अपनी सेना को डोकलाम के पठार से दूर उस स्थिति में ला दिया जो 16 जून 2017 के पहले थी।

मोदी का चीन को सबक, वैश्विक कूटनीति में पहली बार हुआ-प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह सिद्धातों के आधार पर चीन को डोकलाम और ओबीओआर पर निर्भिकतापूर्ण उत्तर दिया, उससे विश्व के सभी देशों को पहली बार अहसास हुआ कि चीन को जवाब देने का यही तरीका है। विश्व के अन्य देश चीन के दक्षिण चीन सागर में विस्तारवादी नीति के खिलाफ नीतिगत विरोध करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पा रहे थे।प्रधानमंत्री मोदी की धारदार विदेश नीति-प्रधानमंत्री मोदी ने चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ का माकूल जवाब देने के लिए आतंकवाद विरोधी, सहअस्तित्व और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली व्यावहारिक नीति को अपनाया। उन्होंने अपनी इस नीति के तहत विश्व के सभी देशों के साथ भारतीय हितों को साधते हुए बराबरी का रिश्ता स्थापित किया। बिना आराम किये विश्व के कई देशों की कई यात्राएं कीं। इन सभी का परिणाम यह निकला कि भारत आज अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, रूस के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व के एशियाई देशों और अरब देशों के साथ जबरदस्त पारस्परिक और रणनीतिक सहयोग स्थापित कर चुका है।चीन, भारत को अकेला करने निकला था, खुद अकेला पड़ गया-चीन की नीति थी कि भारत को डोकलाम और ओबीओआर पर दुनिया में अकेला कर दिया जाए, लेकिन इसका ठीक उल्टा परिणाम निकला। आज चीन की परियोजना का विश्व के सभी देश उन्हीं मुद्दों पर विरोध करने लगे हैं, जिन मुद्दों पर भारत ने विरोध किया था। सभी देशों की इस परियोजना को लेकर आशंकाएं बढ़ती जा रही है। अभी हाल ही में , चीन के जिगरी दोस्त पाकिस्तान ने भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बनने वाले बांध में चीन का सहयोग लेने से मना कर दिया है। इस परियोजना के बहाने चीनी कंपनियों और नागरिकों को व्यवसाय करने का बड़ा अवसर मिल रहा है,जबकि सहयोगी देश को रोजगार और व्यापार की दृष्टि से कोई फायदा नहीं है। इस परियोजना की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें लगने वाला चीनी धन ऋण के रूप है, जो किसी भी देश के लिए भविष्य में संप्रुभता पर सवाल खड़ा कर सकता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को डोकलाम और ओबीओआर परियोजना पर जो सबक दिए हैं, उससे उसकी चिताएं घटने के बजाए, बढ़ने लगी हैं। चीन को यह समझ में आ चुका है कि भारत के सहयोग के बिना उसकी यह परियोजना पूरी नहीं होने वाली है।

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