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मोदी सरकार की ‘कूटनीतिक जीत’, यूरोपियन यूनियन की संसद में नहीं हुई सीएए पर वोटिंग

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बना है वह निश्चित ही उसके बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। उनकी अगुवाई में भारत आज एक ग्लोबल पावर बनकर उभरा है। इसका पता यूरोपियन यूनियन के रूख में आए बदलाव से चलता है। सीएए के मुद्दे पर अपने सदस्यों द्वारा बहस और फिर मतदान की प्रक्रिया पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) की संसद ने खुद को अलग कर लिया। इस पर गुरुवार को होने वाले मतदान को मार्च सत्र तक के लिए स्थगित कर दिया गया। ईयू के प्रवक्ता ने कहा कि यूरोपीय संसद और उसके सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई राय ‘यूरोपीय संघ की आधिकारिक स्थिति नहीं हैं।’ सूत्रों ने कहा कि कश्मीर मुद्दे के बाद अब नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर पाकिस्तान की साजिशें नाकाम हो गईं। बुधवार को फ्रेंड्स ऑफ पाकिस्तान पर फ्रेंड्स ऑफ इंडिया हावी रहे। इसे पीएम मोदी की एक बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।  

सीएए भारत का आंतरिक मामला – फ्रांस 

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार फ्रांसीसी राजनयिक सूत्रों ने कहा कि फ्रांस नए नागरिकता कानून को ‘भारत का आंतरिक राजनीतिक मामला’ मानता है और यूरोपीय संसद एक संस्था है जो ‘सदस्य राज्यों से स्वतंत्र’ है। अखबार की रिपोर्ट के अनुसार एक ईमेल के जवाब में, विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के लिए यूरोपीय संघ की प्रवक्ता वर्जिनी बट्टू-हेनरिकसन ने कहा- ‘यूरोपीय संसद वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अपनाए गए कानून पर एक बहस आयोजित करने की योजना बना रही है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में इस कानून की संवैधानिकता का आकलन कर रहा है। एक प्रक्रिया के अनुसार, यूरोपीय संसद ने ड्राफ्ट को प्रकाशित किया। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ये केवल यूरोपीय संसद में विभिन्न राजनीतिक समूहों द्वारा बनाए गए ड्राफ्ट हैं।’

ईयू-भारत की रणनीतिक साझेदारी मजबूत -बट्टू-हेनरिकसन

वर्जिनी बट्टू-हेनरिकसन ने कहा है, ‘मैं आपको यह भी याद दिलाती हूं कि यूरोपीय संसद और उसके सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई राय यूरोपीय संघ की आधिकारिक स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। ईयू भारत के साथ अपने रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से ब्रसेल्स में 13 मार्च 2020 को भारत के साथ 15वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। भारत यूरोपीय संघ के लिए वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने और बहुपक्षीय व्यवस्था के नियमों को संयुक्त रूप से बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है।’

पाकिस्तान की साजिश नाकाम 

सूत्र ने कहा कि ब्रेक्जिट से ठीक पहले भारत के खिलाफ यूरोपीय संसद में प्रस्ताव पारित कराने के निवर्तमान ब्रिटिश एमईपी शफ्फाक मोहम्मद के प्रयास असफल रहे। पाकिस्तान मूल के सदस्य शफ्फाक मोहम्मद और ब्रिटेन के जॉन होवार्थ एवं स्कॉट एंसली ने सीएए को एक ‘बेहद भेदभावपूर्ण’ कानून बताते हुए आरोप लगाया कि यूरोपीय संघ ने भारत की कूटनीतिक लॉबी के सामने घुटने टेक दिए हैं और प्रस्ताव पर मतदान को स्थगित करके मानवाधिकारों की चिंताओं पर व्यापारिक एवं व्यावसायिक हितों को प्राथमिकता दी है।

फ्रांस ने दिया पाकिस्तान का हाथ होने का संकेत

इसके जवाब में संसद में पोलैंड के सदस्य आर. सी. ने कहा, ‘ आज सही समझ और सम्मान की लॉबी की जीत हुई।’ यूरोपीय संसद में फ्रांस के सदस्य थियरी मारिआनी ने प्रस्ताव पर चर्चा में पाकिस्तान का हाथ होने का संकेत दिया, वहीं बाकियों ने इसे हस्तक्षेप बताते हुए अन्य देश का आंतरिक मामला बताया। ’यूरोपीय संसद में भारतीय मूल के दो सदस्यों दिनेश धमीजा और नीना गिल ने भी संसदीय प्रस्ताव में सीएए और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लेकर गलत जानकारी को रेखांकित करते हुए भारत के पक्ष में बात रखी। 

भारत ने जतायी थी कड़ी प्रतिक्रिया

बता दें कि कुछ दिन पहले ही ईयू के इस ऐलान के बाद भारत ने इसपर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने यूरोपियन यूनियन के प्रेसिडेंट डेविड मारिया सासोली को चिट्ठी लिखकर कहा था कि आपकी संसद अगर नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास करती है तो ये गलत नजीर होगी। किसी विधायिका द्वारा किसी अन्य विधायिका को लेकर फैसला सुनाना अनुचित है और इस परिपाटी का निहित स्वार्थ वाले लोग दुरुपयोग कर सकते हैं। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि अंतरसंसदीय संघ का सदस्य होने के तौर पर ‘हमें साथी विधायिकाओं की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।’

ओम बिरला ने यूरोपीय यूनियन को लिखा था पत्र

ओम बिरला ने पत्र में लिखा था कि मैं यह बात समझता हूं कि भारतीय नागरिकता कानून, 2019 को लेकर यूरोपीय संसद में ‘ज्वाइंट मोशन फॉर रेजोल्यूशन’ पेश किया गया है। इस कानून में हमारे निकट पड़ोसी देशों में धार्मिक अत्याचार का शिकार हुए लोगों को आसानी से नागरिकता देने का प्रावधान है।’ उन्होंने कहा कि इसका लक्ष्य किसी से नागरिकता छीनना नहीं है और इसे भारतीय संसद के दोनों सदनों में आवश्यक विचार-विमर्श के बाद पारित किया गया है।

क्या है यूरोपियन यूनियन के प्रस्ताव में?

बता दें कि ईयू संसद में इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट/नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई/एनजीएल) समूह ने प्रस्ताव पेश किया था जिस पर बुधवार को बहस और इसके एक दिन बाद मतदान होना था। 

प्रस्ताव में कहा गया है, ‘सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।’

सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है।

आइए एक नजर डालते हैं पाकिस्तान को अलग-थलग करने की राजनीति में मोदी सरकार को मिली कूटनीतिक कामयाबी पर-

ब्रिटेन की लेबर पार्टी का यू-टर्न

कश्मीर मुद्दे पर ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने यू-टर्न लेते हुए स्पष्टीकरण जारी किया। लेबर पार्टी के चीफ ईयान लवेरी ने पार्टी की तरफ से एक पत्र जारी करते हुए कहा कि लेबर पार्टी कश्मीर मुद्दे को भारत और पाकिस्तान का आपसी मामला मानता है और अपने पुराने स्टैंड पर कायम है।

पीएम मोदी की चिंता पर बोरिस जॉनसन ने जताया खेद 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ बातचीत में 15 अगस्त, 2019 को लंदन स्थित भारतीय दूतावास के बाहर कश्‍मीर के नाम पर पाकिस्तान समर्थकों के हिंसक प्रदर्शन का मुद्दा उठाया। पीएम मोदी की इस चिंता पर बोरिस जॉनसन ने खेद जताया। उन्‍होंने कहा कि वह भारतीय दूतावास की सुरक्षा को और पुख्‍ता किया जाएगा। उन्‍होंने पूरी सुरक्षा का भरोसा दिया। भारत के सख्त रूख को देखते हुए भारत में ब्रिटेन के राजदूत डोमिनिक आस्क्विथ ने लंदन में भारतीय दूतावास पर हमले के लिए माफी मांगी। एक चैनल के कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि ब्रिटेन हमेशा से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीयकरण के खिलाफ रहा है।

अमेरिका ने भी नहीं सुनी बात

आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद अमेरिका ने साफतौर पर दखल देने से इनकार कर दिया और कहा कि यह दोनों देशों के बीच का आपसी मामला है। पाकिस्तान उम्मीद लगाए बैठा था कि राष्ट्रपति ट्रंप मध्यस्थता की बात को आगे बढ़ाएंगे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक के बाद उन्होंने भी साफ इनकार कर दिया।

दुनिया मानने लगी आतंकवादी देश है पाकिस्तान

प्रधानमंत्री मोदी ने जब से देश की कमान संभाली है आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक अभियान चला रखा है। पीएम मोदी के प्रयास से ही पश्चिमी दुनिया अच्छे और बुरे आतंकवाद में फर्क करना भूल गई है। वर्तमान दौर में दुनिया में सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है। भारत आतंकवाद से सबसे अधिक त्रस्त है जिसकी एक मात्र वजह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद है। दुनिया के अधिकतर देश भी यह मानने लगे हैं कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और इसपर लगाम कसना आवश्यक है।

चीन को आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होने के लिए मजबूर किया
पाकिस्तान को All Weather Friend कहने वाला चीन आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान के साथ खुलकर, भारत के खिलाफ खड़े होने का हिम्मत नहीं रखता है। चीन को आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने मजबूर कर दिया। हाल के दिनों में चीन के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत का परिणाम यह हुआ कि चीन के साथ आर्थिक, समाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में रिश्ते गहरे हो रहे हैं, जो अमेरिका से आर्थिक युद्ध झेल रहे चीन के स्थायित्व के लिए बहुत जरूरी हैं। चीन के साथ बढ़ती घनिष्ठता, पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की काट के लिए सबसे कारगर उपाय साबित हो रही है। अब चीन, भारत की पाकिस्तान के आतंकवादियों के खिलाफ की जा रही सैनिक कार्रवाइयों पर उसका साथ नहीं देता है और न ही विश्व मंच पर पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाता है। इससे पाकिस्तान और भी अकेला पड़ता जा रहा है।

कश्मीर पर खाड़ी देशों ने किया भारत का समर्थन

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ पाकिस्तान के दुष्प्रचार के वाबजूद खाड़ी देशों ने भारत का समर्थन किया और इसे भारत का अंदरूनी मामाला बताया। आज भारत के सऊदी अरब, ईरान, क़तर, बहरीन और UAE समेत सभी देशों से राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं। यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है कि खाड़ी के किसी देश का पाकिस्तान को समर्थन नहीं मिला। 

ईरान, अफगानिस्तान, यूएई और सऊदी अरब से करीबी रिश्ते बनाकर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया

पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्रों से अपने सबंधों के बल पर भारत को आंख दिखाता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान, यूएई और सऊदी अरब के साथ भारत के सामरिक रिश्तों को मजबूत किया। इन देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के रिश्तों को एक नया आयाम दिया। हाल ही में यूएई ने भारत के अपराधियों को प्रत्यर्पण करने में पूरी मुस्तैदी दिखाई। आज कोई भी इस्लामिक राष्ट्र, जम्मू कश्मीर में मारे जा रहे पाकिस्तानी आतंकवादियों को लेकर भारत का विरोध नहीं करता और न ही पाकिस्तान का साथ देता है। इस तरह भारत ने इस समूह में पाकिस्तान को अलग कर दिया है। अफगानिस्तान के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष रिश्ते बनाए हैं और अफगानिस्तान को सामानों की आपूर्ति करने के लिए ईरान से चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने का समझौता करके पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से तोड़ दिया है। पाकिस्तान के मित्र राष्ट्रों के साथ दोस्ती करके प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के नैतिक बल को ही खत्म कर दिया है।

आतंक को संरक्षण देने वाला देश घोषित हुआ पाकिस्तान

कभी अमेरिकी प्रशासन के लिए पसंदीदा रहे पाकिस्तान की हालत ऐसी हो चुकी है कि वह आतंकवादी देश घोषित होने के कगार पर पहुंच चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति का परिणाम यह हुआ कि अमेरिका ने भारत के मोस्ट वाटेंड पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन और आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन पर प्रतिबंध लगा। 2018 में आई अमेरिकी रिपोर्ट में लिखा गया, ”ये आतंकवादी संगठन पाकिस्तान से चल रहे हैं। पाकिस्तान में इनको ट्रेनिंग मिल रही हैं और पाकिस्तान से ही इन आतंकवादी संगठनों की फंडिंग हो रही है।” रिपोर्ट में इस बात का साफ-साफ जिक्र था कि भारत में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। इस तरह से पाकिस्तान को अमेरिका से दूर करके भारत ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के जहर को ही सोखने का उपाय खोज निकाला।

जी-20 में आतंकवाद पर पाकिस्तान के खिलाफ समर्थन प्राप्त किया
प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व के 20 सबसे बड़े देशों के समूह जी 20 के साथ आतंकवाद और पर्यावरण संतुलन को प्रमुख मुद्दा बनाया। आतंकवाद को गरीब के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा बताया और सभी राष्ट्रों को इसके खिलाफ एकजुट होकर जवाबी कार्रवाई करने के लिए कहा। सभी राष्ट्रों ने भारत का खुलकर समर्थन किया और गैरकानूनी ढंग से धन की आवाजाही को रोकने के लिए व्यवस्था स्थापित करने के लिए बाध्य किया। जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, स्विटजरलैंड, अमेरिका, रुस, चीन आदि जैसे देशों के साथ जी-20 में मिलकर भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद के नाम पर अलग-थलग कर दिया।

सार्क समूह में पाकिस्तान को अकेला कर दिया

वर्ष 2016 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन में जब भारत ने शामिल नहीं होने की घोषणा की तो संगठन के अन्य कई देशों, जैसे – श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और अफगानिस्तान ने भी हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। हालांकि पाकिस्तान ने अन्य देशों को बुलाने की कोशिश की, लेकिन वो विफल रहा और अंत में सार्क सम्मेलन रद्द करने को मजबूर होना पड़ा। आज तक पाकिस्तान की लाख कोशिशों के बावजूद भी सार्क सम्मेलन नहीं हो सका है।

सार्क सैटेलाइट से पाक पर चोट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरुरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

बिम्सटेक को भी पाकिस्तान के आतंकवाद के खिलाफ खड़ा किया
नेपाल में 30-31 अगस्त, 2018 को संपन्न हुए हुए बिम्सटेक के चौथे शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने काठमांडू घोषणा पत्र को स्वीकार किया। इसके मुताबिक बिम्सटेक को एक शांतिप्रिय, समृद्ध और सतत् विकास के स्वरूप वाले क्षेत्र में विकसित करने के लिए सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की। घोषणा पत्र में बिम्सटेक चार्टर को जल्द से जल्द बनाने और गरीबी उन्मूलन, ऊर्जा, कृषि सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया गया। बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्‍यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड ने आतंकवाद को दरकिनार कर शांति के साथ प्रगति करने की अपनी मंशा जाहिर करते हुए पाकिस्तान की आतंकवादी नीति की जड़ें हिला कर रख दीं।

पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) की संदिग्धों की सूची यानि ग्रे लिस्ट में डलवाया
अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के लिए पाकिस्तान को फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में डाल दिया है। ग्रे लिस्ट का मतलब  है पाकिस्तान अब एक संदिग्ध देश है और उसके  क्रियाकलापों पर विश्व की एजेंसियों की नजर है। इस सूची में आने के बाद से पाकिस्तान को विश्व से मिलने वाली तमाम आर्थिक सहायता और ऋण पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए जायेगें, जिससे पाकिस्तान अपनी आतंकवादी नीति के चलते आर्थिक रुप से कमजोर होता जाएगा। उसे इस स्थिति से बचने के लिए हर हाल में अपनी आतंकवादी नीति छोड़नी ही पड़ेगी।

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