प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर केंद्र सरकार की प्राथमिकता सूची में हमेशा से सेना रही है। प्राथमिकता की झलक एक बार फिर देखने को मिली है। शहीदों के बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च अब सरकार उठाएगी। इससे पहले शहीद के बच्चों की पढ़ाई के लिए ट्यूशन और हॉस्टल फीस की भुगतान की सीमा 10 हजार रुपए महीना निर्धारित थी, जिसे हटा लिया गया है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, शहीद, विकलांग व लापता अफसरों और जवानों के बच्चों के लिए पढ़ाई खर्च की निर्धारित की गई सीमा को हटा दिया गया है। रक्षा मंत्रालय के नए आदेश का लाभ विकलांग, लापता सैनिकों के साथ जंग के मैदान में शहीद हुए सैनिकों के बच्चों को मिलेगा।
#ImportantAnnouncement :
Cap on Educational Concession removed for the children of Armed Forces Officers / PBORs, missing/ disabled/ killed in action.@nsitharaman @SpokespersonMoD pic.twitter.com/jkxdEyXjD4— Raksha Mantri (@DefenceMinIndia) March 22, 2018
प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार सेना और सैन्य परिवार की भलाई के लिए एक के बाद एक फैसला लेते रहे हैं। कुछ फैसलों की एक लिस्ट –
वन रैंक वन पेंशन योजना
वन रैंक वन पेंशन योजना लागू करना सभी सैनिकों की सेवा और त्याग के प्रति एक बड़ा प्रयास था। कांग्रेस के शासनकाल में इस विषय पर किसी भी विचार-विमर्श की योजना को वर्ष 1973 में ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया थी, लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आते ही इस पर नए सिरे से विचार हुआ और योजना को लागू कर दिया गया। इससे यह व्यवस्था सुनिश्चित हो गई कि सैनिकों व उनके आश्रितों को न केवल उनके सेवाकाल के दौरान आर्थिक संबल मिलेगा, बल्कि सेवाकाल समाप्त हो जाने के बाद भी उनकी स्थिति संतोषजनक बनी रहेगी। इससे अलग-अलग समय पर सेवामुक्त हुए दो सैनिकों की पेंशन का अंतर समाप्त हो गया। यह असमानता सेना के सभी पदों पर थी, जिस पर कांग्रेस के शासनकाल में कभी कोई प्रयास तक नहीं किया गया। 2006 से पहले तक रिटायर हुए सैनिक को अपने से जूनियर पद पर तैनात सैनिक से भी कम पेंशन प्राप्त हो रही थी। इस भारी अंतर के परिणामस्वरूप सैनिकों के मन में भारी असंतोष था। मोदी सरकार के प्रयासों ने इसे समानता प्रदान की।
‘संदेश टू सोल्जर्स’ से जुड़ा पूरा देश
देश की रक्षा में लगे सैनिकों का सम्मान तो प्रत्येक देशवासी के मन में हमेशा रहता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसे उनकी अभिव्यक्ति से जोड़कर सैनिकों के लिए एक ‘सरप्राइज’ बना दिया। ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने देश का आह्वान किया कि सभी देशवासी सैनिकों को अपनी भावनाओं से अवगत कराने हेतु अपनी रचनात्मकता का उपयोग करें। इस आह्वान का प्रभाव इतना व्यापक रहा कि किसी ने सैनिकों के लिए भावभीना पत्र लिखा, किसी ने कविताएं। किसी के बनाए चित्र दिल छूने वाले थे तो किसी के एसएमएस। सोशल मीडिया पर भी एक अभियान सा चल पड़ा। नरेन्द्र मोदी एप, मायगव एप, रेडियो पर भी संदेशों की भरमार थी। पूरा देश ही जैसे भावनाओं के सैलाब में बह चला। संभव है कि कुछ आलोचकों को मामूली सी बात लगे, परंतु सैनिकों के लिए यह बहुत अधिक अनमोल उपहार था। जिन सैनिकों तक यह सौगात पहुंची, उनकी भावुकता की कोई सीमा नहीं थी। यह प्रयास देशवासियों के प्रति सैनिकों और सैनिकों के प्रति देशवारियों के बीच एक भावनात्मक सेतु बन गया।
सैनिकों के साथ दिवाली का उल्लास
सत्ता में आने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्ववर्ती सरकारों की तरह, दिवाली या किसी अन्य पर्व-उत्सव के अवसर पर सैनिकों के लिए औपचारिक संदेश भेज कर अपने ‘कर्तव्य’ की इतिश्री करने की बजाय, अपने निजी जीवन में इस पर्व के उल्लास को सीधे सैनिकों से जोड़ दिया। प्रधानमंत्री के रूप में पद संभालने के बाद से वर्तमान तक उन्होंने प्रत्येक दिवाली सैनिकों के साथ ही मनाई। हर साल दिवाली के अवसर पर वे देश के अलग-अलग भागों में सीमा पर तैनात सैनिकों के पास पहुंच जाते हैं और वहां पर उन सैनिकों के साथ ही अपनी दिवाली मनाते हैं। वर्ष 2014 में वे दिवाली के अवसर पर सियाचिन में तैनात सैनिकों के साथ थे। 2015 में डोगराई वॉर मैमोरियल पर के जवानों के साथ रहे और 2016 में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में चीन सीमा पर तैनात आईटीबीपी के सैनिकों के साथ। इस वर्ष उन्होंने जम्मू-कश्मीर के गुरेज सेक्टर में एलओसी पर तैनात सैनिकों के साथ दिवाली की खुशियां साझा कीं।
भोजन से लेकर हथियार तक सुव्यवस्था
मोदी सरकार के शासन की बागडोर संभालने से पहले तक सैनिकों की स्थिति इतनी शोचनीय थी कि वे दो दशक पुराने हथियारों से देश की सुरक्षा करने को मजबूर थे। इसका अर्थ यह था कि तत्कालीन सरकार के लिए एक सैनिक की जान का कोई मोल ही नहीं था। वे उनसे यह उम्मीद करती थी कि उन्हीं जंग लगे हथियारों के बल पर वे युद्ध के मैदान में उतरें और दुश्मनों को पस्त करके आएं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्थिति की संवेदनशीलता को समझते हुए तुरंत नए हथियारों की खरीद के आदेश जारी किए, जिनमें 1 लाख 85 हजार रायफल्स और 10 हजार बुलेट प्रूफ जैकेट शामिल थीं। इनमें भारी संख्या में हेलमैट की खरीद को भी रखा गया था। इन नए हथियारों की विशेषता यह भी थी कि ये नए हथियार पुराने हथियारों की तरह भारी भरकम न होकर, अत्याधुनिक थे। सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था भी और अधिक पोषण को ध्यान में रखकर की गई।
कश्मीर में तैनात सैनिकों के लिए विशेष व्यवस्था
कश्मीर जैसे अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए सैनिकों की सुविधाओं में बढोतरी की गई। हमलावरों से सैनिकों की सुरक्षा हेतु यह व्यवस्था की गई कि सैनिकों की मूवमेंट केवल बख्तरबंद गाड़ियों द्वारा ही हो, जिसमें आगे की ओर मैटल प्लेट लगी हो। सैनिकों के काफिले के आगे माइन प्रोटेक्शन व्हीकल रखने पर भी विचार किया गया। काफिलों की व्यवस्था का दायित्व सेना को सौंपा गया। सेना की बटालियन का समय बचाने के लिए तथा उनकी सुरक्षा की दृष्टि से टॉप क्लास विमान मुहैया कराए गए। विकलांग सैनिकों की पेंशन में भी भारी बढ़ोतरी की गई।
शहीदों के लिए स्मारक
वर्ष 1947 में देश के विभाजन के बाद से हमारी सेना ने छह युद्धों का सामना किया, जिनमें हजारों की संख्या में हमारे सैनिक शहीद हुए। इन बलिदानों के सम्मान में मोदी सरकार ने हाल ही देश की राजधानी में एक ऐसे स्मारक के निर्माण का निर्णय लिया, जिस पर लगभग 22 हजार 6 सौ शहीदों के नाम उकेरे जाएंगे। अनुमानित रूप से 500 करोड़ की लागत वाली इस योजना के अंतर्गत एक स्मारक के साथ-साथ एक संग्रहालय भी बनाया जाएगा। जहां स्मारक पर सभी छह युद्धों के शहीदों का नाम उत्कीर्ण किया जाएगा, वहीं स्मारक में सेना के गौरवशाली पलों की धरोहरों को दर्शाया जाएगा। शहीदों के प्रति मोदी सरकार का यह प्रयास उनके त्याग का सम्मान है।