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मोदी राज में इंफ्रास्ट्रक्चर क्रांति, महाराष्ट्र में 65,000 करोड़ की लागत से बनेगा नया बंदरगाह

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में विशेष ध्यान दे रही है। चाहे सड़क हो, रेल हो, हवाई मार्ग हो, जल मार्ग हो सभी के विकास के लिए मोदी सरकार लाखों करोड़ रुपये की परियोजनाओं पर काम कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने 5 फरवरी को महाराष्ट्र के वधावन में 65 हजार करोड़ रुपये की लागत से एक नया बंदरगाह विकसित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। परियोजना की कुल लागत 65,544.54 करोड़ रुपये होने की संभावना है। वधावन बंदरगाह के विकास के बाद भारत दुनिया के टॉप 10 कंटेनर बंदरगाह वाले देशों में शामिल हो जाएगा। इस नए बंदरगाह को भू-स्वामित्व मॉडल में विकसित किया जाएगा। जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (जेएनपीटी) के साथ एक शीर्ष भागीदार के रूप में एक स्पेशल पर्पज व्हिकल (एसपीवी) स्थापित किया जाएगा। एसपीवी अंतक्ष्रेत्र के साथ कनेक्टिविटी स्थापित करने के अलावा भूमि सुधार, ब्रेक वॉटर के निर्माण सहित बंदरगाह बुनियादी ढांचे का विकास करेगा। सभी व्यापारिक गतिविधियां निजी डेवलेपर्स द्वारा पीपीपी मोड के तहत की जाएंगी। जेएनपीटी की इस परियोजना को लागू करने में इक्विटी भागीदारी 50 प्रतिशत के बराबर या इससे अधिक होगी। वधावन बंदरगाह का विकास 16,000 से 25,000 टीईयू क्षमता के कंटेनर जहाजों को आमंत्रित करने में समर्थ बनाएगा। इससे अर्थव्यवस्थाओं के स्तर में बढ़ोतरी और लॉजिस्टिक लागत कम होने के लाभ मिलेंगे।

मोदी सरकार देश में 111 जलमार्गों के विकास में जुटी हुई है। आइए डालते हैं देश में जलमार्गों के विकास पर एक नजर-

मणिपुर में लोकतक जलमार्ग परियोजना के लिए 25.58 करोड़ रुपये
शिपिंग मंत्रालय ने 28 नवंबर को मणिपुर में लोकतक अंतर्देशीय जलमार्ग सुधार परियोजना के विकास को मंजूरी दे दी। इस परियोजना पर 25.58 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। लोकतक झील दरअसल पूर्वोत्‍तर में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है, जो मणिपुर के मोइरंग में है। शिपिंग राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) और रसायन एवं उर्वरक राज्‍य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा है कि पूर्वोत्‍तर अत्‍यंत आकर्षक भू-परिदृश्‍य वाला एक मनोरम क्षेत्र है और वहां पर्यटन के लिए अपार अवसर हैं। उन्‍होंने कहा कि इस परियोजना के तहत पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में अंतर्देशीय जल परिवहन कनेक्टिविटी को विकसित किया जाएगा और इससे पर्यटन क्षेत्र को भी काफी बढ़ावा मिलेगा।

कोलकाता से काशी के बीच कंटेनर सेवा
आजादी के बाद पहली बार गंगा के जरिए हल्दिया (प.बंगाल)-प्रयागराज (यूपी) जलमार्ग शुरू हुआ। इस मार्ग पर 2000 टन के जहाजों का आवागमन संभव है। प्रधानमंत्री मोदी ने 12 नवंबर, 2018 को वाराणसी में देश के पहले मल्टी मॉडल टर्मिनल का उद्घाटन किया था। उन्होंने जलमार्ग के जरिए हल्दिया से वाराणसी आए मालवाहक जहाज का स्वागत किया। इससे परिवहन का वैकल्पिक तरीका उपलब्ध होगा जो पर्यावरण के अनुकूल होगा। इस परियोजना से देश में लॉजिस्टिक्‍स की लागत को कम करने में मदद मिलेगी। सरकार ने कहा है कि इससे बुनियादी ढांचा विकास मसलन मल्टी माडल और इंटर मॉडल टर्मिनल, रोल ऑन-रोल ऑफ (रो-रो) सुविधा, फेरी सेवाओं तथा नौवहन को प्रोत्साहन मिलेगा।

46 हजार रोजगार का सृजन 
राष्‍ट्रीय जलमार्ग-1 के विकास एवं परिचालन से 46,000 प्रत्यक्ष रोजगार के अवसरों का सृजन होगा। इसके अलावा जहाज निर्माण उद्योग में 84,000 अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इस परियोजना के मार्च 2023 तक पूरा होने की उम्मीद है। यह परियोजना उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में पड़ती है। इसके तहत आने वाले प्रमुख जिलों में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, बक्सर, छपरा, वैशाली, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मुंगेर, भागलपुर, साहिबगंज, मुर्शिदाबाद, पाकुर, हुगली और कोलकाता शामिल हैं।

परियोजना के प्रमुख घटक:

  • फेयरवे विकास
  • वाराणसी में मल्‍टीमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • साहिबगंज में मल्‍टीमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • हल्दिया में मल्‍टीमॉडल टर्मिनल निर्माण.कालूघाट में इंटरमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • गाजीपुर में इंटरमॉडल टर्मिनल निर्माण
  • फरक्‍का में नए नेविगेशन लॉक का निर्माण
  • नौवहन सहायता का प्रावधान
  • टर्मिनलों पर रोल ऑन- रोल ऑफ (आरो-आरो) की पांच जोडि़यों का निर्माण
  • एकीकृत जहाज मरम्‍मत तथा रख रखाव परिसर का निर्माण
  • नदी सूचना प्रणाली (आरआईएस) तथा जहाज यातायात प्रबंधन प्रणाली (पीटीएमएस) का प्रावधान
  • किनारा संरक्षण कार्य

पीपीपी मोड में कोलकाता तथा पटना टर्मिनलों का विकासः
भारतीय जल परिवहन क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने के लिए एडब्ल्यूएआई ने कोलकाता टर्मिनल (जीआर जेट्टी-i, जीआर जेट्टी-ii तथा बीआईएसएन) और पटना टर्मिनल (गायघाट तथा कालूघाट) की पहचान की है ताकि सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) मोड में उनका विकास और संचालन किया जा सके।

रो-रो टर्मिनलों का निर्माणः
इसके साथ ही राजमहल, मानिकचक, समदाघाट, मनीहारी, कहलगांव, तीनटंगा, हसनपुर, बख्तियारपुर, बक्सर तथा सरायकोटा में रो-रो टर्मिनलों का निर्माण किया जा रहा है।

6 शहरों में फेरी टर्मिनलः
वाराणसी, पटना, भागलपुर, मुंगेर, कोलकाता तथा हल्दिया में फेरी टर्मिनलों के निर्माण के लिए उचित स्थानों की पहचान के लिए दिसंबर, 2016 में थॉम्सन डिजाइन ग्रुप (टीडीजी), बोस्टन (अमेरिका) तथा मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) (अमेरिका) के संयुक्त उद्यम को ठेका दिया गया।

राष्ट्रीय राजमार्ग-1 पर नदी सूचना सेवा
आईडब्ल्यूएआई ने भारत में पहली बार राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर नदी सूचना सेवा प्रणाली स्थापित करने की तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण परियोजना शुरू की है। नदी सूचना प्रणाली (आरआईएस) उपकरण, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी सेवाएं है जिसका उद्देश्य अंतर-देशीय नौवहन में अधिकतम यातायात और परिवहन प्रक्रिया हैं।

दरअसल अंग्रेजों के आने से पहले भारत का ज्यादातर कारोबार नदियों के जरिए होता था। नदियों के रास्ते से ही पूर्वांचल का माल दुनियाभर में जाता था। इसी की बदौलत भारत सोने की चिड़िया बना था। अंग्रेज इस समृद्धि का राज भांप गए थे, इसलिए उन्होंने भारत के प्राचीन जलमार्गों को तबाह कर दिया और ट्रेन के जरिए ट्रांसपोर्ट का नया जरिया बनाया। इससे अब तक जो सारा सामान नदियों के जरिए इधर उधर आता जाता था, वो रेल से जाने लगा। पूर्वांचल में नदियों के किनारे बसे नगर और वहां की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई। आजादी के बाद दुर्भाग्य से कांग्रेस की सरकार के आने के बाद भी हालात नहीं बदले। कांग्रेस सरकारों में वो दूरदर्शिता ही नहीं थी कि वो पूर्वांचल के इस पिछड़ेपन के कारण जान पाती।

आजादी के बाद भारत जलमार्ग को लेकर कोई योजना नहीं बना सका लेकिन चीन और अमेरिका जैसे देशों ने जलमार्गों का महत्व जान लिया और आज ये उनकी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार हैं। आंकड़ों की तुलना में देखें तो भारत में जलमार्ग से महज 0.1 प्रतिशत ढुलाई होती है, जबकि अमेरिका अपने 21 प्रतिशत सामान को जलमार्ग से भेजता है। ये बात भी गौरतलब है कि हमारे यहां जलमार्ग के विकास की ज्यादा संभावनाएं हैं क्योंकि हमारे ज्यादातर बड़े शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं।

एक अनुमान के मुताबिक भारत में कुल 14,500 किलोमीटर लंबा जलमार्ग है। इनमें बड़े कार्गो को 5,000 किलोमीटर ले जाया जा सकता है, इसके अलावा लगभग 4,000 किलामीटर लंबी नहरों के जरिए भी माल ढुलाई हो सकती है। मोदी सरकार ने इस सुनहरे अवसर को समझते हुए ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किलोमीटर, केरल की वेस्ट कोस्ट नहर में 205 किलोमीटर और गुजरात की तापनी नदी पर 173 किलोमीटर लंबा जलमार्ग बनाने की योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है। इनके शुरू होने से सड़कों पर बोझ, जाम, ईंधन का खर्च और प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी।

रोजगार के अलावा नदियों के किनारे और जलमार्गों पर पर्यटन की भी असीम संभावनाएं हैं। गंगा नदी में कई स्थानों पर रोरो सेवा शुरू की जा रही है। सी प्लेन तैयार करने की कोशिशें हो रही है।

मोदी सरकार के पांच साल में किए गए इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण पर एक नजर – 

20 हजार गांवों में बिछेगा सड़कों का जाल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार गांवों के समग्र विकास के लिए कार्य कर रही है। मोदी सरकार का स्पष्ट मानना है कि जब गांवों का विकास होगा तभी देश का विकास होगा। किसी भी क्षेत्र के विकास में सड़क, संपर्क मार्ग, यातायात के साधन अहम भूमिका निभाते हैं। इसीलिए मोदी सरकार का जोर देश के एक-एक गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने का है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत रिकॉर्ड स्तर पर सड़कें बनाई गई हैं।

नक्सल प्रभावित इलाकों में भी सड़क निर्माण
मोदी सरकार का मानना है कि विकास के जरिए ही हिंसा और नक्सलवाद की समस्या को खत्म किया जा सकता है। इसके लिए नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क निर्माण पर सरकार का खास ध्यान है। देश में कई राज्यों में नक्सल प्रभावित ऐसे इलाकों में सड़कें बनाई जा रही हैं, जहां अभी तक किसी के जाने की हिम्मत तक नहीं होती थी। नक्सल प्रभावित इलाकों में कुल 268 सड़कों के लिए 4134 किमी लंबाई की सड़कों के बनाने का लक्ष्य तय किया गया है, जिसके लिए 4142 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। ये सड़कें बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिसा और मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित इलाकों में  बनाई जाएंगी।

राजमार्ग निर्माण में तेज रफ्तार से काम कर रही है मोदी सरकार
मोदी राज में भारत राजमार्ग निर्माण में सबसे तेज गति से विकास वाला देश बन गया है। मोदी राज में देश में प्रतिदिन 30 किलोमीटर लंबे राजमार्गों का निर्माण हो रहा है। वित्त वर्ष 2018-19 में राजमार्गों का निर्माण और विस्तार 10,800 किमी तक पहुंच गया। यह यूपीए शासन के दौरान 2013-14 की तुलना में ढाई गुना अधिक है। यूपीए-2 शासन के दौरान 2012-13 में सबसे अधिक राजमार्गों का निर्माण और विस्तार का काम हुआ। इस दौरान 5,732 किमी राजमार्गों का निर्माण और विस्तार किया गया था। जबकि 2018-19 में 30 किमी प्रतिदिन की दर से 10,800 किमी राजमार्गों का निर्माण और विस्तार किया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार यूपीए- 2 के पांच वर्षों के दौरान कुल 24,690 किमी का निर्माण या चौड़ीकरण किया गया था, जबकि मोदी राज में कुल निर्माण 39,350 किमी को छू गया, जो लगभग 70% की वृद्धि है।

3 हजार किमी एक्सप्रेसवे, 4 हजार किमी ग्रीनफील्ड हाइवे बनाने का प्रस्ताव
मोदी सरकार ने भारतमाला प्रॉजेक्ट के दूसरे चरण के तहत एक्सप्रेस-वे बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। दूसरे चरण में सरकार ने कुल तीन हजार किलोमीटर एक्सप्रेस-वे और चार हजार किलोमीटर ग्रीनफील्ड हाइवे बनाने का लक्ष्य तय किया है। नई योजना के तहत वाराणसी-रांची-कोलकाता, इंदौर-मुंबई, बेंगलुरु-पुणे और चेन्नै-त्रिचि के बीच एक्सप्रेस-वे बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके साथ ही ग्रीनफील्ड हाइवे योजना के तहत पटना से राउरकेला, झांसी से रायपुर, सोलापुर से बेलगाम, गोरखपुर से बरेली और वाराणसी से गोरखपुर के बीच नए राजमार्ग बनाए जाएंगे। इन सड़कों के निर्माण के लिए 2024 तक की समयसीमा निर्धारित की गई है।

भारत-चीन सीमा पर 44 सड़कें बनवाएगी मोदी सरकार
सरकार चीन से लगती सीमा पर 44 सामरिक सड़कों का निर्माण करेगी। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘एजेंसी को भारत-चीन सीमा पर सामरिक रूप से महत्वपूर्ण 44 सड़कों के निर्माण के लिए कहा गया है। इससे टकराव की स्थिति में भारतीय सेना का सीमाओं पर पहुंचना आसान हो जाए।’ भारत और चीन के बीच करीब 4,000 किमी की वास्तविक नियंत्रण रेखा जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के इलाकों से गुजरती है। रिपोर्ट के मुताबिक, 44 सड़कों को बनाने में करीब 21 हजार करोड़ रुपये की लागत आएगी। ये सड़कें पांच राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में बनेंगी।

भारत-पाक सीमा पर भी बनेंगी 2100 किलोमीटर लंबी सड़कें
इसके अलावा, सरकार पाकिस्तान से लगे पंजाब और राजस्थान के इलाकों में 2100 किलोमीटर लंबे मुख्य और संपर्क मार्ग का भी निर्माण करेगी। ये सड़कें भारत के लिए रणनीतिक तौर पर काफी अहम होंगी। सीपीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान और पंजाब में 5,400 करोड़ रुपये की लागत से सड़कों का निर्माण किया जाएगा। राजस्थान में 945 किलोमीटर मुख्य और 533 किलोमीटर संपर्क मार्ग बनाए जाएंगे। जबकि पंजाब में 482 किलोमीटर मुख्य और 219 किलोमीटर संपर्क मार्ग बनाए जाएंगे।

पूर्वोत्तर की लाइफलाइन बोगीबील पुल राष्ट्र को समर्पित
प्रधानमंत्री मोदी ने 25 दिसंबर, 2018 को वाजपेयी जी के जन्मदिन पर असम में बोगीबील पुल को राष्ट्र को समर्पित किया। ब्रह्मपुत्र नदी पर बना यह देश का सबसे लंबा रेल सह सड़क पुल है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2002 में इसका शिलान्यास किया था। इस पुल को वैसे तो 6 साल में बनकर तैयार होना था लेकिन इसे पूरा होने में 16 साल का लंबा वक्त लग गया। यूपीए सरकार के दौरान पुल का काम एक तरह से रुका रहा और 12 साल में सिर्फ 58% काम किया पूरा किया गया। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आने के बाद ब्रिज का निर्माण युद्धस्तर पर शुरू हुआ और 2018 में बनकर तैयार हो गया। बोगीबील रेल-रोड पुल असम समेत पूर्वोत्तर में विकास के नए रास्ते खोल रहा है। असम के डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर बनाया गया यह पुल असम के धीमाजी जिले को डिब्रूगढ़ से जोड़ता है। पुल के निर्माण में 5920 करोड़ रुपए की लागत आई।

धुआंधार गति से सड़कें और हाईवे निर्माण
अच्छी सड़कें अच्छे इन्फ्रास्ट्रक्चर का उदाहरण होती हैं। मोदी सरकार का सड़कों और हाईवे के निर्माण पर शुरू से जोर रहा है। यह इससे पता चलता है कि 2013-14 में यूपीए सरकार के सड़कों के निर्माण का बजट जहां 32,483 करोड़ रुपये था वो 2017-18 में मोदी सरकार में बढ़कर 1,16,324 करोड़ रुपये हो गया। 2013-14 में नेशनल हाईवे 92,851 किलोमीटर तक विस्तारित था जो 2017-18 में 1,20,543 किलोमीटर तक पहुंच गया। 2013-14 में कंस्ट्रक्शन की स्पीड 12 किलोमीटर प्रतिदिन थी जो 2017-18 में बढ़कर 27 किलोमीटर प्रतिदिन तक पहुंच गई। 2018-19 में यह 30 किलोमीटर प्रतिदिन पर पहुंच गई है। इसके साथ ही 2,000 किलोमीटर के कोस्टल कनेक्टिविटी रोड की भी पहचान की गई है जिसका निर्माण और विकास किया जाना है।

सबसे लंबी सड़क सुरंग और पुल राष्ट्र को समर्पित
पिछले वर्ष सड़क पर देश की सबसे लंबी सुरंग चेनानी-नाशरी सुरंग राष्ट्र को समर्पित किया गया। असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने देश के सबसे लंबे पुल को भी जनता को समर्पित किया गया। 9.15 किलोमीटर लंबे ढोला-सादिया पुल (भूपेन हजारिका पुल) ने ऊपरी असम और अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी हिस्से के बीच चौबीस घंटे की कनेक्टिविटी को सुनिश्चित किया है। इसके साथ ही भरुच में नर्मदा के ऊपर और कोटा में चंबल के ऊपर बने पुल भी जनता को समर्पित किए जा चुके हैं।

भारतमाला परियोजना फेज-1  
भारतमाला परियोजना के तहत देश के पश्चिम से लेकर पूर्व तक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सड़कों का जाल बिछाने की योजना है। इसके लिए नेशनल हाईवे के 53,000 किलोमीटर के हिस्से की पहचान की गई है जिसके फेज-1 में 2017-18 से 2021-22 तक 24,800 किलोमीटर के काम को पूरा किया जाएगा। इसके दायरे में नेशनल कॉरिडोर के 5,000 किलोमीटर, इकोनॉमिक कॉरिडोर के 9,000 किलोमीटर, फीडर कॉरिडोर और इंटर-कॉरिडोर के 6,000 किलोमीटर, सीमावर्ती सड़कों के 2,000 किलोमीटर, 2,000 किलोमीटर कोस्टल और पोर्ट कनेक्टिविटी रोड और 800 किलोमीटर के ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे आते हैं। फेज-1 पर लगभग 5 लाख 35 हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि फेज-1 के इस पूरे कार्य के दौरान रोजगार के करीब 35 करोड़ श्रमदिवसों का सृजन होगा।

सेतु भारतम से सड़क पर सुरक्षा
मार्च 2016 में लॉन्च की गई इस योजना का मकसद है सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करना। इसके तहत सभी नेशनल हाईवे को रेलवे ओवरब्रिज और अंडरपास बनाकर रेलवे क्रॉसिंग से मुक्त करना है। 1500 पुराने और जीर्णशीर्ण पुलों को नए सिरे से मजबूती के साथ ढालना है और चौड़ा करना है। 20,800 करोड़ की लागत से 208 रेलवे ओवरब्रिज और अंडरब्रिज का निर्माण किया जाना है।

चारधाम महामार्ग विकास परियोजना
27 दिसंबर 2016 को लॉन्च की गई इस परियोजना का मकसद है हिमालय में स्थित चारधाम तीर्थ केंद्रों की कनेक्टिविटी को बेहतर करना। इससे तीर्थयात्रियों का सफर और अधिक सुरक्षित, तेज और सुविधाजनक होगा। नेशनल हाईवे के करीब 900 किलोमीटर के हिस्से के आसपास होने वाले इस कार्य की अनुमानित लागत है करीब 12,000 करोड़ रुपये। मार्च 2020 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

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