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सिंगुर में लाखों सपनों को रौंदकर ममता बनी थी मुख्यमंत्री, अब बंगाल को देने होंगे 766 करोड़, हारी जनता गाती रह गई…आमार सोनार बांगला!

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पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने सिंगुर में टाटा मोटर्स की नैनो कार बनाने के लिए प्लांट बनाने के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। इसके लिए फैक्ट्री बनाई जानी थी और जमीन का अधिग्रहण होना था। ममता बनर्जी राजनीतिक जमीन तलाश रही थीं और लेफ्ट की मुखर विरोधी थीं। सिंगुर में टाटा के खिलाफ आंदोलन को भड़काकर ममता ने मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए लाखों सपनों को कुचल दिया था। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मौजूदा सीएम ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ भूख हड़ताल की थी। आंदोलन इतना मजबूत हुआ कि टाटा को सिंगुर से अपना काम समेटना पड़ा। इसके बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाटा का स्वागत गुजरात में किया था और फैक्टरी वहीं लगी। गुजरात में टाटा की फैक्टरी लगने से समृद्धि आई वहीं पश्चिम बंगाल की इससे निगेटिव छवि बनी। आज भी वहां उद्योग-धंधे का बुरा हाल है। अब इस मामले में करीब 17 साल बाद अदालत का फैसला टाटा के पक्ष में आया है और पश्चिम बंगाल को 766 करोड़ रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया है। इस पूरे मामले में ममता को तो सत्ता की मलाई मिल गई लेकिन अगर किसी की हार हुई तो वह पश्चिम बंगाल की जनता है। उसे न उद्योग मिला, न रोजगार, प्रदेश की नकारात्मक छवि बनी और वह आमार सोनार बांगला गाती रह गई।

पीएम मोदी ने टाटा को आमंत्रित कर जताया था विकास के प्रति प्रतिबद्धता
सिंगूर के लिए साल 2006 में हुआ आंदोलन ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की सत्ता पर स्थापित करने में काफी अहम रहा है। फिर वही टाटा नैनो कार का प्लांट गुजरात गया और उसने नरेंद्र मोदी के बारे में लोगों को यह भरोसा दिलाया कि वह विकास को अहमियत देते हैं। विकास पुरुष के रूप में पीएम मोदी की लोकप्रियता कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2006 में टाटा प्लांट को जब उन्होंने गुजरात आमंत्रित किया था तब भी देशवासियों ने उनकी सराहना की थी। 

सिंगुर आंदोलन में ममता को दिखा सत्ता का रास्ता
पश्चिम बंगाल की राजनीति में सिंगुर आंदोलन की बहुत बड़ी भूमिका रही है। ममता बनर्जी ने इसके विरोध में उठ रही आवाजों के बीच सत्ता का रास्ता देख लिया और कूद पड़ी इस जंग में। इसी आंदोलन के कारण ही ममता बनर्जी ताकतवर होकर उभरी और तीन दशक से भी लम्बे वामपंथी शासन का अंत हुआ। यह अलग बात ममता का चरित्र भी वामपंथियों से कोई अलग नहीं रहा। वह भी वामपंथियों की तरह भ्रष्टाचार में डूब गई।

ममता की महत्वकांक्षा ने लाखों लोगों के सपनों की बलि ले ली
सिंगुर में कई महीनों चले इस हिंसक आंदोलन के कारण टाटा जैसे अतिप्रतिष्ठित व्यापारी समूह को रातोंरात सिंगुर से अपना काम धाम छोड़ कर जाना पड़ा। यह फैक्ट्री गुजरात चली गई। और आज गुजरात में आटोमोबाइल का बहुत बड़ा इकोसिस्टम बन चुका है, जहां लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है। वहीं अगर सिंगुर की बात करें तो वहां आज भी बर्बादी के हालात हैं। ना नौकरी है, ना काम धंधा है। टाटा का प्लांट लगने से वहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव आने वाला था। लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा ने लाखों लोगों के सपनों की बलि ले ली।

ममता ने टाटा प्लांट के विरोध में कई मार्च निकाले, भूख हड़ताल की
पश्चिम बंगाल की मौजूदा सीएम ममता बनर्जी ने टाटा नैनो प्लांट के विरोध में कई मार्च निकाले। इसके अलावा विपक्षी नेता के रूप में ममता बनर्जी ने 3 दिसंबर 2006 से कोलकाता में आमरण अनशन शुरू कर दिया। विवादों के बाद भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद टाटा समूह दूसरी जगह इस प्लांट को शिफ्ट करना चाहता था गुजरात के साणंद में टाटा को भूमि मिली और साल 2008 में इस प्लांट को वहां शिफ्ट किया गया।

बंगाल सरकार को टाटा ग्रुप को 11 प्रतिशत ब्याज के साथ देने होंगे 766 करोड़
पश्चिम बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी को खड़ा करने में सिंगुर में टाटा के प्लांट के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन की अहम भूमिका रही। इसी मुद्दे ने उनको बंगाल की सत्ता का स्वाद चखने में मदद की थी, लेकिन जिस सिंगूर विवाद को सीढ़ी बनाकर वह कुर्सी तक पहुंचीं उसी में उनकी सरकार को कोर्ट से झटका लगा है। दरअसल सिंगूर जमीन विवाद मामले में टाटा को बड़ी जीत मिली है। पश्चिम बंगाल सरकार को टाटा ग्रुप को 11 प्रतिशत ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये देने होंगे।

करतूत ममता की, टाटा को 766 करोड़ को भरेगी आम जनता
सिंगुर में प्लांट नहीं लगने से टाटा ग्रुप को कई सौ करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। साथ ही उन्हें नैतिक और सामाजिक झटका लगा वो अलग। छवि खराब हुई जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। लेकिन आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए टाटा ग्रुप ने Arbitration Tribunal में जाने का फैसला लिया। और अब 15 साल बाद इसका फैसला टाटा के हक में आया है। Tribunal ने West Bengal Industrial Development Corporation Limited (WBIDC) को आदेश दिया है कि वह टाटा को 766 करोड़ रूपए का भुगतान करे। इस रकम के अलावा ब्याज और 1 करोड़ रूपए अलग से देने होंगे, जो टाटा ने इस कानूनी कार्यवाही पर खर्च किए। यह पश्चिम बंगाल सरकार का ही एक विभाग है। अब सवाल यह है कि भुगतान सरकारी विभाग अपनी जेब से तो करेगा नहीं, यानि सरकार करेगी। और भरेगा कौन?? वही आम जनता। सिंगुर आंदोलन भड़काकर ममता बनर्जी को तो सत्ता मिल गई। जनता को क्या मिला? सिंगुर अभिशप्त हो गया। वहां के लाखों लोगों के सपने टूट गए। राज्य की छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। ऊपर से 766 करोड़ ब्याज सहित देने होंगे।

सिंगुर में किसानों को वापस कर दी गई 400 एकड़ भूमि
साल 2011 में जब ममता बनर्जी पहली बार सीएम बनी तो उन्होंने सिंगूर भूमि पुनर्वास और विकास विधेयक को पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित किया। इस विधेयक के जरिए 400 एकड़ कृषि भूमि किसान को वापस दी गई थी।

2011 में टाटा मोटर्स ने खटखटाया था अदालत का दरवाजा
साल 2011 में टाटा मोटर्स ने ममता बनर्जी की सरकार के उस कानून को चुनौती दी जिसके जरिए अधिग्रहण की जा चुकी जमीन छीनी गई थी। साल 2012 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने सिंगुर अधिनियम को असंवैधानिक बताया और कंपनी के अधिकार बहाल कर दिए गए। हालांकि, टाटा मोटर्स को जमीन का कब्जा नहीं मिल पाया। ममता बनर्जी की सरकार अगस्त 2012 में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। चार साल सुप्रीम कोर्ट में केस चला और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलटते हुए भूमि अधिग्रहण को अवैध बताया और कहा कि जो जमीन ली गई थी वह उसके मालिकों यानी किसानों को लौटा दी जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद टाटा मोटर्स ने लीज कॉन्ट्रैक्ट का हवाला देते हुए क्षतिपूर्ति की मांग की। अब 7 साल बाद टाटा मोटर्स को इस मामले में जीत मिली है और तीन सदस्यीय ट्राइब्यूनल ने कहा है कि ममता बनर्जी सरकार टाटा मोटर्स को ब्याज के साथ 766 करोड़ रुपये का हर्जाना दे।

बंगाल में उद्योग की हालत खस्ता, जूट मिलें बंद होने के कगार पर
पश्चिम बंगाल में एक समय 100 अधिक जूट मिलें थीं। लेकिन अब इनमें आधी से ज्यादा बंद हो चुकी है और जो चल भी रही हैं वो खस्ता हालत में हैं। करीब तीन दशक पर पश्चिम बंगाल पर वामपंथियों ने शासन किया और अब 13 साल से ममता बनर्जी शासन कर रही हैं। लेकिन इन दलों के भ्रष्टाचार की वजह से आज पश्चिम बंगाल का जूट उद्योग संकट से जूझ रहा है। इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन ने बैंक ऋण, किफायती आवास और नई तकनीक के लिए धन जैसे उपायों के माध्यम से बीमार उद्योग के पुनरुद्धार और स्थिर विकास के लिए सरकारी समर्थन मांगा है। जूट उद्योग पर 2.5 लाख से अधिक मिल श्रमिक और 40 लाख किसान सीधे निर्भर हैं। पश्चिम बंगाल में जूट का सर्वाधिक उत्पादन होता है, लेकिन बंगाल की जूट मिलें बीमार हैं और श्रमिकों का हाल खास्ताहाल है।

भ्रष्टाचार और गलत औद्योगिक नीतियों के कारण उद्योग की हालत बिगड़ी
वामपंथी पार्टियां हों या तृणमूल कांग्रेस दोनों ही भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी रही है। इसकी वजह से जूट मिलों के साथ ही अन्य उद्योग धंधों का भी बुरा हाल है। जूट मिल में करने वाले मजदूरों का आरोप है कि पहले वामपंथी और फिर तृणमूल कांग्रेस से संबद्ध मज़दूर संगठनों के उग्र आंदोलन, राज्य सरकार की गलत औद्योगिक नीतियों और मिल मालिकों की फूट डालो व राज करो की नीति ने ही इस उद्योग को बदहाल बना दिया है। इंटक नेता रमेन सरकार कहते हैं, ‘राज्य में माकपा की अगुवाई वाली वाममोर्चा सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही जूट उद्योग की हालत बिगड़ने लगी। मिलों में मारपीट, हत्या व आगजनी की घटनाएं बढ़ने लगीं। उसके बाद ही मालिकों और मजदूरों के बीच खाई भी बढ़ने लगी।

भ्रष्टाचार में तृणमूल के दर्जनभर विधायक, सांसद, मंत्री, नेता गिरफ्तार
पश्चिम बंगाल में एक के बाद एक घोटाला सामने आ रहा है। भ्रष्टाचार के मामलों में तृणमूल के एक दर्जन से अधिक नेता-मंत्री सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं। साल 2011 के बाद से जब बंगाल में 34 साल के वाम मोर्चा शासन को समाप्त कर वर्तमान तृणमूल कांग्रेस शासन सत्ता में आई। लेकिन अब वह भ्रष्टाचार में नित नए रिकार्ड कायम कर रही है। राज्य में शिक्षक भर्ती घोटाला, कोयला तस्करी मामला, नगर पालिका नियुक्ति घोटाला में कई पूर्व मंत्री, विधायक गिरफ्तार हो चुके हैं। इस सिलसिले में नया नाम वर्तमान वन मंत्री व पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक का नाम जुड़ गया है।

पश्चिम बंगाल में ममता सरकार भ्रष्टाचार के नए-नए रिकार्ड बना रही है। इन घोटालों में गिरफ्तारी पर एक नजर-

राशन वितरण घोटाला
वन मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक गिरफ्तार
ईडी ने 26 अक्टूबर को राशन वितरण में भ्रष्टाचार के मामले में टीएमसी नेता और राज्य के वन मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक को गिरफ्तार किया। 27 अक्टूबर को उन्हें 6 नवंबर तक ईडी की हिरासत में भेज दिया गया। यह गिरफ्तारी ईडी द्वारा कोलकाता के बाहरी इलाके साल्ट लेक में मल्लिक के आवास पर तलाशी लेने के एक दिन बाद हुई। मल्लिक वर्तमान में वन मामलों के राज्य मंत्री हैं और पहले उनके पास खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग का प्रभार था। ईडी ने इससे पहले मंत्री के एक विश्वासपात्र कारोबारी बाकिबुर रहमान को गिरफ्तार किया था।

शारदा चिटफंड घोटाला
मदन मित्रा, सृंजय बोस, कुणाल घोष गिरफ्तार
करोड़ों रुपये के शारदा चिटफंड घोटाले में तृणमूल के तत्कालीन राज्यसभा सदस्य सृंजय बोस और तृणमूल के विधायक और तत्कालीन परिवहन मंत्री मदन मित्रा को गिरफ्तार किया गया था। मित्रा और बोस दोनों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। वहीं बंगाल पुलिस ने शारदा चिटफंड घोटाले में टीएमसी के प्रवक्ता और पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य कुणाल घोष को गिरफ्तार किया था।

रोजवैली चिटफंड घोटाला
सुदीप बंद्योपाध्याय, तापस पाल गिरफ्तार
रोजवैली चिटफंड घोटाले में सीबीआई अधिकारियों ने तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सदस्य सुदीप बंद्योपाध्याय और अभिनेता से नेता बने दिवंगत तापस पाल को गिरफ्तार कर लिया। पाल की फरवरी 2020 में 61 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।

मनी लॉड्रिंग मामला
पूर्व राज्यसभा सदस्य केडी सिंह गिरफ्तार
साल 2021 में ईडी के अधिकारियों ने टीएमसी के पूर्व राज्यसभा सदस्य और अलकेमिस्ट ग्रुप के संस्थापक केडी सिंह को 2018 में केंद्रीय एजेंसी द्वारा शुरू किए गए मनी लॉड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था।

नारद वीडियो टेप घोटाला
सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सोवन चट्टोपाध्याय गिरफ्तार
2021 में राज्य विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद सीबीआई ने बंगाल कैबिनेट के दो सदस्यों दिवंगत सुब्रत मुखर्जी और फिरहाद हकीम, कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के पूर्व मेयर सोवन चट्टोपाध्याय और पार्टी विधायक मदन मित्रा को नारद वीडियो टेप घोटाले में गिरफ्तार किया। इसमें पार्टी के कई दिग्गज नेताओं और एक पुलिस अधिकारी को लाभ पहुंचाने के वादे के बदले नकद स्वीकार करते देखा गया था।

शिक्षक भर्ती घोटाला
पार्थ चटर्जी, मानिक भट्टाचार्य, जीबनकृष्ण साहा गिरफ्तार
साल 2022 के बाद से जब केंद्रीय एजेंसी के अधिकारियों ने बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच शुरू की, तो बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी पहले व्यक्ति थे, जिन्हें पिछले साल जुलाई में गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में ईडी ने पार्टी विधायक और पश्चिम बंगाल बोर्ड ऑफ प्राइमरी एजुकेशन (डब्ल्यूबीबीपीई) के पूर्व अध्यक्ष मानिक भट्टाचार्य और पार्टी के एक अन्य विधायक जीबनकृष्ण साहा को गिरफ्तार किया।

मवेशी तस्करी मामला
अनुब्रत मंडल गिरफ्तार, 20 करोड़ रुपये संपत्ति कुर्क
मवेशी तस्करी मामले में अगस्त 2022 में तृणमूल के विधायक और बीरभूम जिला अध्यक्ष अनुब्रत मंडल को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 6 दिसंबर 2022 में तृणमूल कांग्रेस के नेता अनुब्रत मंडल के ‘करीबी विश्वस्त’ रहे एक व्यक्ति के पास से 1.58 करोड़ रुपये से अधिक की 32 संपत्तियां मवेशी तस्करी मामले से संबद्ध धन शोधन की जांच के सिलसिले में कुर्क कर ली गई। अभी तक इस मामले में दो आरोपपत्र दाखिल किए हैं और कुल 20.25 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गयी है।

कोयला तस्करी मामला
कानून मंत्री मोलॉय घटक और ममता की बहू रुजिरा बनर्जी के खिलाफ जांच
पश्चिम बंगाल में कोयला तस्करी मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच जारी है। इस मामले में पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री मोलॉय घटक और ममता बनर्जी के भतीजे तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी की पत्नी रुजिरा बनर्जी के खिलाफ जांच जारी है।

नगर निकाय भर्ती घोटाला
फिरहाद हकीम और मदन मित्रा के आवास पर छापे
पश्चिम बंगाल में साल 2014 और 2018 के बीच साजिश के तहत विभिन्न नगर निकायों में ग्रुप सी और ग्रुप डी पदों पर भर्तियां हुईं और गैरकानूनी तरीके से अयोग्य उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया। फिरहाद हकीम और मदन मित्रा के आवास पर सीबीआई ने रेड डाली है। फिरहाद हकीम को ममता बनर्जी का बेहद करीबी माना जाता है और पार्टी में भी उनका खास प्रभाव है। वह पश्चिम बंगाल सरकार में शहरी विकास और नगर निकाय मामलों के मंत्री हैं और कोलकाता के महापौर भी हैं। वहीं, मदन मित्रा उत्तर 24 परगना जिले के कामरहाटी से टीएमसी के विधायक हैं।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद भ्रष्टाचार का खुला खेल हुआ और बनर्जी परिवार सहित इनसे जुड़े लोगों की संपत्तियां काफी बढ़ गई। इसकी भी जांच हो रही है। इस पर एक नजर- 

एजेंसियां पता लगा रहीं कि सीएम ममता बनर्जी ने किन-किन पर अपनी ‘ममता’ लुटाई
सीएम ममता के करीबी मंत्री के बाद अब सीएम के भाइयों पर करोड़ों कमाने और आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे हैं। कोलकाता हाईकोर्ट में लगी पिटीशन में साफ-साफ कहा गया है कि तृणमूल कांग्रेस के 2011 में सत्ता में आने के बाद से बनर्जी परिवार की संपत्ति बेहिसाब बढ़ी। सीएम ममता बनर्जी के पांच भाइयों और एक भाभी पर आय से ज्यादा संपत्ति जमा करने के आरोप लगे हैं। हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को एफिडेविट जमा करने के आदेश दिए थे। 

बनर्जी परिवार की संपत्ति में बेशुमार इजाफा
कोलकाता हाईकोर्ट में लगी एक नई पिटीशन में अब सीएम ममद बनर्जी का परिवार ही निशाने पर है। पिटीशन में ममता के भाइयों पर आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से बनर्जी परिवार की संपत्ति में बेशुमार इजाफा होकर यह कई गुना बढ़ी है। पिटीशन में कहा गया है कि कोलकाता की हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर ज्यादातर प्रॉपर्टी बनर्जी परिवार की हैं। ममता की भाभी कजरी बनर्जी पर कई प्रॉपर्टी मार्केट रेट से कम कीमत में खरीदने का आरोप है। भतीजे अभिषेक बनर्जी कई कंपनियों में डायरेक्टर हैं।

ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद पश्चिम बंगाल में स्कैम की बाढ़ आई
पिटीशन में ममता और उनके परिवार पर लगे आरोप लगे हैं कि 2011 से ममता बनर्जी बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। इस दौरान शारदा स्कैम, रोज वैली स्कैम, नारदा स्कैम, पोंजी स्कैम और रिक्रूटमेंट स्कैम हुए। एक भी रिक्रूटमेंट प्रोसेस भ्रष्टाचार के बिना पूरी नहीं हुआ। इन घोटालों में तृणमूल कांग्रेस के कई नेता अरेस्ट भी हुए। पॉलिटिकल लीडर्स और मीडिया ने ममता बनर्जी के फैमिली मेंबर्स की बेहिसाब संपत्ति पर खुलासे किए। गनाशक्ति नाम के बांग्ला अखबार ने दावा किया कि कोलकाता की हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर ज्यादातर प्रॉपर्टी बनर्जी परिवार की हैं।

शारदा चिटफंड स्कैम में बनर्जी परिवार पर सवालिया निशान
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिटीशन में आरोप है कि साल 2011 के बाद लीप्स एंड बाउंड्स इंफ्रा कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड, लीप्स एंड बाउंड प्राइवेट लिमिटेड, लीप्स एंड बाउंड मैनेजमेंट सर्विसेज LLP (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) बनीं। तीनों ही कंपनियां सीएम ममता बनर्जी के पारिवारिक सदस्य ही चलाते हैं। इसके बाद नवंबर 2013 में तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद और मौजूदा जनरल सेक्रेटरी कुणाल घोष शारदा स्कैम में अरेस्ट हुए थे। तब उन्होंने कहा था कि शारदा चिटफंड का पैसा ममता बनर्जी के पास है। कोर्ट ने 28 नवंबर को कुणाल घोष को भी आने के लिए नोटिस जारी किया है।

WBHB से 63.78 लाख रुपये की मार्केट वैल्यू की प्रॉपर्टी सिर्फ 19 लाख में खरीदी
हाईकोर्ट में दायर पिटीशन में कहा गया है कि त्रिनेत्र कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी 2019 के पहले बनी और गायब भी हो गई। कंपनी ने बैलेंस शीट फाइल नहीं की। कथित तौर पर इसके जरिए टीएमसी को 3 करोड़ रुपए का डोनेशन अलग-अलग समय में दिया गया। आरोप है कि ममता के भाई समीर बनर्जी की पत्नी कजरी बनर्जी ने 14 मई 2019 को सीएम के दबाव में वेस्ट बंगाल हाउसिंग बोर्ड (WBHB) से एक प्रॉपर्टी 19 लाख रुपए में खरीदी, लेकिन उसकी मार्केट वैल्यू 63.78 लाख रुपए थी।सीएम की भाभी कजरी बनर्जी ने चुनाव के एफिडेविट में भी कई जानकारियां छिपाईं
इतना ही नहीं सीएम बनर्जी की भाभी कजरी बनर्जी ने 2021 में वार्ड नंबर 73 से चुनाव लड़ा। उन्होंने एफिडेविट में खुद को सोशल वर्कर बताया। पति और खुद की प्रॉपर्टी 5 करोड़ रुपए बताई। सोशल वर्क करके 5 करोड़ कैसे कमाए जा सकते हैं। पिटीशन में आरोप है कि कजरी ने एफिडेविट में कई जानकारियां छिपाईं। बेटे को डिपेंडेंट बताते हुए उसके पैन नंबर का जिक्र नहीं किया, जबकि वे केए क्रिएटिव LLP की मालकिन हैं। केए क्रिएटिव के जरिए हरीश मुखर्जी रोड पर 1.30 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी खरीदी गई। इसकी सही कीमत 5.19 करोड़ रुपए थी।

कोलकाता पुलिस को नहीं, सीबीआई और ईडी को इसकी जांच सौंपी जानी चाहिए
पिटिशनर के वकील का कहना है कि हमने कोर्ट में ममता बनर्जी के फैमिली मेंबर्स के जो डॉक्युमेंट्स दिखाए हैं, उनसे पता चलता है कि उनकी संपत्ति काफी ज्यादा बढ़ी है। इलेक्शन एफिडेविट में सही संपत्ति का खुलासा नहीं किया गया। प्रॉपर्टी खास तौर से 2011 और 2013 के बाद बढ़ी। 2013 वह साल था, जब बंगाल में चिटफंड कंपनियों पर ताले लग रहे थे। पिटिशन में कहा गया है कि चूंकि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के होम डिपार्टमेंट और पुलिस की इंचार्ज हैं। ऐसे में कोलकाता पुलिस उनके फैमिली मेंबर्स के खिलाफ जांच करने की हिम्मत नहीं करेगी। इसलिए सीबीआई और ईडी इसकी जांच सौंपी जानी चाहिए।

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