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पश्चिम बंगाल में किस ‘क्रांति’ की आहट से डर गईं ममता बनर्जी?

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क्या बंगाल में क्रांति की आहट है? क्या इस क्रांति में ममता का गुरूर जल कर राख हो जाएगा? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार भाजपा के बढ़ते प्रभाव से त्रस्त है। बीते अप्रैल में कांठी उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस जीती तो जरूर लेकिन दूसरे नंबर पर भाजपा को देख पार्टी नेताओं के होश उड़ गए। हालिया स्थानीय निकाय के चुनाव नतीजे भी तो यही तस्दीक करते हैं कि बंगाल में ममता का किला दरकने की राह पर है। इसी बौखलाहट में अब ममता बनर्जी अपनी ही पार्टी के नेताओं के पर भी कतरने में लगी है।

अपने विश्वासपात्र से क्यों डर गईं ममता ?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पार्टी के राज्यसभा सांसद मुकुल रॉय से भी डर लग रहा है। शायद यही वजह है कि मुकुल रॉय को पार्लियामेंट की स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष (ट्रांसपॉर्ट व टूरिजम) पद से हटा दिया गया है। अब उनकी जगह राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन यह जिम्मेदारी संभालेंगे। दिलचस्प बात यह है कि कुछ साल पहले तक मुकुल रॉय को ममता बनर्जी का बेहद करीबी और विश्वासपात्र माना जाता था। तृणमूल कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में उनकी पहचान थी। ऐसे में हालिया दिनों में मुकुल रॉय के खिलाफ उठाए गए इन कदमों से साफ हो गया है कि ममता को मुकुल से डर लगने लगा है!

मुकुल से इसलिए डरने लगी है ममता !
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के उभार के कारण ममता बनर्जी को रात दिन यही डर सताने लगा है कि कहीं बीजेपी तृणमूल कांग्रेस को खत्म न कर दे। दरअसल मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा करने वाली ममता बनर्जी को समझ आ रहा है कि आम जनता के साथ पार्टी के कुछ नेता भी टीएमसी के कुशासन से मुक्ति पाने के लिये छटपटा रहे हैं। वे अब भाजपा के पीछे लामबंद होने लगे हैं। सियासी हलकों में चर्चा है कि मुकुल रॉय की बीजेपी नेताओं से नजदीकियां बढ़ रही हैं। उनके बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से भी मिलने की खबरें मीडिया में आ चुकी हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि मुकुल रॉय बीजेपी के साथ हो सकते हैं।

ममता को लगता है भाजपा से डर !
13 अगस्त को 7 नगर निकायों के 148 वार्डों के लिए हुए चुनावों के परिणाम 18 अगस्त को जब घोषित हुए तो कांग्रेस कोई भी सीट जीतने में सफल न हो सकी वहीं लेफ्ट की सहयोगी पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक को मात्र एक सीट पर जीत से संतोष करना पड़ा। इन सात नगर निकायों के 148 वार्डों के लिए हुए चुनावों में टीएमसी को 140 वार्डों पर जीत हासिल हुई , जिनमे उसे 85 प्रतिशत के आसपास वोट मिले, इन एकतरफा आंकड़ों को देखते हुए कहा जा रहा है कि चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली की गई है। बावजूद इसके भाजपा ने प्रदेश के 6 महत्वपूर्ण वार्डों पर अपना कब्जा जमाना ममता के लिए चौंकाने वाली बात थी। राज्य की स्थापित राजनीतिक पार्टियों के खत्म होने के साथ भाजपा का पश्चिम बंगाल में शिफर से शिखर तक की यह यात्रा ममता बनर्जी के लिए एक चुनौती बनकर सामने खड़ी हो गई है।

ममता बनर्जी को पीएम मोदी का डर!
सियासी हलकों में अक्सर ये चर्चा होती है कि आखिर ममता बनर्जी को बीजेपी या पीएम मोदी से किस बात का खुन्नस है जो इतना विरोध करती हैं। दरअसल ममता बनर्जी जिस डर से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से हाथ मिला रही हैं, वह डर बीते दिनों हुए नगर निकायों के चुनावों ने सही साबित कर दिया है। दरअसल ममता बनर्जी जानती हैं कि राज्य में भाजपा उनके भ्रष्ट प्रशासन के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त चुनौती है इसलिए वह अपने राजनीतिक विरोधियों कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट से भी समझौता करने का मन बना चुकी हैं। हाल में हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी ममता का यह डर जाहिर हुआ। दरअसल पश्चिम बंगाल में मोदी के नेतृत्व में भाजपा ही ममता बनर्जी की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सत्ता को 2021 में उखाड़ फेंकने का दम रखती है।

ममता को अपने ‘पापों’ से लगता है डर!
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी करतूतों के चलते बुरी तरह डरी हुई हैं। उनपर कई घोटालों के दाग हैं। नारदा, शारदा और रोजवैली स्कैम में उनपर आम लोगों के सैकड़ों करोड़ रूपये इधर से उधर करने के आरोप हैं। इन सभी मामलों की जांच चल रही है। ये जांच अदालतों की अगुवाई में केंद्रीय एजेंसियां कर रही हैं। ममता सरकार के कई पूर्व मंत्री और टीएमसी नेता इन्हीं मामलों में सलाखों के पीछे डाले जा चुके हैं। बस यही मामले ममता की कमजोर कड़ी हैं। वो जानती हैं की पीएम मोदी के रहते भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को दबाना नाममुकिन है। उन्हें लगता है कि निष्पक्ष जांच होने पर तो उन्हें भी जेल जाना पड़ सकता है। इसीलिए वो अब राजनीति में सिर्फ एक मोटो लेकर आगे बढ़ रही हैं। जैसे भी हो प्रधानमंत्री मोदी को उनकी जिम्मेदारियों को निभाने से रोक दिया जाए।

दरअसल अपनी सरकार और नेताओं के शारदा-नारदा घोटालों में फंसने के बाद उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि वो क्या करें? भाजपा के उभार और अपने भ्रष्टाचार के कारण उनके अंदर इस बात का डर घर कर चुका है कि एक न एक दिन तो जनता के सामने उनकी पोल खुलकर के रहेगी और उनके सियासी चेहरे पर चढ़ा नकाब उतर जाएगा। ममता के डर का इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है कि वह अब अपने साथी नेताओं को भी निशाना बना रही हैं।

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