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पश्चिम बंगाल में ममता की खिसक रही जमीन, खिलने को बेताब है कमल!

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वामपंथ के कुशासन और ममता बनर्जी की सांप्रदायिक राजनीति से उब चुकी पश्चिम बंगाल की जनता भारतीय जनता पार्टी में उम्मीद की किरण देख रही है। इसके संकेत बीते कई चुनावों में मिल चुके हैं। हालांकि परिणाम के स्तर पर भले ही यह कोई बड़ा अंतर नहीं दिखता है, लेकिन कई बार छोटी-छोटी बातें भविष्य की बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी यही बात लागू होती है। साफ है कि बिना शोर-शराबे के ही पश्चिम बंगाल में बड़े बदलाव की नींव पड़ चुकी है।

पार्टी को 10 हजार विस्तारकों के लक्ष्य के बदले मिले 17,500 विस्तारक
ममता बनर्जी की राजनीति कभी वामपंथियों के विरोध पर टिकी थी, लेकिन अब वह शिफ्ट होकर भाजपा विरोध हो गई है। दरअसल ममता बनर्जी की राजनीतिक जमीन धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई है और यह भाजपा को मजबूती प्रदान कर रही है। हाल के दिनों में सबसे ज्यादा अगर कोई चीज चौंकाने वाली हुई है तो वो है भाजपा के संगठन की मजबूती। पश्चिम बंगाल ने बीजेपी की संगठनात्मक स्थिति में जबरदस्त मजबूती आई है। बंगाल में 10,000 विस्तारकों का लक्ष्य था, लेकिन उसे 17,500 मिल गए। इतना ही नहीं इसमें मुस्लिमों की संख्या 381 है, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है। इससे साफ जाहिर होता है कि बंगाल में ममता और वामदलों के गढ़ में बीजेपी ने जोरदार दस्तक दी है।

वामपंथी और कांग्रेस से आगे निकली बीजेपी, बनी दूसरे नंबर की पार्टी
अगस्त महीने में पश्चिम बंगाल में सात शहरी निकायों के चुनावों के परिणाम देखें तो पश्चिम बंगाल में बदलाव के संकेत साफ है। सात नगर निगम और 119 नगर पालिकाएं में महज सात नगर पालिकाओं के चुनावी परिणाम ऐसे तो देखने में विशेष नहीं लगते लेकिन इसके निहितार्थ गहरे हैं। सत्ता के केंद्र में तृणमूल भले विराजमान है, लेकिन विपक्ष की खाली कुर्सी पर भाजपा का कब्जा हो रहा है। राज्य की सात नगरपालिकाओं की 148 सीटों पर वोट पड़े थे। इनमें से 140 सीटें तृणमूल कांग्रेस ने जीतीं जबकि भाजपा ने 7 सीटें जीतीं। हालांकि परिणाम में यह फासला बड़ा है, लेकिन आंकड़े अक्सर पूरी तस्वीर नहीं पेश करते। सच्चाई यह है कि भाजपा 77 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही है। विशेषकर उत्तर बंगाल की धूपगुड़ी नगरपालिका की 16 में से चार सीटें जीतकर पार्टी ने वहां राजनीतिक समीकरण बदलने के ठोस संकेत दिए हैं।

बीजेपी के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी से मिल रहे बीजेपी के विस्तार के संकेत
भारतीय जनता पार्टी ने वोट प्रतिशत के मामले में भी वामपंथी दलों और कांग्रेस को पछाड़कर दूसरा स्थान हासिल कर लिया है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उसने 17 प्रतिशत वोट पाकर दो सीटें जीती थीं। वहीं 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में उसे लगभग 10 प्रतिशत वोट मिले थे। इन चुनावों में भाजपा के तीन विधायक जीते थे, लेकिन धूपगुड़ी नगरपालिका चुनावों के परिणाम देखें तो तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के मतों में बहुत अंतर नहीं है। भाजपा को यहां 41.59 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी को चार सीटें भी मिलीं। जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 48.51 प्रतिशत वोट मिले और 12 सीटें जीतीं। साफ है कि पश्चिम बंगाल के नगर निकायों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि भाजपा का प्रदर्शन लगातार निखर रहा है।

ममता की तुष्टिकरण राजनीति से बहुसंख्यक समुदाय में फैला आक्रोश
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम प्रेम में पूरी तरह अंधी हो चुकी हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण को छिपाने के लिए स्वयं को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी ठेकेदार बताती हैं, लेकिन ये छद्म धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिंदुओं पर थोपी जाती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हिंदू विरोध की मानसिकता से किस कदर ग्रसित हैं इस बात की बानगी एक फिर देखने को मिली। दरअसल राज्य सरकार ने राज्य में दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन को लेकर 30 सितंबर की शाम 6 बजे से 1 अक्टूबर तक रोक का आदेश दिया था। इस फरमान के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में मोहर्रम के जुलूसों के दौरान दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर रोक रहनी थी। हालांकि हाईकोर्ट ने ममता के आदेश पर हथौड़ा चलाते हुए फैसला पलट दिया है, लेकिन मुस्लिमों को खुश करने के लिए ममता ने जो फतवा जारी किया इससे बहुसंख्यक समुदाय में काफी आक्रोश है।

ममता कुनबे के भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहते हैं पश्चिम बंगाल के आम लोग
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कई घोटालों के दाग हैं। नारदा, शारदा और रोजवैली स्कैम में उनपर आम लोगों के सैकड़ों करोड़ रूपये इधर से उधर करने के आरोप हैं। इन सभी मामलों की जांच चल रही है। ये जांच अदालतों की अगुवाई में केंद्रीय एजेंसियां कर रही हैं। ममता सरकार के कई पूर्व मंत्री और टीएमसी नेता इन्हीं मामलों में सलाखों के पीछे डाले जा चुके हैं। अब पश्चिम बंगाल में 145 फर्जी कंपनियों का पता लगा है इनमें 127 कंपनियां सरकार के रहनुमाओं से जुड़ी हुई बताई जा रही हैं। यही नहीं ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक पर घोटाले के आरोप हैं। उनकी कंपनी ‘लीप्स ऐंड बाउंड्स प्राइवेट लिमिटेड’ को राज किशोर मोदी नाम के एक शख्स ने भुगतान किया। बताया जा रहा है कि राज किशोर मोदी जमीन की सौदेबाजी का काम करता है। उसपर जमीन हथियाने और हत्या की कोशिश में शामिल होने जैसे आपराधिक आरोप हैं और उसके खिलाफ जांच भी चल रही है। 66 लाख 13 हजार 961 फर्जी राशन कार्ड पश्चिम बंगाल में पकड़े गए हैं और वे सभी के सभी अवैध बांग्लादेशियों के नाम पर हैं। यानि मुस्लिम तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार से परेशान जनता अब ममता मुक्त बंगाल चाहती है।

मता कुनबे में कलह, पश्चिम बंगाल के हेमंत बिस्वा साबित होंगे मुकुल रॉय !
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मुकुल रॉय ने पार्टी को अलविदा कह दिया है। टीएमसी में कभी ममता बनर्जी के बाद मुकुल रॉय दूसरे नंबर की हैसियत रखते थे। शारदा चिट फंड घोटाले में नाम आने के बाद मुकुल सीबीआई के रडार पर थे, लेकिन पार्टी लाइन से हटते हुए सीबीआई द्वारा पांच घंटे की पूछताछ के दौरान मुकुल ने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया था। कहा जाता है कि यहीं से ममता बनर्जी उनसे नाराज हो गई थीं, क्योंकि पार्टी की लाइन सीबीआई और केंद्र सरकार के खिलाफ थी। इसके बाद 2015 में ममता ने मुकुल को पार्टी के अखिल भारतीय महासचिव के पद से और राज्यसभा में पार्टी के नेता के पद से भी हटा दिया था।

दरअसल बंगाल की सियासत में ममता बनर्जी के लिए मुकुल रॉय काफी अहम थे। ममता बनर्जी टीएमसी का चेहरा हैं तो वहीं मुकुल रॉय चुनावी प्रबंधन के माहिर माने जाते हैं। बंगाल में टीएमसी के बूथ स्तर तक का प्रबंधन को संभालते। बंगाल की सत्ता के सिंहासन पर ममता के दो बार काबिज होने के पीछे मुकुल रॉय के चुनावी प्रबंधन का ही कमाल था। अब कयास यह है कि मुकल रॉय बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। दरअसल ठीक वही सीन दोहराया जा रहा है जो असम चुनाव में हुआ था। जिस तरह असम चुनाव से पहले बीजेपी ने कांग्रेस के हेमंत विस्वा को अपने साथ मिलाया था उसी तर्ज पर बंगाल में मुकुल रॉय को पार्टी से जोड़ने की कवायद चल रही है। बता दें कि विस्वा ने भी आरोप लगाया था कि राहुल गांधी असम में उनकी अनदेखी कर रहे थे जिसके कारण वह बीजेपी में चले गए थे और कांग्रेस की करारी हार हुई थी।

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