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आंदोलन स्थल पर पसरा सन्नाटा: सिंघू, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर घटी किसानों की भीड़

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नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से किसानों का मोहभंग होने लगा है। शुरू होने साथ ही खालिस्तान समर्थन वाले नारों के चलते विवादों में आया यह आंदोलन अपने साथ कई और विवादों को जोड़ता गया। मोदी तू मर जा जैसे नारे लगने की बात हो या उमर खालिद, शरजील इमाम, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव जैसे आरोपियों को रिहा करने की या फिर पिज्जा- मसाजर जैसी फाइव स्टार सुविधाओं की, आंदोलन शुरू से विवादों में रहा है। अब टूलकिट विवाद के बाद किसान इससे दूरी बनाने लगे हैं। उन्हें लगने लगा है कि किसान आंदोलन के जरिए देश को अस्थिर करने की विदेशी साजिश रची जा रही है। किसान आंदोलन के तीन प्रमुख जगहों- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भीड़ कम होती जा रही है। अब आंदोलन स्थलों पर कुछ ही लोग बचे हुए हैं। कुछ दिन पहले जहां हजारों कैंप नजर आते थे, अब उनकी संख्या आधे से भी कम हो गई है।

गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की संख्‍या न के बराबर हो गई है। मंच खाली पड़े हैं और सड़कों पर किसान भी नदारद दिखाई दे रहे हें। किसान आंदोलन के नाम पर अब सिर्फ सड़क बंद है। कई जगहों पर लंगर भी कम हो गए हैं। टेंट और लंगर सेवा के पास इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई पड़ रहे हैं।

किसानों आंदोलन के तीन महीने होने वाले हैं। केंद्र सरकार की ओर से बार-बार सभी मुद्दों पर बात और विचार करने के बाद भी किसान नेताओं के अड़ियव रुख से आम किसान खुश नहीं हैं। कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के कहने के बाद भी किसान नेता ये बताने को तैयार नहीं हैं कि आखिर कानून में कमी है तो क्या। ऐसे में दिल्ली बॉर्डर से तो किसान अपने गांवों की ओर लौटने ही लगे हैं, कांग्रेस शासित राजस्थान में भी आंदोलन कमजोर पड़ रहा है।

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